1990 में पेट्रोल की कीमत क्या थी - 1990 mein petrol kee keemat kya thee

संजय दत्ता
सऊदी अरब में तेल प्लांट पर हमले के बाद कच्चे तेल की कीमतों में लगी आग ने टेंशन बढ़ा दी है। सोमवार को वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत में 19 फीसदी तक तेजी आई। 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद यह एक दिन में आया सर्वाधिक उछाल है। इससे भारत में भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि को लेकर चिंता बढ़ी है और आर्थिक विकास को दोबारा गति देने के प्रयास में जुटी सरकार की चुनौतियों में इजाफा होगा।

सऊदी के तेल उद्योग के केंद्र में ड्रोन हमले के बाद पहली बार खुले बाजार में ग्लोबल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड 19 फीसदी महंगा होकर 72 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया। हालांकि, बाद में यह 67 डॉलर पर बंद हुआ। ड्रोन अटैक के कारण सऊदी अरब में ऑइल प्रॉडक्शन का आधा हिस्सा ठप पड़ गया है, जोकि डेली ग्लोबल सप्लाई का 6% है।

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दशकों में सबसे बड़ा संकट

इंटरनैशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक, सऊदी संकट ने कुवैत और इराक के तेल उत्पादन को अगस्त 1990 में हुए नुकसान के स्तर को भी पार कर लिया है, जब सद्दाम हुसैन ने अपने पड़ोसी पर आक्रमण कर दिया था। यह 1979 में इस्लामिक क्रांति के दौरान ईरानी तेल उत्पादन के घाटे को भी पार कर गया है। हालांकि, ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के महासचिव मोहम्मद बरकिंडो ने कहा है कि पैनिक होने की जरूरत नहीं है।

5-6 रुपये प्रति लीटर महंगा होगा पेट्रोल!
अगले 15 दिनों में भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम में 5 से 6 रुपये प्रति लीटर का इजाफा हो सकता है। ऐसा विशेषज्ञों का अनुमान है। कोटक की हालिया एक रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में उछाल आने के कारण भारत की ऑइल मार्केटिंग कंपनियां अगामी पखवाड़े में डीजल और गैसोलीन के दाम में 5 रुपये से 6 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि कर सकती हैं।

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आयात पर निर्भर है भारत
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आपूर्ति बाधित होने की संभावना को खारिज किया है, लेकिन विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अधिक समय तक कीमतें अधिक रहीं तो यह भारत के आर्थिक विकास पर बुरा असर डालेगा क्योंकि यह अपनी जरूरत का 83% आयात करता है। इससे करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ने के साथ जीडीपी ग्रोथ पर दबाव बनेगा और करंसी में भी कमजोरी बढ़ेगी।

करंट अकाउंट डेफिसिट और जीडीपी पर असर

क्रूड ऑइल के दाम में प्रति बैरल हर एक डॉलर की तेजी से इंडिया के इंपोर्ट बिल में लगभग 2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी होगी। एक अनुमान के मुताबिक क्रूड के दाम में प्रति बैरल 10% वृद्धि से भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट जीडीपी के 0.4-0.5% बढ़ जाता है। 2018-19 में भारत ने 20.73 करोड़ टन तेल का आयात किया था। इसी तरह, क्रूड के दाम में प्रति बैरल 10 डॉलर की उछाल आने पर देश की जीडीपी में 40 बेसिस पॉइंट की कमी आएगी।

सऊदी तेल भंडार पर हमला: पेट्रोल के दाम में हो सकता है 5 रुपये का इजाफा


शेयर बाजार पर असर
ड्रोन हमले के चलते उसके तेल उत्पादन में तेज गिरावट आने से इंडियन स्टॉक मार्केट पर थोड़े समय के लिए दबाव बन सकता है। ऐसा इसलिए कि आमतौर पर क्रूड ऑइल के दाम और इंडियन स्टॉक्स की चाल में उलटा संबंध होता है। बहुत से फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर्स (FPI) कन्ज्यूमर प्रॉडक्ट्स के बजाय कमोडिटी प्रड्यूसर्स में एक्सपोजर बढ़ा सकते हैं जिससे इंडियन इक्विटी मार्केट में उनके निवेश में कमी आ सकती है।

