अशोक के 13 शिलालेख का वर्णन - ashok ke 13 shilaalekh ka varnan

नमस्कार दोस्तो इस लेख में हम अशोक के प्रमुख शिलालेख एवं उनमें वर्णित विषय PDF से प्रतियोगी परीक्षाओं में इस  अध्याय से भी प्रश्न पूछे जाते है तो आइये जानते है । 

अशोक के प्रमुख शिलालेख एवं उनमें वर्णित विषय PDF

अशोक के 13 शिलालेख का वर्णन - ashok ke 13 shilaalekh ka varnan
अशोक के 13 शिलालेख का वर्णन - ashok ke 13 shilaalekh ka varnan
शिलालेखविषयपहला शिलालेखपशुबलि का निंदा का उल्लेख किया गया हैपहला पृथक शिलालेखसभी मनुष्य मेरी संतान है का उल्लेख किया गया है।दूसरा शिलालेखमनुष्य एवं पशु दोनों की चिकित्सा व्यवस्था तथा सीमांत राज्यों  जैसे – चोल, पांड्य, केरलपुत्त एवं सीलोन का उल्लेख किया गया है ।तीसरा शिलालेखइस में राजकीय अधिकारियों युक्त रज्जुक एवं प्रादेशिक को हर पांचवे वर्ष दौरे पर जाने का आदेेशचौथा शिलालेखभेरी घोष की जगह धम्म घोष की घोषणापांचवा शिलालेखधम्म महामात्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी व राज्यभिषेक के 13वे वर्ष मेंछठा शिलालेखप्रजा के कार्य के लिए मुझे हर जगह सूचना दे सकते है ।सातवां शिलालेखआत्मनियंत्रण तथा मस्तिष्क की शुद्धता का उपदेशआठवां शिलालेखअशोक की तीर्थयात्राओं का उल्लेखनौवां शिलालेखसच्ची भेंट एवं सच्चे शिष्टाचार का उल्लेखदसवां शिलालेखधम्म के पालन का उल्लेख किया गया है ।बारहवां शिलालेखधार्मिक सहिष्णुता की नीति का उल्लेखतेरहवां शिलालेखकलिंग युद्ध , पड़ोसी राजाओं का वर्णन एवं आटविक राज्यों का उल्लेख

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जाने 

कौशाम्बी अभिलेख को रानी का अभिलेख कहा जाता है।

अशोक के समय मौर्य साम्राज्य में प्रांतों की संख्या 5 थी । प्रांतों को चक्र कहा जाता था।

प्रातों के प्रशासक को कुमार या आर्यपुत्र के नाम से जाना जाता है।

प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी , जिसका मुखिया ग्रामिक होता था।

अशोक का राज्यभिषेक 269 ई. पू. में हुआ था।

राजा बनने से पहले अशोक अवंति (उज्जयिनी ) का उपराजा या वायसराय था।

अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था।

अभिलेख में अशोक को देवानापिय तथा देवानामपियदसि उपाधियों से संबोधित किया गया है।

राज्यभिषेक के आठवें वर्ष 261 ई. पू. में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया था।

अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु श्रीलंका भेजा था।

सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप को अशोक के अभिलेख पढ़ने में सफलता मिली थी।

अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ई. में टेफेंथलर ने की थी इनकी संख्या 14 है।

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मौर्य साम्राज्य के आखरी महान सम्राट अशोक द्वारा 269 ईसापूर्व से 232 ईसापूर्व तक के अपने शासनकाल में चट्टानों और पत्थर के स्तंभों पर कई नैतिक, धार्मिक और राजकीय शिक्षा देते हुए लेख खुदवाए गए थे, जिन्हें अशोक के अभिलेख या अशोक के शिलालेख कहा जाता है।

शिलालेख उन लेखों को कहा जाता है जो चट्टानों पर खोद कर लिखे जाते हैं। अशोक के शिलालेख आधुनिक भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में मिलते है, जहां-जहां पर मौर्य साम्राज्य का अधिकार था। ये सभी लेख सम्राट अशोक द्वारा कलिंग युद्ध के बाद के वर्षों में लिखवाए गए थे।

सम्राट अशोक ने शिलालेक क्यों लिखवाए?

