10 मई 1857 को मेरठ छावनी का अधिकारी कौन था? - 10 maee 1857 ko merath chhaavanee ka adhikaaree kaun tha?

मेरठ और क्रान्ति का अदभुत नाता है. 10 मई 1857 को क्रान्ति की जो ज्वाला मेरठ से फूटी थी, वो अंग्रेजों को भारत से भगाकर देश को आजादी दिलाने की गवाही बना. आज भी मेरठ के उस स्थल पर क्रान्ति से जुड़ी कई निशानियां मौजूद हैं. क्रान्ति का उद्गम स्थल बगावत का अहसास कराता है.

मेरठ: भारत से अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव सन् 1857 में मेरठ में रखी गई, जो कि बाद में पूरे देश में आग की तरह फैल गई. देश के तमाम स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ भूमिका तैयार कर आखिर में 1947 को भारत को आजादी दिलाई. इस जंग में लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी.

मेरठ और क्रान्ति का अदभुत नाता है. 10 मई 1857 को क्रान्ति की जो ज्वाला मेरठ से फूटी थी, वो अंग्रेजों को भारत से भगाकर देश को आजादी दिलाने की गवाई बना. आज भी मेरठ के उस स्थल पर क्रान्ति से जुड़ी कई निशानियां मौजूद हैं. क्रान्ति का उद्गम स्थल बगावत का अहसास कराता है.

मेरठ कैंट इलाके में स्थित काली पलटन मंदिर में आज भी वो कुआं मौजूद है, जहां बाबा शिवचरण दास स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को पानी पिलाया करते थे. 10 मई 1857 को ही मेरठ से आजादी के पहले आंदोलन की शुरूआत हुई थी, जो बाद में पूरे देश में फैल गई. 85 सैनिकों के विद्रोह से जो चिंगारी निकली. वह धीरे-धीरे ज्वाला बन गई. क्रांति की तैयारी सालों से की जा रही थी. नाना साहब, अजीमुल्ला, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे, कुंवर जगजीत सिंह, मौलवी अहमद उल्ला शाह और बहादुर शाह जफर जैसे नेता क्रांति की भूमिका तैयार करने में अपने-अपने स्तर से लगे थे.

मेरठ से हुई थी 1857 क्रांति की शुरुआत.

गाय और मांस की चर्बी लगा कारतूस चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों ने जो विद्रोह किया. उनके कोर्ट मार्शल के बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार किया था. गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूस चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों के कोर्ट मार्शल की घटना ने क्रांति की तात्कालिक भूमिका तैयार कर दी थी. हिंदू और मुसलमान सैनिकों ने बगावत कर दी थी. कोर्ट मार्शल के साथ उनको 10 साल की सजा सुनाई गई. 10 मई 1857 को रविवार का दिन था. चर्च में सुबह की जगह शाम को अंग्रेज अधिकारियों ने जाने का फैसला किया. गर्मी इसका मुख्य कारण थी. कैंट एरिया से अंग्रेज अपने घरों से निकलकर सेंट जोंस चर्च पहुंचे. रविवार होने की वजह से अंग्रेजी सिपाही छुट्टी पर थे. कुछ सदर के इलाके में बाजार गए थे.

शाम करीब साढ़े पांच बजे क्रांतिकारियों और भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिक और अधिकारियों पर हमला बोल दिया. सैनिक विद्रोह की शुरूआत के साथ सदर, लालकुर्ती, रजबन आदि क्षेत्र में 50 से अधिक अंग्रेजों की मौत के साथ हुई. भारतीय पुलिस की ओर से सदर कोतवाल धन सिंह भी मौके पर पहुंचे. मेरठ से शुरू हुई क्रांति पंजाब, राजस्थान, बिहार, असम, तमिलनाडु और केरल में फैलती गई. मेरठ में क्रान्ति स्थल पर पहुंचने पर लोग आदर के साथ इस स्थल को प्रणाम करते हैं.

स्टोरी हाइलाइट्स

  • 10 मई को शुरू हुई थी आजादी की पहली लड़ाई
  • ब्रिटिश राज के खिलाफ फूटी थी विद्रोह की चिंगारी

Indian Rebellion of 1857: 10 मई देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन है. आज के दिन साल 1857 में उत्तर प्रदेश के मेरठ से आजादी की पहली लड़ाई की शुरुआत हुई थी. इस दिन कुछ भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था. अंग्रेजों पर हमला कर इस दिन भारतीय सैनिकों ने मेरठ पर कब्जा किया था.

10 मई 1857 को क्या हुआ था?
बात डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है. तब भारत में ब्रिटिश राज था और मेरठ का कैंट इलाका एक छावनी इलाका था, जहां सैनिकों के बैरक बने हुए थे. छावनी में अंग्रेज और भारतीय दोनों सेनाओं के लोग अलग-अलग जगहों पर रहते थे. अंग्रेज भारतीय सैनिकों के प्लाटून को काली पलटन कहते थे. काली पलटन बैरक के पास ही एक छोटा सा शिव मंदिर था जहां पर भारतीय सैनिक पूजा-पाठ करने जाते थे. इसी मंदिर से भारत की आजादी की पहली लड़ाई की शुरुआत हुई.

