26 जनवरी 1950 को भारत की वास्तविक संविधान की स्थिति क्या थी? - 26 janavaree 1950 ko bhaarat kee vaastavik sanvidhaan kee sthiti kya thee?

What was the exact constitutional position of the Indian Republic when the Constitution was brought into force with effect from 26th January, 1950? / 26 जनवरी, 1950 से जब संविधान लागू किया गया था तब भारतीय गणराज्य की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी?

(1) A Democratic Republic / एक लोकतांत्रिक गणराज्य
(2) A Sovereign Democratic Republic / एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य
(3) A Sovereign Secular Democratic Republic / एक संप्रभु धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य
(4) A Sovereign Secular Socialist Democratic Republic / एक संप्रभु धर्मनिरपेक्ष समाजवादी लोकतांत्रिक गणराज्य

(SSC Combined Graduate Level Prelim Exam. 27.02.2000)

Answer / उत्तर : – 

(2) A Sovereign Democratic Republic / एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य

Explanation / व्याख्यात्मक विवरण :- 

The Constitution was enacted by the Constituent Assembly on 26 November, 1949, and came into effect on 26 January, 1950. As originally enacted the preamble described the state as a “sovereign democratic republic”. In 1976 the Forty-second Amendment changed this to read “sovereign socialist secular democratic republic”. / संविधान 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अधिनियमित किया गया था, और 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। जैसा कि मूल रूप से अधिनियमित किया गया था, राज्य को “संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य” के रूप में वर्णित किया गया था। 1976 में बयालीसवें संशोधन ने इसे “संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य” पढ़ने के लिए बदल दिया।

26 जनवरी 1950 को भारत की वास्तविक संविधान की स्थिति क्या थी? - 26 janavaree 1950 ko bhaarat kee vaastavik sanvidhaan kee sthiti kya thee?

आजादी से पहले भारत में राजतांत्रिक व्यवस्था थी। - फोटो : Pixabay

आजादी से पहले भारत में राजतांत्रिक व्यवस्था थी। राजा थे और प्रजा थी। राजतंत्र बुरा होता है, गणतांत्रिक व्यवस्था सर्वश्रेष्ठ। यही सोचकर हमने आजाद भारत का संविधान बनाया। 26 जनवरी, 1950 को भारत, संसदीय गणतंत्र हो गया। आज हम भारत को दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र बताते हुए गौरव का अनुभव करते हैं।

प्रश्न है कि यदि गणतंत्र, सचमुच गण यानी लोगों की, लोगों के द्वारा, लोगों के हित में संचालित व्यवस्था है, तो फिर दुनिया के तमाम गणतांत्रिक देशों के नागरिकों को अपने साझा हक़ूक व हितों के लिए आंदोलन क्यों करने पड़ रहे हैं? नागरिकों को उनके मौलिक कर्तव्य क्यों याद दिलाने पड़ रहे हैं? नागरिक कौन होगा; कौन नहीं? यह तय करना, स्वयं नागरिकों के हाथों में क्यों नहीं है? दूसरी तरफ, यदि राजतंत्र इतना ही बुरा था, तो सुशासन के नाम पर हम आज भी रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने का सपना क्यों लेते हैं?

आज भी राजा-रानी वाला देश भूटान, खुशहाली सूचकांक में दुनिया का नंबर वन क्यों है? आखिरकार, हम ऐसी किसी व्यवस्था को अच्छा या बुरा कैसे बता सकते हैं, जो संचालन भूमिका में अच्छे या बुरे इंसान के आ जाने के कारण क्रमशः अच्छे अथवा बुरे परिणाम देती हो?

गौर कीजिए कि आधुनिक इतिहास में ग्रीक को दुनिया का पहला गणतंत्र माना जाता है। गणतांत्रिक मूल्यों के आधार पर हुए आकलन में दुनिया के 195 देशों में मात्र 75 देश ही गणतांत्रिक राह के राही करार दिए गए हैं। मात्र 20 को ही पूर्णतया गणतांत्रिक मूल्यों के देश माना गया है। इनमें 14 देश यूरोप के हैं। शेष 55 को त्रुटिपूर्ण गणतांत्रिक चेतना का देश माना गया है। इनमें भारत भी एक है। भारत में शासकीय कार्यप्रणाली और राजनीतिक संस्कृति में बेहतरी की आवश्यकता बताई गई है। अतः विचार तो करना ही होगा कि हम कैसा गणतंत्र हैं और हमें कैसा गणतंत्र हो जाना है ?

