अ- A Meaning --देव-नागरी वर्ण-माला का पहला अक्षर और पहला स्वर। संस्कृत व्याकरण और भाषा-विज्ञान की दृष्टि से यह ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत तीन प्रकार का होता है, जिसके अठारह अवांतर भेद है। उच्चारण की दृष्टि से यह अर्ध-विवृत मिश्र स्वर है । व्यंजनों का उच्चारण करते समय उनके अन्त में इसका उच्चारण अपने आप हो जाता है। जब किसी व्यंजन का उच्चारण इसके बिना होता है तो वह हलन्त कहलाता है और नहीं तो स-स्वर होता है। अव्य० एक संस्कृत अव्यय जो व्यंजनों से आरम्भ होनेवाली संज्ञाओं और विशेषणों के पहले उपसर्ग की तरह लगकर नीचे लिखे अर्थ देता है। (क) प्रतिकूल या विपरीत; जैसे-अधर्म, अनीति, असत्, अहित आदि। (ख) रहित, विहीन या शून्य; जैसे--अकच, अकाम, अदृश्य, अपर्ण, अलस, अशोक आदि। (ग) सामान्य आकार, रूप या स्थिति से भिन्न; जैसे-अपूर्व, अभारतीय (भारत से भिन्न देश का) आदि। (घ) निषेध या वारण; जैसे—अकथ्य, अपेय आदि। और (च) दूषित या बुरा; जैसे----अकर्म, अकाल आदि । प्रायः यह शब्द से पहले लगकर उसे नहिक रूप देता है। परन्तु कहीं-कहीं यह बहुत अधिकता का भी सूचक होता है। जैसे- अघोर, असेचन आदि । जव यह स्वर से आरंभ होनेवाले संस्कृत शब्दों के पहले लगता है तब इसका रूप अन् (अँगरेजी और जरमनी की तरह) हो जाता है । जैसे--अंग से अनंग, अंत से अनंत, अर्थ से अनर्थ, आदि से अनादि, उपस्थित से अनुपस्थित आदि। हिन्दी में इसी सं० अन् का रूप अन हो । जाता है। जैसे- अनगिनत, अनजान, अनपढ़, अनबोल आदि । अंक- Ank पुं० अंक, संख्या १. बैठे हुए मनुष्य का, सामने का कमर से घुटनों तक को उतना अंश, जितने में बच्चों आदि को बैठाया जाता है। क्रोड़ गोद। __ मुहा०---अंक देना, भरना या लगाना=(क) बच्चे आदि को गोद में प्रेमपूर्वक बैठाना। (ख) गले लगाना, आलिंगन करना। अंक में नमाना या नमावना-अति प्रसन्न होना । फूले अंगों न समाना । उदा.--- फूले फिरत अंक नहिं मावत । सूर। २.कटि-प्रदेश । कमर। ३. चिह्न, छाप या निशान ! ४. लेख । लिखावट ।५. संख्या के सूचक चिह्न। (फिगर)जैसे--१, २, ३, ४ आदि । ६.खेल, परीक्षा आदि में योग्यता, सफलता आदि की सूचक इकाइयाँ । (नम्बर)जैसे-कबड्डी में सात अथवा गणित में दस अंक हमें मिले है। ७. अंश । भाग । उदा०—एकहु अंकन हरि भजे रे सठ मूर गँवार ।--तुलसी। ८. भाग्य । प्रारब्ध । ९. वब्बा। दाग। १०. बच्चों को नजर लगने से बचाने के लिए उनके माथे पर लगाई जानेवाली काजल की विदी। ११. शरीर । देह । १२. नाटक का एक खंड या भाग जिसमें कई दृश्य होते हैं। १३.रूपक के दस भेदों में से एक ! १४. नौ की संख्या। १५. पत्र-पत्रिकाओं आदि का कोई निश्चित समय पर या समय विशेष पर होनेवाला प्रकाशन (नम्बर) अंकक—Ankak वि० १.अंकों की गिनती करनेवाला। २.चिह्न, छाप या निशान लगानेवाला। पुं० वह करण जिससे विह्न या छाप लगाई जाती हो । मोहर । (स्टाम्प) अंक-करण-Ank-karan पुं०अंकन । अंक-कार- Ankkaar-पुं० १. वह व्यक्ति जो खेलों (आज-कल विशेषतः गेंद-बल्ले आदि के खेलों) में खेलाड़ियों से नियम पालन कराने मोर विवादास्पद वातों का निर्णय करने के लिए नियुक्त होता है । (अम्पायर)२.वह जो अंक दे । अंकगणित -Ankaganit-पुं० गणित की वह शाखा जिसमें १, २, ३ आदि संख्याओं तथा जोड़, बाकी, गुणा, भाग आदि की सहायता से प्रश्नों के उत्तर निकाले जाते हैं। हिसाब। (एरिथमेटिक) अंक-गत-Ankgata-- १. जिसे गोद में लिया गया हो। गोद में लिया हुआ। २.पकड़ में आया हुआ। अंकटा- Ankataपुं० कंकड़, पत्थर आदि का बहुत छोटा टुकड़ा। अंकटी- Ankati स्त्री० छोटी कंकड़ी। अंकड़ा—Ankada पुं० अंकटा। अंकड़ी- Ankadi स्त्री० [सं० इष्टका] १.छोटी ककड़ी। २.टिया। हुक । ३.मछली फँसानेवाला हुक । ४.टेढ़ा या मुड़ा हुआ फल । ५.फल तोड़ने का बांस जिसके सिरे पर एक छोटी लकड़ी बंधी रहती है। लग्गी। ६.वेल। लता। अंक-तंत्र- Anktantraपुं० १.अंक-गणित । २.बीज-गणित। अंकि-Anki-पुं० १. अग्नि । २. वायु ! ३.ब्रह्मा । ४.अग्निहोत्री। अंक-धारण-Ankdhaaran-पुं० (प० त०) त्वचा पर गरम धातु से सांप्रदायिक चिह्न (चक्र, त्रिशूल, शंख आदि) छपवाना या दगवाना। अंक-धारी —Ankdhariवि० जिसने अपनी त्वचा पर अंक या चिह्न छपवाए या दगवाए हों। अंकन-Ankan -पुं० १.अंक या चिह्न बनाने की क्रिया या भाव। २. सांप्रदायिक चिह्न गरम धातु आदि से छपवाने की क्रिया या भाव । ३.कलम या कुची से चित्र बमाना। ४.लिखना। ५. गिनती करने की क्रिया या भाव । ६. अंक लगाना या देना। ७.श्रेणी विशेष में किसी की गिनती करना। अंकन-पद्धति- Ankan paddhati स्त्री० १.अंकित करने, चिह्न बनाने आदि का कोई ढंग या पद्धति । अंकना—Ankana - पुं० १.अंक देना, बनाना या लगाना। २.अंकन या चित्रण करना। ३.मूल्य स्थिर या निर्धारित करना। ४.श्रेणी विशेष में किसी की गिनती करना ! न० १.आंका या कूता जाना ! २.नंकित किया या लिखा जाना। अंकनी-Ankani स्त्री० १.अंक, मान, संख्या आदि कुछ विशिष्ट प्रकार के चिह्नों के द्वारा अंकित करने या लिखने का ढंग या पद्धति अंकन पद्धति। (नोटेशन) जैसे—संगीत में किसी धुन, राग या लय। की अंकनी। अंकनीय-Ankaneey -वि० १.अंकन या चित्रण किए जाने के योग्य । २.जिसका अंकन या चित्रण किया जाने को हो।। अंक-पत्र-Ankpatraपुं० [ष० त०] [भ० कृ० अंक-पत्रित] १.कागज का वह छोटा टुकड़ा जिसपर चिह्न, छाप आदि लगे हों। २. शासन द्वारा छापा हुमा कागज का वह टुकड़ा जो कुछ निश्चित मूल्य का तथा इस बात का सूचक होता है कि कर, शुल्क आदि की उतनी रकम चुकती कर दी गई है, जो उस पर अंकित होती है। टिकट। (स्टाम्प) अंक-पत्रित- Ank Patrit- जिसपर अंक-पत्र चिपकाया या लगाया गया हो। (स्टाम्ड)। अंक-परिवर्तन- AnkParivartan - पुं० १.करवट लेना या वदलना। २.नाटक में एक अंक की समाप्ति पर दूसरे संक का प्रारंभ होना। अंक-पलई- Ankpalaiस्त्री० लिखने का एक गोपनीय प्रकार जिसमें अक्षरों या वर्गों के स्थान पर अंकों का प्रयोग किया जाता है। अंक-पाल- Ankpaal -वि० गोद में खेलानेवाला। पुं० दास । सेवक। अंक-मुख- Ankmukh -पुं० नाटक के आरंभ का भाग, जिसमें अत्यंत संक्षेप में दिया जाता है। अंकरा – Ankara - पुं० [सं० अंकुर] खेतों में एक प्रकार की घास जिसके दाने गरीब लोग खाते हैं। अंकरास- Ankraas - अकरास। अंकरी- Ankari -स्त्री० छोटी कंकड़ी। अंक-रोरी- Ankarori- स्त्री०=अॅक-रौरी। अंक-रौरी-Ankarouri -स्त्री० उदा०—काँट गड़े न गड़े अकरीरी।—जायसी। अंक-लोप-Ankalop - पुं० अंकों के घटने या घटाने की क्रिया या भाव अंकवाई-Ankavai -स्त्री० १. अकवाने की या भाव ! २. ॲकवाने का पारिश्रमिक। . अंकवाना-Ankawaanaa -स० [हिं० आँकना क्रिया का प्रे० रूप] १. आँकने का काम करवाना। २. किसी से जाँच करवाना । ३. दूसरे से अंकन करवाना। ४. मूल्य या दर निश्चित करवाना। अंकवार-Ankavaar--स्त्री० १. हृदय। २। गोद। . मुहा०- अंकवार देना या भरना-गले लगाना ।अंकवार-आलिंगन अंकवारना—Ankawaarana - पुं०- गले लगाना। आलिंगन करना। अंकयारि-Ankayari -स्त्री०=अंकवार। अंक-शायिनी-Ankasahayini -स्त्री० जो पुरुष के साय शयन करती हो। अंक-शायी Ankashayee -(यिन्)---वि० बगल में वाला। अंक-शास्त्र-Ankashashtra - पुं० वह विद्या या शास्त्र जिसमें संबंधी तथ्यों का निरूपण, वर्गीकरण, संग्रह आदि किया जाता है (स्टैटिस्ट्-इक्स)। अंकस-Ankas- पुं० १. शरीर । २. चिह्न। वि० चिह्न-युक्त। अंकांक-Ankaank-पुं० जल। पानी। अंकाई-Ankaai -स्त्री० १. आँकने की क्रिया या भाव । २. आँकने या अंकन करने का पारिश्रमिक । ३. फसल में से ..और काश्तकार के हिस्सों का ठहराव । दानाबंदी। अंकाना-Ankaana- पुं० = अंकवाना अंकाव-Ankaav -स्त्री० आँकने की क्रिया या भाव। अंकावतार-Ankavtaar - पुं० - नाटक में एक अंक की पर पात्रों का संकेत से यह बतलाना कि अगले अंक में क्या-क्या बातें होंगी। अंकित – Ankit - जिसका अंकन किया गया हो जैसे- अंकित चित्र, 2. जिस पर अंक या चिह्न बना हो, अंकितक – Ankitak - Lebel कागज़ का वह टुकड़ा जिसपर किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का नाम पता और विवरण मिले। अंकित-मूल्य-Ankit Mulya -पुं० किसी वस्तु का वह मूल्य जो उस पर अंकित होता है (आंतर मूल्य से भिन्न)। (फेस वैल्यू) . अंकिनी-Ankini -स्त्री० १. चिह्नों का समूह । २. चिह्नोंवाली स्त्री। अंकिल- Ankil -वि० चिह्न या दागवाला । पुं० दागा हुआ साँड़। अंकी - Anki -स्त्री० छोटा नगाड़ा। अंकुड़ा -Ankuda -पुं० १. कोई चीज टाँगने, निकालने या फँसाने के लिए बना हुआ टेढ़ा काँटा । टेढ़ी कटिया। हुक । २. गाय, बैल के पेट में होनेवाला मरोड़। ऐंठन । ३. रेशमी कपड़ा बुननेवालों का एक औजार । अंकुर - Ankur - पुं० १. मुठली, बीज आदि में से निकलने वाला नया डंठल, जिसमें छोटी-छोटी पत्तियाँ लगी होती हैं । २. पौधों, वृक्षों आदि की जड़, डाल या तने में से उगनेवाला ऐसा नया पत्ता। जमना।-निकलना ।-फूटना । ३. फल का आरंभिक तथा अध-खिला रूप.1 कली। ४. घाव भरने के समय उसमें दिखाई देनेवाले मांस के छोटे-छोटे दाने जो घाव के ठीक तरह से भरे जाने के सूचक होते हैं। अगर । ५. आगे का नुकीला भागा नोक। ६. ऐसे लक्षण जो किसी की भावी उन्नति, विकास आदि के सूचक होते हैं। ७. रहस्य-सम्प्रदाय में (क) अहंकार और (ख) उच्च कोटि के ज्ञान का आरंभिक रूप । ८. खून। रक्त । ९. शरीर का रोआँ। लोम । १०. जल। पानी। ११. बाल-बच्चे। संतान । अंकुरक-Ankurak -पुं० पशु-पक्षियों के रहने का स्थान। अंकुरण-Ankuran-पुं० अंकुर के रूप में आने की क्रिया या भाव । वोये हुए बीज आदि का अंकुरित होना। (जरमिनेशन) अंकुरना-Ankurana - पुं०- अंकुर निकलना या फूटना। अंकुराना-स० अंकुरित होने में प्रवृत्त करना। अंकुर उत्पन्न कराना। अंकुरित-Ankuraana - भू० कृ० १. अंकुर के रूप में निकला या फूटा हुआ। २. उत्पन्न । उद्भूत । ३. (गुठली या वीज) जिसमें से अंकुर निकले हों। अंकुरित-यौवना-Ankurit youvana -स्त्री० वह लड़की जिसका यौवनकाल आरंभ हो रहा हो। अंकुरी-स्त्री० Ankuri - १. अन्न के दाने जिनमें अंकुर या गाभ निकले हए हों। अंकुश – Ankhush -पुं० – भाले की तरह दो-मुँहा काँटा जिससे हाथी को चलाया या वश में किया जाता है। नियंत्रण या वश में रखने का भाव, दबाव, नियंत्रण, रोक। वह अधिकार तत्त्व या शक्ति जिससे किसी को अधिकारपूर्ण अग्रसर किया जा सके या रोका जा सके। अंकुशग्रह-Ankush Grah -पुं० महावत । हाथीवान । अंकुश-दंता- Ankushdanta - पुं० वह हाथी जिसका एक दाँत सीधा और दूसरा झुका हुआ या टेढ़ा होता है। अंकुश-धारी- Ankushdhaari--पुं० १. वह जिसके हाथ में अंकुश हो। २. महावत । हाथीवान । अंकुश-मुद्रा- Ankushmudra- स्त्री० तंत्र में उँगलियों की अंकुश जैसी बनी हुई आकृति या मुद्रा। अंकुशा - Ankushaa- स्त्री० चौबीस जैन देवियों में से एक। अंकुशित- Ankushit- अंकुश द्वारा चलाया या बढ़ाया हुआ। अंकुशी – Ankhushi -वि० १. अंकुश-युक्त ! अंकुशवाला। २. अंकुश की सहायता से वश में करनेवाला । अंकुस – Ankhush- (1)-पुं० अंकुश।। अंकुसी-ANkhusi -स्त्री० १. अंकुश के आकार की कोई छोटी चीज़। २. कोई चीज़ टाँगने या फँसाने का छोटा अंकुड़ा या कांटा। ३. चूल्हे आदि में से कोयला या राख निकालने का छोटा टेढ़ा छड़ । ४. पेड़ों से फल तोड़ने की लग्गी। अंकूर – Ankhur - ..पुं०-अंकुर। अंकूष - Ankhush -पुं० १. अंकुश। २.नकुल । नेवला। अंकेक्षक- Ankhexak -पुं० १. वह जो लेखा लिखता हो। २. वही-खाते, लेखे-जोखे की जांच करनेवाला व्यक्ति (ऑडिटर) अंकेक्षण- Ankeshan -पुं० १. लेखा तैयार करना। २. बही-खाते, लेखे-जोखे या हिसाब-किताव की आधिकारिक रूप से जाँच करना । (ऑडिट) अंकोट Ankot -(क)-पुं० -अंकोल। अंकोर-Ankor-पुं० १. गले लगाने की क्रिया, भाव या मुद्रा। २. भेंट । नजर । ३. घूस । रिश्वत । उदा०---- हाकिम होई की खाई अंकोर।--तुलसी। ४. खेत में काम करनेवाले को भेजा जानेवाला कलेवा । अंकोरना-Ankorana-स० झोली या गोद में लेना। अंकोल-Ankol - पुं० पहाड़ी क्षेत्रों में होनेवाला एक पेड़ जिसके पत्ते शरीफे के पेड़ के पत्तों-जैसे होते हैं और फल बेर के बराबर तथा काले होते हैं । इस पेड़ के फल तथा छाल कई रोगों के उपचार में काम आती है। अंकोल-सार -Ankol saar- अंकोल वृक्ष से निकला हुआ विष अंक्य – Ankya -जिसका अंकन हो सकता है। अँखड़ी-Ankhadi - स्त्री०=आँख । अँखमिचनी-Ankhmichani -स्त्री० आँख-मिचौनी। अँखाना-Ankhaana -अ०=अनखाना । अँखिगरAnkhingar-वि० १. आँखवाला । २. दूरदर्शी। अँखिया-Ankhia-स्त्री० १. आँख । २. नकाशी करने की कलम । अँखुआ-Ankhua-पुं० पौधे का नया कल्ला। अंकुर। अँखुआना-Ankhuaana -अ० अँखुवा निकलना । अंकुरित होना। अँखुबा-Ankhuba -पुं०=अँखुआ। अंग-Anga--पुं० १. शरीर के विभिन्न अवयव जैसे-हाथ, पैर, मुँह आदि। मुहा०-(किसी का) अंग छूना=(किसी की) शपथ खाने के लिए उसके शरीर पर हाथ रखना। अंग लगाना-छाती से लगाना। गले लगाना। २. शरीर। देह। • मुहा०--अंग उभरना=जवानी आना । यौवन का प्रारम्भ होना । अंग एड़ा करना-ऐंठ, बल या शेखी दिखाना। अंग करना=(क) ग्रहण या स्वीकार करना। (ख) अपना या आत्मीय बनाना। (अंगों में) अंग चुराना लज्जा से संकुचित होना। अंग टूटना थकावट, रोग आदि के कारण शरीर के विभिन्न अंगों में पीड़ा होना, जिसके फलस्वरूप अंगड़ाई आती है। अंग ढीले होना=(क) थक जाना। (ख) वृद्ध हो जाना । अंग तोड़ना--(क) अंगड़ाई लेना। (ख) शारीरिक पीड़ा या कष्ट के कारण बार-बार अंग पटकना । छट-पटाना। अंग देना-थोड़ा आराम करना। अंग में न माना (या मावना) =अति प्रसन्न होना । अंग मुस्कराना= (क) अति प्रसन्न दिखाई पड़ना। (ख) प्रसन्नता से रोमांचित हो जाना (ग) शारीरिक सौंदर्य का खिलना। अंग मोड़ना- (क) शरीर के अंगों को लज्जावश छिपाना। (ख) भय या संकोच के कारण पीछे हटना । (किसी के) अंग लगना=(क) (किसी के) गले लगना। (ख) संभोग करना। (खाद्य पदार्थों का) अंग लगना खाद्य पदार्थों के उपभोग से शरीर की पुष्टि या वृद्धि होना। (रोगी के) अंग लगना= बहुत दिनों से बिस्तर पर पड़े रहने से शरीर में धाब या शय्या-व्रण होना। अंग लगाना=गले लगाना। (कन्या को) अंग लगाना-(कन्या को वर के) सुपुर्द करना, सौंपना या विवाह में देना । फूले अंग न समाना = बहुत ही प्रसन्न होना। ३. कार्य संपादन करने का उपाय या सावन । ४.