कलिंग युद्ध में हुई आपार हानि की वजह से सम्राट अशोक को बहुत दुख पहुँचा था और उन्होंने अपना बाकी सारा जीवन प्रजा की भलाई के लिए अर्पित कर दिया। प्रजा को नैतिक शिक्षाएं देने के लिए उन्होंने हर गांव, नगर, चौराहे पर हज़ारो की संख्या में पत्थरों पर नैतिक संदेश लिखवा दिए। एक शिलालेख में सम्राट खुद वर्णन करते है कि उन्होंने क्यों ये अभिलेख लिखवाए थे-

“यह लेख मैंने इसलिए लिखवाया है कि लोग इसके अनुसार आचरण करें और यह चिरस्थायी रहे। जो इसके अनुसार आचरण करेगा, वह पुण्य का काम करेगा।”

सम्राट अशोक के कुछ शिलालेखों की जानकारी तो इतिहासकारों को पहले से थी लेकिन नए शिलालेख खोज़ना काफी मुश्किल था जो जंगलों और वीरानों में कहीं छिपे पड़े थे। अतः इस कार्य को शिकारियों, भौगोलिकों व साहसी व्यक्तियों द्वारा पुरा किया गया।

सन 1750 से आज़ादी तक सम्राट अशोक के कई नए शिलालेख खोजे गए। ध्यान रखने वाली बात यह है कि यह शिलालेख 2300 साल पहले लिखवाए गए थे और हज़ारों की संख्या में लिखवाए गए थे। इतने लंबे समय में कई शिलालेखों को लोगों द्वारा अनजाने में या जानबूझकर नष्ट कर दिया गया था लेकिन सौभाग्यवश कई आज हमारे पास है और ये मौर्य कालीन इतिहास का मुख्य स्रोत हैं।

सम्राट अशोक के शिलालेख कितने प्रकार के हैं?

सम्राट अशोक के अभिलेखों को मुख्य रूप से 5 भागों में बाटा जा सकता है-

1. चतुदर्श शिलालेख या 14 शिलालेख वाली चट्टानें (Major Rock Edicts)
2. लघु शिलालेख (Minor Rock Edicts)

3. बड़े स्तम्भलेख या सप्त स्तम्भलेख (Major Pillar Edicts)
4. लघु स्तम्भलेख (Minor Pillar Edicts)

5. गुफालेख (Cave Inscriptions)

अशोक के 13 शिलालेख का वर्णन - ashok ke 13 shilaalekh ka varnan

पहले दो प्रकार के अभिलेख चट्टानों या पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़ों पर खोद कर लिखे गए हैं। (Image 1)

अगले दो प्रकार के लेख पत्थर के गोल स्तंभों पर लिखे गए हैं। (Image 2)

तीसरे प्रकार के लेखों की संख्या ज्यादा नहीं है। ये बिहार में बाराबार की पहाड़ियों में एक साथ 3 गुफाओं में लिखे गए है। अशोक द्वारा लिखवाए गए गुफालेख और कहीं भी नहीं मिलते हैं। (Image 3)

यह सभी शिलालेख इतने महत्वपूर्ण है कि संक्षेप में वर्णन करने से कई महत्वपूर्ण जानकारियां रह जाएंगी। इसलिए हमने सभी 5 प्रकार के शिलालेखों का वर्णन अलग-अलग 5 लेखों में विस्तार से किया है। (अभी पोस्ट करने बाकी हैं।)

बहराल इस पोस्ट में नीचे सभी शिलालेखों से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां नीचे दी गई हैं-

अशोक के शिलालेख कहां-कहां पाए गए हैं?

आप नीचे दिए चित्र से समझ सकते है कि सम्राट अशोक के शिलालेख कहां-कहां पाए गए हैं। Pillar Edicts में दोनो प्रकार के स्तम्भलेख – बड़े और लघु शामिल हैं।

अशोक के 13 शिलालेख का वर्णन - ashok ke 13 shilaalekh ka varnan

Image Source – Wikimedia

सम्राट अशोक के शिलालेख किस भाषा में लिखे गए हैं?

