10 मई 1857 को हुए मेरठ सैनिक विद्रोह में संदेश किसके माध्यम से फैलाया गया - 10 maee 1857 ko hue merath sainik vidroh mein sandesh kisake maadhyam se phailaaya gaya

अमर उजाला ब्यूरो/ मेरठ Updated Wed, 10 May 2017 11:44 AM IST

10 मई 1857 को हुए मेरठ सैनिक विद्रोह में संदेश किसके माध्यम से फैलाया गया - 10 maee 1857 ko hue merath sainik vidroh mein sandesh kisake maadhyam se phailaaya gaya

आज है क्रांति दिवस

10 मई 1857 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। आज ही के दिन मेरठ से आजादी के पहले आंदोलन की शुरूआत हुई थी, जो बाद में पूरे देश में फैल गया। 85 सैनिकों के विद्रोह से जो चिंगारी निकली वह धीरे-धीरे ज्वाला बन गई। क्रांति की तैयारी सालों से की जा रही थी। नाना साहब, अजीमुल्ला, रानी झांसी, तांत्या टोपे, कुंवर जगजीत सिंह, मौलवी अहमद उल्ला शाह और बहादुर शाह जफर जैसे नेता क्रांति की भूमिका तैयार करने में अपने-अपने स्तर से लगे थे। इतिहास के दस्तावेजों में यह बात दर्ज है कि क्रांति की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैयारी हो चुकी थी। इंग्लैंड के दुश्मन देश रूस और ईरान ने समर्थन देने का भरोसा दिया था। सैनिकों के विद्रोह के बाद किसान, मजदूर, कास्तकार और आदिवासियों ने करीब ढाई साल इसे आंदोलन के रूप में जिंदा रखा।

प्रख्यात इतिहासकार डॉ. केडी शर्मा के मुताबिक मेरठ से शुरू हुई क्रांति का असर विश्व पटल पर पड़ा। उस दौरान विदेशी अखबारों में यह सुर्खी बनी। गाय और मांस का चर्बी लगा कारतूस चलाने से मना करने पर 85 सैनिकों ने जो विद्रोह किया। उनके कोर्ट मार्शल के बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार करते हुए 50 से ज्यादा अंग्रेजों की हत्या कर डाली।

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Author: Prem Dutt BhattPublish Date: Fri, 06 May 2022 11:30 AM (IST)Updated Date: Fri, 06 May 2022 12:20 PM (IST)

10 May 1857 Revolution ब्रिटिश हुकुमत के जुल्‍म के खिलाफ मेरठ से ही 10 मई 1857 को क्रांति का आगाज हुआ था। उस वक्‍त मेरठ छावनी में क्षेत्र स्थित औघड़नाथ मंदिर का विशेष योग्दान था। इतिहासकार बताते है कि मंदिर के पुजारी ने भारतीय सैनिकों के आत्मसम्मान को ललकारा था।

नवनीत शर्मा, मेरठ। 10 May 1857 Revolution ब्रिटिश हुकुमत के अत्याचार से देश को मुक्त कराने के लिए सैनिकों के साथ आमजन के मन भी स्वतंत्रता की आग काफी समय से दहक रही थी। इसी आग ने 10 मई 1857 को विकराल रूप धारण कर लिया। मेरठ से शुरू हुए इस स्वतंत्रता संग्राम रूपी यज्ञ में पड़ोसी जनपदों ने भी खूब आहूति दी। देखते ही देखते क्रांति ने अंग्रेजी शासन की नीव ही हिला दी।

10 मई 1857 को हुए मेरठ सैनिक विद्रोह में संदेश किसके माध्यम से फैलाया गया - 10 maee 1857 ko hue merath sainik vidroh mein sandesh kisake maadhyam se phailaaya gaya

आंखों में भी स्वतंत्र भारत का सपना

आजादी के लिए शुरू हुई क्रांति का परिणाम यह हुआ कि भोले-भाले भारतीयों की आंखों में भी स्वतंत्र भारत का सपना बस गया। मेरठ से शुरू हुई क्रांति को 10 मई 2022 को 165 साल पूरे हो रहे हैं। ऐसे में दैनिक जागरण पांच दिवसीय अभियान के रूप में क्रांति की गौरव गाथा को समेटते हुए पहली कड़ी के साथ हाजिर है। 10 मई 1857 को शुरू हुई क्रांति में मेरठ छावनी में क्षेत्र स्थित औघड़नाथ मंदिर का विशेष योग्दान था। इतिहासकार बताते है कि मंदिर के पुजारी ने भारतीय सैनिकों के आत्मसम्मान को ललकारा था।