व्यक्तित्व । ५. वे अवयव, तत्त्व या सदस्य जिनके योग से किसी वस्तु, संस्था आदि का निर्माण होता है। अंगप्रदेश- भागलपुर के समीपवर्ती प्रदेश का प्राचीन नाम जहाँ की राजधानी चंपानगरी (आधुनिक चंपारन) थी । १०. अंग देश के निवासी । १ नाटक में अंगी (नायक) के सहायक पात्र । १२. मध्य प्राचीन साहित्य में प्रेम या आपस-दारी का सूचक एक संबोधन । १३. छ: की संख्या (छ: वेदांग होते हैं) १४. ओर । तरफ । १५. पक्ष । पहलू । वि० १. अंगों वाला । २. अप्रधान । गौण । ३. संलग्न । ४. उलटा अंग अंगक-Angak-पुं० शरीर का कोई छोटा अंग। अंग-कद-Angakad - पुं० [सं० अंग-फा कद] चित्रकला में इस बात का विचार कि चित्रित आकृति के सब अंग उसके कद या ऊँचाई के अनुसार ठीक हों अंग-कर्म – Angakarm - (न)--स्त्री०-अंग-क्रिया। अंग-क्रिया-Angakriya -स्त्री० १. यज्ञ में अपने किसी अंग का बलिदान देना। २. शरीर में उबटन आदि लगाना। अंग-ग्रह- पुं० १. आघात, रोग आदि के कारण अंगों में हो वाली पीड़ा। २.लोहे या ताँबे का वह टुकड़ा जो दो पत्थरों को एक-सा जोड़ने के लिए उन पर जड़ा जाता है । अंग-घात- Anga ghaat - वि० शरीर की वात नाड़ियों अथवा स्नायु-संस्थान के विकार के कारण होनेवाला एक रोग, जिसमें शरीर का कोई अथवा कई अंग अक्रिय , अचेष्ट या सुन्न हो जाते हैं। (पैरालिसिस अंगचारी – Angacharee - पुं० सहचर सखा । अंग-चालन-Angachaalan - पुं० अंगों को हिलाना-डुलाना या चलाना । अंगच्छेद-Angacched -पं० १. शरीर का कोई अंग काटने की क्रिया भाव । २. अपराधी को उक्त रूप में दिया जानेवाला दण्ड । ३. रो के शरीर का कोई अंग काटकर अलग करने की क्रिया या भाव। (ऐम्प्यूटेशन) अंगज-वि० जो अंग से उत्पन्न हुआ हो। जैसे-पसीना, रोएँ आदि । पुं० १. पुत्र। २. पसीना। ३. बाल । ४. काम, क्रोध आदि ने विकार । ५. कामदेव । ६. रोग । ७.सन । ८. साहित्य में वर्णित सद्विकारों में से ये तीन-हाव, भाव और हेला । अंगजा-Angaja-स्त्री० पुत्री। बेटी।. अंग-जाई- Angajai -स्त्री०=अंगजा। अंग-जात-Angajaat-वि०. 'अंगज'। अंग-जाता-Angajaataa- स्त्री० अंगजा। अंग-जाया-Angajaaya -पुं० औरस पुत्र । लड़का अंगड़-खंगड़-Angad-khangad - वि० १. टूटा-फूटा (सामान) । २. गिरा अथवा इधर-उवर बिखरा हुआ (सामान)। ३. बचा-खुचा। अंगड़ाई – Angadai - शरीर की स्वाभाविक क्रिया जो आलस्य, कमज़ोरी या थकावट के कारण होती है जिसके फलस्वरूप सारा शरीर कुछ पलों के लिए ऐंठ या तन जाता है। अंगड़ाना-Angadana - अ० [सं० अंग] आलस्य, शिथिलता आदि के कारण शरीर के अंगों को तानने या फैलाने की क्रिया । अंगड़ाई लेना। अंगण-Angan - पुं० आँगन । अंगणि-स्त्री० [सं० अंगना] औरत। स्त्री। अंगति-Angati-पुं० १. ब्रह्मा। २. विष्णु। ३. अग्निहोत्री । ४. अग्नि । ५. यान । सवारी। अंग-त्राण-Angtraan –[ष० त०] १. अंगों की रक्षा करनेवाली चीज। जैसे कवच, जिरह, बकतर आदि । २. अंगरखा, कुरता या ऐसा ही कोई पहनने का कपड़ा। अंगद-Angad--पुं० १. बाँह पर पहनने का बाजूबंद (गहना) । २. राम की सेना का एक बंदर जो बालि का पुत्र था। ३. लक्ष्मण के दो पुत्रों में से एक। अंग-दान-Angadaan-पुं० १. युद्ध में आत्म-समर्पण करना। २. (स्त्रियों का रतिकाल में) अपना शरीर पुरुष को समर्पित करना। ३. स्त्री से __संभोग करना । ४. पीछे हटना । पीठ दिखलाना । भागना। अंगदीय-Angadeey-वि० अंगद-संबंधी। अंगद का। अंग-द्वार-Angadwaar-पुं० शरीर के छेद या द्वार जो इस प्रकार है—दोनों कान, दोनों आँखें, नाक के दोनों रन्ध्र, मुख, गदा, लिंग और ब्रह्मांड । विशेष गीता के अनुसार शरीर में केवल नौ द्वार अंग-द्वीप-Angadweep-पुं० पुराणों के अनुसार छः द्वीपों में से एक द्वीप। अंगधारी -Angadharee--पुं० अंग अथवा शरीर . धारण करनेवाला प्राणी। अंगन-Angan-पुं० -आँगन । अंगना-Angana-पुं०- आँगन अंगना-Angana-स्त्री० [स०/अंग् (गति आदि)+न-टाप्] १. सुन्दर अंगों वाली स्त्री। सुंदरी जैसे—देवांगना, नृत्यांगना आदि। २. उत्तर दिशा के सार्वभौम दिग्गज की हथिनी का नाम । ३. रहस्य संप्रदाय में, अंतःकरण। हृदय। अँगनाई-Anganaai-स्त्री०=आँगन। अंगना-प्रिय-Anganapriya-पुं० [प० त०] अशोक का वृक्ष । अँगनत -Anganat--पुं० [हिं० आँगन + ऐत (प्रत्य॰)] आँगन का स्वामी या 'घर का मालिक | गृहपति । अंगनैया-Angnaiya-स्त्री०=आँगन। अंग-पाक –Angapaak- अंगों के पकने या सड़ने की क्रिया। अंगपालिका – Angapalika -धाय अंगपाली -Angapali- गले लगाना। अंगपोंछा-Angapochha--पुं० अंगोछा । अंग-प्रत्यंग-Angpratyay-पुं० शरीर के सभी बड़े और छोटे अंग। अंग बीन-Angabeen-पुं० एक प्रकार का बढ़िया आम और उसका वृक्ष। अंग-भंग-Angabhed-पुं० [प० त०] १. शरीर के किसी अंग का भंग या खंडित होना । अंग का टूट जाना । २. दे० 'अंग भंगी'। वि० [व० स०] १. जिसका कोई अंग खंडित या टूटा हो। २. अपाहिज । अंग-भंगिमा- Angabhangima- (मन)---स्त्री० =अंग-भंगी। अंग-भंगी-Angabhangi-स्त्री० १. पुरुष या स्त्री की कोमल और मनोहर चेष्टाएँ । २. पुरुप को मोहित करने के लिए स्त्री का अपने विभिन्न अंगों (आँख, कमर, मुँह , हाथ आदि) को कौशलपूर्वक इस प्रकार हिलाना कि देखनेवाले प्रेमपूर्वक आकृष्ट हों। अदा। हाव-भाव । अंग-भाव-Angabhaav-पुं० नृत्य या संगीत में शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा मनोभाव प्रकट करने की क्रिया। अंग-भू-Anga bhoo---वि० शरीर या अंग से उत्पन्न । पुं० १. पुत्र । बेटा। २. कामदेव । अंग-भूत-Angabhoot- १. जो शरीर या अंग से उत्पन्न हुआ हो। २.जो किसी के अंग के रूप में उसके अंतर्गत या अन्दर हो अथवा साथ लगा हो। अंग-मर्द-Angmard-पुं० १. हड्डियों में दर्द होना। अंग-मर्दक-Angamardak-पं० शरीर दबाने या उसमें मालिश करनेवाला। अंग-मर्दन-Angamardan-पुं० १. अंगों को मलने का कार्य। मालिश करना। '२. देह दबाना। अंग-मर्ष-Angamarsh-पुं० गठिया नामक रोग । अंग-रक्षक-Angaraxak-पुं० वे सैनिक या सेवक जो बड़े शासकों आदि की रक्षा के निमित्त उनके साथ रहते हैं। (बॉडीगार्ड) अंग-रक्षा-Angaraksha-पं० [प० त०] शरीर के अंगों की रक्षा या बचाव । अंग-रक्षी -Angarakshi-पं० [ष० त०] १. अंगरक्षक । २. कवच । अंगरखा-Angarakha-पु० [सं० अंग रक्षक] एक प्रकार का लंबा पहनावा जिसमें बाँधने के लिए बंद रहते हैं। अंगा। अचकन। अंग-रस-Angaras-पुं० [प० त०] किसी वनस्पति के फलों, फूलों, पत्तियों आदि को कटकर तथा निचोड़कर निकाला हुआ रस। अँगरा-Angara-पुं० १. बैलों के पैर में होनेवाला एक रोग । अंगराई -Angarai- स्त्री०='अंगड़ाई। अंग-राग –Angaraag- उबटन, केसर, परपूर, मेंहदी, सुगंधित बुकनी, जो मुंह तथा शरीर पर लगायी जाती है। (पाउडर)। अंग-राज-Angaraaj - पुं० १. अंगदेश का राजा कर्ण। २. राजा दशरथ के सखा लोमपाद । अँगराना-Angraana- -अँगड़ाना। अंगरी-Angari-स्त्री० . कवच, जिरह, झिलम आदि । २. गोह के चमड़े का दस्ताना जो धनुष चलाते समय हाथ में पहना जाता था। अंगरेज-Angarej-पुं० [पुर्त ० इंग्लेज] इंगलैंड देश का निवासी। अंगरेजियत-Angrejiyat-स्त्री० अँगरेजी रंग-ढंग या चाल-ढाल । अंगरेजीपन। अंगरेजी-Angreji -वि० १. अंगरेजों का या उनसे संबंध रखनेवाला। २. अंगरेजों जैसा। स्त्री० १. अंगरेजों की भाषा । २. पुरानी चाल की एक प्रकार की तलवार अंगलेट-Anglet---पुं० शरीर की गठन, ढाँचा या बनावट। (फिजीक) अँग-लेप-Angalep- पुं०-शरीर पर लगाने के सुगंधित द्रव्य या लेप। अँगवना-Angawaana-सं० १. अंगीकार करना। ग्रहण करना। २.आलिंगन करना। गले लगाना। ३. सहना। बरदाश्त करना। ४. किसी प्रकार अपने ऊपर लेना। अँगवनिहारा-Angavnihara-वि० १. अंगीकार या ग्रहण करनेवाला । २. अपने ऊपर लेने या सहनेवाला । अँगवाना-Angwana-'अंगवना' अँगवारा-Angwara- पुं० १. ग्राम के किसी छोटे भाग का स्वामी। २. खेत की जोताई में एक दूसरे को दी जानेवाली सहायता। अंग-विकृति-Angavikriti-स्त्री० १. शरीर या अंगों के रूप में विकार होना। २. मिरगी का रोग। अपस्मार। अंग-विक्षेप-Angavikshep-पुं० १. हाव-भाव दिखलाना। चमकना-मटकना। २. नाच । नृत्य। ३. कलाबाजी । अंग-विद्या-Angavidya-स्त्री०-सामुद्रिक । अंग-विभ्रम-Angavibhram- पुं०- एक रोग जिसमें रोगी अपने किसी या कई अंगों की सुधि भूल जाता है। अंग-शुद्धि-Angashddhi-स्त्री० १. शरीर के अंगों की शुद्धि या सफाई। २. मंत्रों आदि के द्वारा की जानेवाली शरीर की शुद्धि । अंग-शोष-Angashosh- पुं० अंगों के सूखने का रोग । सुखंडी। अंग-संग-Angasang- पुं० मैथुन । संभोग। अंग-संगी -Angasangi-वि० मैथुन या संभोग करनेवाला। अंग-संचालन-Angasanchalan-पुं० अंगों को संचालित करने या हिलाने-डुलाने की क्रिया। अंग-संधि – Angasandhi- संध्यांग अंग-संस्कार – Angasanskaar -अंगों का शृंगार/सजावट अंग-संस्थान-Angasansthan- रूप विधान Morphology अंग-संहति – Angasahanti-अंगों की गठन या बनावट अंग-सख्य –Angasakhya- गहरी दोस्ती अंग-सिहरी – Angasihari -अंगों का सिहरना,कपकपी । २. जूड़ी, बुखार । अंग-सेवकः-Angasevak-पुं० १. शारीरिक सेवाएँ करनेवाला नौकर। २. निजी सेवक। अंग-हानि-Anghani-स्त्री० १.अंग का कटकर अलग या नष्ट हो जाना। २. अंग की विकृति। ३. किसी प्रधान कार्य के किसी अंग विशेष को उचित ढंग से या बिलकुल न करना या न होना। अंग-हार-Angahaar-पुं० १. चमकना । मटकना। २. नाच । नृत्य। अंग-हीन-Angaheen-वि० १. जिसके शरीर का कोई अंग खंडित हो। लंज । २.जिसके शरीर का कोई अंग निष्क्रिय हो। लूला। अंगांगीभाव-Angangibhaav-पुं० १. वह भाव या संबंध जो शरीर : किसी अंग विशेष से होता है। २. किसी प्रधान या बड़ी वस्तु आदि का उसके गौण या लघु भाग से होनेवाला संबंध । ३. संकर अलंकार का एक भेद, जहाँ एक ही छंद में कुछ अलंकार प्रधान रूप में और कुछ उसके आश्रित रूप में आते हैं। अंगा- Anga- पुं० -'अंगरखा। अंगाकड़ी-Angaakadi-स्त्री० अंगारों पर सेंककर बनाई हुई मोटी रोटी। बाटी। अंगाधिप-Angadhip-पुं० १. अंगदेश का राजा, कर्ण। २. किसी लग्न का स्वामी ग्रह। (ज्योतिष) अंगाधीश-Angasheesh- पुं० अंगाधिप । अंगाना-Angaana-स० अपने अंग में या अपने ऊपर लेना। अंगार-Angaar-पुं० १. जलता हुआ कोयला या लकड़ी का टुकड़ा। मुहा०—अंगार उगलना उद्दण्डतापूर्वक बहुत कड़ी बात कहना। जली-कटी सुनाना। २. चिनगारी । ३. मंगल ग्रह । ४. हितावली नामक पौधा । ५. लाल वि. जलते हुए कोयले की तरह लाल । अंगारक-Angarak-पं० १. जलता या दहकता हुआ कोयला आदि। २. मंगल ग्रह । ३. भंगरैया नामक वनस्पति । ४. कटसरैया नामक पेड़। ५. एक बहुत ही महत्वपूर्ण अधातवीय तत्त्व, जिसका परमाण्वीय भार १२ और परमाण्वीय संख्या ६ है । (कार्बन) . अंगारकाम्ल-Angarkaml -पुं० एक अम्ल जो आक्सीजन और कार्बन के मेल से बनता है। अंगारकारी -Angaarkaaree -पुं० बेचने के लिए कोयला बनानेवाला। अंगारअंकित-Angaarankit- आग से जलाया हुआ अंगार-धनिका- Angardhanika -अँगीठी (चूल्हा) अंगार-धानी –Angardhani- अँगीठी (चूल्हा) अंगार-पर्ण – Angarparn-चित्ररथ नामक गंधर्व का एक नाम अंगार-पाचित-Angarpachit-पुं० अंगारों पर पनाया हुआ भोजन । जैसे---बिस्किट, कबाब, नानखताई आदि। अंगारों पर पकाया हुआ। अंगार-पुष्प-Angarpushp-पुं० [व० स०] हिंगोट का पेड़, जिसके फूल अंगारे की तरह लाल होते हैं। अंगार-बल्ली-Angaarballi-स्त्री-अंगारवल्ली। अंगार-मंजरी-Angaarmanjari-स्त्री० करीदा। अंगारमाणि-Angaarmani- मूंगा । अंगार-मती-Angaarmati- स्त्री १. कर्ण की स्त्री का नाम । २. हाथ की उंगलियों में होनेवाला 'गलका' नाम का रोग। अंगार-वल्ली-Angaarvalli-स्त्री० [मध्य० स०] १. घुंघची फी लता। २. करंज की लता। अंगारा-Angaara-पुं० जलता तथा दहकता हुआ कोयला या लकड़ी का टुकड़ा। मुहा०-अंगारा बनना आवेग तथा कोष के कारण लाल होना। अंगारा होदा-अंगारा बनना ! अंगारे उगलना=अप्रिय, जलीकटी या चुभती हुई बातें याहना । अंगारे फांफना ऐसा काम करना जिसका बुरा फल हो । अंगारे बरसना=(क) अत्यधिक गरमी पड़ना। (ख) धूप का बहुत तेज होना । (ग) तेज लू चलना । अंगारे सिरपर धरना बहुत कष्ट सहना । अंगारों पर पैर रखना जान-बूझकर अपने को विपत्ति में डालना । अंगारों पर लोटना-(क) अत्यधिक क्रोध से अभिभूत होना। (स) अत्यधिक ईर्ष्या या आत्म-ग्लानि से जलना। पद-लाल अंगारा-बहुत अधिक लाल। अंगारिका-Angaarika-स्त्री० १. अंगीठी। २. ऊख या उसका टुकड़ा। ३. किंशुक की कली। अंगारिणी-Angaarini-स्त्री० १.अंगीठी। २. सूर्य की लालिमा से रंजित दिशा। अंगारित-Angaarit-पुं० जला हुआ। दग्ध । पलाश की काली अंगारी-Angaari-स्त्री० १. खोटा अंगारा । २. चिनगारी । ३. अंगारों पर पकाई हुई छोटी रोटी। ४, अँगीठी। { अंगारिका] १. गले के कटे हुए छोटे दुकहे। गडेरी। २. गन्ने की सिरे पर की पत्तियाँ। अंगिया –Angiya- एक प्रकार का वस्त्र जिससे औरतें अपने स्तन ढकती हैं। अंगीरम –Angarim- विष्णु के एक शत्रु का नाम जो परशुराम के समय हुआ करता था। अंगिरा –Angira- एक ऋषि का नाम जिसे अथर्ववेद के मंत्र द्रष्टा माना जाता है। २. वृहस्पति । ३. साठ संवत्सरों में से छठा। ४. माल नामक वृक्ष का गोंद। अंगी -Angi-पुं० १. आंग या शरीरवाला। देहधारी। २. वह जिसके साथ और अंग भी लगे हुए हों। ३. मष्टि। ४. चौदह विधाएँ । ५. नाटक का प्रधान नायक । ६. नाटक का प्रधान रस।वि० जिसने दारीर धारण किया हो । अंगीकरण-Angikaran-पुं०. अंगीकार करने की क्रिया या भाव। अंगीकार-Angikaar-पुं० १. अपने अंग पर या अपने ऊपर लेने की क्रिया या भाव । ग्रहण करना। २. स्वीकार करना। अंगीकार्य-Angikarya-वि० १. जो अंगीकार लिये जाने के योग्य हो। २. जो अंगीकार किया जाने को हो।। अंगीकृत – Angikrit -१. जिसका अंगीकरण हुआ हो। ग्रहण किया हुआ। २. स्वीकृत किया हुआ। ३. अपने पर लिया हुआ। अंगीकृति-Angikriti -स्त्री० - अंगीकरण। अंगीठ-Angeeth-पुं० अंगीठा। अंगीठा-Angeetha - पुं० बड़ी अंगीठी । अंगीठी-Angaarhee-स्त्री० मिट्टी, लोहे बादि का यह प्रसिद्ध पात्र जिसमें आग सुलगाते हैं। अंगीय-Angeey-वि० अंगसंबंधी। अंग का। अंगुर-Angur-पुं०अंगुल। अंगुरिया -Anguriya-स्त्री०=अंगुलि। अंगुरिया-Anguriya-गी०=उँगली। अंगुगरी- Angurari-स्त्री० उँगली। अंगुरीयक-Anguriyak-पुं० अँगूठी। अंगुल – Angul-उँगली। अंगुलि-पर्व -Anguliparv-पुं० उँगलियों के पोर। अंगुलि-प्रतिमुद्रा-Angulipratimudra-स्त्री० किसी व्यक्ति विशेषतः अपराधी आदि की पहचान के लिए ली जानेवाली उँगली के अगले भाग की छाप ।