NCERT Solution of Class 12 Hindi आरोह भाग 2 (i) आत्म परिचय (ii) एक गीत सप्रसंग व्याख्या for Various Board Students such as CBSE, HBSE, Mp Board, Up Board, RBSE and Some other state Boards. We also Provides पाठ का सार, अभ्यास के प्रश्न उत्तर और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर for score Higher in Exams. Rubaiyaa / Gazal Class 12 MCQ Question
Answer are available. Also Read: – Class 12 Hindi आरोह भाग 2 NCERT Solution NCERT Solution of Class 12th Hindi Aroh Bhag 2 / आरोह भाग 2
(i) आत्म परिचय (ii) एक गीत / (i) Aatam Parichay (ii) Ek Geet Kavita ( कविता ) Vyakhya / सप्रसंग व्याख्या Solution. (i) Aatam Parichay (ii) Ek Geet Class 12 Vyakhya with Important Points. 1. मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता है, शब्दार्थ- जग-जीवन – सांसारिक जीवन । झंकृत – बजाना। छूकर – स्पर्श करके। सॉसों के दो तार – प्राण रूपी दो तार । संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि हरिवंश राय बच्चन जी ने अपने प्रेममय जीवन पर प्रकाश डाला है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- कवि कहता है कि मैं इस संसार में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के साथ साथ बाधाओं और कष्टों को साथ लेकर अपना जीवन जी रहा हूं। कवि कहता है कि यद्यपि मेरा जीवन चाहे कितनी ही मुसीबतों से क्यों ना भरा हो, फिर भी मैं अपने जीवन में किसी का गहरा प्रेम,
निस्वार्थ स्नेह लेकर जी रहा हूं। अपने मनोभाव व्यक्त करता हुआ कवि कह रहा है कि अचानक उसके जीवन में प्रेम का प्रवेश हुआ और उसकी प्रिया ( पत्नी ) ने कवि के ह्रदय के तारों को छूकर झंकृत कर दिया था, जिसके कारण कवि की सांसो रूपी तारों से मधुर संगीत की ध्वनि निकलने लगी। कवि इसी प्रेम की झंकार व मधुर संगीत की ध्वनि के साथ लीन रहने लगा। सांसारिक बोझ, कष्ट, बाधा चाहे कवि के सामने अपना सीना ताने क्यों ना खड़ी रहे परंतु इनकी परवाह न करके प्रेम के सहारे अपना जीवन इस संसार में सुखपूर्वक जी रहा हूं।
काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष :- कला पक्ष:- 2. मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता है, शब्दार्थ- स्नेह-सुरा – प्रेम रूपी शराब। जग – संसार। गान – बखान,
कहना। गान करना – बताना या सुनाना। संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने आत्म परिचय पर प्रकाश डाला है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- प्रस्तुत काव्यांश में कभी अपने विचार व्यक्त करते हुए कह रहा है कि स्नेह अर्थात
प्रेम की ( प्रेम रूपी ) मदिरा का पान करता रहता हूं। कहने का भाव यह है कि मैं इसी प्रेम रूपी मदिरा को पीकर इसी की मस्ती में दिन-रात डूबा रहता हूं। कवि कह रहा है कि मैं सिर्फ अपने मन की सुनता हूं और इसी में मगन रहता हूं। इस संसार की मुझे कोई चिंता ही नहीं है क्योंकि मैं कभी भी इस अपूर्ण संसार का ध्यान नहीं करता। कवि को यह संसार अपूर्ण के साथ-साथ स्वार्थी भी लग रहा है। कहने का भाव यह है कि यह संसार तो केवल उसको ही पूछता रहता है जो संसार की गाते रहते हैं अर्थात संसार का बखान करते रहते हैं और इस जग