सम्राट अशोक के सभी लेख प्राकृत भाषा में लिखे गए है जिन्हें लिखने के लिए दो लिपियों का उपयोग किया गया है – ब्राह्मी लिपि और खरोष्ठी लिपि।

पाकिस्तान के शाहबाज गढ़ी और मान सेहरा को छोड़कर जितने भी शिलालेख पाए गए है वो सभी ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं।

शाहबाज गढ़ी और मान सेहरा में पाए गए शिलालेख खरोष्ठी लिपी में लिखे गए हैं। यह दोनो शिलालेख पहले प्रकार के शिलालेख हैं। (चतुदर्श शिलालेख या 14 शिलालेख वाली चट्टानें – Major Rock Edicts)

अशोक के दो लेख अफगानिस्तान में भी मिले हैं। जिनमें से एक युनानी भाषा में लिखा हुआ है और दूसरा यूनानी और अरामाई भाषा के मिले जुले मिश्रण से। यह दोनों प्राकृत लिपि में नहीं है। एक शिलालेख लघु है और दूसरा 14 लेखों वाला।

प्राकृत भाषा – भारतीय आर्यभाषाओं को तीन भागों में बांटा गया है – प्राचीन, मध्यकालीन और अर्वाचीन। पहली प्रकार की भाषाओं का समय 2000 से 600 ईसापूर्व तक का है जिनमें वैदिक संस्कृति और संस्कृत भाषा शामिल है। मध्यकालीन भाषाओं में मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी आदि भाषाएं शामिल है। इन सभी मध्यकालीन आर्यभाषाओं के संयुक्त रूप को प्राकृत भाषा कहा जाता है। तीसरी प्रकार की अर्वाचीन भाषाओं में हिंदी, गुजराती, मराठी और बांग्ला जैसी भाषाएं आती है जो अब भी चल रही हैं।

सम्राट अशोक के ज्यादतर लेख प्राकृत भाषा के ‘मागधी’ स्वरूप में लिखे गए थे।

ब्राह्मी लिपी – ब्राह्मी लिपी संभवत: सिन्धु घाटी की उस प्रागैतिहासिक लिपि से निकली है जो अर्द-चित्रसंकेत के रूप में थी। ब्राह्मी लिपी का प्रचार भारतवर्ष के अधिकतर भाग में था। ब्राह्मी लिपि न केवल वर्तमान भारत के भिन्न-भिन्न भागों में प्रचलित थी बल्कि संस्कृत या द्रविड़ से निकली हुई अनेक लिपियों की जननी है। इसके सिवाए ये दक्षिण पूर्वी एशिया में तिब्बती, सीलोनी, बर्मी तथा जावानी आदि अनेक लिपियाँ भी उसी से निकली हैं।

खरोष्टी लिपि – खरोष्टी लिपि पश्चिमी एशिया की एरमेइक लिपि का ही रूपान्तर है और इसका प्रचार भारतवर्ष के उत्तरापथ प्रदेश में तब हुआ जब वह प्रदेश सिकंदर के हमले से पहले दो सदियों तक फारस के एकमेनियन राजाओं के अधिकार में था। खरोष्टी लिपि फारसी लिपि की तरह दाहिनी ओर से बाई ओर को लिखी जाती है। खरोष्टी कुछ सदियों के बाद आप ही अपनी मृत्यु से मर गयी, क्योंकि वह संस्कृत या प्राकृत भाषाओं को लिखने में समर्थ न थी।

शिलालेखों में अशोक का नाम

गुर्जरा का लघु शिलालेख तथा मास्की का लघु शिलालेख केवल ये दो ही अशोक के अभिलेख है जिनमें ‘अशोक’ नाम पाया जाता है। अशोक के अन्य अभिलेखों में उसका उल्लेख केवल “देवनांप्रिय प्रियदर्शी राजा” ही पाया गया है। “देवनांप्रिय प्रियदर्शी राजा” का अर्थ है- देवताओं के प्यारे और सबों पर कृपादृष्टि रखने वाले राजा।

