दलित समुदाय की नाराजगी को देखते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने SC/ST एक्ट को पुराने और मूल स्वरूप में लाने का फैसला किया है. बुधवार को कैबिनेट की बैठक में SC/ST एक्ट संशोधन विधेयक के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई. माना जा रहा है कि सरकार इसी मॉनसून सत्र में इस संशोधन विधेयक को पेश करके फिर से एक्ट के मूल प्रावधानों को बहाल करेगी. बता दें कि इसी साल 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दो अप्रैल को दलित संगठन सड़कों पर उतरे थे. दलित समुदाय ने दो अप्रैल को 'भारत बंद' किया था. केंद्र सरकार को विरोध की आंच में झुलसना पड़ा. देशभर में हुए दलित आंदोलन में कई इलाकों में हिंसा हुई थी, जिसमें एक दर्जन लोगों की मौत हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार मानते हुए दलित समाज केंद्र सरकार से अपनी नाराजगी जता रहा था. केंद्र सरकार और बीजेपी को दलित विरोधी बताया जा रहा था. दलित संगठनों ने सरकार को एक बार फिर अल्टीमेटम दे रखा है कि अगर 9 अगस्त तक एससी एसटी एक्ट को पुराने स्वरूप में लाने वाला कानून नहीं बना तो वो बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे. मोदी सरकार ने दलितों की नाराजगी को देखते हुए SC/ST एक्ट को उसके मूल स्वरूप में लाने का फैसला किया. सरकार इस संशोधन विधयक को लाती है तो वो पास होकर रहेगा. दलित मतों को देखते हुए कोई इसका विरोध करने वाला नहीं है. फिर ये अपने मूलस्वरुप में आ जाएगा और सुप्रीम कोर्ट के फेरबदल का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. संशोधन विधेयक के बाद ये होगा सूत्रों की मानें तो एससी\एसटी संशोधन विधेयक 2018 के जरिए मूल कानून में धारा 18 A जोड़ी जाएगी. इसके जरिए पुराने कानून को बहाल कर दिया जाएगा. इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट के किए प्रावधान रद्द हो जाएंगे और अब ये प्रावधान होगा- -एससी/एसटी एक्ट में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है -आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी, हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकेगी. -एससी/एसटी मामले में जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर करेंगे. -जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होगा. -एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल कोर्ट में होगी. -सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले जांच एजेंसी को अथॉरिटी से इजाजत नहीं लेनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने किया था ये बदलाव -एससी/एसटी एक्ट के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. -शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा. सबसे पहले शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी. -जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक न हो. डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? -सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं. -एससी/एसटी एक्ट के तहत जातिसूचक शब्द इस्तेमाल करने के आरोपी को जब मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए, तो उस वक्त उन्हें आरोपी की हिरासत बढ़ाने का फैसला लेने से पहले गिरफ्तारी की वजहों की समीक्षा करनी थी. -सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. -दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अफसरों को विभागीय कार्रवाई के साथ अदालत की अवमानना की कार्यवाही का भी सामना करना पड़ेगा. लेकिन अब मोदी सरकार विधेयक के जरिए इस फैसले को पलटने जा रही है और इससे एससी/एसटी अपने मूल स्वरूप में आ जाएगा. एससी-एसटी एक्ट आख़िर है क्या?