'सरकार की स्थिति पर नजर'
रियाद में भारतीय राजदूत ने आरामको के वरिष्ठ प्रबंधकीय अधिकारियों से संपर्क किया है ताकि भारत को लगातार आपूर्ति सुनिश्चित हो। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को ट्वीट किया, 'हमने सितंबर में तेल कंपनियों के कच्चे तेल आयात की समीक्षा की है। हमें विश्वास है कि भारत के लिए आपूर्ति बाधित नहीं होगी। हम स्थिति पर करीब से नजर रख रहे हैं।'

(एजेंसी इनपुट के साथ)

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1990 में पेट्रोल की कीमत क्या थी - 1990 mein petrol kee keemat kya thee

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साल 2004 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी थी तब पेट्रोल सिर्फ 33.71 रुपये प्रति लीटर था. आज दिल्ली में पेट्रोल 88.99 रुपये लीटर हो गया है. इस करीब तीन गुना कीमत बढ़त के लिए कौन-से फैक्टर जिम्मेदार हैं? आइए इसे जानते हैं. (फाइल फाेटो) 

1990 में पेट्रोल की कीमत क्या थी - 1990 mein petrol kee keemat kya thee

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इंडिया टुडे फैक्ट चेक टीम के एक विश्लेषण के मुताबिक मई 2004 में यूपीए 1 जब सत्ता में आई और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 33.71 रुपये प्रति लीटर थी. वहीं नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में सत्ता संभाली तो पेट्रोल दिल्ली में 71.41 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था. यानी पेट्रोल की कीमत दस साल के यूपीए शासन के अंतराल में 38 रुपये बढ़ चुकी थी. (फाइल फोटो)  

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असल में साल 2004 में यूपीए सरकार सत्ता में आई थी, तब कच्चे तेल की कीमतें 35 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ही थी. लेकिन 2011-12 में यह 112 डॉलर प्रति बैरल के आंकड़े को पार कर गई. यानी यूपीए के दस साल के शासन में कच्चे तेल की कीमतों में तीन गुना से ज्यादा की बढ़त हुई, जबकि इस दौरान पेट्रोल के दाम में हर साल करीब 4 रुपये की बढ़त हुई और 2004 के 33 रुपये के मुकाबले पेट्रोल की कीमत बढ़कर 2014 में यह 71 रुपये के आसपास पहुंच गई. (फाइल फोटो)  

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दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार के पिछले सात साल की तुलना करें तो इस दौरान तेल के दाम 71.41 रुपये से सिर्फ करीब 89 रुपये तक पहुंचे हैं. यानी इसमें करीब 18 रुपये की ही बढ़त हुई है. हालांकि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इस बात पर गौर करना जरूरी है कि यूपीए के मुकाबले एनडीए को लगातार कच्चा तेल सस्ता मिला है. (फाइल फोटो)  

1990 में पेट्रोल की कीमत क्या थी - 1990 mein petrol kee keemat kya thee

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असल में पेट्रोल और डीजल की कीमतें तय करने में दो चीजें अहम होती हैं- क्रूड ऑयल और टैक्सेज. पिछले 20 साल में क्रूड ऑयल की कीमतें इस साल लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा सस्ती थीं, जब ब्रेंट क्रूड 15 डॉलर प्रति बैरल तक चला गया था. इसके पहले कच्चा तेल सबसे सस्ता तब था, जब 2004 में यूपीए सत्ता में आई थी. लेकिन यूपीए 2 के कार्यकाल में जब क्रूड की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल के ऊंचे स्तर तक गई तो भी पेट्रोल की रिटेल कीमत सिर्फ 65.76 रुपये थी. (फाइल फोटो)  