(फिंगर प्रिंट) अंगुलि मुद्रा-Angulimudra-स्त्री० १. ऐसी अंगूठी जिसपर नाम खुदा हो। २. नाम खोदी हुई अँगूठी जो मोहर लगाने के काम आती हो। अंगुलि-वेष्टन-Anguliveshtan-पुं० दस्ताना। अंगुलि-संदेश-Angulisandesh- उँगली की मुद्रा अथवा चुटकी बजाकर कोई बात कहना या संकेत करना। अंगुलिका-Angulika-स्त्री० १. उँगली। २. एक प्रकार की च्यूँटी। अंगुली-Anguli-स्त्री०=उँगली। अंगुल्यादेश-Angulyadesh-पुं० अंगुलि-निर्देश। अंगुल्यानिर्देश-Angulyanirdeh-पुं० अंगुलि-निर्देश । अंगुरताना-angurtaana-पुं० १. सिलाई करते समय उँगली के बचाव के लिए उँगली पर पहनने की लोहे या पीतल की एक टोपी। २. तीर चलाते समय हाथ के अंगूठे की रक्षा के लिए पहनी जानेवाली सींग या हड्डी की बनी एक विशेष प्रकार की अँगूठी। अंगुष्ठ-Angushth-पु० हाथ या पैर का अँगूठा। अंगुसा-Angusa-पु० अँखुआ। अंकुर । अगुसाना-agushana-अ० अंकुरित होना। अँखुआ निकलना। स० अंकुरित करना। अँगसी-Angasi-स्त्री० १. हल का फाल। अँगूठना-Anguthana-स० घेरना। अँगूठा-Angootha-पु० १. मनुष्य के हाथ की पाँच उँगलियों में से वह छोटी तथा मोटी उँगली जिसके दो पोर होते है (बाकी चारों उँगलियों के तीन तीन पोर होते है)। मुहा०---अँगूठा चूमना- (क) चापलूसी करना। (ख) अत्यधिक विनम्रता दिखाना। (ग) पूर्णतः अधीन होना । अँगूठा चूसना-- बड़े होकर भी बच्चों की सी नादानी करना ! अँगूठा दिखाना = अभिमानपूर्वक अस्वीकृति सूचित करना। (ख) किसी कार्य को करने से हट जाना । (किसीको) अँगूठे पर मारना=(किसी की) परवाह न करना।पद- अँगूठे का निशान या अँगूठे की छाप बाएँ हाथ के अँगूठे का वह निशान या छाप जो किसी व्यक्ति की ठीक पहचान के लिए लेख्यों आदि पर ली जाती है। (थम्ब इम्प्रेशन) अंगूर-Angur-पुं० १. कश्मीर, अफगानिस्तान आदि देशों में होनेवाली एक प्रसिद्ध लता जिसके मीठे छोटे फल खाए जाते हैं। किशमिश, दाख, मुनक्का इसी के भेद और रूप है। २. उक्त लता के फल। मुहा०--अंगूर खट्टे होना=किसी अच्छी चीज का अपनी पहुँच के बाहर होना। पद-अंगूर की टट्टी-पतली लकड़ियों की बनी हुई वह टट्टी या परदा जिसपर अंगूर की बेलें चढ़कर फैलती है। पुं० [सं० अंकुर] घाव के भरने के समय उसमें दिखाई पड़नेवाले मांस के छोटे लाल दाने। मुहा०---अंगूर तड़कना या फटना भरते हुए घाव पर बंधी हुई मांस की झिल्ली का तड़क या फट जाना 1 अंगूर बँधना=घाव के ऊपर मांस की नई झिल्ली जमना। अंगूरशेफा-Angurshefa-पु० एक प्रकार की जड़ी जो हिमालय पर होती है। अंगूरिया-Anguriya-स्त्री०=अंगूरी। अंगूरिया बेल-Anguriya bel--स्त्री०=अंगूरी बेल । अंगूरी-Anguri-वि० १. अंगूर से बना हुआ । जैसे—अंगूरी शरबत । २. अंगूर के रंग का । जैसे—अंगूरी कपड़ा। ३. अंगूर की . लता की तरह का । जैसे-कपड़ों पर बनी हुई अंगूरी बेल । पद- अंगूरी बेल-Anguri Bel~-कपड़ों आदि पर तागे से काढ़ी जाने या रंग से छापी जानेवाली वेल जो देखने मे अंगूर की बेल जैसी होती है। अंगूरी शराब-Anguri Sharaab -स्त्री० [फा०] अंगूर के रस से बनाई हुई शराब । अँगेजना -Angezana -स० १. अपने ऊपर लेना। २. ग्रहण या स्वीकार करना। ३. सहन करना । झेलना । अँगेट-Anget-स्त्री० अंग की या शरीर की शोभा या दीप्ति। अँगेठा-Angetha-पुं० =अंगीठा । अंगरना-Angarana -स०-अंगेजना । अंगोछा से कपड़े या अंगोछे से शरीर पोंछना । अंगोछा-Angochha-पुं० अंगोछी शरीर पोछने का एक प्रकार का छोटा कपड़ा। गमछा । अंगोजना-Angojana-स०= अँगेजना। अंगोट-Angot-स्त्री-=अंगेट। अँगोरा-Angora-पु० मच्छर । अंगौंगा –Angounga- अन्न आदि की राशि में किसी देवी या देवता के लिए निकाला गया अंश या भाग अंगौरिया -Angouriya-पुं० [सं० अंग-भाग] वह हलवाहा जो मज़दूरी के बदले में किसान से हल-बैल लेकर अपना खेत जोतता है। अंग्य-Angya-वि० अंग-संबंधी। अंगों का। अंग्रेज-Angrez-पुं० अंगरेज। अंग्रेजी-स्त्री-अंगरेजी। अंघड़ा-Anghada-पुं० पैर के अँगूठे में पहनने का कांसे का छल्ला। अंघराई-Angharai-स्त्री० पशुओं पर लगनेवाला एक प्रकार का कर। अंघस-Anghas-पुं० १. पाप । २. अपराध । अंघिया-Anghiya-स्त्री०अंगिया (चलनी)। अंघ्रि-Anghri-पं० १. पाँव। पैर । २. पेड़ की जड़ । मूल । ३. छंद का चरण । अंचल-Anchal-पुं० १. सीमा के आस-पास का प्रदेश। २.किसी क्षेत्र का कोई पाव। ३. किसी चीज के सिरे पर पड़ने वाला भाग। सिरा। अंचला-Anchala- [सं० अंचल] १. कमर में धोती के स्थान पर लपेटा जाने वाला कपड़े का टुकड़ा। (साधु) २. दे० 'आँचल'। अंचलिका-Anchalika-वि० [सं० अंचल+टन -इका] अंचल-संबंधी । जैसे—अंचलिक उपन्यास । अँचवना-Anchawana-..-अ० [सं० आचमन] १. आचमन करना। २. भोजन के बाद मुंह-हाथ धोना। अँचवाना-Anchawaanaस० अँचवत्ता का प्रे० रूप। अंचाना-Anchaana- स० अंचवाना। अ० अंचवना। अंचित-Anchit-भू० कृ० [सं०/अञ्च- त] १.जिसकी पूजा या आराधना की गई हो। २. गया हुआ। ३. सिकोड़ा हुआ। ४. गूंथा हुआ। ५. सिला हुआ। ६. व्यवस्थित । ७. कुटिल । टेढ़ा। बंक। ८. घुँघराले (वाल)। ९. सुंदर। अंछ -Anchha-स्त्री० (सं० अक्षि) आँख । अंछर-Anchhar-पुं० [सं० अक्षर] १. अक्षर। २. टोना-टोटका या उसका मंत्र। मुहा०----अंछर पढ़कर मारना जादू टोना करना। एक रोग जिससे मुँह में कांटे निकल आते हैं। अंछया-Anchhaya-पुं० १. लोभ । लालच। २. कामना । लालसा। वासना। अंज-Anja-पुं० 1 कमल । अंजन-Anjan-पुं० १. आँखों में लगाने ' का काजल या सुरमा । २. काजल या सुरमा लगाने की क्रिया या भाव । ३. हलके नीले रंग का एक प्रसिद्ध खनिज पदार्थ जिससे सुरमा बनता है। (एण्टिमनी) ४. स्याही । ५. रात । ६. पश्चिम दिशा के दिग्गज का नाम । ७. व्यंजना वृत्ति। ८. बगुले की एक जाति । ९. नीलगिरि पर्वत का एक नाम । १०. दीपक । दीआ, दीया अंजन-केश Anjankesh– दीया, चिराग, अंजन के समान बालवाला व्यक्ति। अंजन-केशी-Anjankeshi-स्त्री० १. नख नामक सुगंधित द्रव्य । २. अंजन के समान काले बालोंवाली स्त्री। अंजन-गिरि-Anjangiri-पुं० नीलगिरि पर्वत का एक नाम । अंजनशलाका-Anjanshalaka-स्त्री० [५० त०] अंजन या सुरमा लगाने की सलाई।। सुरमचू अंजन-सार-Anjansaar-वि० (आँखें) जिनमें अंजन या सुरमा लगा हो । अंजनहारी-Anjanhaaree-स्त्री० १. विलनी नाम का आँख का रोग। २. एक प्रकार का कीड़ा जिसे बिलनी या भंगी भी कहते हैं। अंजना-Anjana-स्त्री० १. हनुमान की माता का नाम । २. आँख की पलक पर होनेवाली फुंसी। विलनी। ३. स्त्री जिसने संजन या सुरमा लगाया हो। ४. छिपकली। ५. व्यंजना वृत्ति । पं० पहाड़ी प्रदेश में उपजनेवाला एक प्रकार का मोटा पान । अंजन लगाना । आँजना । अंजना-नंदन-Anjananandan-पं० अंजना के पुत्र, हनुमान । अंजनादि-Anjanadi-पुं० पुराणानुसार पश्चिम दिशा का एक पर्वत । अंजनापती-Anjanaapati-स्त्री० १. उत्तर-पूर्व दिशा के दिग्गज सुप्रतीक की स्त्री का नाम । २. कालांजन नामका वृक्ष । अंजनिका-Anjanika-स्त्री० १. एक प्रकार की छिपकली। २. चुहिया । अंजनी-Anjani-स्त्री० १. हनुमान की माता अंजना। विशेष-इस शब्द के साथ पुत्र वाचक शब्द लगने पर उसका अर्थ हनुमान हो जाता है। जैसे--अंजनी-नंदन।। २. माथा । ३. आँख पर की फुंसी। विलनी । ४. कटुकी नामक औषधि ५. कालांजन का वृक्ष । ६. स्त्री, जिसने आँखों में अंजन लगाया हो या शरीर में चन्दन आदि का लेप किया हो। अंजवार-Anjawaar-पुं० ओषधि के काम में आनेवाला एक प्रकार का पौधा। अंजर-Anjar-वि० सफेद और स्वच्छ । उज्ज्वल । अंजर-पंजर-Anjar-panjar-पुं० १. शरीर की ठठरी और उसके अंग या जोड़। मुहा०-अंजर-पंजर ढीले होना=झटके, श्रम आदि के कारण सब अंगों और जोड़ों का हिलकर शिथिल हो जाना। २. किसी चीज़ का ढाँचा। अंजरि-Anjari-स्त्री-अंजलि। अंजल –Anjal- आन और जल अंजलि – Anjali-हथेलियों का वह रूप जी उँगलियों के ऊपर उठने से बनता है। दोनों उँगलियों को युक्त रूप से एक साथ मिलने से बनने वाला गड्ढा जिसमें भरकर कुछ दिया या लिया जाता है। अंजलि-गत-Anjaligat- १. अंजलि में आया या रखा हुआ। २. प्राप्त या हस्तगत किया हुआ। अंजलि-पुट-Anjaliput-पुo अंजलि अंजलि-बद्ध-Anjalibaddh-वि० जो हाथ जोड़े हुए हो। करबद्ध । अंजली-Anjali-स्त्री० -अंजलि। अँजवाना-Anjawaana-स० "आँजना' का प्रे० रूप । आँख में काजल या सुरमा लगवाना। अंजस-Anjas-वि० १. सीधा। सरल। २. ईमानदार । अंजहा-Anjaha-वि० अनाजी। अंजही-Anjahi-स्त्री० अनाज की मंडी। अंजाना-Anjaana-स०=अँजवाना। १. = अनजान । २. - अनजाना। अंजाम-Anjaam-१. परिणाम । फल । २. अंत । समाप्ति । अंजित-Anjit-१. जिसमें अंजन लगाया गया हो। अंजनयुक्त । २. आरावित। पूजित । अंजिष्ठ-Anjishth-पुं० सूर्य । अंजिष्णु-Anjiushnu-पुं० सूर्य । अंजी-Anji-स्त्री० १. आशीर्वाद । २. शुभकामना । एक प्रकार का बढ़िया चावल । अंजीर-Anjeer-पुं० गूलर की जाति का एक प्रसिद्ध फल और उसका वृक्ष। अंजुवार-Anjuwaar-पुं० अंजवार (दे०)। अंजुमन-Anjuman-पुं० १. सभा। २. समाज । अँजुरी -Anjuri-स्त्री० =अंजलि। अंजुल-Anjul-स्त्री०=अंजलि। अंजली-Anjali-स्त्री०=अंजलि। अंजोर-Anjor-पुं० उजाला । अंजोरना-Anjorana-स० १. उजाला या प्रकाश करना। २. (दीया जलाकर) घर में प्रकाश करना। ३. उज्ज्वल या स्वच्छ करना। स० [सं० अंजलि] १. अंजुली में भरना या लेना। २. निकाल या ले लेना । अँजोरा-Anjora-पुं० प्रकाश। उजाला। रोशनी । वि० प्रकाशमान। अँजोरी-Anjori-स्त्री० १. चन्द्रमा की चाँदनी २. चाँदनी रात । ३. उजाला। प्रकाश। ३. आभा। चमक । दीप्ति अंझा - पं० १. बीच में पड़नेवाला अभावात्मक अन्तर । नागा। २. अवकाश। छुट्टी। ३. लोप। अंटना-Antana- १. अन्दर आना। भरना या समाना। २. पूरा पड़ना। यथेष्ट होना। ३. उपयोग में आने के कारण समाप्त होना। अंटसंट—Antsant-वि०=अंडबंड। अंटा--पुं० १. बड़ी गोली। २. बड़ी कौड़ी। ३. सूत, रेशम आदि का लच्छा। ४. एक प्रकार का अंग्रेजी खेल। (बिलियर्ड) अंटा-गुडगुड़-Antagudgud-वि० नशे में चूर या बे-सुध । अंटा-घर-Antaghar-पुं० वह स्थान जहाँ लोग अंटा (बिलियर्ड) नामक खेल खेलते हैं। अंटा-चित-Antachitt- १. पीठ के बल पड़ा या लेटा हुआ। २. पूरी तरह से हारा हुआ। पराजित । ३. स्तब्ध। स्तंभित । ४. नशे आदि के कारण अचेत या बेसुध पड़ा हुआ। ५. जो शक्ति आदि से रहित किसी योग्य न रह गया हो । अँटाना-Antaana- स० [हि० अँटना का स०] १. अवकाश या स्थान निकालकर किसी को उसमें भारना, रखना या लेना। २.ऐसा काम करना कि कोई चीज यथेष्ट हो जाय। अंटिया-Antiya-स्त्री० [हिं० अंटी] १. किसी वस्तु की थोड़ी राशि जो एक में ठीक प्रकार से बंधी हो। जैसे---पूदीने या सूत की अंटिया। २. छोटा गट्ठर। गठरी। अँटियाना-Antiyaana-स० [हिं० अंटी] १. अंटी में रखना या लेना। २. छिपाना। गायब करना । ३. अँटिया (पूला, लच्छी आदि) बाँधना। अंटी-Anti-स्त्री० [सं० अष्टि] १. दो उँगलियों के बीच की जगह।। मुहा०-अंटी मारना=(क) जुआ खेलते समय (बेईमानी से) उँगलियों में कोड़ी छिपा रखना। (ख) चालाकी से कोई चीज छिपा या दबा लेना। २. वह मुद्रा जिसमें हाथ की एक उंगली पर दूसरी उँगली (विशेषतः तर्जनी पर मध्यमा) चढ़ी हो । ३. कमर पर पड़नेवाली धोती की लपेट जिसमें लोग रुपये पैसे आदि रखते हैं। ४. सूत आदि की लच्छी। अँटिया ! ५. लकड़ी का वह चक्कर जिस पर सूत लपेटते हैं। अटेरन ! ६. कान में पहनने की एक प्रकार की बाली। ७. मन में पड़नेवाली गाँठ। आँट। ८. क्रुश्ती का एक पेच । मुहा०—अंटी देना या मारना-प्रतिद्वंदी को गिराना या हराना। अंटी बाज-Antibaaz-वि० [हि० अंटी-बाज] छल या धर्तता से दूसरों का धन उड़ा लेनेवाला। अँटौतल-Antoutal-पुं० [?] (कोल्हू के) बैलकी आँखों पर लगाया जानेवाला ढक्कn या बाँधी जानेवाली पट्टी। अँठई/--स्त्री० [सं० अष्टपदी] चौपायों के शरीर पर चिपटनेवाले कीड़े जिनके आठ पैर होते हैं। चिचड़ी। अँठली-Anthali-स्त्री०=अंठी । अंठी-Anthi-स्त्री० [स्त्री० अष्ठि-गुठली, गाँठ] १. किसी गीली चीज की बँधी हुई गाँठ या जमा हुआ थक्का । २. बीज। गुठली। ३. गिलटी। ४. नवेली के निकलते हुए स्तन । अँठुली-Anthuli-स्त्री-अंठी। अँठीतल-Athital-पुं० [?]=अँटौतल । अंड-Andaपुं० [सं०/अम् (गति)+ड] १. पक्षियों आदि का अंडा। टिंबा । २. अंडकोश । फोता । ३. वीर्य । ४. विश्व । ब्रह्मांड । उदा०--अंड अनेक अमल जसु छावा ।