सऊदी के तेल उद्योग के केंद्र में ड्रोन हमले के बाद पहली बार खुले बाजार में ग्लोबल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड 19 फीसदी महंगा होकर 72 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया। हालांकि, बाद में यह 67 डॉलर पर बंद हुआ। ड्रोन अटैक के कारण सऊदी अरब में ऑइल प्रॉडक्शन का आधा हिस्सा ठप पड़ गया है, जोकि डेली ग्लोबल सप्लाई का 6% है। यह भी पढ़ें:
सऊदी से क्रूड सप्लाई घटने पर क्यों बन सकता है इक्विटी मार्केट पर दबाव? 5-6 रुपये प्रति लीटर महंगा होगा पेट्रोल! यह भी पढ़ें:
सऊदी तेल कुओं पर हमले से पहली बार क्रूड मार्केट के सामने सप्लाई का संकट
सऊदी तेल भंडार पर हमला: पेट्रोल के दाम में हो सकता है 5 रुपये का इजाफा 'सरकार की स्थिति पर नजर' (एजेंसी इनपुट के साथ) Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें
साल 2004 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी थी तब पेट्रोल सिर्फ 33.71 रुपये प्रति लीटर था. आज दिल्ली में पेट्रोल 88.99 रुपये लीटर हो गया है. इस करीब तीन गुना कीमत बढ़त के लिए कौन-से फैक्टर जिम्मेदार हैं? आइए इसे जानते हैं. (फाइल फाेटो)
इंडिया टुडे फैक्ट चेक टीम के एक विश्लेषण के मुताबिक मई 2004 में यूपीए 1 जब सत्ता में आई और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 33.71 रुपये प्रति लीटर थी. वहीं नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में सत्ता संभाली तो पेट्रोल दिल्ली में 71.41 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था. यानी पेट्रोल की कीमत दस साल के यूपीए शासन के अंतराल में 38 रुपये बढ़ चुकी थी. (फाइल फोटो)
असल में साल 2004 में यूपीए सरकार सत्ता में आई थी, तब कच्चे तेल की कीमतें 35 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ही थी. लेकिन 2011-12 में यह 112 डॉलर प्रति बैरल के आंकड़े को पार कर गई. यानी यूपीए के दस साल के शासन में कच्चे तेल की कीमतों में तीन गुना से ज्यादा की बढ़त हुई, जबकि इस दौरान पेट्रोल के दाम में हर साल करीब 4 रुपये की बढ़त हुई और 2004 के 33 रुपये के मुकाबले पेट्रोल की कीमत बढ़कर 2014 में यह 71 रुपये के आसपास पहुंच गई. (फाइल फोटो)
दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार के पिछले सात साल की तुलना करें तो इस दौरान तेल के दाम 71.41 रुपये से सिर्फ करीब 89 रुपये तक पहुंचे हैं. यानी इसमें करीब 18 रुपये की ही बढ़त हुई है. हालांकि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इस बात पर गौर करना जरूरी है कि यूपीए के मुकाबले एनडीए को लगातार कच्चा तेल सस्ता मिला है. (फाइल फोटो)
असल में पेट्रोल और डीजल की कीमतें तय करने में दो चीजें अहम होती हैं- क्रूड ऑयल और टैक्सेज. पिछले 20 साल में क्रूड ऑयल की कीमतें इस साल लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा सस्ती थीं, जब ब्रेंट क्रूड 15 डॉलर प्रति बैरल तक चला गया था. इसके पहले कच्चा तेल सबसे सस्ता तब था, जब 2004 में यूपीए सत्ता में आई थी. लेकिन यूपीए 2 के कार्यकाल में जब क्रूड की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल के ऊंचे स्तर तक गई तो भी पेट्रोल की रिटेल कीमत सिर्फ 65.76 रुपये थी. (फाइल फोटो)
इस हिसाब से आज की तुलना करें तो तस्वीर कुछ साफ होगी. जब 112 डॉलर प्रति बैरल का कच्चा तेल था तब यूपीए सरकार पेट्रोल 65.76 रुपये में बेच रही थी, लेकिन आज जब यह 63 डॉलर यानी यूपीए की तुलना में 56 फीसदी से कम कीमत है तब भी एनडीए सरकार पेट्रोल 89 रुपये के आसपास बेच रही है. (फाइल फोटो)
क्रूड ऑयल की कीमतें मोदी सरकार का कार्यकाल शुरू होने के बाद नीचे गिरना शुरू हो गई थी. 2015-16 में ये 46 डॉलर प्रति बैरल बैरल के स्तर तक नीचे आ गई थी. लेकिन मोदी सरकार ने पेट्रोल की रिटेल कीमतों को समान स्तर पर बनाए रखने का फैसला किया. इसके लिए पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क बढ़ा दिए गए.
साल 2018 में जब कच्चे तेल की कीमतें काफी कम थीं और पेट्रोल-डीजल काफी ऊंचाई पर थे, तब पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि सरकार चाहे तो पेट्रोल-डीजल की कीमत में 25 रुपये प्रति लीटर तक की कटौती कर सकती है. अगर टैक्स में बदलाव न किया जाए तो पेट्रोल और डीजल की कीमतें सीधे क्रूड ऑयल की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव की तरह ही ऊपर-नीचे होंगी. (फाइल फोटो)
यही नहीं, राज्य सरकारें भी पेट्रोल-डीजल पर कमाई करने में पीछे नहीं रहे. दिल्ली में इस महीने 1 फरवरी को जब पेट्रोल की कीमत 86.30 रुपये थी, तब इसमें केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी 32.98 रुपये और इसमें दिल्ली सरकार का वैट 19.92 रुपया था. यानी इसमें करीब 53 रुपये का टैक्स ही था. 1990 में पेट्रोल की क्या कीमत थी?1980 के दशक तक संसार तेल के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर था। भारत में पेट्रोल 10 रुपए प्रति लीटर से भी कम था और डीजल भी दो-ढाई रुपए लीटर था। 1990 का दशक आते-आते स्थितियाँ बदलने लगीं और पेट्रोल 25 रुपए प्रति लीटर तक पहुँच गया। इस दशक के अंत में यह 30 रुपए के आसपास था।
भारत में कच्चा तेल कितने रुपए में आता है?कच्चे तेल (भारतीय बास्केट) की क़ीमत 2019-20 में 60.47 अमेरिकी डॉलर/बैरल थी, जिसका मतलब हुआ अमेरिकी डॉलर-भारतीय रुपये की 70.88 रुपये की विनिमय दर पर, यथामूल्य उपकर के रूप में 857.65 रुपये/टन राजस्व. 2019-20 में कुल 32.2 एमटी के कच्चा तेल उत्पादन से उपकर के ज़रिये 27.616 अरब रुपये का राजस्व आया होगा.
एक बैरल कच्चे तेल में कितने लीटर पेट्रोल निकलता है?कच्चा तेल बैरल में आता है। एक बैरल, यानी 159 लीटर कच्चा तेल होता है।
भारत में पेट्रोल कैसे आता है?भारत में कच्चा तेल मुख्यतः चार देश – इराक, संयुक्त राज्य अमेरिका, नाइजीरिया और सऊदी अरबिया से आता है. भारत में पहुंचने के बाद refiners द्वारा कच्चे तेल से पेट्रोल तैयार किया जाता है.
|