उसने कहा था कहानी की समीक्षा pdf

पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने “उसने कहा था” कहानी की रचना कर न केवल हिंदी कहानी अपितु विश्व कथा-साहित्य को समॄद्ध किया हैं । वास्तविकता यह है कि उनकी प्रसिद्धि “”उसने कहा था”” के द्वारा ही हुई। “उसने कहा था” प्रेम, शौर्य और बलिदान की अद्भुत प्रेम-कथा है। प्रथम विश्व युद्ध के समय में लिखी गयी यह प्रेम कथा कई मायनों में अप्रतिम है। प्रथम-दृष्टि-प्रेम तथा साहचर्यजन्य प्रेम दोनों का ही इस प्रेमोदय में सहकार है। बालापन की यह प्रीति इतना अगाध विश्वास लिए है कि 25 वर्षो के अंतराल के पश्चात भी प्रेमिका को यह विश्वास है कि यदि वह अपने उस प्रेमी से, जिसने बचपन में कई बार अपने प्राणों को संकट में डाल कर उसकी जान बचायी है, यदि आंचल पसार कर कुछ मांगेगी तो वह मिलेगा अवश्य। और दूसरी ओर प्रेमी का “उसने कहा था” की पत रखने के लिए प्राण न्योछावर कर वचन निभाना उसके अद्भुत बलिदान और प्रेम पर सर्वस्व अर्पित करने की एक बेमिसाल कहानी है। “उसने कहा था” का कथा-नायक अंत तक किसी को नहीं बताना चाहता, स्वयं अपने अधिकारी, बॉस, सूबेदार को भी नहीं कि उसने कितनी बडी कुर्बानी सिर्फ “उसने कहा था” की वचन-रक्षा के लिए दी है, बस केवल इतना-भर कह कर इस दुनिया को छोडने के लिए तैयार है, सूबेदारनी होरां को चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना। और जब घर जाओ तो कह देना कि जो “उसने कहा था” वह मैंने कर दिया। सूबेदार पूछते भी हैं कि उसने क्या कहा था तो भी लहना सिंह का उत्तर यही है, मैंने जो कहा वह लिख देना और कह भी देना। प्रेमिका के वचनों पर सहर्ष प्राण त्याग कर ऐसी मौन महायात्रा! ..धन्य है यह विलक्षण प्रीति!!

   क्या लहना सिंह और बालिका के प्रेम को प्रेम-रसराज श्रृंगार की सीमा का स्त्री-पुरुष के बीच जन्मा प्रेम कहा भी जा सकता है? मृत्यु के कुछ समय पहले लहना सिंह के मानस-पटल पर स्मृतियों की जो रील चल रही है उससे ज्ञात होता है कि अमृतसर की भीड-भरी सडकों पर जब बालक लहना सिंह और बालिका (सूबेदारनी) मिलते हैं तो लहना सिंह की उम्र बारह वर्ष है और बालिका की आठ वर्ष। ध्यातव्य है कि 1914-15 ई. का हमारा सामाजिक परिवेश ऐसा नहीं था जैसा आज का। आज के बालक-बालिका रेडियो, टी.वी. तथा अन्य प्रचार माध्यमों और उनके द्वारा परिवार-नियोजन के लिए चलायी जा रही मुहिम से यौन-संबंधों की जो जानकारी रखते हैं, उस समय उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। यह वह समय था जब अधिकतर युवाओं को स्त्री-पुरुष संबंधों का सही ज्ञान नहीं होता था। ऐसे समय में अपने मामा के यहां आया लडका एक ही महीने में केवल दूसरे-तीसरे दिन कभी सब्जी वाले या दूध वाले के यहां उस बालिका से अकस्मात मिल जाता है तो यह साहचर्यजन्य सहज प्रीति उस प्रेम की संज्ञा तो नहीं पा सकती जिसका स्थायी भाव रति है। इसे बालपन की सहज प्रीति ही कहा जा सकता है जिसका पच्चीस वर्षो के समय तक शिथिल न पडने वाला वह तार यह संवाद है तेरी कुडमाई हो गई? और उत्तर का भोला धृष्ट धत् है। किंतु एक दिन धत् न सुन कर जब बालक लहना सिंह संभावना, आशा के विपरीत यह सुनता है हां, हो गई, कब?, कल, देखते नहीं यह रेशम से कढा हुआ सालू! तो उसकी दुनिया में उथल-पुथल मच जाती है, मानो उसके भाव जगत में एक तूफान आ जाता है, आग-सी लग जाती है।