कभी कभी सम्राट का उल्लेख केवल “देवानां प्रिय” या “राजा प्रियदर्शी” के नाम से भी किया गया है।

साहित्यक दन्तकथाओं में प्रायः अशोक का उल्लेख प्रियदर्शी या प्रियदर्शन के नाम से भी हुआ है। पर कुछ दूसरे प्राचीन राजा जो मौर्य साम्राज्य के राजा नहीं थे और अशोक के परिवार के कुछ सदस्य भी “देवानां प्रिय” और “प्रियदर्शन” के नाम से प्राचीन साहित्य में लिखे गए हैं (शिलालेखों में नही)।

सम्राट अशोक ने “प्रियदर्शी” नाम बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद दया और निष्पक्षता की नीति का अनुसरण करने के कारण ग्रहण किया या फिर किसी और कारण से, इसके बारे में कुछ नहीं पता।

अशोक का धर्म

अशोक के सभी शिलालेखों का प्रधान विषय ‘धर्म‘ है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था लेकिन उसके शिलालेखों में जो बातें है वो बौद्ध धर्म की शिक्षाओं से जुड़ी ना होकर नीतिशिक्षा से है, जिसका प्रचार अशोक ने भगवान बुद्ध के उपदेशों का सार समझ कर किया।

अशोक ने कुछ सद्गुणों को ही धर्म समझा था। इन सद्गुणों में कम से कम पाप की मात्रा तथा अधिक से अधिक परोपकार की मात्रा तथा दया, दान, सत्य, पवित्रता और सज्जनता आदि गुण सम्मिलित थे। शिलालेखों में सदाचार, विचार की शुद्धता, कृतज्ञता, दृढ़भक्ति आदि की प्रशंसा तथा दूसरों से जलन, घमंड, गुस्से, क्रुरता और हिंसा की निंदा की गई है।

आपको सम्राट अशोक के सभी शिलालेखों में दी हुई शिक्षाओं के बारे में जानना चाहिए। इसलिए हमने सभी तरह के शिलालेखों के बारे में अलग लेखों में विस्तार से बताया है।


Note : आप सम्राट अशोक के सभी प्रकार के शिलालेखों के बारे में जरूर पढ़े। अगर आपको इन शिलालेखों के बारे में कोई अतिरिक्त जानकारी चाहिए, तो वो आप Comments के माध्यम से पूछ सकते है। धन्यवाद।

अशोक के 13वें शिलालेख में क्या है?

तेरहवां शिलालेख : अशोक के राज्यविषेक के 8वें वर्ष कलिंग विजय का उल्लेख है, सीमावर्ती राज्यों और 5 यूनानी राजाओं का उल्लेख है, अशोक अपने उतराधिकारियों को धम्म विजय के लिए कहता है।

अशोक के 14 शिलालेख कौन से हैं?

शिलालेखों और स्तम्भ लेखों को दो उपश्रेणियों में रखा जाता है। 14 शिलालेख सिलसिलेवार हैं, जिनको चतुर्दश शिलालेख कहा जाता है। ये शिलालेख शाहबाजगढ़ी, मानसेरा, कालसी, गिरनार, सोपारा, धौली और जौगढ़ में मिले हैं

अशोक का सबसे छोटा शिलालेख कौन सा है?

अशोक के प्रमुख लघु अभिलेख साँची सारनाथ, कौशाम्बी, तथा निगालीसागर से प्राप्त हुए हैं। रुम्मीदेई अभिलेख अशोका का सबसे छोटा अभिलेख है।

अशोक का सबसे बड़ा शिलालेख कौन सा है?

अशोक का कौन सा शिलालेख सबसे लंबा है? Notes: अशोक के 13वें शिलालेख सबसे लंबा शिलालेख है। इसमें अशोक की कलिंग विजय का वर्णन है। इसके अलावा अशोक के धम्म की ग्रीक, यवन, सीलोन आदि राजाओं पर विजय का वर्णन है।