UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण). Show
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण)विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक) प्रश्न 1 अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में तब तक परिवर्तन करती रहेगी जब तक MC = MR नहीं हो जाता। यदि सीमान्त आय सीमान्त लागत से अधिक है तो फर्म अपने उत्पादन को बढ़ाकर लाभ को अधिकतम करेगी और यदि सीमान्त आय सीमान्त लागत से कम है तो फर्म अपने उत्पादन को कम करके लाभ को अधिकतम करेगी। अतः फर्म का सन्तुलन बिन्दु वहाँ निश्चित होगा जहाँ सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर होती हैं। इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होता है और उसमें विस्तार व संकुचन की प्रवृत्ति नहीं होती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की औसत आय व सीमान्त आय रेखाएँ एक माँग के रूप में बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती हुई होती हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि फर्म द्वारा एक रूप वस्तु का उत्पादन नहीं किया जाता। प्रत्येक फर्म यद्यपि एकाधिकारी नहीं होती, परन्तु एकाधिकारी प्रवृत्ति रखती है। प्रत्येक फर्म वस्तु की कीमत अपने ढंग से निर्धारित करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म उद्योग से कीमत ग्रहण नहीं करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय औसत आय से कम होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि एक अतिरिक्त इकाई को बेचने के लिए फर्म को वस्तु की कीमत में थोड़ी-सी कमी करनी पड़ती है। इसलिए फर्म की औसत आय सीमान्त आय से अधिक होती है। 1. अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल में मूल्य व उत्पादन-निर्धारण – अल्पकाल में यह सम्भव हो सकता है कि फर्म अपने उत्पादन का समायोजन माँग के अनुसार न कर सके। इसलिए अल्पकाल में फर्म की कीमत-निर्धारण की स्थिति माँग के अनुरूप होती है। यदि वस्तु की माँग अधिक होती है और वस्तु का निकट-स्थानापन्न नहीं होता तो फर्म वस्तु की कीमत ऊँची निर्धारित करने की स्थिति में होगी। इसके विपरीत, यदि वस्तु की माँग कम होती है तो मुल्य-निर्धारण नीची कीमत पर होगा। यदि माँग अत्यधिक कमजोर है तो कीमत और भी अधिक नीची निर्धारित होगी। इस प्रकार फर्म तीन स्थितियों में पायी जा सकती है उपर्युक्त तीनों स्थितियों की हम निम्नलिखित व्याख्या कर सकते हैं रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, OX-अक्ष पर उत्पादन MR की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत और लागत दिखायी गयी है। फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि इस बिन्दु पर फर्म की उत्पादन की मात्रा फर्म द्वारा असामान्य लाभ या सीमान्त आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। सन्तुलन लाभ की स्थिति उत्पादन OS तथा कीमत PO है।। (ब) शून्य या सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति – फर्म में सामान्य लाभ की स्थिति उस समय होती है जब वस्तु की माँग कम होती है तथा फर्म ऊंची कीमत निश्चित करने की स्थिति में नहीं होती। ऐसी स्थिति में फर्म की औसत आय (AR) उसकी औसत लागत (AC) के बराबर होती है, जिसके कारण फर्म न तो लाभ प्राप्त करती है और न हानि ही अर्थात् फर्म सन्तुलन की स्थिति औसत आय में होती है। रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, OX-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत व लागत दिखायी गयी है। फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि यहाँ पर उसकी सामान्य आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। फर्म को औसत आय : और औसत लागत भी बराबर (AR = AC) हैं। इसलिए फर्म केवल सामान्य लाभ अथवा शून्य लाभ प्राप्त कर रही है। (स) हानि की स्थिति – जब वस्तु की माँग इतनी अधिक कम हो लाभ की स्थिति कि फर्म को अपनी वस्तु को विवश होकर कम कीमत पर बेचना पड़े हैं। तब फर्म हानि की स्थिति में होती है। इस स्थिति में फर्म की औसत आय औसत लागत से कम होती है। इसलिए फर्म हानि उठाती है। रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, Ox-अक्ष पर उत्पादन तथा OY-अक्ष पर कीमत और लागत दिखायी गयी हैं। फर्म E। बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि यहाँ पर उसकी सीमान्त हैं आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। क्योंकि फर्म की । औसत लागत उसकी औसत आय से अधिक है, इसलिए फर्म को हानि हो रही है। 2. अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में कीमत व उत्पादन-निर्धारण – दीर्घकाल में फर्म स्थिर सन्तुलन की स्थिति में होती है। अतः दीर्घकाल में फर्म केवल सामान्य लाभ अर्जित करती है। यदि दीर्घकाल में कुछ फर्मे अथवा उद्योग असामान्य लाभ अर्जित करते हैं तो ऊँचे लाभ से आकर्षित होकर अन्य फर्ने उद्योग में प्रवेश करने लगती हैं, जिसके कारण उस वस्तु के निकट-स्थानापन्न का उत्पादन प्रारम्भ हो जाता है। लाभ गिरकर सामान्य स्तर पर आ जाता है। प्रतियोगिता के कारण असामान्य लाभ समाप्त हो जाएगा और प्रत्येक फर्म केवल सामान्य लाभ ही अर्जित करेगी। रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, Ox-अक्ष पर उत्पादन ४ व बिक्री की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत दिखायी गयी है। इस चित्र में AR तथा MR क्रमशः औसत आय तथा सीमान्त आय वक्र हैं तथा AC और MC क्रमशः औसत लागत व सीमान्त लागत वक्र हैं। E फर्म का सन्तुलन बिन्दु है जिस पर सीमान्त आय और सीमान्त लागत है (MR = MC) बराबर हैं। OS सन्तुलन उत्पादन तथा ON कीमत है। फर्म – की औसत आय व सीमान्त लागत भी बराबर हैं। अत: फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त हो रहा है। प्रश्न 2 लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक) प्रश्न 1 फेयर चाइल्ड के शब्दों में, “यदि बाजार उचित प्रकार से संगठित नहीं होता, यदि क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे के सम्पर्क में आने में कठिनाई का अनुभव करते हैं और वे दूसरे के द्वारा क्रय की गयी वस्तुओं और उनके द्वारा दिये गये मूल्यों की तुलना करने में असमर्थ रहते हैं तो ऐसी स्थिति को अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं। जे० के० मेहता के शब्दों में, “यह बात भली-भाँति स्पष्ट हो गयी है कि विनिमय की प्रत्येक स्थिति वह स्थिति है जिसको आंशिक एकाधिकार की स्थिति कहते हैं और यदि आंशिक एकाधिकार को दूसरी ओर से देखा जाए तो यह अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति है। प्रत्येक स्थिति में प्रतियोगिता तत्त्व तथा एकाधिकार तत्त्व दोनों का मिश्रण है।” अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ
प्रश्न 2 अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत या मूल्य-निर्धारण अपूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादक का पूर्ति पर तो पूर्ण नियन्त्रण होता है, किन्तु माँग पर कोई प्रत्यक्ष नियन्त्रण नहीं होता; अतः अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता माँग की मूल्य सापेक्षता को ध्यान में रखकर कीमत का निर्धारण करता है। यदि वस्तु की मॉग मूल्ये सापेक्ष है तो विक्रेता उसकी कम कीमत निश्चित करेगा, क्योंकि मूल्य सापेक्ष वस्तुओं की कीमत में थोड़ी-सी भी कमी हो जाने पर उनकी माँग बहुत अधिक बढ़ जाती है; अत: कीमत कम निर्धारित होने के कारण यद्यपि प्रति इकाई लाभ तो कम हो जाता है, परन्तु माँग के बढ़ जाने के कारण कुल लाभ की मात्रा अधिक हो जाती है। इसके विपरीत, यदि वस्तु की माँग निरपेक्ष है तो कीमत में बहुत कमी होने पर भी उसकी माँग में विशेष वृद्धि नहीं होती और कीमत में वृद्धि होने पर माँग में कोई विशेष कमी नहीं होती। अतः ऐसी वस्तुओं की कीमतें ऊँची ही निश्चित की जाती हैं, क्योंकि कीमतें चाहे कुछ भी हों, लोग उन्हें अवश्य खरीदेंगे। पूर्ति पक्ष के सम्बन्ध में यह विचार करना पड़ता है कि वस्तु के उत्पादन में प्रतिफल का कौन-सा नियम लागू हो रहा है ? यदि वस्तु का उत्पादन वृद्धिमान प्रतिफल नियम के अन्तर्गत हो रहा है तब वस्तु की कम कीमत निश्चित की जाएगी, इसके विपरीत, यदि उत्पादन ह्रासमान प्रतिफल नियम के अन्तर्गत हो रहा है तब वह वस्तु की कीमत जितनी अधिक वसूल कर सकता है, करेगा। आनुपातिक