उसे प्रत्यक्ष कथित न कर कुशल कहानीकार ने लडके के कार्य-व्यापार से अभिव्यंजित किया है, रास्ते में एक लडके को मोरी में ढकेल दिया, एक छाबडीवाले की दिन भर की कमाई खोई, एक कुत्ते को पत्थर मारा और एक गोभी वाले के ठेले में दूध उंडेल दिया। सामने नहाकर आती हुई किसी वैष्णवी से टकरा कर अंधे की उपाधि पाई। तब कहीं घर पहुंचा। बालक लहना सिंह का यह व्यवहार, कार्य-व्यापार, उसके भाव-जगत में आए अंधड का तो परिचय देता ही है, इस सहज प्रीति की गहराई को भी लक्षित कराता है। पच्चीस वर्ष बीत जाने पर भी अपनी उम्र के सैंतीसवें वर्ष में प्रवेश करने पर केवल इस संवाद की पुनरावृत्ति तेरी कुडमाई हो गई? उस सारे अतीत को लहना सिंह के सामने प्रत्यक्ष तथा जीवंत कर देती है। यौवन की प्रीति पर सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले उदाहरण तो संसार की प्रेम-कथाओं में एक से एक बढकर मिल जायेंगे किंतु बालपन की साहचर्यजन्य सहज प्रीति पर प्राणों का बलिदान कर देने वाला यह उदाहरण सर्वथा विरल, केवल लहना सिंह का है। लहना सिंह इसी कारण प्रेमकथाओं का सबसे निराला नायक है, प्राणों की बाजी लगाकर अपने प्रेम को दिये गये वचन की रक्षा करने वाला।

   “उसने कहा था” का कथा-विन्यास अत्यंत विराट फलक पर किया गया है। कहानी जीवन के किसी प्रसंग विशेष, समस्या विशेष या चरित्र की किसी एक विशेषता को ही प्रकाशित करती है, उसके संक्षिप्त कलेवर में इससे अधिक की गुंजाइश नहीं होती है। किंतु यह कहानी लहना सिंह के चारित्रिक विकास में उसकी अनेक विशेषताओं को प्रकाशित करती हुई उसका संपूर्ण जीवन-वृत्त प्रस्तुत करती है, बारह वर्ष की अवस्था से लेकर प्राय: सैंतीस वर्ष, उसकी मृत्युपर्यत, तक की कथा-नायक का संपूर्ण जीवन इस रूप में चित्रित होता है कि कहानी अपनी परंपरागत रूप-पद्धति (फॉर्म) को चुनौती देकर एक महाकाव्यात्मक औदात्य लिये हुए है। वस्तुत: पांच खण्डों में कसावट से बुनी गयी यह कहानी सहज ही औपन्यासिक विस्तार से युक्त है किंतु अपनी कहन की कुशलता से कहानीकार इसे एक कहानी ही बनाये रखता है। दूसरे, तीसरे और चौखे खण्ड में विवेच्य कहानी में युद्ध-कला, सैन्य-विज्ञान (क्राफ्ट ऑफ वार) और खंदकों में सिपाहियों के रहने-सहने के ढंग का जितना प्रामाणिक, सूक्ष्म तथा जीवंत चित्रण इस कहानी में हुआ है, वैसा हिंदी कथा-साहित्य में विरल है।

   लहना सिंह जैसे सीधे-साधे सिपाही, जमादार लहना सिंह की प्रत्युपन्नमति, कार्य करने की फुर्ती, संकट के समय अपने साथियों का नेतृत्व, जर्मन लपटैन (लेफ्टिनेंट) को बातों-बातों में बुद्धू बना कर उसकी असलियत जान लेना, यदि एक ओर इस चरित्र को इस सबसे विकास मिलता है तो दूसरी ओर पाठक इस रोचक-वर्णन में खो-सा जाता है। भाई कीरत सिंह की गोद में सिर रख कर प्राण त्यागने की वांछा वजीरा सिंह को कीरत सिंह समझने में लहना सिंह एक त्रासद प्रभाव पाठक को देता है। मृत्यु से पूर्व का यह सारा दृश्यविधान अत्यंत मार्मिक बन पडा है।

