3 प्रकृति से हमें क्या क्या मिलता हैं? - 3 prakrti se hamen kya kya milata hain?

प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य के लिए धरती उसके घर का आंगन, आसमान छत, सूर्य-चांद-तारे दीपक, सागर-नदी पानी के मटके और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं। इतना ही नहीं, मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। आज तक मनुष्य ने जो कुछ हासिल किया वह सब प्रकृति से सीखकर ही किया है।
न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिकों को गुरुत्वाकर्षण समेत कई पाठ प्रकृति ने सिखाए हैं तो वहींकवियों ने प्रकृति के सानिध्य में रहकर एक से बढ़कर एक कविताएं लिखीं। इसी तरह आम आदमी ने प्रकृति के तमाम गुणों को समझकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव किए।
दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे-पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। इस पाठ को जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में आत्मसात किया उसे असफलता से कभी डर नहीं लगा। ऐसे व्यक्ति अपनी हर असफलता के बाद विचलित हुए बगैर नए सिरे से सफलता पाने की कोशिश करते हैं। वे तब तक ऐसा करते रहते हैं जब तक सफलता उन्हें मिल नहीं जाती। इसी तरह फलों से लदे, मगर नीचे की ओर झुके पेड़ हमें सफलता और प्रसिद्धि मिलने या संपन्न होने के बावजूद विनम्र और शालीन बने रहना सिखाते हैं। उपन्यासकार प्रेमचंद के मुताबिक साहित्य में आदर्शवाद का वही स्थान है, जो जीवन में प्रकृति का है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि प्रकृति में हर किसी का अपना महत्व है। एक छोटा-सा कीड़ा भी प्रकृति के लिए उपयोगी है, जबकि मत्स्यपुराण में एक वृक्ष को सौ पुत्रों के समान बताया गया है। इसी कारण हमारे यहां वृक्ष पूजने की सनातन परंपरा रही है। पुराणों में कहा गया है कि जो मनुष्य नए वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षो तक फलता-फूलता है, जितने वर्षो तक उसके लगाए वृक्ष फलते-फूलते हैं।
प्रकृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती। जैसे-नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, फूल अपनी खुशबू पूरे वातावरण में फैला देते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है तब उसे गुस्सा आता है। जिसे वह समय-समय पर सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है।

प्रकृति ने हमें इतना कुछ दिया है कि हम सोच भी नहीं सकते। इस धरती पर जीवन प्रकृति के कारण ही सम्भव है। ब्रह्माण्ड में और भी कई ग्रह हैं लेकिन इस प्रकृति के बिना वहाँ जीवन सम्भव नहीं है। इस प्रकार प्रकृति हमारे जीवन का आधार है। धरती पर हर स्थान पर प्रकृति एक जैसी नहीं है। स्थान के अनुसार प्रकृति अपना रूप-रंग बदल लेती है और उस स्थान के अनुसार हमें संसाधन उपलब्ध कराती है साथ ही हमारे मन, हमारी आँखों को सुकून प्रदान करती है।

प्रकृति हमें इतना कुछ देती है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम इसके महत्व को जानते हुए इसका सम्मान करें और इसे अपने स्वार्थ के लिए उजाड़ें नहीं। जिससे मनुष्य की संतानें भी इसकी सुंदरता का आनन्द ले सके और इसका लाभ उठा सकें अन्यथा एक दिन वह होगा जब इस प्रकृति के सौंदर्य को लोग कम्प्यूटर पर ही देख और महसूस कर पायेंगे।

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इस प्रकृति में जब तक संतुलन है तभी तक हमारे जीवन में भी संतुलन है। जहाँ इस प्रकृति का संतुलन खराब होगा वहीं हमारे जीवन का संतुलन भी डगमगाने लगेगा। यह धरती जो हमें इतनी सुंदर लगती है वह इस प्रकृति के कारण है अन्यथा एक निर्जन ग्रह के अलावा कुछ न हो।