10 मई 1857 को हुए मेरठ सैनिक विद्रोह में संदेश किसके माध्यम से फैलाया गया - 10 maee 1857 ko hue merath sainik vidroh mein sandesh kisake maadhyam se phailaaya gaya

यह भी जानिए 10 May 1857 Revolution

मंदिर से कुछ दूर स्थित एतिहासिक कुएं पर सैनिकों ने अंग्रेजों को मार गिराने की कसम खाई थी। वर्तमान में उसी कुएं पर शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया। तब औघड़नाथ मंदिर के पीछे स्थित मैदान पर अंग्रेजों का सैनिक प्रशिक्षण केंद्र था। बताते है कि मंदिर के पुजारी बाबा शिवचरण दास ने सैनिकों को इस लिए मंदिर के कुएं का पानी पिलाने से इंकार कर दिया, क्योंकि हिंदू सैनिक गाय और मुसलमान सैनिक सूअर की चर्बी से बने कारतूसों को मुंह से लगा रहे थे। इसके अलावा लगातार होते अपमान से भी सैनिकों के मन में आक्रोश पनप रहा था। सैनिकों का आत्म सम्मान जागा और 85 सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। तब भड़के सैनिकों ने 50 से ज्यादा अंग्रेज अफसरों-सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया। इसकी शुरूआत कर्नल जान फिनिस की हत्या से हुई थी।

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कई तरह की अफवाह भी बनी कारण

क्रांति से एक दिन पहले नौ मई को ही यह अफवाह पूरे शहर में फैल गई थी कि 200 बेड़ियां बनवाई जा रही हैं, जिसमें भारतीय सैनिकों को बंदी बनाया जाएगा। एक अफवाह यह भी थी कि हड्डियों के चूर्ण से मिश्रित आटा बनवाया जा रहा है जिसे बाजार में बेचा जाएगा। ऐसी ही तमाम अफवाहों ने शहर के लोगों के खून में उबाल ला दिया।

शहरवासियों ने खूब दिया सैनिकों का साथ

पहले काली पल्टन सेना के जवानों ने क्रांति की शुरूआत की। उनके पीछे पीछे भीड़ सेना के परेड ग्राउंड पर पहुंच गई। सदर बाजार से लेकर परेड ग्राउंड तक विद्रोह शुरू हो गया। कस्टम हाउस के साथ छावनी में बंगलों में आग लगा दी गई थी। घुडसवार सेना के सैनिकों ने अपने साथियों को भी अंग्रेजों की कैद से आजाद कराया था।

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पड़ोसी जनपदों में शुरू हुआ विरोध 10 May 1857 Revolution

मेरठ शहर से क्रांति शुरू होते ही बहसूमा व परीक्षितगढ़ पर राजा कदम सिंह व गुर्जर क्रांति कारियों ने कब्जा कर लिया था। ऐसे ही हापुड़ से बुलंदशहर तक क्षेत्र पर मालागढ़ के नवाब वलीदाद खन के साथ राजपूत, गुर्जर व पठानों ने विद्धोह कर दिया था। बुलंदशहर के काला आम चौराहे स्थित बाग में कई क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। ऐसे ही गाजियाबाद में पिलखुआ के राजपूतों ने धौलाना ने भी क्रांति में पूरा साथ दिया था। मुरादनगर व मोदीनगर में भी लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में साथ दिया।

थाना भवन आगे रहा

मेरठ की सरधना तहसील में नरपत सिंह व रांगड़ों ने मिलकर तहसील को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराया था। मुजफ्फरनगर व शामली के संपूर्ण क्षेत्र क्रांति की गतिविधियों से जुड़ा हुआ था। विशेष रूप से थाना भवन आगे रहा। ऐसे ही सहारनपुर भी क्रांति से अछूता नहीं रहा। यहां भी किसानों ने क्रांति में खूब बढ़कर भागीदारी की और अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बागपत में भी क्रांतिकारी शहामल व अचल सिंह गुर्जर ने अंग्रेजों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए यमुना नदी पर बनाए गए पुल को नष्ट कर दिया था।

