लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिवानी अवस्थी Updated Mon, 15 Aug 2022 12:09 AM IST Independence Day 2022: 15 अगस्त की तारीख भारत के लिए एक बड़ा राष्ट्रीय पर्व है। इतिहास के पन्नों में 15 अगस्त देश की सबसे बड़ी जीत, उपलब्धि के तौर पर शामिल है। इस दिन देश को अंग्रेजों से आजादी मिली थी और भारत स्वतंत्र हो गया था। दरअसल इससे पहले राजा महाराजाओं के दौर में ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में आई, जिसने यहां अपनी जगह और हुकूमत बना ली। उसके बाद ब्रिटिश सरकार का राज भारत में चलने लगा। अपने ही देश में भारतीय गुलाम बनकर रह गए, जो ब्रिटिश हुकूमत के आदेशों का पालन करने के लिए मजबूर थे। हालांकि स्वतंत्रता की मांग को लेकर कई स्वतंत्रता सेनानियों ने आवाज उठाई और अंत में 15 अगस्त 1947 को हिंदुस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। इस दिन को हर साल स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। लेकिन केवल भारत ही नहीं, 15 अगस्त को कई और देशों में भी स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाते हैं। इसकी वजह है कि 15 अगस्त के दिन भारत के अलावा कुछ अन्य देश भी आजाद हुए थे। चलिए जानते हैं 15 अगस्त के इतिहास के बारे में, भारत समेत किन देशों में 15 अगस्त के दिन मनाया जाता है स्वतंत्रता दिवस। बहरीन भारत की तरह बहरीन भी ब्रिटेन की गुलामी की जंजीरों में कैद था। बाद में ब्रिटिश फौज ने 1960 के दशक से बहरीन को छोड़ना शुरू कर दिया। बहरीन और ब्रिटेन के बीच 1971 में ट्रीटी हुई जिसके बाद बहरीन ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हो गया। जिस दिन दोनों देशों के बीच समझौता हुआ था, उस दिन का तारीख भी 15 अगस्त थी। इसलिए 15 अगस्त 1971 बहरीन की आजादी का दिन है। हालांकि बहरीन के शासक इसा बिन सलमान अल खलीफी ने 16 दिसंबर को बहरीनी का गद्दी हासिल की थी। इसलिए बहरीन अपना राष्ट्रीय अवकाश 16 दिसंबर को मनाता है। कांगो अफ्रीकी देश आंगो पर फ्रांस ने 1880 में कब्जा कर लिया था। कई साल गुलामी की जंजीरों में कैद कांगो 15 अगस्त 1960 को फ्रांस से आजाद हो गया था। आजादी के बाद कांगो, रिपब्लिक ऑफ कांगो बन गया। ये देश भी 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। लिकटेंस्टीन ऑस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड के बीच लिकटेंस्टीन नाम का एक देश बसा है, जो 1866 से पहले तक जर्मनी के अधीन था। हालांकि 15 अगस्त 1866 को लिकटेंस्टीन जर्मनी से आजाद हो गया। बाद में 1940 से लिकटेंस्टीन ने 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की और आधिकारिक राष्ट्रीय छुट्टी का ऐलान किया। दक्षिण कोरिया 1945 से पहले दक्षिण कोरिया पर जापान का कब्जा था। लेकिन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और सोवियत फोर्सेज ने दक्षिण कोरिया को जापान के गुलामी से आजाद कराया। 15 अगस्त को दक्षिण कोरिया स्वतंत्र हुआ था। साउथ कोरिया के लोग अपने स्वतंत्रता दिवस को राष्ट्रीय अवकाश के तौर पर मनाते हैं।
Independence Day 2021: देश में स्वतंत्रता दिवस हर साल 15 अगस्त को मनाया जाता है. 15 अगस्त 1947 ये वो दिन है जब हमें आजादी मिली. आपको बता दें कि आजादी आधी रात के समय मिली थी. 15 अगस्त के दिन ही हम आजादी का ये दिन मनाते हैं, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी क्या है. क्यों इसी दिन आजादी का जश्न मनाते हैं, ये दिन ही आजादी देने के लिए क्यों चुना गया.
