उलगुलान किस आंदोलन का दूसरा नाम है - ulagulaan kis aandolan ka doosara naam hai

उलगुलान किस आंदोलन का दूसरा नाम है - ulagulaan kis aandolan ka doosara naam hai

मुंडा आदिवासीयों ने 18वीं सदी से लेकर 20वीं सदी तक कई बार अंग्रेजी सरकार और भारतीय शासकों, जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किये। बिरसा मुंडा के नेतृत्‍व में 19वीं सदी के आखिरी दशक में किया गया मुंडा विद्रोह उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजातीय आंदोलनों में से एक है।[1] इसे उलगुलान(महान हलचल) नाम से भी जाना जाता है। मुंडा विद्रोह झारखण्ड का सबसे बड़ा और अंतिम रक्ताप्लावित जनजातीय विप्लव था, जिसमे हजारों की संख्या में मुंडा आदिवासी शहीद हुए।[2] मशहूर समाजशास्‍त्री और मानव विज्ञानी कुमार सुरेश सिंह ने बिरसा मुंडा के नेतृत्‍व में हुए इस आंदोलन पर 'बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन' नाम से बडी महत्‍वपूर्ण पुस्‍तक लिखी है।[3]

विद्रोह की पृष्‍ठभूमि[संपादित करें]

बिरसा मुंडा ने मुंडा आदिवासियों के बीच अंग्रेजी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू किया। जब सरकार द्वारा उन्‍हें रोका गया और गिरफ्तार कर लिया तो उन्होंने धार्मिक उपदेशों के बहाने आदिवासियों में राजनीतिक चेतना फैलाना शुरू किया। वह स्‍वयं को भगवान कहने लग गया। उसने मुंडा समुदाय में धर्म व समाज सुधार के कार्यक्रम शुरू किये और तमाम कुरीतियों से मुक्ति का प्रण लिया।

विद्रोह और उसके बाद[संपादित करें]

1898 में डोम्‍बरी पहाडियों पर मुं‍डाओं की विशाल सभा हुई, जिसमें आंदोलन की पृष्‍ठभूमि तैयार हुई। आदिवासियों के बीच राजनीतिक चेतना फैलाने का काम चलता रहा। अंत में 24 दिसम्बर 1899 को बिरसापंथियों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड दिया। 5 जनवरी 1900 तक पूरे मंडा अंचल में विद्रोह की चिंगारियां फैल गई। ब्रिटिश फौज ने आंदोलन का दमन शुरू कर दिया। 9 जनवरी 1900 का दिन मुंडा इतिहास में अमर हो गया जब डोम्बार पहा‍डी पर अंग्रेजों से लडते हुए सैंकडों मुंडाओं ने शहादत दी। आंदोलन लगभग समाप्त हो गया। गिरफ्तार किये गए मुंडाओं पर मुकदमे चलाए गए जिसमें एक को फांसी, 39 को आजीवन कारावास, 23 को चौदह वर्ष की सजा हुई।

बिरसा की गिरफ्तारी और अंत[संपादित करें]

बिरसा मुंडा काफी समय तक तो पुलिस की पकड़ में नहीं आये थे, लेकिन एक स्थानीय गद्दार की वजह से 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार हो गए। लगातार जंगलों में भूखे-प्यासे भटकने की वजह से वह कमजोर हो चुके थे। जेल में उन्हे हैंजा हो गया और 9 जून 1900 को रांची जेल में उनकी मृत्यु. हो गई। लेकिन जैसा कि बिरसा कहते थे, आदमी को मारा जा सकता है, उसके विचारों को नहीं, बिरसा के विचार मुंडाओं और पूरी आदिवासी कौम को संघर्ष की राह दिखाते रहे। आज भी आदिवासियों के लिए बिरसा का सबसे बड़ा स्था्न है।

उलगुलान किस आंदोलन का दूसरा नाम है - ulagulaan kis aandolan ka doosara naam hai

बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर रांची कारागार ले जाया गया

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • संथाल विद्रोह
  • कोल विद्रोह
  • कुड़मि विद्रोह
  • गोंड विद्रोह
  • 1857 के विद्रोह में आदिवासी
  • खासी विद्रोह
  • मानगढ का विद्रोह

बाहरी कडियां[संपादित करें]

  • बिरसा मुंडा : साहस का नाम
  • बिरसा मुंडा: अबुआ दिशुम का अधूरा सपना
  • देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महान आदिवासी नेता थे बिरसा मुंडा

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 17 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जून 2012.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 2 दिसंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जून 2012.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 अप्रैल 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जून 2012.

उलगुलान शब्द कौन सा आंदोलन है?

सही उत्‍तर है → मुंडा विद्रोह । प्रमुख बिंदु। 'उलगुलान' शब्द मुंडा विद्रोह से जुड़ा है। मुंडाओं ने परंपरागत रूप से जंगल के मूल क्लीयर के रूप में अधिमान्य किराया दर का आनंद लिया।

उलगुलान आंदोलन किसने शुरू किया*1 अंक

मुंडा विद्रोह उपमहाद्वीप में 19वीं सदी के प्रमुख जनजातीय विद्रोहों में से एक है। बिरसा मुंडा ने 1899-1900 में रांची के दक्षिण क्षेत्र में इस आंदोलन का नेतृत्व किया। उलगुलान, जिसका अर्थ है 'महान कोलाहल', ने मुंडा राज और स्वतंत्रता की स्थापना की मांग की।

मुंडा आंदोलन कब हुआ?

मुंडा विद्रोह का नेतृत्‍व 1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान (कर) माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी।

बिरसा मुंडा का नारा क्या है?

क्रांतिकारी बिरसा का अंग्रेजों के खिलाफ नारा था - “रानी का शासन खत्म करो और हमारा साम्राज्य स्थापित करो। देश के दिल में बसे मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में लाखों जनजातीय लोगों की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 नवंबर बिरसा जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने जा रहे हैं।