21 मार्च 2018 अपडेटेड 3 अप्रैल 2018 इमेज स्रोत, Getty Images भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी और इसके तहत मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी की जगह शुरुआती जांच की बात कही थी. एक आदेश में जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा था कि सात दिनों के भीतर शुरुआती जांच ज़रूर पूरी हो जानी चाहिए. क़ानून के आलोचक इसके दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं. समर्थक कहते हैं कि ये क़ानून दलितों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होने वाले जातिसूचक शब्दों और हज़ारों सालों से चले आ रहे ज़ुल्म को रोकने में मदद करता है. सोमवार को इस एक्ट में हुए बदलावों के विरोध में देश भर में दलितों ने प्रदर्शन किया था और कई जगह हिंसा भड़की. हिंसा में नौ लोग मारे गए. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, लेकिन केंद्र को करारा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने फ़ैसले पर स्टे देने से इनकार कर दिया. आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मुख्य बातें. 1. अगर किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ क़ानून के अंतर्गत मामला रिपोर्ट होता है तो अदालत ने अपने आदेश में सात दिनों के भीतर पूरी हो जाने वाली शुरुआती जांच की बात कही. 2. अदालत ने कहा कि चाहे शुरुआती जांच हो, चाहे मामले को दर्ज कर लिया गया हो, अभियुक्त की गिरफ़्तारी ज़रूरी नहीं है. 3. अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ़्तारी के लिए उसे नियुक्त करने वाले अधिकारी की सहमति ज़रूरी होगी. 4. अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी नहीं है तो गिरफ़्तारी के लिए एसएसपी की सहमति ज़रूरी होगी. 5. एससी/एसटी क़ानून के सेक्शन 18 में अग्रिम ज़मानत की मनाही है. अदालत ने अपने आदेश में अग्रिम ज़मानत की इजाज़त दे दी. अदालत ने कहा कि पहली नज़र में अगर ऐसा लगता है कि कोई मामला नहीं है या जहां न्यायिक समीक्षा के बाद लगता है कि क़ानून के अंतर्गत शिकायत में बदनीयती की भावना है, वहां अग्रिम ज़मानत पर कोई संपूर्ण रोक नहीं है. 6. अदालत ने कहा कि एससी/एसटी क़ानून का ये मतलब नहीं कि जाति व्यवस्था जारी रहे क्योंकि ऐसा होने पर समाज में सभी को साथ लाने में और संवैधानिक मूल्यों पर असर पड़ सकता है. अदालत ने कहा कि संविधान बिना जाति या धर्म के भेदभाव के सभी की बराबरी की बात कहता है. 7. आदेश में अदालत ने कहा कि कानून बनाते वक्त संसद का इरादा क़ानून को ब्लैकमेल या निजी बदले के लिए इस्तेमाल का नहीं था. क़ानून का मक़सद ये नहीं है कि सरकारी कर्मचारियों को काम से रोका जाए. हर मामले में - झूठे और सही दोनो में - अगर अग्रिम ज़मानत को मना कर दिया गया तो निर्दोष लोगों को बचाने वाला कोई नहीं होगा. 8. अदालत ने कहा कि अगर किसी के अधिकारों का हनन हो रहा हो तो वो निष्क्रिय नहीं रह सकती और ये ज़रूरी है कि मूल अधिकारों के हनन और नाइंसाफ़ी को रोकने के लिए नए साधनों और रणनीति का इस्तेमाल हो. 9. आदेश में साल 2015 के एनसीआरबी डेटा का ज़िक्र है जिसके मुताबिक ऐसे 15-16 प्रतिशत मामलों में पुलिस ने जांच के बाद क्लोज़र रिपोर्ट फ़ाइल कर दी. साथ ही अदालत में गए 75 प्रतिशत मामलों को या तो ख़त्म कर दिया गया, या उनमें अभियुक्त बरी हो गए, या फिर उन्हें वापस ले लिया गया. इस केस में एमिकस क्यूरे रहे अमरेंद्र शरण ने बीबीसी को बताया ऐसे मामलों की जांच डीएसपी स्तर के अधिकारी करते हैं "इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि ये जांच साफ़ सुथरी होती होगी." 10. आदेश में ज़िक्र है कि जब संसद में क़ानून के अंतर्गत झूठी शिकायतों को लेकर सवाल उठा तो जवाब आया कि अगर एससी/एसटी समाज के लोगों को झूठे मामलों में दंड दिया गया तो ये क़ानून की भावना के ख़िलाफ़ होगा. क्या था मामलासुप्रीम कोर्ट का ये ताज़ा फ़ैसला डॉक्टर सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य और एएनआर मामले में आया है. मामला महाराष्ट्र का है जहां अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ इस क़ानून के अंतर्गत मामला दर्ज कराया. गैर-अनुसूचित जाति के इन अधिकारियों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उसके खिलाफ़ टिप्पणी की थी. जब मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी से इजाज़त मांगी तो इजाज़त नहीं दी गई. इस पर उनके खिलाफ़ भी पुलिस में मामला दर्ज कर दिया गया. बचाव पक्ष का कहना है कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल जो जाएगा. (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.) |