Prakriti essay in Hindi for Class 9/10 in 500 words

एक छोटे से शब्द ”प्रकृति“ में कितना कुछ समाता है कोई सोच भी नहीं सकता। प्रकृति के अन्दर वायु, पानी, मिट्टी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदियाँ, सरोवर, झरने, समुद्र, जंगल, पहाड़, खनिज आदि और न जाने कितने प्राकृतिक संसाधन आते हैं। इन सभी से हमें साँस लेने के लिए शुद्ध हवा, पीने के लिए पानी, भोजन आदि जो जीवन के लिए नितान्त आवश्यक हैं उपलब्ध होते हैं। प्रकृति से हमें जीवन जीने की उमंग मिलती है। बसंत देख कर दिल खुश होता है, सावन में रिमझिम बरसात मन को मोह लेती है, इंद्रधनुष हमारे अंतरंग में रंगीन सपने सजाता है। प्रकृति हमें शारीरिक सुख-सुविधा के साथ-साथ मानसिक सुख भी देती है पर हमारे पास प्रकृति को देने के लिए कोई वस्तु नहीं है। यदि कुछ है तो वह सिर्फ इतना कि हम इसका संरक्षण कर सकें।

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सूर्य की पहली किरण से लेकर चाँद की चाँदनी तक, खुले मैदानों, बुग्यालों से लेकर जंगल और पहाड़ों तक, नदी के कल-कल मधुर संगीत से लेकर समुद्र में उठती लहरों, पेड़ पर बैठी चिड़िया की चहचहाहट जो भी हमारे आसपास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन हैं हमें सबका अनुभव करना चाहिये और आनन्द उठाना चाहिये। क्योंकि जब तक हमें इसके महत्व का बोध नहीं होगा और जब तक हम इसके सौंदर्य की सराहना करना नहीं सीखेंगे तब तक हमारे लिए यह महत्व का विषय नहीं हो सकती। किसी चित्रकार, कवि, लेखक और कलाकारों के भाव तभी जागृत होते हैं जब वह प्रकृति की गोद में शांत वातातरण में कल्पना करता है, तभी वह उसे कागज पर उतारता है। इसके बिना तो जीवन में रंग भी नहीं है। जब इंसान मशीनी जीवन जीते-जीते ऊब जाता है तो प्रकृति की गोद में जाकर सुकून की साँस लेना चाहता है। आजकल के युग में मनुष्य प्राकृतिक वस्तुओं की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहा है और वस्तुएं खरीदते समय भी वह प्राकृतिक वस्तुओं या प्राकृतिक तव्वों से बनी वस्तुओं को ही महत्व देता है। जब हम प्राकृतिक उत्पादों को इतना महत्व देते हैं तो प्रकृति को क्यों नहीं ? आखिर ये सब वस्तुएं तभी तक उपलब्ध हैं जब तक यह प्रकृति है।

हम प्रकृति से चाहते तो बहुत कुछ हैं लेकिन अपनी कीमत पर। जिस रफ्तार से हम पेड़ काट कर वनों को कम करके उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं उतनी रफ्तार से पौधों का रोपण नहीं हो रहा है। हमें पीने के लिए स्वच्छ जल चाहिये लेकिन कल-कारखानों का सारा जहरीला पानी हम नदियों में ही बहाते हैं। खाने के लिए हमें रसायन मुक्त फल-फूल और भोजन चाहिये लेकिन रसायनों का प्रयोग बन्द नहीं करते। यदि ऐसा ही रहा तो दिखावे मात्र प्रयास करने से प्रकृति पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ेगा। जैसा व्यवहार हम प्रकृति के साथ करेंगे वैसा ही वह हमारे साथ करेगी। बेमौसमी बरसात, बाढ़, सूखा, मौसम परिवर्तन, भू-स्खलन, सूखते जंगल, बंजर भूमि इन सब परिणामों के लिए हमें तैयार रहना चाहये। यदि ऐसा ही रहा तो दिन प्रति दिन यह प्रकृति धीरे-धीरे लुप्त होती जायेगी इसलिए हमें प्रत्यन करना चाहिये कि हम प्रकृति का संतुलन बिगाड़े बगैर इसका लाभ उठा सकें। अन्यथा इसे स्वच्छ और स्वस्थ रखे बिना स्वच्छ और स्वस्थ जीवन की आशा करना बेकार है।