...जब मंदिर के पुजारी ने भारतीय सैनिकों को पानी पिलाने से मना किया
10 मई 1857 को मंदिर के प्याऊ पर कुछ सैनिक पानी पीने के लिए पहुंचे. प्याउ पर उस समय मंदिर के पुजारी बैठे हुए थे. सैनिकों ने हमेशा की तरह पुजारी से पानी पिलाने को कहा लेकिन पुजारी ने सैनिकों को अपने हाथ से पानी पिलाने से इंकार कर दिया. पुजारी ने कहा जो सैनिक गाय और सूअर की चर्बी से बने हुए कारतूस को अपने मुंह से खोलते हैं, उन्हें वह अपने हाथों से पानी नहीं पिला सकते क्योंकि वह पूजा पाठ करने वाले धार्मिक व्यक्ति हैं. 

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भारतीय सैनिकों को यह बात इस कदर चुभी कि उन्होंने फैसला कर लिया अब चाहे जो कुछ हो जाए वह कारतूस को मुंह नहीं लगाएंगे. दरअसल, उस समय सैनिकों को अपनी बंदूक में इस्तेमाल करने के लिए जो कारतूस दिए जाते थे उसे पहले दांतों से काटकर तब बंदूक में लगाना पड़ता था. कहा जाता था कि इन कारतूसों को बनाने में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल होता था. इसी कारतूस को लेकर महीने भर पहले बंगाल के बैरकपुर में मंगल पांडे विद्रोह कर चुके थे और यह बात चारों तरफ फैल चुकी थी.

जब अंग्रेज अफसरों पर भारतीय सैनिकों ने हमला बोला
10 मई, 1857 को रविवार का दिन था, बहुत से अंग्रेस अफसर उस दिन पास में बने चर्च में गए हुए थे. उस दिन निशानेबाजी के समय जब कारतूस को खोलने की बारी आई तो भारतीय सैनिकों ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया. इसी बात पर अंग्रेजों से उनका झगड़ा हो गया. भारतीय सैनिकों ने वहीं पर तीन अंग्रेज अफसरों को मार डाला. उसके बाद यह बात आग की तरफ फैल गई और बाकी भारतीय सैनिक भी अपने-अपने बैरकों से बाहर निकल आए और अंग्रेजों पर हमला बोल दिया. 

उसके बाद भारतीय सैनिकों ने मिलकर चर्च पर धावा बोल दिया और बहुत सारे अंग्रेजों को वहीं पर मार डाला. बाद में इन भारतीय सैनिकों के साथ आम लोग भी शामिल हुए और मेरठ पर भारतीय सैनिकों का कब्जा हो गया. जल्दी ही यह विद्रोह की चिंगारी आसपास के इलाकों में फैल गई और 1857 के गदर की शुरुआत हुई, जिसे भारतीय आजादी की पहली लड़ाई कहा जाता है. 1857 की क्रांति से भारत को आजादी तो नहीं मिली लेकिन आज़ादी की लड़ाई के लिए बेहद मजबूत नींव जरूर पड़ गई.

आज मेरठ पहुंचेंगे सीएम योगी आदित्यानाथ
क्रांति दिवस में हिस्सा लेने सीएम योगी आज 10 मई को यूपी के मेरठ पहुंचेंगे. मुख्यमंत्री यहां स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में शहीदों को नमन करने जाएंगे. इसलिए अफसरों ने संग्रहालय के सामने की सड़क बनाने का काम कर रहे हैं.

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10 मई 1857 की क्रांति कहाँ से शुरु हुई?

10 May 1857 Revolution ब्रिटिश हुकुमत के जुल्‍म के खिलाफ मेरठ से ही 10 मई 1857 को क्रांति का आगाज हुआ था।

मेरठ छावनी में कब विद्रोह हुआ?

10 मई 1857 को मेरठ में हुए सैनिक विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह के निर्देश पर सभी सड़के रोक दी और अंग्रेजों के यातायात और संचार को ठप कर दिया। मार्ग से निकलने वाले सभी यूरोपियनो को लूट लिया।

10 मई 1857 को क्या हुआ था?

वर्ष 1857 में वह ऐतिहासिक दिन 10 मई ही था, जब देश की आजादी के लिए पहली चिंगारी मेरठ से भड़की थी। अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव साल 1857 में सबसे पहले मेरठ के सदर बाजार में भड़की, जो पूरे देश में फैल गई थी। यह मेरठ के साथ-साथ पूरे देश के लिए गौरव की बात है।

1857 में मेरठ में क्या हुआ था?

मेरठ, जागरण संवाददाता। नौ मई 1857 को चर्बी लगी कारतूस का इस्तेमाल करने से मना करने वाले 85 सिपाहियों का कोर्ट मार्शल कर मेरठ की विक्टोरिया पार्क स्थित जेल में बंद कर दिया था। सैनिकों पर हुई इस कार्रवाई और अपमान ने क्रांति को जन्म दे दिया। 10 मई को शाम होते-होते अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा।