आरसी शब्द किस भाषा का है - aarasee shabd kis bhaasha ka hai

मैं-मैं तू-तू

बहस, गाली-ग्लोच, झगड़ा

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तू-मैं

हर कोई, हर एक, सब (लोग), हर किस-ओ-नाक्स

तू-तू मैं-मैं

आपस में अशिष्टतापूर्वक होनेवाली कहा-सुनी या झगड़ा, एक दूसरे को बुरा कहना, कहा-सुनी, वाक्कलह, गाली-गलौज, ज़बानी लड़ाई झगड़ा

तू तू मैं मैं होना

मैं भली तू शाबाश

एक दूसरे की तार्री

मैं थकी तू नाख़ूश

कोई कड़ी मेहनत करे और दूसरे को पसंद न हो

तू चल मैं आया

एक के बाद दूसरे के आने का तांता बंधने और शृंखला न टूटने के मौक़ा पर प्रयुक्त

आज मैं कल तू

आज मेरी बारी है तो कल तुम्हारी, मौत के संबंधित कहते हैं कि वह आएगी ही, जो हाल आज मेरा है वही कल तेरा होगा, समय एक जैसा नहीं रहता, एक न एक दिन सब पर विपत्ति आती है

मैं कौन तू कौन

तुझे मुझसे क्या संबंध, मेरा-तेरा कोई संबंध नहीं

तू चल मैं चल

۔(ओ) हलचल होने की जगह। बाग़ में अज़ां हुई या तो एक एक चुप चुप कररहा था अल्लाह अकबर की सदा सुनते ही तोॗ चल में चल एक एक खिसकने लगा

तू आन का तो मैं बान का , तू सूई तो मैं तागा , तू मिर्ज़ा तो मैं ख़ान का

यानी में हर हालत में तुझ से बढ़ चढ़ ही के रहूँगा

तू छूई कि मैं मूई

(व्यंग्य के रूप में) महिलाएँ किसी के कृत्रिम नाज़ुक स्वभाव को व्यक्त करने के अवसर पर कहती हैं

तू कहाँ और मैं कहाँ

तेरा मेरा क्या मुक़ाबला है, अगर आला से ख़िताब है तो अपने आप को कमतर और अदना से ख़िताब हो तो अपने आप को अफ़ज़ल ज़ाहिर किया जाता है

तू हे और मैं हूँ

अब और कोई नहीं, अब ऐसा बदला लूंगा कि तो भी याद करे

तू कौन और मैं कौन

(मुराद) कोई किसी को नहीं पूछता है, एक दूसरे से कोई वास्ता नहीं

मैं डाल डाल, तू पात पात

में तुझ से कम चालाक नहीं, मुझ से बच कर नहीं जा सकता

तू डाल डाल मैं पात पात

तू मुझ पर मैं तुझ पर

एक पर एक एक दूसरे पर गिरते पड़ते, बदहवासी से

तू ने कही मैं ने मानी

मुझे तुम्हारा एतबार नहीं

या ख़ुदा तू दे न मैं दूँ

۔मक़ूला। जो शख़्स निहायत हासिद और बख़ील होताहै उस की निसबत बोलते हैं।यानी ये शख़्स ऐसा हासिद है कि ना तो ख़ुद ही कुछ देता है।और ना ख़ुदा का देना गवारा करता है

तू मुझ को मैं तुझ को

तू मेरा साथ देगा तो मैं तेरा साथ दूँगा, तू मुझ से प्रेम करेगा तो मैं तुझ से प्रेम करूँगी, जैसा व्यवहार करोगे वैसा तुम्हारे साथ होगा

तू डाल डाल तो मैं पात पात

रुक: तुम डाल डाल तो में पात पात

तू मेरा लड़का खिला, मैं तेरी खिचड़ी पकाऊं

तू मेरा काम कर में तेरा काम करूं

तू मेरा बाला खिला, मैं तेरी खिचड़ी खाउं

अहमक़ कर दम दे कर राज़ी कर लेते हैं

न तू कह मेरी न मैं कहूँ तेरी

तुम मेरा ऐब छुपाओ, में तुम्हारा ऐब छुपाऊंगा

मैं तुझे चाहूँ और तू काले ढींग को

जब कोई किसी को बुरे काम से रोके या मना करे और वो ना रुके तो कहते हैं

न मैं कहूँ तेरी, न तू कह मेरी

न मैं तुझे बुरा कहूं न तू मुझे बुरा कहे

मैं तुझ पर और तू मुझ पर

बहुत ज़्यादा भीड़ हो तो कहते हैं

न में जलाऊँ तेरी, न तू जला मेरी

न मैं तुझे हानि पहुँचाऊँ न तू मुझे हानि पहुँचाए

तू खोल मेरा मक्ना में घर सँभालूँ अपना

(ओ) जब नई दुल्हन घर के कामों में दख़ल देने लगे तो सास कहती है

मैं करूँ भलाई, तू करे मेरीआँख में सिलाई

इस मौके़ पर बोला करते हैं जब कोई शख़्स किसी के एहसान करने के इव्ज़ इस के साथ बदी करे, नेकी का जवाब बुराई से देना