1990 में पेट्रोल की कीमत क्या थी - 1990 mein petrol kee keemat kya thee

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इस हिसाब से आज की तुलना करें तो तस्वीर कुछ साफ होगी. जब 112 डॉलर प्रति बैरल का कच्चा तेल था तब यूपीए सरकार पेट्रोल 65.76 रुपये में बेच रही थी, लेकिन आज जब यह 63 डॉलर यानी यूपीए की तुलना में 56 फीसदी से कम कीमत है तब भी एनडीए सरकार पेट्रोल 89 रुपये के आसपास बेच रही है. (फाइल फोटो)  

1990 में पेट्रोल की कीमत क्या थी - 1990 mein petrol kee keemat kya thee

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क्रूड ऑयल की कीमतें मोदी सरकार का कार्यकाल शुरू होने के बाद नीचे गिरना शुरू हो गई थी. 2015-16 में ये 46 डॉलर प्रति बैरल बैरल के स्तर तक नीचे आ गई थी. लेकिन मोदी सरकार ने पेट्रोल की रिटेल कीमतों को समान स्तर पर बनाए रखने का फैसला किया. इसके लिए पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क बढ़ा दिए गए. 

1990 में पेट्रोल की कीमत क्या थी - 1990 mein petrol kee keemat kya thee

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साल 2018 में जब कच्चे तेल की कीमतें काफी कम थीं और पेट्रोल-डीजल काफी ऊंचाई पर थे, तब पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि सरकार चाहे तो पेट्रोल-डीजल की कीमत में 25 रुपये प्रति लीटर तक की कटौती कर सकती है. अगर टैक्स में बदलाव न किया जाए तो पेट्रोल और डीजल की कीमतें सीधे क्रूड ऑयल की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव की तरह ही ऊपर-नीचे होंगी. (फाइल फोटो)  

1990 में पेट्रोल की कीमत क्या थी - 1990 mein petrol kee keemat kya thee

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यही नहीं, राज्य सरकारें भी पेट्रोल-डीजल पर कमाई करने में पीछे नहीं रहे. दिल्ली में इस महीने 1 फरवरी को जब पेट्रोल की कीमत 86.30 रुपये थी, तब इसमें केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी 32.98 रुपये और इसमें दिल्ली सरकार का वैट 19.92 रुपया था. यानी इसमें करीब 53 रुपये का टैक्स ही था. 
 

1990 में पेट्रोल की क्या कीमत थी?

1980 के दशक तक संसार तेल के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर था। भारत में पेट्रोल 10 रुपए प्रति लीटर से भी कम था और डीजल भी दो-ढाई रुपए लीटर था। 1990 का दशक आते-आते स्थितियाँ बदलने लगीं और पेट्रोल 25 रुपए प्रति लीटर तक पहुँच गया। इस दशक के अंत में यह 30 रुपए के आसपास था।

भारत में कच्चा तेल कितने रुपए में आता है?

कच्चे तेल (भारतीय बास्केट) की क़ीमत 2019-20 में 60.47 अमेरिकी डॉलर/बैरल थी, जिसका मतलब हुआ अमेरिकी डॉलर-भारतीय रुपये की 70.88 रुपये की विनिमय दर पर, यथामूल्य उपकर के रूप में 857.65 रुपये/टन राजस्व. 2019-20 में कुल 32.2 एमटी के कच्चा तेल उत्पादन से उपकर के ज़रिये 27.616 अरब रुपये का राजस्व आया होगा.

एक बैरल कच्चे तेल में कितने लीटर पेट्रोल निकलता है?

कच्चा तेल बैरल में आता है। एक बैरल, यानी 159 लीटर कच्चा तेल होता है।

भारत में पेट्रोल कैसे आता है?

भारत में कच्चा तेल मुख्यतः चार देश – इराक, संयुक्त राज्य अमेरिका, नाइजीरिया और सऊदी अरबिया से आता है. भारत में पहुंचने के बाद refiners द्वारा कच्चे तेल से पेट्रोल तैयार किया जाता है.