1971 क जंग क कहन

हिंदी न्यूज़ देशजब अमेरिका के मुकाबले 1971 की जंग में उतरा रूस और भारत की मदद की, पढ़ें दिलचस्प कहानी

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1971 में जब पश्चिमी पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान पर बर्बरता कर रहा था तो भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान से आजाद कराने की ठानी। युद्ध शुरू होने के साथ ही यह साफ था कि यह युद्ध बहुत दिनों...

1971 क जंग क कहन

Aditya Kumarहिन्दुस्तान,नई दिल्लीThu, 16 Dec 2021 01:57 PM

1971 में जब पश्चिमी पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान पर बर्बरता कर रहा था तो भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान से आजाद कराने की ठानी। युद्ध शुरू होने के साथ ही यह साफ था कि यह युद्ध बहुत दिनों तक नहीं चलेगा और भारत जल्द ही पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान से आजाद करा देगा और हुआ भी यही। लेकिन इस 13 दिनों की लड़ाई में अमेरिका पाकिस्तान की मदद कर रहा था और रूस भारत का। आइए पूरी कहानी जानते हैं।

1971 में जब भारत और पाकिस्तान लड़ रहे थे तो अमेरिका ने कहा कि वह पूर्वी पाकिस्तान से अमेरिकी नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए यूएसएस एंटरप्राइज को बंगाल की खाड़ी भेजेगा। हालांकि सच ये था कि अमेरिका ने यह कहने से एक दिन पहले ही ढाका से हरेक अमेरिकी नागरिकों को निकाल लिया था। माने अमेरिकी युद्धपोत भारत को धमकाने और डराने के लिए भेजे जा रहे थे। रिपोर्ट्स बताते हैं कि तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन ने कहा था कि अमेरिकी युद्धपोत तब तक भारत की ओर बढ़ते चले जाएंगे जब तज कि भारतीय सैनिकों की वापसी के बारे में कोई सहमति नहीं बन जाती।

बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि भारत के नौसैनिक बेड़े की तुलना में अमेरिकी बेड़ा बहुत बड़ा था। रिपोर्ट्स बताती है कि भारत के एकमात्र विमानवाहक आइएनएस विक्रांत की तुलना में एंटरप्राइज का बेड़ा कम से कम पांच गुना बड़ा था। परमाणु ऊर्जा से संचालित ये एंटरप्राइज बिना दोबारा फ्यूल भरे पूरी दुनिया का चक्कर लगा सकता था।

हालांकि अमेरिकी बेड़े के पहुंचने से पहले ही सोवियत संघ का एक विध्वंसक और माइन्सस्वीपर मलक्का की खाड़ी से इस इलाके में पहुंच चुका था। बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि सोवियत बेड़ा तब तक अमेरिकी बेड़े के पीछे लगा रहा जब तक कि जनवरी 1972 के पहले हफ्ते में वापस नहीं लौट गया।

रिपोर्ट बताती है कि तत्कालीन सोवियत नौसेना प्रमुख एडमिरल गोर्शकॉव ने युद्ध में भारत की जीत के बाद कहा था कि भारत को यह जानना जरूरी है कि उस लड़ाई में भारत अकेला नहीं था। रूस अमेरिका के सातवें बेड़े की गतिविधियों पर पूरी तरह से नजर रखा हुआ था। जरूरत पड़ने पर हम हस्तक्षेप भी करते। लेकिन आप लोगों ने जिस तरह से हमारी मिसाइल बोट का इस्तेमाल किया, हम सपने में भी उसकी कल्पना नहीं कर सकते थे। बता दें कि ये मिसाइल बोट कराची पोर्ट को तबाह करने में इस्तेमाल किए गए थे।

1971 क जंग क कहन

हिंदी न्यूज़ देश1971 के युद्ध की कहानी: कैसे नदी को पार करते ही बदला जंग का रुख, 13 दिनों में ही जीती भारतीय सेना

लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह, एक ऐसा योद्धा जिन्होंने स्वतंत्र भारत को यह सिखाया कि युद्ध जीतने के लिए लड़ना चाहिए। वह मानते थे कि वीरगति सर्वश्रेष्ठ बलिदान है, लेकिन युद्ध में जीतना देश की सबसे बड़ी सेवा...

1971 क जंग क कहन

Surya Prakashलाइव हिन्दुस्तान ,नई दिल्लीThu, 16 Dec 2021 12:21 PM

लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह, एक ऐसा योद्धा जिन्होंने स्वतंत्र भारत को यह सिखाया कि युद्ध जीतने के लिए लड़ना चाहिए। वह मानते थे कि वीरगति सर्वश्रेष्ठ बलिदान है, लेकिन युद्ध में जीतना देश की सबसे बड़ी सेवा है। अपनी सोच के कारण वह 1971 तक हर युद्ध में जीत की नई रणनीति गढ़ते रहे और असम्भव माने जाने वाले मोर्चों पर जीत हासिल करते रहे। यह सगत सिंह ही थे जिन्होंने 1967  में यह साबित किया कि चीनियों को पराजित किया जा सकता है। यह सगत सिंह ही थे, जिनकी मेघना हेलीब्रिज रणनीति ने 1971 में पाकिस्तान को घुटने पर लाने में बड़ी भूमिका अदा की थी। यह सगत सिंह ही थे जिन्होंने गोवा को पुर्तगाली कब्जे से मुक्ति दिलाने में सैन्य दृष्टि से सर्वाधिक निर्णायक भूमिका अदा की थी।  