के अनुकूल ही कार्य करते रहते हैं। अगली पंक्तियों में कवि अपने मनोभावों प्रकट करते हुए कह रहे हैं कि मैं तो केवल अपनी मस्ती में डूब कर अपने मन की सुनकर अपने भावों के गीत गाता रहता हूं। कहने का भाव यह है कि कवि अपने मन की भावनाओं व संवेदना को ही गीतों के रूप में गुनगुनाता रहता है। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:- कला पक्ष :- 3. मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ, शब्दार्थ- निज – अपना। उर – हृदय। उद्गार – भाव। भाता – अच्छा लगता। संदर्भ :- प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अपने हृदय के भावों को बड़ी ही रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- कवि कह रहा है कि मैं अपने हृदय के भावों के साथ इस संसार में अपना जीवन यापन कर रहा हूं। अर्थात कभी अपने मन में उत्पन्न भावों को, विचारों को उपहार के रूप में स्वीकार करता है। कवि इन्हीं भावों, विचारों रूपी उपहारों के साथ अपना जीवन यापन कर रहा है। कवि को यह संसार अपूर्ण लगता है। इस संसार को अपूर्ण मानते हुए कवि मुक्त भाव से कहता है कि इस संसार की अपूर्णता मुझे कभी भी नहीं भाती। कवि अपूर्ण संसार को अनदेखा करके अपने सपनों में संसार को बनाता है और उसी सपनों रुपी संसार को लेकर कवि इस जग में जी रहा है। कवि आखिरकार कहता है कि मैं तो अपने ही सपनों के संसार में मस्त रहता हूं। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
4. मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूं, शब्दार्थ- अग्नि – आग। दहा – जलना। भव-सागर – संसार रूपी सागर। मौजों पर – लहरों पर। संदर्भ :-प्रस्तुत अवतरण में कवि ने आत्मपरिचय का चित्रण करते हुए सुख-दुख की अवस्था में एक समान रहने की प्रेरणा दी है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- कवि कह रहा है कि मेरे हृदय में प्रेम के वियोग की अग्नि जल रही है और उसी वियोग रूपी अग्नि में मैं दिन-रात लगातार जल रहा हूं। परंतु फिर भी कवि आशावादी विचारों से भरा हुआ है और स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए दोनों यानी सुख और दुख की अवस्था में मगन रहता है। कभी कह रहा है कि मैं न तो सुख आने पर अत्याधिक खुश होता हूं और न ही दुख आने पर अत्याधिक दुखी होता हूं। दोनों ही अवस्था में एक समान भाव से रहता हूं और ग्रहण करता हूं। कवि सांसारिक मनुष्य के विचारों पर प्रकाश डालता हुआ कह रहा है कि इस जगत में रहने वाले मनुष्य इस संसार रूपी सागर को पार करने के लिए दिन-रात नाव का निर्माण करने में लगे रहते हैं परंतु कवि अपने विचार प्रस्तुत करता हुआ कह रहा है कि मेरी ऐसी कोई भी अभिलाषा नहीं है। मैं तो संसार को एक सागर के रूप में मानता हूं और सागर में उठने वाली लहरों पर मस्ती में रहना चाहता हूं। अर्थात कहने का भाव यह है कि इस संसार में रहने वाले व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति के लिए नाम के रूप में किसी अन्य के सहारे की आवश्यकता को अनुभव करते हैं परंतु कवि को ऐसे किसी भी सहारे की आवश्यकता नहीं है। कवि मग्न और मस्त होकर इस संसार की लहरों पर ही विचरण करना चाहता है। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
5. मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूं, शब्दार्थ- यौवन – युवावस्था, जवानी। उन्माद – मस्ती, उमंग, जोश। अवसाद – गहरा दुख। बाहर – ऊपरी, बाह्य रूप। भीतर – अंदर, मन में, आंतरिक रूप। हाय – दुख में पीड़ा के समय मुंह से निकलने वाले शब्द। संदर्भ :-इस काव्यांश में कवि हरिवंशराय बच्चन जी ने अपने हृदय व जीवन की आंतरिक पीड़ा का वर्णन किया है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने विचार व्यक्त करते हुए अपने जीवन में आने वाली पीड़ा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मेरे जीवन में मेरी जवानी का जोश अब भी भरा हुआ है। कहने का भाव यह है कि कवि चाहे अपनी अधेड़ अवस्था में पहुंच चुका है परंतु फिर भी अपनी जवानी के जोश के साथ अपना जीवन जी रहा है। कवि बच्चन जी कह रहे हैं कि मेरे जवानी वाले जीवन के जोश में अनेक गहरे दुख समाए हुए हैं अर्थात अनेकों पीड़ा छाई हुई हैं। कवि अपने मनोभाव व्यक्त करते हुए कह रहा है कि उसके यौवन काल में किसी ने उसके जीवन में प्रेम भर दिया, कहने का भाग है कवि ने अपनी युवावस्था में अपनी पत्नी से गहरा प्रेम किया और उसकी यादों को अपने हृदय में धारण कर लिया। कवि आज उन्हीं प्रेम भरी यादों के साथ अपना जीवन जी रहा है। अगली पंक्ति में कवि स्वीकार करता हुआ कहना चाहता है कि यह प्रेम भरी यादें उसको बाहर से हंसाती रहती हैं परंतु अंदर से पीड़ा पहुंच जाती है और यही पीड़ा उसको अंदर से रुलाती है। आखिरकार कवि आज भी अपने जीवन में आने वाले सुखद प्रेम और मीठी यादों को अनुभव करता है जो उसको कभी हंसा देती है और कभी आंतरिक पीड़ा पहुंचाती हैं। कवि की प्रियसी की यादें आज भी उसे सताती रहती हैं। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
6. कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी में जाना ? शब्दार्थ- यत्न – प्रयास, जतन। नादान – नासमझ, मासूम। दाना – अक्लमंद, समझदार, बुद्धिमान। मूढ़ – मूर्ख, जड़ बुद्धि। जग – संसार, दुनिया। संदर्भ :-प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने सत्य के महत्व पर प्रकाश डाला है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- कवि कहना चाहता है कि इस संसार में बड़े बड़े ज्ञानवान महापुरुषों ने, सिद्ध पुरुषों ने सत्य को जानने का प्रयास किया लेकिन सत्य को कोई भी नहीं जान पाया। इसी सत्य की खोज करते-करते सब के प्रयास धरे के धरे रह गए और सब अपना जीवन चक्र पूरा करके समाप्त होते चले गए। कवि अपने विचार व्यक्त करते हुए कह रहा है कि इस संसार में अकलमंद मनुष्यों के साथ नादान व्यक्ति भी रहते हैं। कहने का भाव यह है कि नादान व्यक्ति धन दौलत, ऐश्वर्या, मोह माया के बंधन में फंस जाते हैं परंतु बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा इन सब से दूर रहते हैं और जन कल्याण के कार्य करते रहते हैं। कवि सत्य को उजागर करते हुए कहना चाहते हैं कि इस संसार में रहने वाले मनुष्य सब जानते हैं पर वह मूर्ख हैं जो सत्य से अनजान बने हुए हैं। कवि सांसारिक मनुष्यों को भूले हुए ज्ञान को सीखने व स्वयं भी इसका अनुसरण करना चाहता है। कवि आखिर में कहता है कि इस परम अटल सत्य को कोई भी नहीं जान पाया है। काव्य-सौंदर्य:– भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
7.
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता, शब्दार्थ-वैभव – धन-दौलत, ऐश्वर्य। नाता – रिश्ता, संबंध। प्रति पग – प्रत्येक कदम। रोज – प्रतिदिन। पग – पैर, चरण। संदर्भ :-कवि अपने और संसार के नाते को अस्वीकार कर रहा है। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- कवि अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि मेरा और इस संसार का कोई भी नाता नहीं है क्योंकि संसार में रहने वाले व्यक्तियों और मेरी विचारधारा में बड़ा अंतर है। कवि ऐसे संसार को तो प्रतिदिन अपनी कल्पना शक्ति से बना बना कर रोज समाप्त यानी मिटा देता है। कवि अगली पंक्ति में अपने भाव व्यक्त करते हुए कह रहा है कि यह संसार धन दौलत, ऐश्वर्या के मोह में फंसकर इस पृथ्वी पर तमाम ऐसो आराम के साधन जोड़ता रहता है। कवि ऐसे संसार को अपने पग से ठोकर मार कर गिरा देता है यानी वह ऐसे संसार को ठुकराता रहता है। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
8.