पहले साल 1930 से लेकर 1947 तक 26 जनवरी के दिन भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता था. इसका फैसला साल 1929 में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में हुआ था, जो लाहौर में हुआ था. इस अधिवेशन में भारत ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी. इस घोषणा के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा भारतीय नागरिकों से निवेदन किया गया था साथ ही साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता तक आदेशों का पालन समय से करने के लिए भी कहा गया.
उस समय भारत में लॉर्ड माउंटबेटन का शासन था. माउंटबेटन ने ही निजी तौर पर भारत की स्वतंत्रता के लिए 15 अगस्त का दिन तय करके रखा था. बताया जाता है कि इस दिन को वे अपने कार्यकाल के लिए बहुत सौभाग्यशाली मानते थे. इसके पीछे दूसरी खास वजह ये थी कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1945 में 15 अगस्त के ही दिन जापान की सेना ने ब्रिटेन के सामने उनकी अगुवाई में आत्मसमर्पण कर दिया था.
माउंटबेटन उस समय सभी देशों की संबद्ध सेनाओं के कमांडर थे. लॉर्ड माउंटबेटन की योजना वाली 3 जून की तारीख पर स्वतंत्रता और विभाजन के संदर्भ में हुई बैठक में ही यह तय किया गया था. 3 जून के प्लान में जब स्वतंत्रता का दिन तय किया गया उसे सार्वजनिक रूप से घोषित किया गया तब देश भर के ज्योतिषियों में आक्रोश पैदा हुआ क्योंकि ज्योतिषीय गणना के अनुसार 15 अगस्त 1947 का दिन अशुभ और अमंगलकारी था. विकल्प के तौर पर दूसरी तिथियां भी सुझाई गईं लेकिन माउंटबेटन 15 अगस्त की तारीख पर ही अड़े रहे, ये उनके लिए खास तारीख थी. आखिरी समस्या का हल निकालते हुए ज्योतिषियों ने बीच का रास्ता निकाला.
फिर 14 और 15 अगस्त की मध्यरात्रि का समय सुझाया और इसके पीछे अंग्रेजी समय का ही हवाला दिया गया. अंग्रेजी परंपरा में रात 12 बजे के बाद नया दिन शुरू होता है. वहीं हिंदी गणना के अनुसार नए दिन का आरंभ सूर्योदय के साथ होता है. ज्योतिषी इस बात पर अड़े रहे कि सत्ता के परिवर्तन का संभाषण 48 मिनट की अवधि में संपन्न किया जाए हो जो कि अभिजीत मुहूर्त में आता है. ये मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 15 मिनट तक पूरे 24 मिनट तक की अवधि का था. ये भाषण 12 बजकर 39 मिनट तक दिया जाना था. इस तय समय सीमा में ही जवाहरलाल नेहरू को भाषण देना था.
शुरुआती तौर पर ब्रिटेन द्वारा भारत को जून 1948 तक सत्ता हस्तांतरित किया जाना प्रस्तावित था. फरवरी 1947 में सत्ता प्राप्त करते ही लॉर्ड माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं से आम सहमति बनाने के लिए तुरंत श्रृंखलाबद्ध बातचीत शुरू कर दी, लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं था. खासकर, तब जब विभाजन के मसले पर जिन्ना और नेहरू के बीच द्वंद की स्थिति बनी हुई थी. एक अलग राष्ट्र बनाए जाने की जिन्ना की मांग ने बड़े पैमाने पर पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगों को भड़काया और हर दिन हालात बेकाबू होते गए. निश्चित ही इन सब की उम्मीद माउंटबेटन ने नहीं की होगी इसलिए इन परिस्थितियों ने माउंटबेटन को विवश किया कि वह भारत की स्वतंत्रता का दिन 1948 से 1947 तक एक साल पहले ही पूर्वस्थगित कर दें.
1945 से मिल चुके थे संकेत साल 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के समय ब्रिटिश आर्थिक रूप से कमज़ोर हो चुके थे और वे इंग्लैंड में स्वयं का शासन भी चलाने में संघर्ष कर रहे थे. ऐसा भी कहा जाता है कि ब्रिटिश सत्ता लगभग दिवालिया होने की कगार पर थी. महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस की गतिविधियां इसमें अहम भूमिका निभाती हैं. 1940 की शुरुआत से ही गांधी और बोस की गतिविधियों से अवाम आंदोलित हो गया था और दशक के आरंभ में ही ब्रिटिश हुकूमत के लिए यह एक चिंता का विषय बन चुका था. |