1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना ने हर मोर्चे पर पाकिस्तान को पछाड़ा था लेकिन इस युद्ध में सगत सिंह मेघना-हेलीब्रिज रणनीति की भारतीय सेना का सबसे निर्णायक कदम माना जाता है। इसकी अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आधुनिक सैन्य इतिहास की सबसे नवाचारी सैन्य रणनीतियों में इसे गिना जाता है।  

कहानी मेघना-हेलीब्रिज की: कैसे मात्र दिनों में जीत गया भारत  

1971 के युद्ध में पाकिस्तान की मात्र 13 दिनों में पराजय पूरी दुनिया के लिए हैरत की बात थी, तो भारतीय सेना और भारतीयों के लिए गर्व की। यदि 1971 का युद्ध इतनी तेजी से समाप्त हुआ तो इसका एक बड़ा कारण मेघना हेली-ब्रिज था। संगत सिंह को नेतृत्व में मेघना नदी को पार करने के लिए 9 और 10 दिसम्बर को भारतीय वायुसेना ने 409 उड़ाने भरीं। इसमें 5 हजार सैनिकों और 51 टन सैन्य साजो सामान को मेघना नदी के पार उतारा गया। इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि इस अभियान को भारतीय वायुसेना के 110 हेलिकॉप्टर यूनिट के पुराने एमआई-4 हेलिकॉप्टर्स से अंजाम तक पहुंचाया गया।

एक कदम से दबाव में आया पाकिस्तान और टेक दिए घुटने

सगत सिंह के मेघना नदी पर हेलीब्रिज बनाने के निर्णय की अहमियत इसलिए भी अधिक थी क्योंकि यह निर्णय उन्होंने अपने स्तर पर लिया था। उच्च सैन्य अधिकारियों ने उन्हें मेघना नदी पार न करने के आदेश दिए थे। उन्हें आदेश था कि वह मेघना नदी के पूर्वी किनारे के इलाके को कब्जे में लेकर वहां पर भारतीय सैन्य मोर्चे को मजबूत करें, लेकिन सगत सिंह को लगता था पाकिस्तान की पराजय के लिए भारतीय सैनिकों का मेघना नदी पार करना जरूरी है। उनका मानना था कि मेघना नदी पार करने की खबर से पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान भारी मनोवैज्ञाकिन दबाव में आ जाएगा और उसे घुटने टेकने में समय नहीं लगेगा। बाद में यह साबित हुआ कि उनका निर्णय कितना सही था। लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के एडीसी रहे मेजर जनरल रणधीर सिंह अपनी किताब ’ए टैलेंट फॉर वार: द मिलिटरी बायोग्राफी ऑफ लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह’ में इस बात का विस्तार से वर्णन किया है।  

1967 में चीनी सैनिकों पर हमले का अपने लेवल दिया था जवाब

इससे पहले भी 1967 में नाथूला में चीनियों के खिलाफ आर्टिलरी फायर करने का निर्णय सगत सिंह ने खुद लिया था, क्योंकि ऊपर से आदेश आने में देरी हो रही थी। नाथूला में चीनी सैनिकों की संख्या अधिक थी और 1962 के युद्ध के बाद वह इस बात की कल्पना भी नहीं करते थे कि भारत उनके खिलाफ आर्टिलरी फायर खोलने का साहस करेगा। सगत सिंह ने स्थिति को भांपते हुए आर्टिलरी फायर खोलने का निर्णय लिया और कुछ ही समय में चीन ने सीजफायर की घोषणा कर दी। इसी तरह 1961 में गोवा को पुर्तगालियों से आजादी दिलाने में भी उनकी भूमिका अहम थी। पुर्तगाली उनसे इस करद चिढ़ गए थे उन्हें मारने वाले को भारी पुरस्कार देने की घोषणा कर दी थी।

जीत को मानते थे रणनीति की पहली शर्त

निर्णायक मौकों पर लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह की रणनीति हमेशा सही साबित होती थी क्योंकि उनमें सैन्य-अवसरों को पहचानने और उसके अनुसार रणनीति बनाने की अद्भुत क्षमता था। इससे भी बड़ी बात यह थी कि वह लड़ते हुए वीरगति प्राप्त करने के परम्परागत सिद्धांत में कम विश्वास रखते थे, उनका मानना था कि लड़ते हुए जीतना ही सेना और सैनिकों की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहां उनकी सैन्य रणनीति ने दुश्मन को आश्चर्य में डाला और उन्हें पराजित किया। इसी कारण, अधिकांश सैन्य इतिहासकार उन्हें बीसवीं शताब्दी का सबसे प्रतिभाशाली भारतीय सैन्य रणनीतिकार मानते हैं। 

लेखक: जयप्रकाश सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश

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