   वातावरण का अत्यंत गहरे रंगों में सृजन गुलेरी जी की अपनी विशेषता है। कहानी का प्रारंभ अमृतसर की भीड-भरी सडकों और गहमागहमी से होता है, युद्ध के मोर्चे पर खाली पडे फौजी घर, खंदक का वातावरण, युद्ध के पैंतरे इन सबके चित्र अंकित करता हुआ कहानीकार इस स्वाभाविक रूप में वातावरण की सृष्टि करता है कि वह हमारी चेतना, संवेदना का अंग ही बन जाता है।

   दो शब्द कहानी की भाषा-शैली पर भी कहना आवश्यक है। ध्यातव्य है कि 1915 ई. में कहानीकार इतने परिनिष्ठित गद्य का स्वरूप उपस्थित कर सकता है जो बहुत बाद तक की कहानी में भी दुर्लभ है। यदि भाषा में कथा की बयानी के लिए सहज चापल्य तथा जीवन-धर्मी गंध है तो चांदनी रात के वर्णन में एक गांभीर्य जहां चंद्रमा को क्षयी तथा हवा को बाणभट्ट की कादम्बरी में आये दन्तवीणोपदेशाचार्य की संज्ञा से परिचित कराया गया है। रोजमर्रा की बोलचाल के शब्दों, वाक्यांशों और वाक्यों तथा लोकगीत की कडियों का प्रयोग भी कहानी को एक नयी धज दे कर आगे की कहानी भाषा और शैली का मार्ग भी प्रशस्त करता है। इस प्रकार अनेक दृष्टियों से “उसने कहा था” हिंदी ही नहीं, भारतीय भाषाओं की ही नहीं अपितु विश्व कहानी साहित्य की अमूल्य धरोहर है।

उसने कहा था कहानी का मूल उद्देश्य क्या है?

उसने कहा था कहानी चंद्रधर शर्मा गुलेरी की हिंदी के पहली सर्वोत्तम कहानी मानी जाती है । यह कहानी बहुत ही मार्मिक है । इस कहानी की मूल संवेदना यह है कि, इस संसार में कुछ ऐसे महान निःस्वार्थ व्यक्ति होते हैं जो किसी के कहे को पूरा करने के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर देते हैं।

उसने कहा था कहानी की क्या विशेषता है?

कहानी को कथानक निश्छल प्रेम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा पर आधारित है जो मृत्यु शैय्या पर जाकर समाप्त होता है। कहानी का आरम्भ निश्छल प्रेम से होता है, मध्य भाग में कर्तव्यनिष्ठा और सेवाभाव है। अन्त में पुनः त्याग और प्रेम है। कथानक इतना आकर्षक है कि पाठक पहली पंक्ति से ही कहानी का अन्त जानने के लिए उत्सुक हो जाता है।

उसने कहा था कहानी का सारांश लिखिए और बताइए कि किसने किससे क्या और क्यों कहा था?

'उसने कहा था' प्रथम विश्वयुद्ध के तुरंत बाद लिखी गई थी. तुरंत घटे को कहानी में लाना उसके यथार्थ को इतनी जल्दी और इतनी बारीकी से पकड़ पाना आसान नहीं होता पर गुलेरी जी ने यह किया और खूब किया. इस कहानी में प्रेम से भी ज्यादा युद्ध का वर्णन और माहौल है. यह बताने की खातिर कि युद्ध हमेशा प्रेम को लीलता और नष्ट करता है.

उसने कहा था कहानी के प्रमुख पात्र कौन है?

105 साल पुरानी अमर कहानी 'उसने कहा था' का मुख्य पात्र लहना सिंह हो या रेशम से कढ़े पल्लू वाली अमृतसर के बाजार में उसे मिली लड़की जो कालांतर में सूबेदारनी बन कर फिर कुछ कहती है।