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गांधी, पटेल और मौलाना आजाद आदि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने ब्रितानी साम्राज्यवाद के साथ-साथ नाजीवाद की भी निन्दा करने की नीति अपनायी द्वितीय विश्वयुद्ध के समय भारत पर ब्रिटिश उपनिवेश था। इसलिए आधिकारिक रूप से भारत ने भी नाज़ी जर्मनी के विरुद्ध १९३९ में युद्ध की घोषणा कर दी। ब्रिटिश राज ने २० लाख से अधिक सैनिक युद्ध के लिए भेजा जिन्होने ब्रिटिश कमाण्ड के अधीन धुरी शक्तियों के विरुद्ध लड़ा। इसके अलावा सभी देसी रियासतों ने युद्ध के लिए बड़ी मात्रा में अंग्रेजों को धनराशि प्रदान की। मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश युद्ध के प्रयासों का समर्थन किया, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मांग की कि भारत को पहले स्वतन्त्र किया जाय तब कांग्रेस ब्रिटेन की सहायता करेगी। ब्रिटेन ने कांग्रेस की मांग स्वीकार नहीं की, फिर भी कांग्रेस अघोषित रूप से ब्रिटेन के पक्ष में और जर्मनी आदि धूरी राष्ट्रों के विरुद्ध काम करती रही। बहुत बाद में अगस्त 1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा की, जो बिलकुल प्रभावी नहीं रहा। इस बीच, सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में, जापान ने भारतीय युद्धबन्दियों की एक सेना स्थापित की, जिसे आजाद हिन्द फौज नाम दिया गया था। नेताजी के नेतृत्व में इस सेना ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी और भारत के कुछ भूभाग को अंग्रेजों से मुक्त भी कर दिया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ही 1943 में बंगाल में एक बड़े अकाल के कारण भुखमरी से लाखों लोगों की मौत हो गई। मित्र देशों की मुहिम में भारत की भागीदारी मजबूत रही। भारत की वित्तीय, औद्योगिक और सैन्य सहायता के कारण ही नाजी जर्मनी और इंपीरियल जापान के विरुद्ध ब्रिटिश अभियान को सफलता मिल पायी।[1] भारत की सामरिक स्थिति (हिंद महासागर की नोक पर), इसके द्वारा बड़े हथियारों का उत्पादन, और इसकी विशाल सशस्त्र सेनाओं ने दक्षिण-पूर्व एशियाई थिएटर में इंपीरियल जापान की प्रगति को रोकने में एक निर्णायक भूमिका निभाई। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र-सेना-बलों में भारतीय सेना सबसे बड़ी सेना थी। इसने उत्तर और पूर्वी अफ्रीकी अभियान, पश्चिमी रेगिस्तान अभियान में भाग लिया था। जब यह विश्वयुद्ध अपने चरम पर था तब 25 लाख से अधिक भारतीय सैनिक पूरे विश्व में अक्षीय-राष्ट्रों की सेनाओं से लड़ रहे थे।[2] ८७ हजार से अधिक भारतीय सैनिक युद्ध में मारे गए थे। युद्ध की समाप्ति पर, भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी औद्योगिक शक्ति के रूप में उभरा था। १९४२ से भारतीय सेना के मुख्य सेनानायक फिल्ड मार्शल सर क्लाउड आचिनलेक (Claude Auchinleck) ने कहा था कि यदि भारतीय सेना नहीं होती तो अंग्रेज दोनों युद्धों (प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध) नहीं जीत पाते। [3] सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में प्रथम विश्व युद्ध का सबसे बड़ा योगदान क्या था?प्रथम विश्वयुद्ध
गठबन्धन सेना की विजय। जर्मनी, रुसी, ओट्टोमनी और आस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य का अन्त। युरोप तथा मध्य पूर्व में नये देशों की स्थापना। जर्मन-उपनिवेशों में अन्य शक्तियों द्वारा कब्जा।
अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में द्वितीय विश्व युद्ध में सबसे बड़ा योगदान किसका था?इस युद्ध में द्वितीय विश्वयुद्ध में 61 देशों ने हिस्सा लिया था और ग्रुप में बंटकर एक दूसरे के खिलाफ हमला किया था. द्वितीय विश्व युद्ध में मित्रराष्ट्रों के द्वारा पराजित होने वाला अंतिम देश जापान था. अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे बड़ा योगदान संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना है.
दूसरे विश्व युद्ध में भारत की क्या भूमिका थी?जर्मनी और सोवियत संघ ने 28 सितंबर, 1939 की एक द्विपक्षीय संधि से पोलैंड की संप्रभुता का विनाश करके उसे आपस में विभाजित कर लिया। इस बीच अन्य अनेक देशों ने भी जर्मनी के विरुद्ध आक्रमण की घोषणा कर दी। इस प्रकार पोलैंड पर जर्मन आक्रमण ने द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ कर दिया। (Pact of Steel) कहा गया।
प्रथम विश्व युद्ध में किसकी हार हुई थी?प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई। इसके बाद विजयी मित्र राष्ट्रों जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, अमेरिका और जापान आदि देश शामिल थे, उन्होंने जर्मनी को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया।
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