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता है, शब्दार्थ- निज – स्वयं, अपना। रोदान – रोना, गहरा दुःख। शीतल – शांत, ठंडी। भूपो के – राजाओं के। प्रासाद – महल, राजभवन। निछावर – अर्पण करना, त्याग देना। वाणी – आवाज, ध्वनि। खंडहर – अवशेष, भाग, टूटा हुआ भवन। संदर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वेदना की ओर संकेत करते हुए प्रेम व मस्ती को दिया है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- प्रस्तुत काव्यांश में कवि अपने हृदय के भावों को अपनी वाणी का रूप देते हुए कह रहा है कि मेरे रोने में भी प्रेम का पवित्र भाव झलक रहा है। कहने का आशय है कि कवि के रोने में राग का गीत है। कवि अपने गीतों में गाते समय प्रेम के आंसुओं से रो रहा है। कवि की वाणी कोमल, शीतल है, लेकिन इस शीतल, कोमल वाणी में प्रेम की गहन इच्छा, जोश व ताकत समाई हुई है। कवि मानता है कि उसका प्रेम भरा जीवन निराशा के कारण खंडहर सा है। परंतु फिर भी इस खंडहर में गहरा आकर्षण, विचित्र लगाव भरा हुआ है। कवि कहता है कि ऐसे अद्भुत प्रेम पर तो बड़े बड़े नामी, प्रसिद्ध व्यक्ति अपने तमाम ऐश्वर्या धन दौलत से भरे हुए राज महलो को बड़ी खुशी के साथ अर्पण कर देते हैं। अंत में कवि कहता है कि उसके मन में अपने अमूल्य प्रेम के लिए गहरी अनुभूतियां समाई हुई है। कवि की पत्नी का प्रेम उसके जीवन में अमूल्य है। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
9. मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना, शब्दार्थ- रोया – रोना, विलाप। फूट पड़ा – जोर से रोना। छंद बनाना – कविता लिखना, गीत लिखना। दीवाना – मनमौजी, मस्त। संदर्भ :- प्रस्तुत काव्यांश में संसार के लोगों द्वारा उस पर की जाने वाली प्रतिक्रिया की ओर संकेत किया है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- कवि कहता है कि प्रेम की विरह वेदना के कारण मैं जब पीड़ा से भरा हुआ रोने लगा और रोते हुए अपने गहरे दुख को अपनी कविता में व गीतों में शब्दों के माध्यम से प्रकट किया तब इस जगत में रहने वाले मनुष्यों ने कहा कि कवि तो गीत गा रहा है। कवि जब विरह वेदना के कारण फूट-फूट कर रोने लगा तो लोगों ने कहना आरंभ कर दिया कि कवि तो सुंदर सुंदर छंद बना रहा है। कवि कहता है कि यह संसार केवल मुझे एक कवि के रूप में ही जानता है और अपनाता है जबकि मैं तो अपने आप को इस संसार का एक मनमौजी व मस्त प्रेमी मानता हूं। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
10. मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूं, शब्दार्थ-दीवाना – पागल। वेश- पहनावा। मादकता- नशा, मस्ती। नि:शेष – पूर्ण, संपूर्ण। संदर्भ :- प्रेम और मस्ती का संदेश देने का वर्णन किया है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या- प्रस्तुत काव्यांश में कवि कहता है कि वह इस संसार में मनमौजी, मस्त प्रेमी का रूप धारण करके घूमता रहता है। वह जहां भी जाता है वहां के वातावरण को प्रेममय व मादक बना देता है। कवि के विचारों में प्रेम एवं मस्ती छाई रहती है। कवि द्वारा गाए जाने वाले प्रेम में मस्ती भरे गाने को सुनकर सब भावविभोर होकर प्रेम से भर जाते हैं। अंत में कवि कह रहा है कि मैं अपने गीतों में मस्ती का संदेश लिए फिरता हूं, जो सुनने वालों को भी मस्त कर देता है तथा उसे आनंद की प्राप्ति हो जाती है। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