प्रतिफल नियम के अन्तर्गत उत्पादित वस्तु की कीमत उसकी माँग के अनुसार निर्धारित की जाएगी अर्थात् माँग के बढ़ने पर कीमत अधिक तथा माँग के घटने पर कम होगी। । संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विक्रेता अपनी वस्तु की कीमत को निश्चित करते समय प्रत्येक कीमत पर अपने कुल लाभ का अनुमान लगाता है और वही कीमत निश्चित करता है जिस पर कि उसे अधिकतम कुल निवल लाभ अथवा आय प्राप्त होती हैं। प्रश्न 3 प्रश्न 4 अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में सन्तुलन बिन्दु का निर्धारण – अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में आय वक्र अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण में माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इनमें कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं। अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में जब तक परिवर्तन करती रहेगी तब तक MR = MC अर्थात् सीमान्त आय = सीमान्त लागत नहीं हो जाता। यदि सीमान्त आय, सीमान्त लागत से अधिक है तो फर्म अपने उत्पादन को बढ़ाकर लाभ को अधिकतम करेगी और यदि सीमान्त आय, सीमान्त लागत से उत्पादन की मात्रा कम है तो फर्म अपने उत्पादन को कम करके लाभ को फर्म द्वारा असामान्य लाभ की स्थिति अधिकतम करेगी। अतः फर्म को सन्तुलन बिन्दु वहाँ निश्चित होगा जहाँ सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर होती हैं। इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होता है और उससे विस्तार व संकुचन की प्रवृत्ति नहीं होती है। प्रश्न 5 E = सन्तुलन बिन्दु LM = औसत आय LM = औसत लागत (… औसत लाभ = औसत आय) अत: लाभ की मात्रा शून्य (सामान्य लाभ) है। अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक) प्रश्न 1 उत्तर: उपर्युक्त रेखाचित्र की स्थिति में फर्म लाभ की स्थिति को दर्शाती है। प्रश्न 2 निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक) प्रश्न 1 प्रश्न 2 प्रश्न 3
प्रश्न 4 प्रश्न 5: प्रश्न 6 प्रश्न 7 प्रश्न 8 प्रश्न 9 प्रश्न 10 बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक) प्रश्न 1 प्रश्न 2 प्रश्न 3 प्रश्न 4 प्रश्न 5 प्रश्न 6 प्रश्न 7 प्रश्न 8 प्रश्न 9 We hope the UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण), drop a comment below and we will get back to you at the earliest. अपूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं?अपूर्ण प्रतियोगिता हैमंडी विफलता की स्थिति जिसमेंमांग का नियम और कीमतों को समझने के लिए आपूर्ति का स्वतंत्र रूप से उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि इसमें कीमतों में संतुलन होना चाहिए। इस स्थिति में, कंपनियों के पास बाजार की कीमत को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त बाजार शक्ति हो सकती है।
अपूर्ण प्रतियोगिता क्या है अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं लिखिए?अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रतियोगिता तो होती है, किन्तु वह इतनी अपूर्ण तथा दुर्बल होती है कि माँग और पूर्ति की शक्तियों को कार्य करने का पूर्ण अवसर नहीं मिलता। क्रेताओं और विक्रेताओं को बाजार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है। परिणामस्वरूप बाजार में कीमतें भिन्न-भिन्न होती हैं।
अपूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है?अपूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य एकाधिकार की दशा के समान निर्धारित होता है, पूर्ण प्रतियोगिता की दशा के समान नहीं। कारण, अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत बाजार छोटे-छोटे भागों में विभक्त हो जाता है और प्रत्येक भाग में वहाँ के उत्पादक की स्थिति एक एकाधिकारी के समान होती है, जो अपने उद्योग से अधिकतम लाभ कमाना चाहता है।
पूर्ण और अपूर्ण प्रतियोगिता में क्या अंतर है?ठीक इसके विपरीत जब पूर्ण प्रतियोगिता की एक या एक से अधिक शर्तें पूरी नहीं हो पाती हैं। तब ऐसी स्थिति में वह बाज़ार अपूर्ण प्रतियोगी बाज़ार कहलाता है।
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