तू देवरानी मैं जिठानी , तेरे आग न मेरे पानी

(ओ) दोनों मुफ़लिस और कंगाल हैं

मैं मरूँ तेरे लिए, तू मरे वा के लिए

बेवफ़ा है, में इस पर जान देता हूँ मगर वो मेरी बजाय दूसरों पर तवज्जा देता है

धी री मैं तुझ को कहूँ बहूरी तू कान धर

बेटी को नसीहत की जाती है बराह-ए-रास्त बहू से नहीं कहा जाता, किसी को सुनाने के लिए दूसरों को नसीहत करने के मौक़ा पर मुस्तामल

मेंभी रानी , तू भी रानी , कौन भरेगा पानी

मैं भी रानी तू भी रानी , कौन भरेगा पानी

तू मेरे बाले को चाहे तो मैं तेरे बूढ़े को चाहूँ

अगर तुम मेरा भला करोगे तो में तुम्हारा भला करूंगा

नदी तू क्यों गहराती है कि मैं पाँव ही नहीं धरता

तुम क्यों उतराते और मज़ाह करते हो में पहले ही तुम से अलग रहता हूँ मुझे तुम्हारी कुछ पर्वा नहीं है

नदी तू क्यों गहराती है कि मैं पाँव ही नहीं डालता

तुम क्यों उतराते और मज़ाह करते हो में पहले ही तुम से अलग रहता हूँ मुझे तुम्हारी कुछ पर्वा नहीं है

तू ने की राम जनी, मैं ने किया राम जना

दुश्चरित्र स्त्री दुश्चरित्र पति से कहती है तू बुरा काम करता है तो में भी करती हूँ, स्त्री का अपने परस्त्री गामी पति से ग़ुस्से में कहना कि तुम ने अगर स्त्री रख ली, तो मैं ने भी आदमी रख लिया है, तुम भी दोषी मैं भी दोषी, तो आरोप क्या

मैं भी रानी तू भी रानी, खींचे कौन कूएँ का पानी

रुक : में भी रानी तो भी रानी अलख

मैं भी रानी , तू भी रानी , कौन भरे नद्दी से पानी

काहलों की निसबत कहते हैं, जब दोनों काहिल हूँ और काम से जी चुराईं तो कहते हैं

तू भी रानी मैं भी रानी , कौन भरे पन-घट पानी

तू चाह मेरी जाई को, मैं चाहूँ तेरे खाट के पाए को

सास अपने दामाद से कहती है कि तुम मेरी बेटी के साथ अच्छा व्यवहार करोगे तो मैं तुम्हारी सब वस्तु का सम्मान करूँ, तुम हमारे साथ अच्छा व्यवहार करोगे तो हम भी तुम्हारे साथ उतना ही अच्छा व्यवहार करेंगे

मैं भी रानी तू भी रानी कौन सर पर डाले पानी

सब ही अमीर ज़ादीयाँ हूँ तो काम नहीं चल सकता

मैं भी रानी तू भी रानी कौन डाले सर पर पानी

तू भी रानी, मैं भी रानी , कौन भरे पन घट पर पानी

जब सब के सब किसी काम से जी चुराईं या इस काम को अपने मरतबे से गिरा हुआ ख़्याल करें तो इस मौक़ा पर ख़ुसूसन औरतें बोलती हैं

ये घोड़ा किस का जिस का मैं नौकर तू नौकर किस का जिस का या घोड़ा

टालने के मौक़ा पर कहते हैं, मुबहम बात पर तंज़न ये फ़िक़रा अदा करते हैं

मन चंगा तो कठोती में गंगा

۔मिसल अगर दिल दरुस्त और एतिक़ाद कामिल है तो सब जगह ख़ुदा है।

घर में दिया तो मस्जिद में दिया

पहले परिवार के सदस्यों से व्यवहार होना चाहिए फिर बाहर वालों से, पहले अपना घर संभालना चाहिए फिर बाहर

हिंदी मुहावरे आरसी क्या?

मुहावरे का वाक्य मे प्रयोग 2. लाला ने चावल हाथ में पकड़ाए और कहा साहब ले जाओ और बना के देख लो जो मैंने कहीं उसमें से रत्ती भर भी फर्क पडे तो कहना हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़ें लिखे को फारसी क्या. 3.

हाथ कंगन को आरसी क्या का क्या अर्थ है?

हाथ कंगन को आरसी क्या मुहावरे का अर्थ hath kagan ko aarsi kya muhavare ka arth – प्रत्यक्ष को साक्ष्य की जरूरत नही पडती ।

पढ़े लिखे को फारसी क्या?

पढ़े लिखे को फारसी क्या" का मतलब यह है कि “जिन्हें फारसी भाषा का ज्ञान हो, उनके लिए कोई भी भाषा पढ़ना मुश्किल नहीं है।” कहावत में 'फारसी' शब्द का मतलब सबसे कठिन भाषा से है।

मकान कौन सी भाषा का शब्द है?

ये तुर्की भाषा के शब्द हैं। यदि मैं आपसे कहूं कि मेरे निवास, आवास, सदन, भवन, नीड़ या सद्नीड पर पधारें तो शायद आप नहीं आ पाएंगे मेरे घर पर मकान और घर ऐसा शब्द है जो सभी जानते हैं। इनमें से मकान उर्दू से आया है और घर हिन्दी से।