कविता 1 एक गीत (हरिवंशराय बच्चन) सप्रसंग व्याख्या1. दिन जल्दी-जल्दी उलता है! शब्दार्थ- बलता है – अस्त होता है, पथ- रास्ता, मंजिल – लक्ष्य। दिन का पंधी – सूर्य, राहगीर। संदर्भ :-इसमें कवि ने समय के बीत जाने के साथ-साथ पथिक के मंजिल तक पहुंचने के जज्बे का वर्णन किया है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या:- कवि कहता है कि दिन और रात लगातार चलते रहते हैं। दिन बहुत अधिक शीघ्रता से अस्त होता है। जो राहगीर अपनी मंजिल के लिए निकले होते हैं उनको इस बात का डर लगा रहता है कि कहीं रास्ते में अंधकार / रात न हो जाए। राहगीर को पता है कि अब उसका लक्ष्य ज्यादा दूर नहीं बचा है इसीलिए यही बात सोचते हुए राहगीर और अधिक तेजी से चलने लगता है। दिन बहुत अधिक शीघ्रता से अस्त हो रहा है। कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य जीवन बहुत छोटा होता है। मनुष्य रूपी पथिक को यही चिंता लगी रहती है कि कहीं उसके जीवन का लक्ष्य प्राप्त होने से पहले उसके जीवन में अंधकार ना हो जाए। क्योंकि मनुष्य का जीवन जल्दी-जल्दी ढल रहा है। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
2. बच्चे प्रत्याशा में होंगे, शब्दार्थ-प्रत्याशा – आशा / उम्मीद। नीड़ों से – घाँसलों से। परों में – पंखों में। संदर्भ :-इसमें कवि ने अपनी मंजिल के रास्ते पर गए हुए पक्षियों के अपने बच्चों के प्रति प्रेम और चिंता के भाव को प्रकट किया है। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या:- कवि कहता है कि पक्षी अपनी मंजिल पर गए हुए हैं। अब पक्षियों को अपने बच्चों की चिंता सताने लगती है उनको लगता है कि बच्चे हमारे आने की उम्मीद में होंगे और हमारे आने के इंतजार में घोंसलों से बाहर देख रहे होंगे। जब यह बात चिड़ियों को याद आती है तो वह उनके अंदर चंचलता पर देती है। उनके पंख और अधिक गतिशील हो जाते हैं। अर्थात चिड़िया तेजी से उडने लगती है । कवि कहता है कि दिन बहुत ही शीघ्रता से बीत रहा है। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
3. मुझसे मिलने को
कौन विकल ? शब्दार्थ- विकल – व्याकुल। हित – के लिए। शिथिल करना – सुस्त करना। पद – पैर। उर – हृदय। विह्वलता – व्याकुलता। संदर्भ :- इसमें कवि ने प्राणियों की व्याकुलता का वर्णन किया है। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में से संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित किया गया है। इस कविता के रचयिता का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन जी है। व्याख्या:- कवि कहता है कि मुझसे मिलने को कोई भी व्याकुल नहीं है। कोई भी उसको चाहने वाला नहीं है तो फिर वह अपनी मंजिल की तरफ जाने को, किसके लिए गतिशील बने। जब कवि के मन में यह सवाल उठता है तो यह सवाल उसके पैरों को कमजोर कर देता हैं, उसको सुस्त बना देता है तथा उसके हृदय में व्याकुलता को भर देता है। कवि कहता है कि दिन बहुत अधिक शीघ्रता से बीत रहा है। काव्य-सौंदर्य:- भाव पक्ष:-
कला पक्ष:-
|