—तुलसी । ५. मृग की नाभि जिसमें कस्तूरी रहती है। ६. कामदेव।। अंड-कटाह-Andakataah-पुं० सारा विश्व या ब्रह्माण्ड जो एक बड़े कड़ाहे के रूप में माना गया है। अंड-कोश-Andakosh-पुं० [प० त०] १. फोता। २. दूध पीकर पलनेवाले जीवों के नरों या पुरुषों की इन्द्रिय के नीचे की थैली जिसमें दो गुठलियाँ होती है। ३. सारा विश्व-ब्रह्माण्ड । अंड-कटाह ४, फल का ऊपरी छिलका। अंडज-Andaj-वि० सं० (अंड/जन् (उत्पत्ति)+3] अंडे में से जन्म लेनेवाला। अंडे से उत्पन्न (जीव) । पुं० वे जीव जो अंडे से उत्पन्न होते हैं। अंडजा-Andaja-स्त्री० [सं० अंडज-टाप् । कस्तूरी। अँडना-Andana-अ० अड़ना। अंडबंड--[अनु०] १. असंबद्ध प्रलाप। अनाप-शनाप । २. गाली-गलौज । वि० १. व्यर्थ का। वे सिर-पैर का। २. भद्दा और अनुचित । ३. इधर उधर का और अनावश्यक या अनुपयुक्त । अंडरना-Andarana-० [सं० अवतरण घान के पौधे में बाल निकलना। अंड-वृद्धि-Andavriddhi-स्त्री० [प० त०] एक रोग जिसमें अंड-कोश की थैली एक प्रकार के सौम्य या विकृत रस से भर जाती है। (हाइड्रोसील) अंडस-Andasa-स्त्री० [सं० अंतर-बीच में, दाब में] ऐसी कठिन परिस्थिति जिसमें से सहज में निकलना न हो सके। अँड़सना-Adasana -अ० [सं० अंतरण-बीच में पड़कर दवना] बीच में इस प्रकार अटकना या फँसना कि चारों ओर से दबाव पड़ने के कारण सहज में न निकल सकें। अंडसू-Andasoo-वि० [सं० अंड/सू (प्रसव)+क्विन्] अंडे से उत्पन्न होनेवाला। अंडज। अंडा-Andaa-पुं० [सं० अंड] १. कुछ विशिष्ट मादा जीवों के गर्भाशय निकलनेवाला बह गोल या लम्बोतरा पिंड जिसमें से उनके बच्चे जन्म लेते हैं। जैसे-चिड़िया, मछली, मुर्गी या साँप का अंडा। मुहा०-अंडा सटकना=अंडा फूटना। अंडा ढीला होना काम करते-करते या चलते-चलते थकावट आना। अंडा सरकाना-हाथ पर हिलाना । अंडा सेना=(क) पक्षियों का अपने अंडों पर बैठना। (ख) इस प्रकार बैठकर उसमें गरमी पहुँचाना ताकि वे जल्दी फूट। (ग) घर में बैठे रहना । घर से बाहर न निकलना। २. देह । शरीर। (क्व०) । अंडाकर्षण -Andakarshan-पुं० [सं० अंड आकर्षण, प० त०] नर चौपाये को बधिया करना। अंडाकार-Andakaar -वि० [सं० अंड-आकार, व० स०] अंडे के आकार का। लम्बोत्तरा गोल। (ओवल) अंडाकृति-Andakriti -स्त्री० [सं० अंड-आकृति, प० त०] अंडे जैसी अकृति होने की अवस्था या भाव। वि०=अंडाकार। अंडालु-Andaloo-वि० [सं० बण्ड---मालच] अंडज । अंडाशय-Andashay-पुं० [सं० अंड--आशय घर, प० त०] स्त्री-जाति के जीवों,पौधों आदि का वह अंग जिसमें अंड या डिंब पहुँचकर स्थित और विकसित होता है और उस वर्ग के नए जीवों, पौधों आदि का प्रजनन करता है। डिंबाशय । (ओवरी) , अंडिका-Andika- स्त्री० [सं० अंडन-मन-टाप, इत्व] चार जौ की एक तोल। अंडिनी-Andini-स्त्री० योनि में होने वाला एक रोग। अँड़िया – Aadiya - बाजारे की पकी हुई बाल, २. अटेरन जिसपर सूत लपेटते हैं। अंडी- Andi- स्त्री० [सं० एरण्ड] १. रेंड का वृक्ष, फल या बीज । २. एक - प्रकार का मोटा रेशम । ३. इस रेशम की बनी हुई चादर या कपड़ा। अड़ूआ -Adua-. वि०=आँड़ । अँड़वाना–Andawaana-स० [सं० अण्ड] नर चौपाये का बधिया करना। अँड़ूआ बैल- Adua bail-पुं० १. वह बैल जो बधिया न किया गया हो । साँड़। २. (लाक्षणिक) सुस्त आदमी। अँडुवारी-Anduwaari-स्त्री० [सं० अणु=छोटा टुकड़ा] एक प्रकार की छोटी मछली। अंडेल-Andel-स्त्री० [हि० अंडा] मादा जन्तु, जिसके पेट में अंडे हों। अंत:--अध्य-अंतर । अंत:करण-Antakaran-पु०प० त०] १. अन्दर की इंद्रिय । २. मन की वह आंतरिक वृत्ति या शक्ति जिसके द्वारा हम भले-बुरे, सत्य-मिथ्या, सारअसार की पहचान करते हैं। विवेक (कान्शन्स)। हमारे यहाँ मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार चारों इसी के अंग माने गए हैं। ३. हृदय, जो इस शक्ति के रहने का स्थान माना गया है। अंतःकलह-Antakalah-पुं० [प० त०]=गृह कलह । अंतःकालीन-Antakaaleen-वि० सं० अंतःकाल, मध्य० स०-ख-ईन] दो कालों या घटनाओं के बीच का और फलतः अस्थायी समय। (इन्टेरिम)। अंतःकुटिल-Antahkutil-वि० [स० त०] जिसके मन में कपट हो। कपटी। छली। अंतःकोण-Antakon-पुं० [५० त०] अन्दर की ओर का कोना । अंतःक्रिया-Antakriya-स्त्री० [प० त०] १. अन्दर ही अन्दर होनेवाली क्रिया या व्यापार । २. मन को शुद्ध करनेवाला शुभ कर्म। अंतःपटी-Antahpati-स्त्री० [प० त०] १. चित्रपट पर बना हुआ प्राकृतिक दृश्य । २. रंगमंच पर का परदा । अंतःपुर-Antahpur-पुं० [प० त०] घर या महल का वह भीतरी भाग जिसमें स्त्रियाँ रहती हैं। रनिवास । जनानखाना । अंतःपुरिक-Antapurik-पुं० [सं० अंतःपुर--ठक-इक] अंतःपुर का रक्षक । कंचुकी । अंतःपुष्प-Antahpushp-पुं० [मिच्य० स०] स्त्रियों का रज। अंतःप्रकृति-Antahprakriti-स्त्री० [मध्य० स०] १. मूल स्वभाव। २. हृदय। ३.प्राचीन भारत में राजा का मंत्रिमंडल। अंतःप्रज्ञ-Antapragya-पुं० [व० स०] आत्मज्ञानी । अंतःप्रवाह-Antahprawah-पुं० [मध्य० स०] अन्दर ही अन्दर बहनेवाली धारा ।भीतरी प्रवाह। अंतःप्रांतीय-Antahpranteey-वि० [सं० अंत: प्रांत, मध्य० स०+छ-ईय] किसी प्रांत के भीतरी भाग या बातों से संबंध रखनेवाला। वि० दे० 'अंतर-प्रांतीय। अंतःप्रादेशिक-Antahpradeshik-वि० [सं० अंतः प्रदेश, मध्य० स०+ठन-इक]-- अंतःप्रांतीय। वि० दे० 'अंतर-प्रादेशिक'। अंतःप्रेरणा-Antaprerna-स्त्री० [ष० त०] मन में आपसे आप उत्पन्न होनेवाली या सहज प्रेरणा। अंतःराष्ट्रीय-Antahrashtreey-वि० [स. अंत: राष्ट्र, मध्य० स०+छ-ईय] किसी राष्ट्र के भीतरी भाग से संबंध रखने या उसमें होनेवाला। अंतःशरीर – Antahshareer - लिंग शरीर अंतःशुद्धि-Antahsuddhi-स्त्री० [प० त०] चित्त या अंतःकरण की पवित्रता और शुद्धि । मन को विकारों से अलग या दूर रखना। अंतःसंज्ञ-Antasangya-पुं० [व० स०] वह जो अपने सुख-दुःख के अनुभव मन में ही रखे, दूसरों पर प्रकट न कर सके । जैसे—वृक्ष । अंतःसत्त्व-Antahsattva-वि० [व० स०] जिसके अंदर सत्व या शक्ति हो। पुं० भिलावा (वृक्ष और फल)। अंतःसत्त्वा- Antahsattvaa-स्त्री० [ब० स०, टाप्] गर्भवती। अंतःसर-Antahsar-(स्)-पुं० [कर्म० स०] १. हृदय रूपी सरोवर। उदा०-बढ़ी सभ्यता बहुत किन्तु अंतःसर अब तक सूखा है ।—दिनकर । २. अंतः करण में रहनेवाले दया, प्रेम आदि मानवोचित भाव । अंतःसलिल -Antahsalil- वि० (व० स०) जिसकी धारा अन्दर ही अन्दर बहती हो, ऊपर दिखाई न देती हो। अंतःसलिला-स्त्री० [व०स०, टाप्] १. सरस्वती नदी । २. फल्गुनदी। अंतःसार-Antahsaar-पुं० [प० त०] [वि० अंतः सारवान] १ भीतरी तत्त्व । २. मन, बुद्धि और अहंकार का योग । ३. अंतरात्मा। वि० [व० स०] १. जिसमें तत्त्व या सार हो। २. पक्का। पुष्ट । ३. दृढ़, बलवान् । अंतःस्थ-Antahstha-वि० [सं० अंतस्/स्था (ठहरना)+क] भीतर या बीच में स्थित । दे० 'अंतः स्थित'। पं० स्पर्श और ऊरुमा वर्णों के बीच में पड़नेवाले य, र, ल, व ये चार वर्ण। अंतःस्थराज्य-Antahstharajya-पुं० [किम० स०] दो बड़े राज्यों के बीच में या उनकी सीमाओं पर स्थित होनेवाला वह छोटा राज्य जो उन दोनों राज्यों में संघर्ष के अवसर न आने देता हो। (बफर-स्टेट) अंतस्थित-Antahsthit-वि० [स० त०] १. अंतःकरण में स्थित । मन या हृदय में होनेवाला । २. अन्दर का। भीतरी। अंतःस्वेद-Antahswed-वि० [व० स०] जिसके अन्दर स्वेद हो! पुं० हाथी। अंत-Anta-पुं० [सं०/अम् (गति आदि)+तन्] १. वह स्थान जहाँ किसी चीज या बात के अस्तित्व, विस्तार आदि का अवसान या समाप्ति होती हो । २. पूरे या समाप्त होने की अवस्था या भाव । समाप्ति । (एंड) ३. छोर। सिरा। ४. मरण । मृत्यु । ५. नाश। ६. परिणाम। फल । नतीजा। ७. प्रलय । क्रि० वि० अंतिम अवस्था या दशा में। आखिरकार । उदा०--- उघरेहि अंत न होहि निवाहू।-तुलसी। कि० वि० [सं० अन्यत्र, पुं० हिं० अनत] वक्ता के स्थान से अलग या दूर। दूसरी जगह पर । उदा०– सखन संग खेलत डोलौं, प्रज तजि अंत न हों। —सूर । पुं० [सं० अंतस] १. अंतःकरण । हृदय। २. भेद । ३. रहस्य आदि की थाह । मुहा०--किसी का अंत लेना=यह पता लगाना कि किसी के मन में क्या बात है या किसी विषय में उसकी कितनी जानकारी है। अतंक –Antak- अंत या नाश करने वाला, पुं० १. मृत्यु । मौत । २. यमराज । ३. शिव। ४. एक प्रकार का सन्निपात (रोग)। अंतकर-Antakar-वि० [सं० अंत/कृ (करना)+ट] अंत या नाश करनेवाला । अंतकर्ता-Antakarta-[सं० अंत/कृ+तृच्] =अंतकर । अंतकर्म – Antakarm-(न्)--पुं० [ष० त०] १. मृत्यु । २. नाश । ३. दे० 'अंत्येष्टि' । अंतकारी – Antakaari - (रिन्)-[सं० अंत/कृ+णिनि] =अंतकर । अंतकाल-Antakaal-पुं० [अ० त०] १. अंतिम समय । २. मृत्यु का समय। अंतकृत्-Antakrit-पुं० [सं० अंत/+क्विप्-तुक्] यमराज। वि० अंत या नाश करनेवाला। संतकर। अंत-क्रिया-Antakriya-स्त्री० [ष० त०] दे० 'अंत्येष्टि' । अंतग-Antaanga-वि० [सं० अंत/गम् (जाना)+5] १. अंत तक जानेवाला । पारगामी। पारंगत। अंत-गति-Antagati-स्त्री० [प० त०] मृत्यु । मौत । अंतघाई-Antaghaai-वि० [सं० अंत+धाता अंत में घात करने या धोखा देने वाला । अंतघाती। अंतघाती -Antaghatee-वि०-अंतघाई। अंतचर-Antachar-वि० [सं० अंत/चर् (गति)+] १. अंत तक पहुँचाने या सीमा पर जानेवाला । २. (कार्य) पूरा करनेवाला । अंतछद्-Antachhad-पुं० [सं० अंत/छद् (बाँकना)+घ] ऊपर से ढकनेवाली वस्तु ।आच्छादन। अंतज-Antajवि० [सं० अंत/जन् (उत्पत्ति)---] सब के अंत या बाद में उत्पन्न होनेवाला। अंतड़ी-Antadi-स्त्री० [सं० मन्त्र] आंत । मुहा०--(किसी को)--अंतड़ी टटोलना भीतरी बातों की थाह लेने या पता लगाने का प्रयत्न करना । अंतड़ी जलना भूख के मारे बुरा हाल होना। अंतड़ियों के बल खोलना=बहुत दिन बाद भोजन मिलने पर तृप्त होकर खाना । अंतत: - Antatah-अव्य० [सं० अंत+तस्] १. सब उपाय कर चुकने पर। अन्त में। (लास्टली) २. और नहीं तो इतना ही सही। कम से कम (एटलीस्ट) । ३. भीतर। अंततर-Antatar-वि० सं० अंत-+तरण] किसी काल विभाग के अंत या बादवाले अंश में होनेवाला। (लेटर) अंततम वि० [सं० अंत-तमपु] १. जो किसी क्रम या शृंखला में सब के अंत में हो। २. सब से बादवाला । बिलकुल हाल का। (लेटेस्ट)। अंततोगत्वा-Antantogatva---क्रि० वि० [सं० अन्तत:-त्वा, व्यस्तपद] सब बातें हो जाने के उपरांत उनके अन्त में 1 (अल्टिमेटली) अंत-दीपक-Antadeepak--पुं० [५० त०] एक प्रकार का काव्यालंकार जो दीपक अलंकार का एक भेद है। अंत-पाल-Antapaal-पुं०प० त०] १. द्वारपाल । दरबान । २. सीमा प्रदेश का रक्षक अधिकारी। अंतभव-Antabhav-वि० [सं० अंत/भू (होना)+अप्] जो अंत में उत्पन्न हुआ हो । अंतरंग –Antarang- जो अंदर अथवा जिसका संबंध अंदर से हो। भीतरी। बीतरी या गुप्त बातों को जानने या उनसे संबंध रखनेवाला । जैसे-अंतरंग सभा। पुं० [मध्य० स०] १. शरीर के भीतरी अंग। जैसे--मन, मस्तिष्क आदि। २. आत्मीय। स्वजन ! ३. बहुत घनिष्ठ मित्र । अंतरंग-मंत्री-Antarmitra- (त्रिन्)---पुं० [कर्म० स०] किसी बहुत बड़े अधिकारी का निजी सचिव । (प्राइवेट सेक्रेटरी)। अंतरंग-सभा-स्त्री० [कर्म० स०] १. किसी संस्था की भीतरी बातों को व्यवस्था करने और उसकी नीति आदि स्थिर करनेवाली सभा। २. कार्य-कारिणी या प्रबन्ध-कारिणी समिति । अंतरंगी Antarangi-(गिन्)--वि० [सं० अंतरंग+-इनि] १. भीतरी । २. दिली। हार्दिक । पुं० घनिष्ठ मित्र । गहरा दोस्त । अंतर्-Antar-अव्य० [सं०/अम् (गति)+अरन्, तुट्] १. भीतरी भाग में अन्दर। २. बीच में। विशेष--(क) इसका प्रयोग केवल यौगिक पद बनाने के समय (उपसर्ग या विशेषण के रूप में) उनके बारम्भ में होता है। जैसे--अन्तर्योति, अंतर्दशा, अंतर्वर्ग भादि । (ख) संस्कृत व्याकरण के नियमों के अनुसार कुछ अवस्याओं में इसका रूप अंत: या अंतस् भी हो जाता है । जैसेअंतःपुर, अंतस्सलिला आदि। (ग) कुछ लोग इसका प्रयोग भूल से उस 'अंतर की तरह और उसी के अर्थ में कर जाते हैं, जो अँगरेजी 'इन्टर के ध्वनि-साम्य के आधार पर इधर कुछ दिनों से हिन्दी में चल पड़ा है। जैसे-अंजिला, अंतर्राष्ट्रीय, पर इनके अधिक संगत रूप अंतर-जिला और अंतर-राष्ट्रीय होने चाहिए। अंतर-Antar--पुं० [सं० अंत/रा (देना)+2] [क्रि० अंतराना] १. किसी वस्तु का भीतरी भाग। २. बीच। मध्य । ३. दो वस्तुओं के बीच की दूरी। ४. दो घटनाओं के बीच का समय । ५. दो वस्तुओं को आपस में पथक या भिन्न करनेवाला तत्त्व या बात । भेद! फरक । (डिफरेन्स) ६.दो वस्तुओं के बीच में रहनेवाला आवरण । आड़। ओट । ७. छिद्र । छेद। ८. आत्मा। ९. परमात्मा । १०. वस्त्र । कपड़ा। अन्य १. अंदर। भीतर । २. अलग । दूर। वि. १. अंदर का। भीतरी । २. पास आया हुआ। आसन्न । ३. बाहरी। ४. दूसरा, भिन्न । (यौ० के अंत में) जैसे-देशांतर। पुं० [सं० अंतस्] अंतःकरण । मन। हृदय । वि० दे० 'अंतर्वान'। उप० [५० इन्टर से ध्वनि-साम्य के आधार पर एक नया हिन्दी उपसर्ग जो कुछ यौगिक पदों के आरंभ में लगकर यह अर्थ देता है-एक ही प्रकार या वर्ग के दो या अधिक स्थानों आदि में समान रूप से होने या उनके पारस्परिक व्यवहार से सम्बन्ध रखनेवाला । जैसे--- अंतर-प्रांतीय, अंतर-राष्ट्रीय आदि। विशेष-कुछ लोग इसे भूल से सं० अव्यय अंतर का ही रूप मानकर अंतोजला और अंतर्राष्ट्रीय आदि स्प भी बना लेते है, जो ठीक नहीं है। यह संस्कृत के अंतर (संज्ञा) से भी भिन्न है; पर प्रायः सं० अंतर (विशेषण) की तरह प्रयुक्त होता है। पर इसका मुल विदेशी ही है, भारतीय नहीं। (दे० 'अंतर्' और 'अंतर')। अंतर-अयन – Antarayan- किसी तीर्थ स्थान के अंदर पड़ने वाले मुख्य देव-स्थानों की यात्रा। २. किसी तीर्थ के चारों ओर की जानेवाली परिक्रमा। ३. एक प्राचीन देश का नाम। अंतर-आणविक-Antaraanavik-वि० [कर्म० स०] (तत्त्व) जो दो या अविक पदार्थों के अणुयों में समान रूप से पाया जाता हो। (इण्टर-मोलक्यूलर) अंतरकालीन-Antarkaalin-वि० [सं० अंतर-काल, कर्म० स०+ख-ईन] दो काल विभागों या समयों के बीच में पड़नेवाले काल या समय से संबंध रखने अथवा उस बीच वाले काल या समय में होनेवाला। (प्रॉविजनल) अंतरग्नि-Antaragni-स्त्री० [सं० अंतर्-अग्नि, ५० त०] पेट के अंदर की अग्नि । जठरानल। अंतर-चक्र-Antarchakra-पु० कर्म० स०] १. किसी दिशा और उसके पासवाली विदिशा के बीच के अंतर का चतुर्थांश । २. हठयोग के अनुसार शरीर के अंदर के मूलाधार आदि चक्र या कमल । विशेष-- दे० 'षट्चक्र । ३. आत्मीय या स्वजन लोगों का वर्ग। ४. भीतरी चक्र या मनप्यों का वर्ग जो अंदर के सब काम करता हो और जो वाहरवालों या जनसाधारण से भिन्न हो। (इनर-सरकिल) ५. पशु-पक्षियों की बोली के आधार पर शुभाशुभ फल जानने की विद्या। अंतर छाल-Antarchhaal-स्त्री० [सं० अंतर-+-हिं० छाल] छाल के भीतर की कोमल छाल या नरम भाग। अंतर-जातीय-Antarjateey-वि० [सं० अंतर-जाति, कर्म० स०+छ-ईय] दो या दो से अधिक जातियों से पारस्परिक संबंध रखनेवाला या उनमें होने वाला। अंतरजामी-Antarjaani- पु०-अंतर्यामी। अंतरज्ञ-Antaragya-वि० [सं० अंतर-/शा (जानना)+4] १. अंतर या हृदय की बात जाननेवाला। २. जिससे हृदय की बात कही गई हो। ३. भेद या रहस्य जाननेवाला। अंतरण-Antaran-पुं० [सं० अंतर+णिच् + ल्युट्-अन] (भू. कृ० अंतरित) १. किसी वस्तु या संपत्ति का दान, विक्रय आदि के द्वारा एक स्वामी के हाथ से निकलकर दूसरे स्वामी के हाथ में जाना। हस्तांतरण। २. किसी अधिकारी या कर्मचारी का एक विभाग या स्थान से दूसरे विभाग में या स्थान पर भेजा जाना। बदली। ३. धन या रकम का एक खाते या मद से दूसरे खाते या मद में जाना या लिखा जाना। (ट्रान्सफरेन्स, उक्त तीनों अर्थों में) अंतरण-कर्ता- Antarankarta- (त)-पुं० दे० 'अंतरितक'। अंतरण-पत्र- Antaranpatra-पु० [प० त०] वह पत्र जिसके द्वारा कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति, स्वत्व आदि दूसरे के हाथ सौंपता है। अंतरतम- Antaratam-पुं० [सं० अंतर+तमम्] १. किसी वस्तु का सबसे भीतरी भाग। २. हृदय का