  • राजतंत्र बनाम जैसा गणतंत्र हम

राजतंत्र में राज्य, राजा की संपत्ति होता था। एक राजा द्वारा दूसरे राजा को जीत लिए जाने की स्थिति में, राज्य दूसरे राजा की संपत्ति हो जाता था। गणतंत्र में राष्ट्र, सार्वजनिक महत्व व जवाबदेही का विषय बताया जाता है, किंतु क्या आज सत्ता में आरुढ़ दल, देश को अपनी मनचाही दशा और दिशा में ले जाने की जिद्द में लगे नहीं दिखते; जैसे देश सिर्फ उन्ही की संपत्ति हो? क्या सत्ता, सार्वजनिक महत्व की संपत्तियों को भी अपने मनचाहे निजी हाथों को सौंपती नहीं रही ?

  राजतंत्र में निर्णय लेने, योजना-क़ानून बनाने और कर तय करने का काम राजा और उसका मंत्रिमण्डल करता था। लोकतंत्र में भी तो यही हो रहा है। दल आधारित राजनीति में विह्प तो नेतृत्व ही जारी करता है; बाकी लोग तो संसद में बस, अपने-अपने दल द्वारा तय पक्ष-विपक्ष में हाथ ही उठाते हैं। तय निर्णयों-नीतियों को ज़मीन पर उतारने का काम राजतंत्र में भी कार्यपालिका करती थी। गणतंत्र में भी वही कर रही है। न्याय पहले भी राजा व उसके मंत्रिमण्डल के हाथ था; अब भी न्यायाधीश, लोकपाल आदि की नियुक्ति जनता के हाथ में नहीं है।

दुनिया के 36 देशों में संसदीय व्यवस्था है। लोकसभा, लोकप्रतिनिधियों की सभा है। लोकप्रतिनिधियों द्वारा चुनी सभा होने के कारण, राज्यसभा लोकप्रतिनिधियों की उच्चसभा है। तद्नुसार, हमारे सांसदों को संसद में लोकप्रतिनिधि की तरह व्यवहार करना चाहिए। किंतु वे तो दल के प्रतिनिधि अथवा सत्ता के पक्ष-विपक्ष की तरह व्यवहार करते हैं। जहां सत्ता है, वहां गणतंत्रता कहां ? यह तो राजतंत्र ही हो गया न ?

संभवतः जिस गणतंत्र को हमने राजंतत्र का विकल्प समझा था, वह असल में राजतंत्र का ही नया संस्करण है। अंग्रेजी में गणतंत्र को 'रिपब्लिक' और लोकतंत्र को 'डेमोक्रेसी' कहा जाता है। अतः निष्कर्ष रूप में यह भी कहा जा सकता है कि हम संवैधानिक गणतंत्र तो हैं, किंतु लोकतांत्रिक गणतंत्र होने के लिए हमें अपनी चाल, चरित्र और व्यवहार में अभी बहुत कुछ बेहतर करना बाकी है। क्या करें?

26 जनवरी 1950 को भारत की वास्तविक स्थिति क्या थी?

26 जनवरी 1950 को, भारत को 'संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणतंत्र' का संवैधानिक दर्जा प्राप्त था। अत: विकल्प 2 सही है। 'संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणतंत्र' इसका उल्लेख भारत के संविधान की प्रस्तावना में किया गया था। 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' और अखंडता शब्द जोड़े गए।

26 जनवरी को कौन सा संविधान लागू हुआ था?

26 जनवरी 1950 को अंग्रेजों द्वारा बनाए गए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 की जगह भारत का संविधान लागू हुआ था। भारत का संविधान वैसे तो 26 नवंबर 1949 को ही बनकर तैयार हो गया था और इसे संविधान सभा की मंजूरी भी मिल गई थी। लेकिन इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था

26 जनवरी का इतिहास क्या है?

26 जनवरी 1950 को देश में पहला गणतंत्र (Republic Day History) मनाया गया और इसी दिन से भारतीय संविधान लागू हुआ था. इससे पहले जिस संविधान सभा ने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया, उसने अपना पहला सत्र 9 दिसंबर 1946 को आयोजित किया था. इसका अंतिम सत्र 26 नवंबर 1949 को हुआ और इसके बाद संविधान को अपनाया गया.

26 जनवरी को ही क्यों लागू किया गया?

असल में, भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 में भारत के संविधान को स्वीकार किया था, जबकि 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान पूरे देश में लागू हुआ था। यही वजह है कि हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है।

संविधान के लागू होने की तिथि 26 जनवरी का क्या महत्व है?

26 जनवरी 1930 को पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। इसी दिन जवाहर लाल नेहरु ने तिरंगा फहराया था। फिर देश को आजादी मिलने के बाद 15 अगस्त 1947 को अधिकारिक रूप से स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया। 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव लागू होने की तिथि को महत्व देने के लिए ही 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू किया गया था।