क्रांति के मुख्य कारण

ब्रिटिश हुकुमत ने भारतीय अर्थव्यवस्था का हर तरह से प्रहार किया था। अंग्रेजों ने अपनी वस्तुओं को भारतीय बाजारों में बेंचना शुरू किया था। जबकि भारतीय वस्तुओं के विदेशों में निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे कृषि व लघु उद्योगों को बड़ा नुकसान हुआ था।

- विस्तार वादी नीति के तहत लार्ड डलहौजी ने राज्य अपहरण की नीति लागू की और जैतपुर, झांसी, नागपुर आदि को ब्रिटिश सामराज्य में मिला लिया।

- अंग्रेजी शासन के दौरान भारतीय समाज में व्याप्त कई प्रथाओं पर रोक लगाई गई थी। जिससे भारतीयों को लगा कि अंग्रेज उनकी सामाजिक व्यवस्था में हस्तक्षेप कर रहे हैं।

- अंग्रेजी शासन के दौरान अंग्रेजी शिक्षा व ईसाई धर्म का खूब प्रचार किया गया। जिसका सभी धर्मों के लोगों ने विरोध किया था।- सेना में उच्च पदों पर अंग्रेजों को ही नियुक्त किया जाता था। न्यायालयों में अंग्रेजों से जुड़े मामलों की सुनवाई भी अंग्रेजों के जज द्वारा की जाती थी। इस भेदभाव के कारण भी लोगों ने आक्रोश पनपा।

- चर्बी लगे कारतूसों ने आगे में घी का कार्य किया। जिसका हिंदू व मुस्लमान ने मिलकर विरोध किया। अंग्रेजों ने हिंदू समाज के सैनिकों के लिए गायब की चर्बी लगा कारतूस प्रयोग के लिए दिया। जबकि मुस्लम सैनिकों को सुअर की चर्बी लगा कारतूस दिया गया।

इनका कहना है

अंग्रेजों के विरोध में आमजन के मन में आक्रोश पनप रहा था और आगे चलकर इसी आक्रोश ने क्रांति को जन्म दिया। तब क्रांति ने एक तरह से समाज को एकता को सूत्र में बांधने का प्रयास किया। क्रांति शुरू होने के कारतूस के प्रयोग के साथ कई अन्य कारण भी थे। यहीं कारण रहा कि क्रांति शुरू होते ही आमजन का पूरा समर्थन मिला था।

- केके शर्मा, इतिहास विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर, मुलतानी मल मोदी डिग्री कालेज मोदीनगर

Edited By: Prem Dutt Bhatt

मेरठ में विद्रोह करने के बाद भारतीय सैनिक कहाँ चले गए?

- उसके बाद लोग इकट्ठा होकर विक्टोरिया पार्क जेल पहुंचे। जोरआजमाइश कर सभी बंदियों को जेल से छुड़ाया गया। - जेल से छुड़ाए गए बंदियों में ये 85 सैनिक भी थे।

10 मई 1857 को क्या हुआ था?

वर्ष 1857 में वह ऐतिहासिक दिन 10 मई ही था, जब देश की आजादी के लिए पहली चिंगारी मेरठ से भड़की थी। अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव साल 1857 में सबसे पहले मेरठ के सदर बाजार में भड़की, जो पूरे देश में फैल गई थी। यह मेरठ के साथ-साथ पूरे देश के लिए गौरव की बात है।

1857 में मेरठ में क्या हुआ था?

आज के दिन साल 1857 में उत्तर प्रदेश के मेरठ से आजादी की पहली लड़ाई की शुरुआत हुई थी. इस दिन कुछ भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था. अंग्रेजों पर हमला कर इस दिन भारतीय सैनिकों ने मेरठ पर कब्जा किया था. 10 मई 1857 को क्या हुआ था?

10 मई 1857 को मेरठ छावनी का अधिकारी कौन था?

बाबू कुंवर सिंह (Babu Kunwar Singh) सन 1857 की 10 मई को मेरठ के भारतीय सैनिकों की स्वतंत्रता का उद्घोष के दौरान बाबू कुंवर सिंह मेरठ में थे। क्रांति का समाचार मिलते ही इन्होंने मेरठ से पूरे देश में जासूसों का जाल बिछा दिया। छावनी के भारतीय सैनिक तो तैयार ही बैठे थे।