भीतरी भाग। २. विशुद्ध अंतःकरणों वि. १. बिलकुल या ठेठ अंदर का। २. आत्मीय। अंतर-दिशा- Antaradisha-स्त्री० [प० त०] दो दिशाओं के बीच की दिशा । विदिशा। अंतर-देशीय- Antaradesheey-वि० [अंतर-देश, कर्म० स०+छ-ईव] दो या कई देशों के पारस्परिक व्यवहार से संबंध रखनेवाला। अंतर-धातुक- Antaradhatuk-वि० [२० स०, कप्] (तत्त्व) जो दो या अधिक धातुओं में समान रूप से पाया जाता हो। (इन्टर-मेटेलिक) अंतर-पट – Antarapat- आड़ करने का कपड़ा, पर्दा, हृदय पर पड़ा हुआ अज्ञान का परदा। ३. विवाह के समय वर और वधु के बीच में आड़ करनेवाला कपड़ा। अंतिक-Antik-वि० [सं०५/अत् (बाँधना), धन्+ठन्-इक] १. समीप या पड़ोस में रहने वाला, अंत तक जानेवाला, मुहा०-अंतर-पट साजना-छिपकर बैठना । ओट में रहना। ४. दुराव। छिपाव । भेद-भाव। ५. गीली मिट्टी से लपेटकर औषध आदि फूंकने या भस्म करने की क्रिया। कपड़-मिट्टी। अंतर-पतित-Antarpatit-वि० [सं० त०] बीच में आने, पड़ने या होनेवाला। अंतर-पतितआय-Antarpattaya-स्त्री० [अंतरपतित-आय, कर्म० स०] किसी व्यवहार या व्यापार के बीच में पड़नेवाले व्यक्ति को यों ही होनेवाली आय। (इन्टरमीडिअरी प्रॉफिट) जैसे-~-दलाली या दस्तूरी। अंतर-पुरुष-Antarpurush-पुं० [कर्म० स०] १. आत्मा। २. परमात्मा। अंतरप्रभव-Antarprabhav-पुं० [सं० अंतर-प्र/भू (होना)अच्] दोगला! वर्णसंकर। अंतर-प्रश्न-Antarprashn-पुं० [मच्य० स०] वह प्रश्न जो पहले कही हुई बात में ही निहित हो या उसके कारण उत्पन्न हो। अंतर-प्रांतीय-Antarpranteey-वि० [अंतर-प्रांत, कर्म स०-छ-ईया दो या अधिक प्रांतों के पारस्परिक व्यवहार से संबंध रखने या उनमें होनेवाला। (इन्टर प्रॉबिन्शल) वि० दे० 'अंतःप्रांतीय। अंतर-प्रादेशिक-Antarpradeshik-वि० अंतर-प्रांतीय। अंतरय-Antaray----पुं० [सं० अंत/इ (गति) अच् वा अंतर/या (गति)+ क]-अंतराय। अंतरयण-Antaryan-पुं० [सं० अंतर्-अयन, स० त०] १. अन्दर या नीचे जाने की क्रिया या भाव । २. अव्य या लप्त होने की क्रिया या भाव। अंतर-रति-Antarrati-स्त्री० [कर्म० स०] दे० 'अंतरति । अंतरराष्ट्रीय-Antarrashtreeya-वि० स० अंतर-राष्ट्र, कर्म० स०+छईय] दो या अधिक राष्ट्रों के पारस्परिक व्यवहार से संबंध रखने या उनमें होनेवाला । (इन्टरनेशनल) अंतरशायी - Antarshayee- (यिन्)---पुं० [सं० अंतर शी (सोना)+ णिनि] जीवात्मा। वि० सदा पड़ा रहने या सोनेवाला। अंतरसंचारी - Antarsancharee-(रिन्)-पुं० [सं० अंतर-सम्/चर् गति)---णिनि] काव्य में रस की सिद्धि करनेवाले अस्थिर मनोविकार। संचारी भाव। अंतरस्य-Antarsya-वि० सं० अंतर/स्था (ठहरना) +क] १. जो किसी के भीतरी भाग में स्थित हो। अंदर या बीच का। (इन्टर्नल) २. दे० 'आंतरिक पं० जीवात्मा। अंतर-स्थित-Antarsthit-वि० [स० त०]-अंतरस्थ। अँतरा-Antara-- [सं० अंतरी १. बीच का अवकाश, अंतर। २. अंतराल । ३. कोना। पद----अंतरे-खोतरे-(क) इधर-उधर या किसी कोने में। (ख) कभी-कभी। ४. एक-एक दिन के अंतर पर आनेवाला ज्वर, पारी का बुखार। वि० बीच में एक छोड़कर दूसरा। अंतरा – Antara-पुं० [सं० अंतर] किसी गीत के पहले पद या टेक को छोड़कर दूसरा पद या चरण। (पहला पद या चरण स्थायी कहलाता है)। कि० वि० सं० अन्तर/३ (गति)+डा] १. बीच या मध्य में। २.निकट । पास। ३. अतिरिक्त । सिवा। ४. अलग। पृथक् । ५. बिना। बगैर। अंतराकाश-Antarakash-पुं० [सं० अंतर-आकाश,मध्य० स०] १. बीच में पड़नेवाला खाली स्थान । २. मनुष्य के हृदय में रहनेवाला ब्रह्म। अंतरागम-Antaragam-पुं० [सं० अंतर्-आगम, स० त०] बाहर से अधिक मात्रा में आकर अन्दर भरना। (इनफ्लक्स) अंतरागार-Antaragaar-पुं० [सं० अन्तर-आगार, मध्य० स०] किसी बड़े भवन का भीतरी भाग। अंतराभुक-Antarabhuk-वि० अंतर-आणविक। अंतरात्मा-Antaratma- (त्मन्)-स्त्री० [सं० अंतर्-आत्मन्, कर्म० स० वि० अंतरात्मिक] १. जीवात्मा। २. जान। प्राण । ३. अंतःकरण। ४. किसी बात या विषय का भीतरी या मूल तत्त्व। (स्पिरिट) अंतराना-Antarana-स० सं० अंतर] १. बीच में अंतर या अवकाश उपस्थित करना। बीच में खाली जगह छोड़ना। २. दूर या पृथक् करना। ३. ठीक अंदर की ओर ले जाना। अंतराय-Antaraay-पुं० [सं० अंतर/अय् (गति) अच्] १. बाधा! विघ्न । एकावट । २. ज्ञान की प्राप्ति, योग की सिद्धि आदि में बाधक होनेवाली बात। ३. जैन दर्शन में नौ भूल कर्मों में से एक। अंतरायण-Antaryan--पुं० [सं० अंतर/अय् +-णिच्न ल्युट्-अन] १. युद्ध के समय युद्ध-रत देशों के सैनिकों, जहाजों आदि का तटस्थ देश की सीमा में जाने पर निरस्त्रीकरण करके रोक रखा जाना। २. राज्य या शासन द्वारा किसी व्यक्ति को उसके घर या किसी स्थान में पहरे-चौकी में इस प्रकार रखा जाना कि वह कहीं आ जा न सके। नजरबंदी। (इन्टर्नमेंट) अंतराल-Antaraal-पुं० [सं० अंतर-आ/रा (दान)+क, लत्व] १. दो रेखाओं, बिंदुओं आदि के बीच में पड़नेवाला अवकाश, विस्तार या स्यान । बीच की जगह, समय आदि। २. एक सिरे पर मिली हुई दो रेखाओं के बीच का स्थान। अंतराल-दिशा- Antaraaldisha-.-स्त्री०प० त०] दो दिशाओं के बीच की दिशा।विदिशा। अंतरालन-Antaraalan- पुं० [स० अंतराल+गिच त्यट-अन] दो चिह्नों, वस्तुओं आदि के बीच में आवश्यक या उचित अंतर स्थापित करना । दो या कई चीजों के बीच में खाली जगह छोड़ना। (स्पेसिंग) अंतराल-राज्य-Antaraalrajya--पुं० [मध्य० स०] = अन्तःस्थ राज्य । अंतरावरोवन-Antaraawarovan-[सं० अंतर-अवरोधन, मध्य० स०] [वि. अंतरा बरुद्ध, भू० कृ० अंतरावरोधित] एक जगह से दूसरी जगह जानेवाली चीज को बीच में पकड़कर रोक लेना। (इन्टरसेप्शन) अंतरावरोधित-Antarawarodhit-म० ०० अंतर—[अवरोध, कर्म० स०+णिच-क्ता] जो चलने या जाने के समय बीच में पकड़ या रोक लिया गया हो। (इन्टरसेप्टेड) अंतरिंद्रिय-Antrindriya--स्त्री० [सं० अंतर-इंद्रिय, मध्य० स०] मन । अंतःकरण। अंतरिक्ष-Antariksh-पुं० [सं० अंतर/ईक्ष (देखना)+घञ्-पृषो. हस्व] १. पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों या लोकों के बीच का स्थान । आकाश। २. स्वर्ग। ३. तीन प्रकार के केतुओं में से एक है। वि० जो आड़ या ओट में हो गया हो। आँखों से ओझल। अंतरिक्षचर- Antarikshchar-वि०, पुं० [सं० अंतरिक्ष/चर (गति)-+-ट]= अंतरिक्ष-चारी। अंतरिक्षचारी – Antarikshchaari-(रिन्)---वि० [सं० अंतरिक्ष/चर्+णिनि] आकाश में . चलनेवाला। पुं० पक्षी। चिड़िया। अंतरिक्ष-विज्ञान- AntarikshVigyaan-पुं० [ष० त०] वह विद्या या विज्ञान जो वातावरण संबंधी गतियों, विक्षोभों आदि की विवेचना करके मौसम-संबंधी वातें पहले से बतलाता है। (मीटियोरॉलोजी) अंतरिख-Antarikh-पुं० अंतरिक्ष। अंतरिच्छ- Antaricch- अंतरिक्ष । अंतरित-Antarit-भूः कृ० [सं० अंतर णिच् -- क्त] १. जिसका अंतरण हुआ हो। २. एक क्षेत्र या विभाग से दूसरे क्षेत्र या विभाग में गया या भेजा हुआ । संक्रमित । ३. अन्दर रखा, छिपाया, ढका या छिपा हुआ। ४. अन्दर किया या पहुँचाया हुआ। अंतरितक-Antaritak-पुं० [सं० अंतरित-- कन्] जो अपनी संपत्ति तथा उससे संबंधित अधिकार आदि दूसरे के हाय अंतरित करे या दे। (ट्रान्सफरर) अंतरिती-Antariti-(तिन्)---पुं० [सं० अंतरित+इनि] दूसरे की संपत्ति तथा उसके संबंध के अधिकार या स्वत्त्व आदि प्राप्त करनेवाला । वह जिसके पक्ष में अंतरण हो। (ट्रान्सफरी) अंतरिम-Antarim-वि० सं० अंतर-डिमच] १. दो विभिन्न कालों के बीच का। मध्यवर्ती। २. बीच के इतने समय में। इस बीच में। (इण्टेरिम) अंतरिम-आज्ञा-Atarimaagya--स्त्री० [कर्म० सं०] मध्यवर्ती आदेश । बीच के समय के लिए आज्ञा। इस समय था इतने समय के लिए दी हुई आज्ञा। (इण्टेरिम ऑर्डर) अंतरिया-Antriya-पुं० [हिं०] अंतरा नामक ज्वर । अंतरीक-Antarik--पुं० सं० अन्तरिक्ष] अंतरिक्ष । (डि०) अंतरीक्ष- Antariksh-पुं० [सं० अन्तर/ई (देखना) घम्] अंतरिक्ष । अंतरीख . Antarikh- =अंतरिक्ष। अंतरीप-Antarip-पुं० [सं० अंतर्-आप, व० स०, अच्, ईत्व] १. द्वीप । टापू। २. भूमि का बह पतला सँकरा अंश या विस्तार जो समुद्र में दूर तक चला गया हो। रास! (केप) अंतरीय-Antareey-पुं० [सं० अन्तर्-+छ-ईय] कमर पर से नीचे की ओर पहनने का कपड़ा। अधोवस्त्र (धोती आदि)। वि० अन्दर या भीतर का । भीतरी।। अंतरेंद्रिय-Anterindriya-स्त्री०सं० अंतर---इंद्रिय, कर्म० स०] अंतःकरण। अंतरोटा-Antarota-पुं० [सं० अंतपंट] कपड़े का वह छोटा टुकड़ा जो ब्रज में स्त्रियाँ प्रायः (चोली आदि के ऊपर) पेट और पेड़ पर लपेटती है। उदा०श्री भामिनि की लै अतरौटा मोहन सीस ओढ़ायो।--गोविन्द स्वामी। अंतकथा-Antakatha-स्त्री० [संस्कृत के ढंग पर गढा हा असिद्ध शब्द] किसी बड़ी कथा के अंतर्गत आई हुई कोई छोटी कथा। अंतर्गत-Antargat-वि० [द्वि० त०] १. जो किसी के अंदर पहुँचकर उसमें मिल या समा गया हो और उसका अंग बन गया हो। २. जो किसी के साथ मिलकर एक हो गया हो। (इन्क्लूडेड) जैसे—फ्रांसीसी बस्तियाँ अब भारतीय संघ के अंतर्गत हो गई है। अंतर्गतक-Antargatak-भू० ऋ० [सं० अंतर्गत क] जो किसी के अंतर्गत हो गया हो। अंतर्गत होकर रहनेवाला । - पुं० दे० 'समावरण। अंतर्गति-Antargati-स्त्री० [१० त०] मन की वृत्ति या भावना। अंतर्गर्भ-Antargarbh-वि० [व० स०] जिसे गर्भ हो । गर्भयुक्त। अंतगांधार-Antganshaar-पुं० [व० स०] संगीत में एक विकृत स्वर जिसका आरंभ प्रसारिणी श्रुति से होता है। अंतगिरि-Antagiri-स्त्री० [मध्य० स०] हिमालय का वह भीतरी भाग जिसमें १८-२० हजार फुट से अधिक ऊँची चोटियाँ (जैसे---गौरीशंकर, धवलगिरि, नंगा पर्वत आदि) हैं। अंतर्गृह-Antagrih-पुं० [मध्य० स०] १. गृह का भीतरी भाग। २. [सं० अन्यस०] तहखाना। अंतर्गृही-Antagrihi- स्त्री० [व० स०, डी] किसी नगर के भीतरी भागों में स्थित देव-स्थानों, तीर्थों आदि की विधिवत् की जानेवाली यात्रा। अंतर्ग्रेह-Antargreh-दे० 'अंतर्ग्रह। अंतर्ग्रस्त-Antargrast-वि० [स० त०] अपराध, संकट आदि में पड़ा, फँसा या लगा हुआ। (इन्वाल्वड) अंतर्घट-Antarghat-पुं० [मध्य० स०] अंतःकरण। हृदय । अंतचित-Antachit-पं० दे० 'अंतश्चित्त। अंतर्जात-Antarjaat-वि० [स० त०] वह जो किसी वस्तु के अन्दर या भीतरी भाग से उत्पन्न हुआ या निकला हो। (एन्डोजेन) जैसे-वृक्ष की जड़ में निकलनेवाले रोएँ अंतर्जात होते हैं। अंतर्जातीय-Antarjateey-वि० दे० 'अंतर-जातीय। अंतर्जानु-Antarjaanu-कि० वि० [व० स०] हाथों को घुटनों के बीच किए हुए। अंतर्जामी-Antarjaami-वि०- अंतर्यामी। अंतर्ज्ञान--पुं० [५० त० या मध्य० स०] १. मन में रहने या होनेवाला ज्ञान । २. मन में होनेवाला वह स्वाभाविक ज्ञान जो प्रकृति की ओर से जीवों को आत्म-रक्षा, जीवन-निर्वाह आदि के लिए प्राप्त होता है। अंतर्बोध। (इन्ट्यूशन) अंतर्ज्योति-Antarjyoti-स्त्री० [मव्य० स०] भीतरी प्रकाश। वि० [व० स०] जिसके अंदर प्रकाश हो। अंतर्वाला-Antarwaala--स्त्री० [मध्य० स०] १. भीतरी आग। २.संताप । ३. चिता। अंतर्दर्शी-Antardarshi-(शिन्)---वि० सं० अंतर/दृश् (देखना)-1-णिनि] १. अंदर या अंतःकरण की ओर देखनेवाला। २. हृदय की बात जाननेवाला। अंतर्दशा-Antardarsha-स्त्री० मध्य० स०] फलित ज्योतिष में जन्मकुण्डली के अनुसार किसी एक ग्रह के भोग-काल के अंतर्गत पड़नेवाले अन्य ग्रहों के भोग-काल। अंतर्दशाह-Antardashah-पुं० [अव्य० स०] मृत व्यक्ति की आत्मा की सदगति के उद्देश्य से मृत्यु के बाद दस दिन तक किए जानेवाले कृत्य । अंतर्दाह-Antardaah-पुं० [मध्य० स०] हृदय की दाह या जलन । घोर मानसिक कष्ट । अंतर्दृष्टि-स्त्री० [मच्य० स०] कोई बात देखने या समझने की भीतरी दृष्टि या शक्ति। अंतर्देशीय-Antardesheey--वि० [अंतर्देश मध्य० स०,छ-ईय] किसी देश के आंतरिक भागों में होने या उससे संबंध रखनेवाला। (इनलैंड) जैसे-अंतर्देशीय जल-मार्ग। अंतर्दान-Antardaan-पुं० अंतर्धान। अंतर्द्वंद्वAntardwandwa-पुं० [मध्य० स०] दो या कई विपरीत विचारों का मन में होने बाला संघर्ष। मानसिक संघर्ष। अंतरि-Antari-पुं० [मध्य० स०] भीतरी या गुप्तद्वार। चोर दरवाजा। अंतर्धान-Antardhaan-पुं० [सं० अंतर्/धा (धारण, पोषण)+ ल्युट-अन] [भू० __कृ० अंतहित] अचानक आँखों से ओझल हो जाने की क्रिया या भाव। वि० जो अचानक आँखों से ओझल हो गया हो। लुप्त। अंतर्धारा-Antardhaaraस्त्री० [मच्य० स०] १. नदी, समुद्र आदि में पानी की ऊपरी सतह से नीचे वहनेवाली धारा ! २. किसी वर्ग व समाज में अंदर ही अंदर फैली हुई ऐसी धारणा या विचार जिसका पता साधारणतः ऊपर से न चलता हो। (अन्डर करेन्ट, उक्त दोनों अर्थों में) अंतर्धि-Antardhi-पुं० [सं० अंतर्/धा-+कि] वह राज्य जो दो युद्ध-रत राज्यों के बीच में स्थित हो। अंतर्नयन-Antarnayan-पुं० [ष० त०] भीतरी आँख । ज्ञान चक्षु । अंतर्नाद-Antarnaad-पुं० [ष० त०] वह शब्द जो आत्मा से बराबर उत्पन्न होता रहता है और जो समाधि की अवस्था में सुनाई देता है। (रहस्य-संप्रदाय) अंतर्निविष्ट-Antarnivisht--वि० [स० त०] =अंतर्निष्ठ। अंतर्निष्ठ-Antarnishth-वि० [व० स०] जो किसी के अंदर दृढ़तापूर्वक, रक्षित रूप से वर्तमान या स्थित हो। (इन्हेरेन्ट) जैसे-~~शासन में सभी प्रकार के अधिकार अंतर्निप्ठ होते हैं। अंतर्निहित- Antarmihit-भू० कृ० [स० त०] किसी के अंदर छिपा हुआ। अंतर्पट- Antarpat-पुं० [सं० अंत:-पट, मध्य० स०] १. आड़, ओट या परदा। २. ढकनेवाली चीज (आच्छादन, आवरण आदि) । ३. वह परदा जो दो व्यक्तियों (यथा वर और कन्या, गुरु और शिष्य) के बीच में कोई विशिष्ट कार्य (यथा विवाह या दीक्षा) सम्पन्न होने से कुछ पहले तक पड़ा रहता है। अंतर्पत्रण- Antarpatran---पुं० [सं० अंतःपत्रण, अंतर्-पत्र, मध्य० स०, णिच् + ल्युट् अन] [भू० कृ० अंतर्पत्रित] छपी या लिखी हुई पुस्तकों आदि में पृष्ठों के बीच-बीच में इसलिए सादे कागज के टुकड़े या पृष्ठ लगाना कि उन पर संशोधन, परिवर्तन, परिवर्द्धन आदि किए जा सकें। (इन्टरलीविंग) अंतर्पत्रित- Antarpatrit-भू० कृ० [सं० अंत:-पत्र, मध्य० स०+-इतच्] (पुस्तक) जिसमें बीच-बीच में सादे कागज लगे हों। जिसमें अंतर्पत्रण हुआ हो। (इन्टरलीब्ड) अंतर्बोध- Antarbodh-पुं० [अ० त०] १. मन में होनेवाली आध्यात्मिक चेतना या ज्ञान। आत्मज्ञान। अंतर्ज्ञान । मन में होनेवाली वह अनुभति या ज्ञान जिसके अनुसार हम सब बातों के प्रकार, रूप आदि समझकर अपना काम चलाते हैं। अंतर्भवन- Antarbhavan-पुं० दे० 'अंर्तगृह' । अंतर्भाव- Antarbhav-पुं० [मध्य० स०] [भू० कृ० अंतर्भावित, अंतर्भुक्त, अंतर्भूत] १. किसी का किसी दूसरे में समा या आ जाना। सम्मिलित, समाविष्ट या अंतर्गत होना। (इन्क्लुजन) २. छिपाव। दुराव। ३. अभाव। ४. जैन दर्शन में कर्मों का क्षय जो मोक्ष का साधक होता है। ५. बात का आशय। मतलब। अंतर्भावना- Antarbhavana-स्त्री० [मव्य० स०] [भ० कृ० अंतर्भावित] मन ही मन किया जानेवाला चिंतन या ध्यान। अंतर्भावित – Antarbhavit-भू० कृ० [सं० अंतर्/भू (होना)---णिच् + क्त] १. जो अंदर मिलाया गया हो या मिल गया हो। २. विशिष्ट क्रिया से किसी के साथ दृढ़तापूर्वक मिलाया या लगाया हुआ। अंतर्भुक्त- Antarbhukt-भू० कृ० [स० त०] १. जो किसी के अंदर जाकर उसमें मिल गया हो और अपना स्वतंत्र रूप या सत्ता छोड़कर उसमें पूरी तरह से समा गया हो। अंतर्भूत- Antarbhut-वि० [सं० अंतर्/भू-क्त] जो किसी दूसरी वस्तु में जाकर मिल गया हो, फिर भी अपनी स्वतंत्र सत्ता या रूप रखता हो। पुं० जीवात्मा। प्राण। अंतर्भौम – Antarbhoum-वि० [सं० भूमि-+अण्-भौम, अंत म, मध्य० स०] पृथ्वी के अंदर का। भूगर्भ का। अंतर्भौमि – Antarbhoumi-स्त्री० [सं० वि० अंत म] पृथ्वी का भीतरी भाग। भूगर्भ । अंतर्मना – Antarmana-(नस्)---वि० वि० स०] १. घबराया हुआ। २. उदास । ३. अपने _ विचारों में ही डूबा रहनेवाला। अंतर्मल- Antarmal-पुं० [मध्य० स०] १. अंदर रहनेवाला मल या मैल। २. चित्त या मन में होनेवाला बुरा विचार या विकार। अंतर्मुख- Antarmukh-वि० [व० स०] जिसका मुँह अंदर की ओर हो । पुं० चीर-फाड़ में काम आनेवाली एक तरह की कैंची। क्रि० वि० अंदर की ओर प्रवृत्त । अंतर्मृत- Antarmrit-पुं० [स० त०] (शिशु) जिसकी गर्भ में ही मृत्यु हो गई हो। मृतजन्मा। अंतर्यामिता- Antaryamita-स्त्री० [सं० अंतर्यामिन् - तल्-टाप्] अंतर्यामी होने की अवस्था या भाव। अंतर्यामी- Antayaami- (मिन्)--वि० [सं० अलर यम् (प्रेरित करना]-+णिच्+ णिनि] १. अंत:करण या मन की बात जाननेवाला। २. मन पर अधिकार रखनेवाला। पुं० ईश्वर। परमात्मा। अंतर्योग- Antaryog-पुं० [मध्य० स०] मानसिक आराधना या पूजा। अंतर्रति-Antarati-स्त्री० [मध्य० स०] मैथुन। संभोग । अंतर्राष्ट्रीय-Antarrashtreey-वि० [सं० अंतर्राष्ट्र मध्य० स०--छ-ईय] १. अपने राष्ट्र की भीतरी बातों से संबंध रखनेवाला। २. अपने राष्ट्र में होनेवाला। वि० दे० 'अंतर-राष्ट्रीय'। . अंतर्लव-Antarlav-पुं० [मव्य स०] वह त्रिकोण क्षेत्र जिसके अंदर लंब गिरा हो। अंतर्लापिका-Antarpalika-स्त्री० [मध्य० स०] ऐसी पहेली जिसका उत्तर उसकी पद-योजना में ही निहित होता है। जैसे-एक नारि तरुवर से उतरी, सिर पर उसके पाउँ। ऐसी नारि कुनारि को मैं ना देखन जाउँ । का उत्तर 'मैना' (पक्षी) इसके दूसरे चरण की पद-योजना में आया है। अंतर्लीन-Antarleen-वि० [स० त०] १. अदर छिपा हुआ। २. डबा हुआ। मग्न । अंतर्वश-Antarvash-पं० मध्य० स०] [वि. अंतर्वशिक] अंत:पुर और उसमें रहने वाली स्त्रियाँ। अंतर्वशिक-Antarvashik- पुं० [सं० अंतर्वश+ठन्-इक] अंतःपुर (महिला निवास) का निरीक्षक। वि० अंतर्वश से संबंध रखनेवाला। अंतर्वर्ग-Antarvarg-पं० [मध्य० स० किसी वर्ग या विभाग के अन्दर होनेवाला कोई अन्य छोटा वर्ग या विभाग। (सव-ऑर्डर). अंतर्वर्ण-Antarvarn-पुं० [मध्य ० स०] अंतिम या चतुर्थ वर्ण का, अर्थात् शूद्र। अंतर्वर्ती-Antarvarti- (तिन्)---वि० [अंतर्/वृत् (वरतना)+णिनि] १. अंदर या भीतर रहनेवाला। २. जो अंतर्गत या अंतर्भूत हो। ३. दो तत्त्वों, वातों, वस्तुओं आदि के बीच में रहने या होनेवाला। (इण्टरमीडिएट) अंतर्वस्तु-स्त्री० [मध्य० स०] १. किसी वस्तु के अंदर होने या रहनेवाली वस्तु। (कन्टेन्ट्स) जैसे-सागर के अंदर होने तथा रहनेवाली मछलियाँ, दवात के अन्दर रहनेवाली स्याही आदि। अंतर्वस्त्र-Antarvastra-पुं० [मव्य० स०] अंदर या अन्य कपड़ों के नीचे पहने जानेवाले वस्त्र । जैसे- कच्छा, पेटीकोट, बनियाइन, लंगोट आदि। अंतर्वाणिज्य-Antarvanijya-पुं० [मध्य० स०] वाणिज्य या व्यापार जो किसी देश की सीमा के अंतर्गत, भीतरी भागों में होता है। (इन्टर्नल ट्रेड) अंतर्वाणी-Antarvaani- (णि)--वि० [व० स०] शास्त्र जाननेवाला। पुं० विद्वान् । पंडित। अंतर्वास-Antarvaas- (स)-पुं० [मध्य० स०] दे० 'अंतर्वस्त्र । अंतर्वासक-Antarvasak-पुं० [व० स०, कप्] दे० 'अंतवंशिक'! अंतर्वासन-Antarvasan-अंतरायण । अंतर्विकार-Antarvikar-पुं० [मध्य० स०] १. मन में होनेवाला कोई विकार। २. भूख, प्यास आदि शारीरिक धर्म। अंतर्वृत्त--पुं० [मध्य० स०] ज्यामिति में वह वृत्त जो किसी आकृति के बीच में इस प्रकार बनाया जाय कि उसकी आकृति की सभी भुजाओं या रेखाओं को कहीं न कहीं स्पर्श करता हो। (इन्-सकिल,इन्सक्राइव्ड सर्किल) अंतर्वेग-Antarveg-पुं० [मध्य० स०] १. मन में उत्पन्न होनेवाला कोई कष्टदायक विकार। जैसे--अशांति, चिंता आदि। २. एक प्रकार का ज्वर जिसमें शरीर में जलन, तथा सिर में दर्द होता है और प्यास अधिक लगती है। अंतर्वेद-Antarved-पुं० [सं० अंतर्वेदि] १. यज्ञ की वेदियों से संपन्न देश। २. गंगा और यमुना के मध्यवर्ती प्रदेश का प्राचीन नाम । ब्रह्मावर्त। ३. दो नदियों के मध्य का देश। दोआबा । अंतवेंदना-Antarvedna-स्त्री०प० त०] मन के अन्दर छिपी हई वेदना। अंतर्वेदी-Antaredi-वि० [सं० अंतर्वेदि से १. अंतर्वेद का निवासी। २. दोआबें में रहनेवाला। अंतर्वेशन-Antarveshi-पुं० [सं० अंतर/विश् (प्रवेश)-णिच् + ल्युट्-~अन] [भू०कृ० अंतर्वेशित] १. किसी वर्ग या समूह के बीच में उसी तरह की और कोई चीज बाहर से लाकर जमाना, बैठाना या लगाना। (इन्टरपोलेशन) जैसे-किसी कविता में किसी नई पंक्ति या किसी वाक्य में किसी नये शब्द या पद का अतर्वेशन । २. वह अंश या वस्तु जो इस "प्रकार कहीं बैठाई या लगाई जाय। (साहित्य में इसे क्षेपक कहते है।) अंतर्वेशिक-Antarveshik-पुं० [स० अंतर्वेश-+ठक-इक] दे० 'अतर्वशिक'।, अंतर्वेशित -Antarveshit-भू० कृ० स० अतर / विश्-+णिच्+क्त] जिसका अंतर्वेशन हुआ हो। अंतर्वेश्म -Antarveshm-(न्)-पुं० [मध्य० सं०] १. अंतःपुर। जनानखाना। २. मकान का कोई भीतरी कमरा । ३. तहखाना। तलघर। अंतर्वेश्मिक-Antarveshmik-पुं० [सं० अन्तश्मन+छन्- इक] दे० 'अंतर्वशिक' । अंतार्धि-Antardhi-स्त्री० [मध्य० स०] भीतरी या गुप्त रोग। अंतर्व्याधि -Antarvyadhi-पुं० [मच्य० स०] शरीर का भीतरी घाव या चोट। अंतर्हस्तीन-Antarhastin-वि० [सं० अन्तहस्त अव्य० स०+स-ईन] जिस तक हाथ की पहुँच हो या हो सके। अंतर्हास-Antarhaas-पुं० [मध्य० स०] मन ही मन मुस्कराने की क्रिया या भाव। अंतर्हित-Antarhit-भू० कृ० [सं० अन्त/वा (धारण करना] + क्त, हि आदेश) जो अंतर्धान हो गया हो। अंतर्हृदय -Antarhriday-पुं० [मध्य० स०] हृदय का भीतरी भाग। अंत-लघु-Antalaghu-पुं० [व० स०] १. वह चरण जिसके अंत में लघु वर्ण या मात्रा हो। २. वह शब्द जिसका अन्तिम वर्ण या मात्रा लघु हो। अंत-वर्ण-Antavarn-पं० [प० त०] अन्तिम वर्ण का। शुद्र । अंत-विदारण-Antavidaran-पुं० [व० स०] ग्रहण के दस प्रकार के मोक्षों में से एक । अंत-वेला-Antavela- स्त्री - अंत-काल । अंत-व्यापत्ति-Antavyapti-स्त्री० [प० त०] शब्द के अंतिम अक्षर में होनेवाला परिवर्तन। अंत-शय्या-Antashayya-स्त्री०प० त०] १. मृत्युशय्या । २. मृत्यु । ३. श्मशान। अंतश्चित्त-Antashchit-पुं० [मध्य० स०] अंतःकरण । मन । अंतश्छद-Antachhad-पुं० [मध्य० स०] १. भीतरी तल । २. भीतर का आवरण। अंत-सद्-Antasad-गुं० [सं० अंत/सद् (प्राप्ति, वैठना)+क्विप] शिष्य । चेला। अंत-समय-Antasamay-पुं० [प० त०] अंत या मृत्यु होने का समय । अंतस् -Antas-पुं०-अंतःकरण। अंतस्तल-Antastal-पुं० [प० त०] १. हृदय या मन । २. अचेतन या सुप्त मन। अंतस्ताप-Antastaap-पुं० [मध्य० स०] मन में होनेवाला दुःख, व्यथा आदि। मनस्ताप । अंतस्थ-Antastha-वि० [सं० अंत/स्था (ठहरना)+का अंत या अंतिम अंश में रहने या होनेवाला। अंतिम। जैसे---अंतस्थ वर्ण। विशेष-दे० 'अंतःस्थ। अंतस्य-वर्ण-Antasyavarn-युं० [कर्म० स०] देवनागरी लिपि में य, र, ल और व ये चार वर्ण। अंत-स्नान-Antasnan-पुं० [प० त०] यज्ञ की समाप्ति पर किया जानेवाला स्नान । अंतस्सलिला-Antassalila-स्त्री० [ब० स०]-अंतः सलिला। अंतस्तार-Antastaar-वि० [व० स०] १. भीतर से ठोस। पोढ़ा। २. बलवान। पुं० [मच्य० स०] १. ठोसपन। २. अंतरात्मा। ३. मन, बद्धि और अहंकार का समन्वित रूप। अंतहपुर-Antahpur-पुं० अंतःपुर। अंत-हीन-Antaheen-वि० [तृ० त०] [भाव० अंतहीनता] १. जिसका अन्त न हो। अनंत । २. जिसकी सीमा न हो। निस्सीम। अंतरराष्ट्रीय-Antaarrashtreey-वि० अंतर-राष्ट्रीय ! अंतावरि-Antavaari- (री)-स्त्री० [हिं० अंत+सं० आवली] अंतड़ी। आँत। अंतावसायी-Antaavsayee- (यिन्)-पुं० [सं० अन्त-अव/सो (अंत करना)--णिनि, युक्] १. नाई। नापित। हज्जाम। २. चांडाल। वि० हिंसा करनेवाला। हिंसक ! अंतिक-Antik-वि० [सं०/अत् (बांवना) घन्-+-ठन्-इक] १. समीप या पड़ोस में होने या रहनेवाला। २. अंत तक जानेवाला। पुं० वह जो समीप या पड़ोस में रहता हो या स्थित हो। अंतिका-Antika-स्त्री० [सं०/अत्-इ, अति-क-टाप्] १. बड़ी बहन । २. चूल्हा । भट्ठी । ३. सातला नामक पौधा। अंतिम-Antim-वि० [सं० अंत-डिमच्] १. एक ही वर्ग की घटनाओं, वस्तुओं आदि के क्रम में सब के अंत में रहने या होनेवाला। जिसके उपरांत या बाद में उस क्रम या वर्ग की ओर कोई घटना या बात न हो। (लास्ट) जैसे-~-(क) किसी के जीवन का अन्तिम दिन। (ख) किसी का लिखा हुआ अंतिम पत्र या पुस्तक । २. हद दरजे का। परम । अंतिम-यात्रा-Antimyatra-स्त्री० [कर्म० स०] मृत्यु । अंतिमेत्यम्-Antimetyam-पुं० [अं॰अल्टिमेटम के अनुकरण पर चना सं० रूप, अंतिम इत्यम्, कर्म० स०] एक राज्य का दूसरे राज्य से यह कहना कि यदि हमारी इन अंतिम शर्तो को नहीं मानोंगे तो तुम पर चढ़ाई कर देंगे। अंती-Antee-स्त्री० [सं०/अन्त्+इ, अन्ति-डीष] चूल्हा । अंते-Ante-अव्य [सं० अंत=अलग, दूर] किसी और या दूसरी जगह। अन्यत्र । अंतेउर-Anteur-(वर) *~-पुं० [सं० अंतःपुर] अंतःपुर। जनानखाना। अंतेवासी-Antewaasee- (सिन्)---० [सं० अंत/वस् (बसना)+मिनि] १. शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु के पास या साथ रहनेवाला शिष्य । २. गाँव के वाहर रहनेवाला वर्ग या समाज | ३. चांडाल। वि० पास या साथ रहनेवाला। अंत्य-Antya-वि० [सं० अंत-न-यत्] सब के अंत में आने, रहने या होनेवाला। अंतिम। पं० १. पद्म की संख्या (१,००,००,००,००,००,००,०००) । २. मोथा नामक पौधा। ३. चांडाल। अंत्यज। ४, ज्योतिष में अंतिम नक्षत्र या लग्न। अंत्यक- Antyak-पुं० [सं० अंत्य-कन]-अंत्यज। अंत्य-कर्म- Antyakarm- (न्)-पुं० [कर्म० स०] अंत्येष्टि क्रिया। अंत्य-क्रिया- Antyakriya-स्त्री० [कर्म० त०] अंत्येष्टि । अंत्यगमन- Antyagaman-पुं० [तृ० त०] उच्च वर्ण की स्त्री का अंतिम वर्ण (शूद्र आदि) के पुरुष के साथ संभोग करना। अंत्यज- Antyaja-वि० [सं० अंत्य/जन् (उत्पत्ति)+] [स्त्री० अन्त्यजा १. जो अंतिम वर्ण से उत्पन्न हो। २. जिसका संबंध निम्न या अछूत' जाति से हो। पुं० १. छोटी या नीच जाति । २. अस्पृश्य जाति। ३. शूद्र या अछूत। अंत्य-पद- Antyapad-पुं० [कर्म० स०] गणित में, वर्ग का सबसे बड़ा मूल। अंत्य-भ- Antyabha--० [कर्म० स०] १. अंतिम या रेवती नक्षत्र । २. मीन राशि। अंत्य-मूल- Antyamool-पुं० [कर्म० स०] =अंत्य-पद। अंत्य-युग- Antyayug-पुं० [कर्म० स०] अंतिम युग । कलियुग। अंत्य-लोप- Antyalop-पुं० [प० त०] शब्द के अंतिम अक्षर के लोप होने की क्रिया या भाव। (व्या०) अंत्य-वर्ण- Antyavarn- पुं० कर्म० स०] १. अंतिम वर्ण। शूद्र । २. वर्णमाला का अंतिम अक्षरह। ३. कविता के चरण या पद का अंतिम अक्षर। अंत्य-विपुला- Antyavipula-स्त्री० [ व० स०] आर्यछंद का एक भेद । अंत्या- Antyaa-स्त्री० [सं० अंत्यन्टाप] अंत्यज जाति की स्त्री। अंत्याक्षर- Antyaakshar-पं० [सं० अंत्य-अक्षर, कर्म० स०] १. किसी शब्द या पद का अंतिम अक्षर। २. वर्ण-माला का अंतिम अक्षर 'ह'। अंत्याक्षरी- Antyaaakshari-स्त्री० [सं० अंत्याक्षर+अच्-डीए) किसी के द्वारा कहे हुए पद्य या श्लोक के अंतिम अक्षर या शब्द से प्रारम्भ किया हुआ नया पद्य या श्लोक। अंत्यानुप्रास- Antyaanupraas-पुं० [सं० अंत्य-अनुप्रास, कर्म० स०] अनुप्रास शब्दालंकार का एक भेद जिसके अनुसार किसी पद्य के चरणों के अंतिम अक्षर या अक्षरों में सादृश्य होता है। अंत्यावसायी- Antyaavasayee- (यिन्)-वि० [सं० अंत्य-अव/सो (नष्ट करना)+णिनि] अत्यन्त छोटी या नीच जाति का (आदमी)। अंत्याश्रम- Antyaashram-पुं० [सं० अंत्य-आश्रम, कर्म० स०] वर्णाश्रम में अंतिम अर्थात् चौथा आश्रम । संन्यास आश्रम। अंत्याश्रमी- Antyaashramee- (मिन्)---वि० [सं० अंत्याश्रम+इनि] अंतिम आश्रम में रहनेवाला। पुं० संन्यासी। अंत्येष्टि- Antyeshti-स्त्री० [सं० अंत्या-इष्टि, कर्म० स०] किसी को मृत्यु होने पर किए जानेवाले कर्म-कांड संबंधी धार्मिक कृत्य या संस्कार । जैसे हिन्दुओं में दाह-कर्म या ईसाइयों, मुसलमानों आदि में मुरदा गाड़ना। अंत्र-Antra-पुं० [सं०/अन्त (वाचना)+ष्ट्रन] आंत । अंतड़ी। *पुं० (सं० अंतर) मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार का समन्वित रूप । अंत्र-कूज- Antrakunj-पुं० [ष० त०] आँतों की गुड़गुड़ाहट । अंत्रजन- Antrajan-पुं०=अंत्र-कूज। अंत्र-वृद्धि-Antravriddhi-स्त्री० [ष० त०] आँत उतरने का रोग । अंत्रांडवृद्धि-Antraandvriddhi-स्त्री० [सं० अंड-वृद्धि, प० त०, अंत्र अंडवृद्धि, तृ० त०] अंडकोश या फोते में आँत का उतरना और इस कारण उसका फूल जाना। (रोग) अंत्राद-Antraad-पुं० सं० मंत्र/अद् (खाना)+अण्] आँतों में उत्पन्न होने वाले कीड़े। अंत्री-Antri-स्त्री० [सं० अंत्र] अंतड़ी। आँत। अँयऊँ-Anyaun-पुं० [सं० अस्त] सूर्यास्त होने से कुछ पहले किया जानेवाला भोजन। (जैन) अँथयना-Anthyana-अ० दे० 'अथना (अस्त होना)। अंदर-Andar-त्रि० वि०सं० अन्तर, पा. जन्तोः प्रा० अन्त, आँत, फा० अन्तर; गु० अंतर, मरा० आँत, अन्तर] [वि. अंदरी भीतरी] भीतरी भाग में। भीतर की ओर। पुं० १. वह जो किसी में स्थित हो या रहे। २. मकान, प्रदेश, स्थान आदि का भीतरी भाग। अंदरसा- Andarsaa-युं० [सं० इंद्राश ?] चौरेठे या पिसे हुए चावल से बनी हुई एक प्रकार की मिठाई। अंदरी- Andari-वि० [फा० अंदर--ई] १. अंदर या भीतर का। भीतरी। २. जिसका संबंध अंदर से हो। अंदवार-Andawaar-पुं० दे० 'अंबड़। अंदाज-Andaaj-पुं० [फा०] १. अनुमान। अटकल। २. नाप-जोख। ३. ढव। . ढंग। ४. हाव-भाव। कोमल चेष्टाएँ। ' वि० फेंकनेवाला (संज्ञा के अंत में)। जैसे- तीरंदाज। अंदानन-Andanan-अव्य. [फा०] १., अंदाज से।. अटकल से। अनुमानतः। २. प्राय:। लगभग। अंदाजपट्टी-Anjajpatti- स्त्री कनकूत। अंदाजपीटी-Anjajpiti-स्त्री० [फा० अंदाज--हिं० पिटना] सदा बनाव-सिंगार ' में लगी रहनेवाली और अंदाज, नखरे दिखानेवाली स्त्री। (गाली) अंदाजा-Andaja-पुं० [फा०] १. अटकल । अनुमान। २. कृत। अंदाना-Andana-स० [सं० अदि--बावना, बंधन करना] संपर्क न होने देना। .. बचाना। अंदिका-Andika-स्त्री० [सं०/अन्द् (वांवना)+ण्वुल-अक, टाप, इत्व] १. , चूल्हा । २. बड़ी बहन । अंदुआ-Andua-पुं० [सं० अंदुक] हाथियों के पिछले पैर में डालने के लिए काठ ... का .बना हुया एक प्रकार का काँटेदार चक्कर। अंदु-Andu-पुं० [सं०/अन्द्--कु] दे० 'आँ' । अंदुक-Anduk-पुं० [सं० संदु+कन्] दे० 'आँदू'। अंदू-Andoo-पुं० [सं०/अन्द--क]-आँदू। अंदूक-Andookपुं० [सं० बंद कन्]=आँदू । अंदेशा-Andesha-पुं० [फा०]-खटका । अदेसा-Andesa-पुं०= अंदेशा (खटका)। अंदेह-Andeh- हि अंदेशा] १. खटका। २. सन्देह। उदा--सब कोई । कहै तुम्हारी नारी मोको यही अंदेह रे।–कबीर। अंदोर-Andor-पुं० [सं० आंदोलन] १. कोलाहल। हुल्लड़। २. हलचल। अंदोरा-Andora-पुं० अंदोर। अंद्रसस्त्र-Andrasastra-पुं० [सं० इंद्रशस्त्र] वज्र। (डि.)। अंध-वि० [सं०/अंघ (अंबा होना)+अच्] १. ज्ञान ज्योति से रहित । २. विचार और विवेक से रहित । ३. अविवेकी । ४. जो आँख मूँदकर किया गया हो। आँख बंद करके किया हुआ। जैसे--अंध-अनुकरण, अंध-परंपरा। ५. जिसे आगा-पीछा या भला-बुरा कुछ भी दिखाई न दे। जो असमंजस में पड़ा हो। ६. मुर्ख । नासमझ। । पुं०१. वह जिसे दिखाई न दे। अंधा आदमी । २. अंधकार । अँधेरा। ३. जल्ल पक्षी । ४. चमगादड़। ५. जल। पानी। ६. एक प्रकार के परित्राजक । ७. पिंगल या छंद शास्त्र के नियमों के विरुद्ध रचना करने का दोष। अंधक-Andhak-वि० सं० अंव-+कन]-अंधा। पुं० (सं०/अन्य् (अंबा होना)+ण्वुल-अक) १. अंधा आदमी। २. कश्यप का एक पुत्र जो शिव के हाथों मारा गया था। ३. बृहस्पति के बड़े भाई उतथ्य का एक पुत्र । ४. बौद्ध-काल की एक प्राचीन भाषा। अंधक-रिपु-Andhakripu-पुं० [प० त०] १. दे० 'अंधधाती। २. अंधकार का शत्रु । अंघकार-Andhakaar-पुं० [अंघ/कृ (करना)+अण] १. प्रकाश, रोशनी का न होना। २. अज्ञान । ३. मोह। ४. उदासी। अंधकार-युग- Andhakaaryug-पुं० [प० त०] किसी देश या विषय के इतिहास का वह समय जिस की विशेष बातें अभी अज्ञात हों। (डार्क एज) अंधकारि- Andhakaari-पुं० [सं० अंधक-अरि, प० त०]-अंधक-रिपु।। अंधकारो-Andhakaro-स्त्री० [सं० अंधकार+डी] एक रागिनी जो कहीं-कहीं भैरव राग को रागिनियों में मानी गई है। अंध-कूप-Andhakoop-पुं० [कर्म० स०] १. ऐसा सूखा हुआ कुँआ जिसके अंदर अँधेरे के सिवा और कुछ भी दिखाई न देता हो। २. पुराणानुसार एक नरक का नाम । ३. घोर अंधकार । गहरा अवेरा। ४. अज्ञान । अंध-खोपड़ी-Andhakhopadi-वि० [सं० अंब-+-हि. खोपड़ो] जिसके मस्तिष्क में कुछ भी बुद्धि न हो। जिसे बुद्धि से मतलब न हो। मूर्ख। जड़। अंधघाती-Andhaghaatee- (तिन्)--पुं० [सं० अंच हतु (मारना)+णिनि] १. शिव । २. सूर्य । ३. चन्द्रमा। ४. अग्नि । अंधड़---पुं०-आँधी! अंध-तमस-Andhatamas-पुं० [कर्म० स०, अच्] घोर अंधकार। गहरा अंधेरा। अंधता-Andhata-स्त्री० [सं० अंच--तल-टाप्] १. अंधे होने की अवस्था या भाव। अंधापना अंधतामस-Andhataamas-पुं० [सं० तमस्+अण, संव-तामस, कर्म० स०] घोर अंधकार। अंध-तामिस्र-Andhatamisra-पुं० [सं० तमिन्न-अण, अंब-तामिस्त्र, कर्म० स०] १. घोर या निविड़ अंधकार। २. पुराणों के अनुसार एक नरक जिसमें घोर अंधकार है। ३. सांख्य दर्शन के अनुसार इच्छा के विवान या विपर्यय के पाँच भेदों में से एक । जीने की इच्छा रहते हुए भी मरने का भय। ४. योग के अनुसार पाँच क्लेशों में से एका जिसमें मृत्यु का भय होता है। अंधधुंध -Andhadhundh--क्रि० वि० अंधाधुंध । अंध-परंपरा-Andhaparampara-स्त्री० [१० त०] बिना सोचे-समझे पुरानी चाल का अनु.करण। भेड़िया-बसान। बिना सोचे-समझे मानी जानेवाली पुरानी प्रथा या रूढ़ि। परंपरा या प्रथा का होनेवाला अंध-अनुकरण। अंध-पूतना-Andhapootna-स्त्री० [कर्म० स०] सुश्रुत के अनुसार एक बालग्रह (रोग)। अंधवाई-Andhawaai-स्त्री-आँधी। अंधर-Andhar-१. अंधड़। २. अंधेरा। अंधरा -Andharaपुं० [सं० अंघ स्त्री अवरो] अंधा। नेत्र-हीन । अंघला-Andhala-वि०=अंधा। अंधवाहा-Andhawaha-पुं० आँधी। अंध-बिन्दु -Andha-पुं० [कर्म० स०] आँख के भीतरी परदे का वह बिंदु जहाँ किसी आंतरिक कारण से प्रकाश या बाहरी वस्तु का प्रतिबिंब न पहुँचता हो। अंध-विश्वास-Andhvishwasपुं० [प० त०] बिना सोचे-समझे किया जानेवाला निश्चय अथवा स्थिर किया हुआ मत। विवेक-शून्य धारणा। जैसे किसी परंपरागत रीतियों, किसी विशिष्ट धर्माचार्यों के उपदेगों, अथवा किसी राजनीतिक सिद्धांत के प्रति होनेवाला अंधविश्वास। (सुपर्सटिशन) अंध-श्रद्धा-Andhashraddha-स्त्री० [प० त०] बिना सोचे-समझे, केवल अंध-विश्वास के कारण की जानेवाली था। . अंधस-Andhas-पुं० [सं०/अद् (खाना)+असुन्, नम्, ध] १. भात। २.खाद्य । ३. सोम नामक वनस्पति या उसका रस। अंधा-Andhaa-पुं० [सं० अंब] वह जो आँख के दोष या विकार के कारण कुछ भी न देख सकता हो। दृष्टि-शक्ति से रहित प्राणी। ... वि०१. जिसकी आँखों में देखने की शक्ति न हो। २. जिसके अंदर कुछ भी दिखाई न दे। जैसे--अंध कोठरी। ३. बिना सोचे-समझे काम करनेवाला। ४. जिसमें कोई विशिष्ट तत्त्व न हो, या न रह गया हो। जैसे--अंधा शीशा। अंधा दिया। मुहा०--अंधा बनना-जानबूझकर किसी बात पर ध्यान न देना । अंधा बनाना-बुरी तरह से या मूर्ख बनाकर धोखा देना। पद-~-अंधा भैंसा लड़कों का एक खेल जिसमें वे आँखों पर पट्टी बाँध कर एक दूसरे को छूकर उसका नाम बताते और तब उसे भैंसा बनाकर उस पर सवारी करते हैं। अंव की लकड़ी या लाठी-असहाय · का एकमात्र सहारा। अंधा-कुआँ-Andhakuan-पुं० [हिं० अंधा-कूआँ] १. वह गहरा कूआँ जिसमें का पानी सूख गया हो और जिसमें मिट्टी भर गई हो। २. बहुत गहरा और अँधेरा कूआँ ३. उदर । पेट । (लाक्ष०) अंधा-धुंध-Andhadhundh-स्त्री० [हिं० अंधा-धुंध] १. गहरा अँधेरा। घोर अंधकार। २. ऐसी अवस्था या व्यवस्था जिसमें क्रम, विचार, संगति आदि का नाम भी न हो। धींगा-धींगी। ३. अन्याय । अत्याचार। दुराचार1 वि० १. विचार, विवेक आदि से रहित । २. बहत अधिक। जैसे अंधाधुंध बिक्री। क्रि० वि० १. बिना कुछ भी सोचे-समझे हुए। बेतहाशा। जैसे---- अंधाधुंब दौड़ना! २. बहुत अधिकता से। जैसे--अंधाधुंध पानी बरसना। अंधानुकरण-Andhanukaran-पुं० [सं० अंध-अनुकरण, प० त०] बिना सोचे-समझे किया जानेवाला किसी का अनुकरण। अंधार--पुं० [सं० अंधकार, प्रा० अंधयार] १. अँधेरा! अंधकार। वि० जिसमें या जहाँ अँधेरा हो। अंधकारपूर्ण। पुं० (?) रस्सियों का वह जाल जिसमें धात, भूसे आदि के गट्ठर बाँधते हैं। अंधारा-Andhaara-पुं० [हि० अँधेरा] १. अंधकार । अँधेरा। २. कृष्ण पक्ष । वि०-अंधेरा! अंधारी-स्त्री. हि० अवारई] १. आँधी। अंधड़। (डि०) २. दे० 'अँधियारी अंधाहुली-Andhahuli-स्त्री० [सं० अधःपुष्पी] चोर पुष्पी नामक पौधा। अंधिका-Andhika-स्त्री० [सं०/अंध् (दृष्टि-नाश या प्रेरणा)--बुल-अक--- टाप, इत्व] १. रात! रात्रि। २. एक प्रकार का खेल, कदाचित् आँखमिचौनी। ३. आँख का एक रोग। ४. स्त्रियों का एक भेद या वर्ग। अँधियार-Andhiyar--पुं० [सं० अंधकार, प्रा. अंधयार] अंधेरा। अंधकार। वि० अंधकारपूर्ण। अँधियारा-Andhiyara-पुं० अँधेरा। वि० १. अंधकारपूर्ण । २. धुंवला। ३. उदास और सुनसान। अँधियारी-Andhiari-स्त्री-अँधेरी। अँधियाली-Andhiyaali-स्त्री-अँधियारी। अंधुल-Andhal-पुं० [सं०/अंच्+उलच] सिरिस का पेड़ । अंधेर-Andher-पुं० [सं० अंधकार, प्रा० अंचयार] १. ऐसी व्यवस्था, स्थिति, या शासन जिसमें औचित्य, न्याय आदि का कुछ भी विचार न होता हो। २. अशांति या विप्लव की स्थिति। अंधेर-खाता-Andherkhata-पुं० हिं० अंधेर-+-खाता] १. औचित्य, न्याय, आदि के विचार का पूरा अभाव । २. मनमानी कार्रवाई या व्यवस्था। अंधेर गरदी-Andhergaradi-स्त्री-अंधेर-खाता। अंधेर नगरी-Andhernagaree-स्त्री० [हिं० अंधेर अन्याय+नगरी] ऐसा स्थान जहाँ नियम, न्याय, व्यवस्था आदि का पूरा अभाव हो। जहाँ अनीति, अव्यवस्था और कुप्रबंध हो। अँधेरना-Andhernaa-स० [हिं० अंधेर] १. अंधकार फैलाना। अंधेरा करना। २. बहुत ही मन-माना व्यवहार या अँधेर करना। अँधेरा-Andhera-पुं० [सं० अंधकार, पा० अंधकारो, प्रा० अंधयार>अंधार, वं० आंधार, ओ० अधार, गुरु अंधारू, अंधेरू, सिं० अंधारू, पं० अन्हेरा, मै० अन्हरिया, सिंह० अन्दुर] १. वह समय या स्थिति जिसमें प्रकाश या रोशनी न हो। अंधकार। पद--अंधेरा गुप्प घम्प] ऐसा अंधकार जहाँ कुछ सूझता ही न हो। अँधेरा पाख या पक्ष-चांद्र मास का कृष्ण पक्ष। अँधेरे घर का उजाला- (क) वह जो अंधकार को दूर कर दे। (ख) कीर्ति बढ़ानेवाला। शुभ। (ग) अँधेरे उजले-उपयुक्त-अनुपयुक्त समय में। समय कुसमय । अँधेरे मुँह या मुँह अंधेरे-पौ फटते समय । बहुत तड़के। २. धुंधलापन। ३. उदासी की स्थिति। ४. ऐसी अवस्था जिसमें मनुष्य हताश होकर यह न समझ सके कि अब क्या करना चाहिए। वि० स्त्री० अँधेरी] जिसमें प्रकाश न हो या बहुत कम हो। अंधेरा-पक्ष-Andherapaksh--पुं० [हिं० अंधेरा- पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तक के १५ दिन। चांद्र मास का कृष्ण पक्ष । अँधेरिया-Andheriya-वि० हिं० अंधेरा] जिसमें बहुत अँधेरा हो। जो अंधकारपूर्ण हो। स्त्री० १. अँधेरी रात। २. अँधेरा पक्ष । ३. अंधेरा । अंधकार। अँधेरी-Andheri-स्त्री० [हिं० अँधेरा+ई] १. अंधकार। तम। २. अंधेरी रात। ३. आँधी। अंधड़। ४. चौपायों, पक्षियों आदि की आँखों पर बाँधी जानेवाली पट्टी। ५. लोहे की वह जाली जो युद्ध-क्षेत्र में जानेवाले घोड़ों के मुँह पर लगाई जाती है। ६. वह पट्टी जो पशुओं की आँखों पर बाँधी जाती है। मुहा०-अंधेरी डालना या देना- (क) किसी की आँखें बंद करके उसकी दुर्गति करना। (ख) घोखा देना। अँधेरी कोठरी-Andherikothari-स्त्री० [हिं०] १. पेट । २. ऐसा स्थान या स्थिति जिसमें अंदर की बातों का पता न चले। ३. स्त्रियों का गर्भाशय । अंधौटा-Andhouta-स्त्री० [सं० अन्ध+पट, प्रा० अंधवटीं] [स्त्री० अँचोटी] घोड़ों, बैलों आदि की आँखों पर बाँधा जानेवाला कपड़ा। अंधौरी-Andhouri-स्त्री०= अम्हौरी (पित्ती)। अंध्यार-Andhyaar-वि०-अंधेरा। अंध्यारी-Andhyaariस्त्री-अंधेरी। अंध्र-Andhra-पुं० सं०/अंध+रन्] १. बहेलिया। व्याघ। २. शास्त्रों के अनुसार एक प्राचीन संकर जाति। ३. दक्षिण भारत का आंध राज्य । ४. मगध का एक प्राचीन राजवंश। अंध्र-भृत्य- Andhrabhritya-पुं० [व० स०] एक प्राचीन राजवंश जिसने अंधवंश के पश्चात् मगध का शासन किया था। अंबवर-Ambawar-पुं० [सं० अंबर+वर] अच्छा वस्त्र । (डि०) अंब-Amba-पुं० [सं०. अंबर] · आकाश। गगन। उदा०---उडीयण बरिज अंब हीर।-चंद। पुं० [सं० आम्र] आम का वृक्ष और उसका फल । स्त्री-अंबा (माता)। अंबक-Ambak-पुं० [सं०/अम्ब (जाना)--वुल-अक] १. आँख । नेत्र। २. ताँबा। ३. पिता। अंबख-Ambakh-पुं०=अंबक। अंबर-Ambar-पुं० [सं०/अव (शब्द)+घत्र---अंब/रा (दान)+का १. घेरा। परिधि। २. कपास। ३. कपड़ा। चस्मा ४. एक विशेष प्रकार 'का रेशमी कपड़ा। ५. आकाश। मुहा.--अंबर के तारे डिगना असंभव पटना घटित होना । उदा०-- अंबर को तारे डिगै जुआ ला. बैल। कोई कवि । ६. बादल। मेघ। ७. ब्रह्मरंधा ८. अमृत। ९. अबरक। १०. उत्तर भारत के एक प्रदेश का पुराना नाम । ११. एक प्रसिद्ध सुगंधित द्रव्य जो व्हेल मछली की आँतों में से निकाला जाता है। अंबरचर-Ambarchara-वि० [सं० अंबर/चर (गति)+] आकाश में चलनेवाला। पुं० १. पक्षी। चिड़िया। २. विद्याधर (देव-योनि)। अंबर-चारी-Ambarcharee- (रिन)--यं० [सं० अंबर/चर+णिनि आकाश में चलनेवाले पक्षी आदि। अंबर-डंबर-Ambardambar-पुं० [सं० अंबर: आकाश] सूर्यास्त के समय पश्चिम दिशा में दिखाई पड़नेवाली लाली। उदा०---अंबर-डंबर साँझ के ज्यों बाल को भीत। अज्ञात । अंबर-द-Ambarda- [सं० संवर/दा (देना)+क] कपास जिससे कपड़े बनते हैं। अंबर-पुष्प-Ambarpushp-पुं० [प० त०] आकाश-कुसुम । अंबर-बारी-Ambarbaaree-स्त्री०=दारुहल्दी। अंबरचलि-Ambarchali-स्त्री-आकाश-बेल। अंबर-मणि-Ambarmani-पुं० [प० त०] सूर्य ।' अंबरसारी-Ambarsari- पुं० [?] प्राचीन काल में घरों पर लगनेवाला एक प्रकार का कर या टेक्स। अंबरांत-Ambaraat-पुं० [सं० अंबर---अंत, ५० त०] क्षितिज । अंबराई-Ambaraai-स्त्री-अमराई। अंबराउ-Ambarau-अमराई। अंबराव-Ambarav-पुं०-अमराई। अंबरी-Ambari-वि० [हिक अंबर-1ई (प्रत्य)] जिसमें अंबर (एक सुगंधितद्रव्य) पड़ा या मिला हो। अंबर को सुगंधि से युक्त । जैसे-अंबरी बिरियानी। अंबरीष-Ambarish-पुं० [सं०/अंब (पाक) गरिष, नि. दीर्घ] १. विष्णु । २. शिव। ३. सर्य। ४. ग्यारह वर्ष की अवस्था का बालक५. युद्ध। लड़ाई। ६. आमड़े का वृक्ष और उसका फल । ७. पश्चात्ताप । ८. भाड़। ९. मिट्टी का वह बरतन जिसमें अनाज के दाने (भाड़ में) भूने जाते है। १०, अयोध्या के एक प्रसिद्ध और प्राचीन सूर्यवंशी राजा जो इक्ष्वाकु से २८वीं पीढ़ी में हुए थे। अंबरीसक-Ambarisak- पुं० [सं० अम्बरीप] भाड़। भड़साई। (डि.) अंबरीक(स्)- Ambareek-पुं० [सं० अंबर-झोकस, व० स०] देवता। अंबला-Ambla-वि० अम्ल। पुं० अमल। अंबली-Ambali-पुं० [सं० अंवर] एक प्रकार की गुजराती कपास। अंबरठ-Ambarath-पुं० [सं० अंब/स्था (ठहरना)+क] [स्त्री० अंबष्ठा] १. एक प्राचीन जनपद जो चिनाब नदी के निचले भाग के दोनों ओर वसा था। २. उक्त प्रदेश का निवासी। ३. ब्राह्मण पिता और वैश्य माता से उत्पन्न एक जाति का पुराना नाम। ४. महावत । ५. कायस्थ जाति का एक वर्ग या शाखा। अंबष्ठा-Ambashtha-स्त्री० [सं० अंबष्ठ+टाप्] १. अंबष्ट जाति की स्त्री। २. पाढ़ा नाम की लता। ३. जूही। अंबठिका-Ambathika-स्त्री०सं० [वष्ठ+कन टाप, इत्व] अंबष्ठा। अंबहर-Ambahar--पुं० [सं० अंवर] आकाश । पुं० दे० 'अमहर। अंबा-Amba-स्त्री० [सं०/अन् (गति)+घञ्--टाप] १. जननी। माता। २. पार्वती। ३. काशिराज इंद्रद्युम्न की सबसे बड़ी कन्या जिसे भीष्म हर ले गए थे। ४. यमुना नदी की एक शाखा। ५. पाहा लता। पुं०=आम (वृक्ष और फल)। अंबालोर-Ambaalor-वि० [हिं० अंबा-आम--झोरना] बहुत तेज हवा (जिससे पेड़ों के आम झड़ जाएँ)। अंबाड़ा-Ambaada- पुं०-आमड़ा। अंबापोली-Ambapoli-स्त्री० [सं० आम्र=आम, प्रा० अंब+सं० पौलि-रोटी] अमावट। अंबार-Ambaar-पुं० [फा०] ढेर। राशि। अंबारी-Ambaaree-स्त्री० [अ० अमारी] १. एक प्रकार का छज्जेदार मंडपवाला हौदा। २. मकान के अगले या ऊपरी भाग में बना हुआ उक्त प्रकार का मंडप। स्त्री० (?) पटसन। (दक्षिण) अंबालिका -Ambalika- स्त्री० [सं० अंबा/ला (लेना)-क-टाप, इत्व] १. माता। २. काशी के राजा इंद्रद्युम्न की छोटी कन्या जिसे भीष्म पितामह हर ले गए थे। ३. अंबष्ठा या पाढ़ा नाम की लता। अंबिका-Ambika-स्त्री० [सं० अंबा-कन्टाप, इत्व] १. माता। माँ। २. दुर्गा । ३. पार्वती। ४. जैनियों की एक देवी। ५. काशी के राजा इंद्रद्युम्न की कन्या जिसे भीष्म पितामह हर ले गए थे और जिसके गर्भ से धृतराष्ट्र उत्पन्न हुए थे। ६. कुटको नाम का पौधा। ७. दे० 'वंबा'। अंबिका-पति-Ambikapati-पुं० [प० त०] शिव। अंबिका-बन-Ambikavan-पुं० [प० त०] पुराणों के अनुसार एक वन जहाँ पहुँचने पर पुरुष स्त्री बन जाता था। अंबिकेय-Ambikey-गुं० [सं० अंबिका---एय] १. अंबिका के पुत्र-हनेश । २. कार्तिकेय ३. धृतराष्ट्र। अंबिया-Ambiya- स्त्री० [सं० आर, प्रा० अंब] छोटा कच्चा मामा अंबिरया-Ambariya-वि०-वृथा। अंबिली-Ambili-स्त्री०=-इमली (का वृक्ष और उसका फल)। अंबु-Ambu-पुं० [सं०/अंब (शब्द)+उ] १. जल। पानी। २. रक्त या खून में का जलीय अंश। ३. (जल को चौथा तत्त्व मानने के कारण) चार का अंक या संख्या। ४. जन्म-कुंडली में चौथा घर या स्थान । ५. सुगंधवाला। अंबु-कंटक-Ambukantak-पुं० [अ० त०] मगर नाम का जल-जंतु। अंबु-कोश-Ambukosh-पुं० [स० त०] सूँस नामक जल-जंतु। अंबु-कूर्म-Ambukarm-पुं० [स० त०] सूँस (जल-जंतु)। अंबु-केशर-Ambukeshar-पुं० [स० त०] नींबू । अंबु-घन-Ambughan-पुं० [ष० त०] ओला अंबु-चर-Ambuchar-वि० [सं० अंबु/चर् (गति)-ट] जल में रहनेवाला। पुं० जल में रहने या विचरण करनेवाला जंतु या जीव । अंबु-चत्वर-Ambuchatvar-पुं० [ष० त०] झील। अंबु-चामर-Ambuchaamar-पुं० [स० त०] सिवार। अंबुचारी-Ambucharee- (रिन्)--पुं० [सं०. अंबु/चर्+णिनि] =अंबुचर। अंबुज-Ambuj--वि० [सं० अंबु/जन् (उत्पन्न होना)+ड] [स्त्री० अंबुजा] जो जल से या जल में उत्पन्न हुआ हो। जैसे-कमल, कुमुदिनी आदि। पुं० १. जल से उत्पन्न वस्तु। २. कमल। ३. ब्रह्मा। ४. चंद्रमा। ५. शंख । ६. वज्ज । ७. पनिहा या हिज्जल नामक वृक्ष। ८. सारस पक्षी। ९. कपूर। १०. बेंत अंबुजा-Ambuja-स्त्री० [सं० अंबुज+टाम्] १. कुमुदिनी। २. कमलिनी। ३. संगीत में एक रागिनी। अंबुजाक्ष-Ambujaksh-वि० [सं० अंबुज-अक्षि, ब० स०, अच्] जिसके नेत्र कमल के समान हों। पुं० विष्णु। अंबु-जात-Ambujaat-वि०, पुं० [पं० त०] =अंबुज । अंबुजासन-Ambujasan- पुं० सं० अंबुज-आसन, व० स०] ब्रह्मा अंबु-ताल-Ambutaal-पुं० [स० त०]-सिवार। अंबुद-Ambuda-वि० [सं० अंबु/दा (दान)+क] जल देनेवाला। पुं० १. बादल। मेघ । २. मोथा। अंबु-धर-Ambudhar-वि० [सं० अंबु।/ (धारण करना)+अचु] जल धारण करनेवाला। पुं० बादल । मेघ । अंबु-धि-Ambudhi-वि० [सं० अंबु/धा (धारण)---कि] जिसमें जल हो। पुं० १. समुद्र । २. चार की संख्या। ३. जल रखने का पान या बरतन। अंबु-नाथ-Ambunaath-पुं० [प० त०] १. समुद्र । २. वरुण। अंबु-निधि-Ambunidhi-पुं० [प० त०] सागर। समुद्र । अंबु-प-Ambupa-वि० सं० अंबु/पा (पीना या रक्षा)-+क] पानी पीनेवाला। पुं० १. समुद्र। २. वरुण। ३. शतभिषा नक्षत्र । ४, चक्रमर्दक या चकबेड़ नामक पौधा। अंबु-पति-Ambupati-पुं०प० त०] १. समुद्र। २. वरुण । अंबु-पत्रा-Ambupatraa-स्त्री०व० स०] एक प्रकार का पौधा । नागरमोथा। अंबु-पालक-Ambupaalak-पुं० [ष० त०] [स्त्री० अंबुपालिका] पानी भरनेवाला सेवक । पनभरा। अंबु-भव-Ambubhav-पुं० [व० स०] कमल। अंबु-भृत्-Ambubhrit-पुं० [सं० अंबु/भ (घारण-पोषण)+क्विप्] १. बादल। मेघ। २. नागरमोथा नामका पौधा । ३. समुद्र । ४. अभ्रक । अबरक। अंबुमती-Ambumati-स्त्री० [सं० अंबु+मतुप-डीम्] एक प्राचीन नदी का नाम । अंबु-राज-Amburaaj-पुं० [प० त०] १. समुद्र । २. वरुण। अंबु-राशि-Amburashi-पुं० [ष० त०] जल की राशि। सागर। अंबु-रुह-Amburuh-पुं० [सं० अंबु/रुह, (उत्पन्न होना)-1-2] कमल। अंबु-वाची-Ambuvachi-पुं० [सं० अंबु वच् (बोलना)+गिच्+अण्-डीप्] १. आर्द्रा नक्षत्र का पहला चरण जिसमें पृथ्वी रजस्वला मानी जाती है। २. उक्त अवसर पर रखा जानेवाला एक प्रकार का व्रत । अंबु-वाती-Ambuvaatee- (सिन्}-पुं० [सं० अंबु/वस् (निवास)+णिनि] पाटला नाम का पौधा अंबु-वाह-Ambuvaah-पुं० [सं० अंबु/वह (वहना)+अण्] १. बादल। २. नागर मोथा (पौधा)। ३. झील। अंबु-वाही-Ambuvaahi- (हिन्)-वि० [सं० अंबु वह (ढोना)+णिनि] [स्त्री० अंबुवाहिनी] पानी लानेवाला। पुं० १. बादल । मेघ । २. नागरमोथा (पौधा)। अंबु-वेतस्-Ambuvets-पुं० [मव्य० स०] पानी में होनेवाला एक प्रकार का बेंत । जलबेंत। अंबु-शायी-Ambushayee- (यिन्)--पुं० [सं० अंबुशी (सोना)+णिनि] समुद्र में शयन करनेवाले विष्णु। अंबु-सर्पिणी-Ambusarpini-स्त्री० [सं० अंबु:/सृप (गति)+णिनि, डीप्] जोक। अंबोधि-Ambodhi-पुं० अंबुधि। अंबोह-Amboh-पुं० [फा०] १. जनसमूह। २. भीड़। अंब्रित-Ambrit- पुं०=अमृत। अंभःस्तंभ-Ambhstambh- पुं० [५० त०] मंत्रों के बल से वर्षा या जल का प्रवाह रोकने की क्रिया या विद्या! अंभ- Ambh- (स)-पुं० [सं०/अंभ (ध्वनि) :-असुन्] १. जल। पानी। २. समद्र। सागर । ३. देवता। ४. असूर। राक्षस। ५. पित। पितर। ६. पितृलोक। ७. सांख्य में चार प्रकार की आध्यात्मिक तुष्टियों में से एक जिसमें मनुष्य यह समझकर संतोष करता है कि धीरे-धीरे प्रकृति से मुझे आप ही जान प्राप्त हो जायगा। ८. जन्मकुंडली में चौथा स्यान। ९. चार की संख्या। १०. एक प्रकार का छंद या वृत्त। पुं० [सं० अन वादल। मेघ । अंभ-यंभ- Ambhyambh- ६० दे० 'अंभ:स्तंभ'। अंभनिधि- Ambhnidhi-पुं०-अंभोधि। अंभसार- Ambhsaar-पं० [सं० अंभःसारा मोती। अंभसू-Ambhsoo-पुं० [सं० अंभ: सू] १. धुआँ। २. भाप । वाष्प अंभु-Ambhu-पु0 अंबु । अंभोज-Ambhoj-वि० सं० अंभस् जन् (उत्पन्न होना)-+-ड] जल में या जल से उत्पन्न होनेवाला। पुं० १. कमल। २. कपूर। ३. गंख। ४. चन्द्रमा। ५. सारस पक्षी। अंभोज-जन्मा- Ambhojjanma- (न्मन्)-पुं० [व० स०] ब्रह्मा। अंभोज-योनि- Ambhojyoni-पुं० [व० स०] ब्रह्मा । अंभोजिनी- Ambhojini-स्त्री० [सं० भोज+इनि-डोम्] १. कमलिनी। २. कमलों का समूह। अंभोद- Ambhod-वि० [सं० अंभस्/दा (देना)+क] पानी देनेवाला। पुं० १. बादल। मेघ । २. नागरमोथा। अंभोवर-Ambovar-पुं० [सं० अंभस् (धारण)--अच्] १. बादल। २ नागर मोथा। अंभोधि-Ambodhi-पुं० [सं० अंभस् /धा (धारण+कि] समुद्र। सागर। अंभोनिधि-Ambhonidhi-पुं० [सं० अंभस्-निधि, प० त०] समुद्र । अंभोराशि-Ambhorashi-० [सं० मंभस-राशि, प० त०] समुद्र । अंभोरुह-Ambhoruh-पुं० [सं० अंभस्/ह (उत्पन्न होना)--क] १. कमल । २. सारस। अंभोरी-Ambhori-स्त्री०= अम्हौरी। • अंभर-Ambhar-पुं०=अंबर। वि०-अमृत। अंमि -Anmi-- अमृत। , स्त्री अविया (बामका छोटा फल)। अंवदा-Amvada-वि०= आँधा। अंवरा-Anwara-आंवला। अंवला-Anwala-वि० [सं० अबल] १. अस्वस्थ। २. व्यथापूर्ण। ३. दुःखी या पीड़ित । उदा०-काहारली वांमा, काँही अलज अंग...--- ढोलामाला वि० [सं० अवर] १. उलटा । २. औंधा । ३. पक्करदार। पुं०-आँवला। अंश-Ansh-पुं० [सं०1/अंग् (वाँटमा या विभक्त करना)+अच] [वि० आंगिक, क्रि० वि० अंशतः] १. एक ही इकाई या वस्तु के कई अंगों या अवयवों में से हर अंग या अवयव पूरे या समूचे का कोई खंड, टुकड़ा या भाग। (पार्ट) जैसे-रक्त भी हमारे शरीर का एक अंश है। २. धन, श्रम' आदि की वह मात्रा जो व्यक्तिगत रूप से, अलग-अलग या मिलकर किसी कार्य के संपादन में लगाई जाती है। पत्ती। हिस्सा। (शेयर) जैसे—इस व्यापार में चारों भाइयों के समान अंश हैं। ३. उक्त व्यापार के फलस्वरूप प्राप्त या विभक्त होनेवाली हानि-लाभ मादि की मात्रा। ४. गणित में, पूरे एक या किसी इकाई के कई बराबर भाग। (फेक्शन) ५. चन्द्र, सूर्य आदि ग्रहों के प्रकाश, प्रखरता आदि के विचार से उनका सोलहवाँ भाग। कला। ६. माप-क्रम के लिए किये जानेवाले विभागों में से हर एक । जैसे--(क) ८० अंश का ताप-मान । (ख) भूमध्य रेखा से १३० अंग की दूरी आदि। (डिग्री) ७. ज्यामिति में, वृत्त की परिधि का ३६० वा भाग। (डिग्री) ८. उत्तराधिकार। ९. जुए में दांव पर लगाया जानेवाला धन। १०. एक आदित्य का नाम । ११. दिन। १२. कंधा। अंशक-Anshak-वि० [सं०/अंग्---पवुल-अक] [स्त्री० अंशिका] १. अंग, खंड, टुफड़े या विभाग करनेवाला । २. अंशधारी। पुं० [सं० अंश+कान्] १. भाग। हिस्सा। २. दिन। पुं० [/अंग्+ण्वुल-अक] भागी। हिस्सेदार। अंशत:--मि० वि० [सं० अंश+तस्] केवल कुछ अंशों या हिस्सों में। आंशिक रूप में। (पाटली, इन्-पाट) अंश-दाता (तू)--पुं० [प० त०] १. वह जो अंश या भाग दे। २. किसी सामूहिक या सार्वजनिक निधि या कोष में अपना अंश सहायता या दान रूप में देनेवाला। (कान्ट्रिब्यूटर) अंश-दान-Anshdaan-पुं० [अ० त०] अपने अंश या हिस्से के रूप में किसी को कुछ देना या किसी कार्य में योग देना । तन, धन या मन से सहायक होना। (कान्ट्रिब्यूशन) अंशदानिक-Anshdanik-वि० [सं० वंशदान--ठन् ---इक] अंशदान था सहाया के रूप में होनेवाला । सहांशिक । (कॉन्ट्रिब्यूटरी) अंशधर-Anshdhar-पुं० [सं० अंश/ (धारण करना)+अच्] =अंशधारी। अंशधारी-Anshdharee- (रिन् )-पुं० [सं० अंग/+गिनि] १. अंशधारण करने वाला । २. हिस्मेदार। (शेयर होल्डर) अंशन-पुं० [संमिश्+ ल्युट-अन] १. अंश, भाग या हिस्से करना या लगाना। २. मंशों में चिह्न, मान आदि स्थिर करके उन्हें अंकित या चिह्नित करना। (कैलिनेशन)। ३. पूरी संख्या या इकाई के खंड, टुकड़े या विभाग करना। (फेक्शनेशन) अंश-पत्र-Anshpatra-पुं० [प० त०] वह पत्र जिसमें किसी व्यापार या संपत्ति के हिस्सेदारों के अधिकारों और हिस्सों का विवरण हो। हिस्सेदारी का दस्तावेज मा लेख्य। अंश-मापक-Anshmapak-वि० [प० त०] अंश, भाग मादि नापनेवाला। अंश-मापन--पुं० [प० त०] [वि. मंशमापक] किसी वस्तु या यंत्र के अंगों को नापने की क्रिया या भाव। जैसे—तापमापक यंत्र के अंश नापने का कार्य अंश-मापन कहलाता है। अंशल-Anshal-वि० [सं० अंश--लच्] हिस्सों का मालिक ! हिस्सेदार। पुं० चाणक्य का एक नाम । अंश-सुता-Anshsuta-स्त्री० [प० त०] यमुना नदी। अंशांकन-Anshankan-पुं० [सं० अंश-अंकन, ५० त०] [भू० अंशांकित] १. किसी संख्या, इकाई आदि के विभिन्न विभाग करके उनपर अलग-अलग सूचक चिह्न या रेखाएँ अंकित करना। २. उक्त प्रकार के विभाग स्थिर करके उनका ठीक-ठीक श्रम लगाना। (प्रैजुएशन) अंशांकित-Anshankit-भू० ऋ० [सं० अंश-अंक, प० त०+इतच्] १. जिसका अंशांकन हुआ हो। २. जो किसी क्रम विशेष से लगाया गया हो। (ग्रेजुएटेड) अंशापन-Anshapan-पुं० [सं०/अंग्+-णिच्-पुक् + ल्युट-अन] किसी चीज के अंश या विभाग करके उसके अलग-अलग अंश या विभाग निश्चित या स्थिर करना । अंशों का विभाजन करना । (अपोर्शनमेण्ट) अंशावतार-Anshawataar-पुं० [सं० अंश-अवतार, ५० त०] ईश्वर का वह अवतार .जिसमें ईश्वरता के कुछ ही अंश हों, पूर्णता न हो। अंशी-Anshi- (शिन्)---वि० [सं० अंश--इनि] [स्त्री० अंशिनी] १. अंश रखने वाला। अंशधारी। २. जिसमें विशेष रूप से ईश्वर का अंश दिखाई दे। अवतारी। पुं० १. किसी व्यापारिक संस्था या संपत्ति में अंश या हिस्सा रखनेवाला। साझीदार। २. किसी अंश या हिस्से का स्वामी । ३. नाटक का नायक । ४. हिन्दू परिवार में संपत्ति या बँटवारे का लेख या दस्तावेज। अंशु-Anshu-पुं० [सं०/अंश-कू] १. सूर्य । २. सूर्य की किरण। ३. डोरा। सूत। ४. एक प्राचीन ऋषि। ५. बहुत छोटा भाग या अश। अंशुक-Anshuk-पुं० [सं० अंशु---क] १. कपड़ा। वस्त्र । २. बहुत महीन कपड़ा। ३. रेशमी कपड़ा। ४. उपरना। दुपट्टा। ५. ओढ़ना। चादर। ६. तेजपत्ता। अंशु-जाल-Anshujaalपुं० [प० त०] किरणों का जाल या समूह। अंशु-धर-Anshudhar--पुं० [अ० त०] सूर्य। अंशु-नाभि-Anshunabhi-स्त्री० [ष० त०] वह बिंदु या स्थान जिसपर प्रकाश की रेखाएँ तिरछी होकर और मिलकर एक साथ गिरती हों। अंशु-पति-Anshupati-पुं० [ष० त०] सूर्य । अंशुमत-Anshumat- पुं० =अंशुमान् । अंशु-मदन-Anshumadan-पुं० [१० त०] ज्योतिष में ग्रहयुद्ध के चार भेदों में से एक। विशेष—दे० 'ग्रहयुद्ध। अंशुमान्-Anshumaan- (मत्}--पुं० [सं० अंशु+मतुप्] १. सूर्य। २. अयोध्या के एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा। अंशु-माला-Anshumaala-स्त्री० [५० त०] सूर्य की किरणें या उनका जाल। अंशुमाली-Anshumaali- (लिन्)--पुं० [सं० अंशुमल् (धारण)+णिनि] सूर्य। अंशुल-Anshul-वि० सं० अंशुला (आदान)+क] अंशु या चमकवाला। चमकीला। पुं० चाणक्य का एक नाम । अंषि-Anshi-स्त्री० [सं० अक्षि] आँख। अंसा-Ansa-पुं० [सं० अश्व] घोड़ा। पुं० [सं० अंश] १. अंश। भाग। हिस्सा। २. तत्त्व। ३. सारभाग। ४. कंचा। उदा०---अंसनि धनु सर-कर कमलनि कटि कसे हैं निखंग बनाई।---तुलसी। अंसु-Ansu-पुं० अंशु (किरण)। अँसुआ-Ansua-पुं०-आँसू . अँसुआना-Ansuaana-अ० [सं० अश्रु] आँखों में आँसू भर आना। आँख डबडबा जाना। अँसुवा-Ansuva-पुं० आँसू। अंह- Aham-(स)-पुं० [सं०/अम् (गति) असुन्, हुक् आगम] १. पाप । २. कण्ट । ३. चिता। ४. वाचा । विघ्न । अंहा-Aha-पुं० [देश०] जुलाहों का लकड़ी का गज जो दो हाथ लंबा होता है। अँहडा-Anhada-पुं० [देश॰] तौलने का बाट । वटखरा । हड़ी-Anhadi-स्त्री० [?] एक प्रकार की लता जिसकी फलियों के बीज दवा के काम आते हैं। अंहस्पति-Ahamspati-पुं० [सं० ५० त०] क्षयमास । |