स्टॉकहोम में हुए मानव पर्यावरण सम्मेलन में किसने सहभागिता की थी - stokahom mein hue maanav paryaavaran sammelan mein kisane sahabhaagita kee thee

स्टॉकहोम सम्मेलन के पचास साल: आधी सदी बीतने के बाद भी कहां पहुंचे हम?

स्टॉकहोम-घोषणापत्र यह दर्शाता है कि धरती के पर्यावरणीय संकट को रोकने के लिए हमें कैसे आगे बढ़ना चाहिए, आज भी हम उसके के आदर्शों की तलाश ही कर रहे हैं

On: Wednesday 01 June 2022

स्टॉकहोम में हुए मानव पर्यावरण सम्मेलन में किसने सहभागिता की थी - stokahom mein hue maanav paryaavaran sammelan mein kisane sahabhaagita kee thee
1972 में पांच से 16 जून के बीच दुनिया के कई देशों ने अपनी सम्प्रभुता से थोड़ी देर के लिए मोहलत ले ली थी। इसके पीछे मकसद था - धरती के पर्यावरण और प्राकृतिक स्रोतों को बचाने के लिए एकसमान सरकारी ढांचा तैयार करना।

यह मौका था, स्टॉकहोम में होने वाला संयुक्त राष्ट्र का मानव-पर्यावरण सम्मेलन, जो धरती के पर्यावरण पर होने वाला इस तरह का पहला विश्वव्यापी सम्मेलन था। इसका मूूल विषय था - ‘ओनली वन अर्थ’।

सम्मेलन में भाग लेने वाले 122 देशों में 70 गरीब और विकासशील देश थे। जब उन्होंने 16 जून को स्टॉकहोम-घोषणापत्र को स्वीकार किया तो वे अनिवार्य रूप से 26 सिद्धांतों और एक बहुपक्षीय पर्यावरण व्यवस्था में स्थापित एक कार्ययोजना के लिए प्रतिबद्ध हो गए।

इन अति-महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक यह भी था कि किसी देश की संप्रभुता में यह विषय भी शामिल होगा कि वह अन्य देशों के पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए। यह वैश्विक रूप से हस्ताक्षरित किया गया वह पहला दस्तावेज था, जिसने ‘विकास, गरीबी और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध’ को मान्यता दी।

इन सिद्धांतों का ‘नए व्यवहार और जिम्मेदारी के अग्रदूत’ के रूप में स्वागत किया गया, जिन्हें पर्यावरण युग में उनके संबंधों को नियंत्रित करना चाहिए’।

इसे दूसरे तरीके से देखें तो स्टॉकहोम-घोषणापत्र के बाद धरती का पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन एक सामान्य संसाधन बन गए, जिसमें दुनिया के तमाम देशों ने इन संसाधनों पर संप्रभुता से लेकर उनके स्थायी उपयोग के लिए साझा जिम्मेदारी तक, प्रकृति के साथ अपने संबंधों को फिर से स्थापित किया।

इस सम्मेलन के तीन आयाम थे, - एक-दूसरे के पर्यावरण या राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों को नुकसान नहीं पहुंचाने के लिए देशों के बीच सहमति,  धरती के पर्यावरण पर खतरे का अध्ययन करने के लिए एक कार्य-योजना, और देशों के बीच सहयोग लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) नामक एक अंतरराष्ट्रीय निकाय की स्थापना।

ऐतिहासिक शुरुआत

स्टॉकहोम सम्मेलन केवल इस अर्थ में ऐतिहासिक नहीं था कि वह धरती के पर्यावरण पर पहला सम्मेलन था। 1972 तक किसी देश में पर्यावरण मंत्रालय नहीं था। नार्वे के प्रतिनिधियों ने सम्मेलन से लौटने के बाद पर्यावरण के लिए मंत्रालय बनाने का फैसला लिया। सम्मेलन के मेजबान देश, स्वीडन ने भी कुछ सप्ताह के बाद ऐसा ही निर्णय लिया।

भारत ने 1985 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का गठन किया। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में इससे पहले पर्यावरण कोई ऐसा कार्यक्षेत्र नहीं था, जिससे अलग से निपटा जाए। तो इस तरह से जब पर्यावरण पर पहला वैश्विक सम्मेलन किया गया था, तब तक पर्यावरण किसी देश या वैश्विक चिंता का विषय नहीं था।

1968 में जब स्वीडन ने पहली बार स्टॉकहोम सम्मेलन के विचार का प्रस्ताव रखा था (इसीलिए पहले सम्मेलन को स्वीडन की पहल के नाम से जाना जाता है) तब तक पर्यावरणीय गिरावट के मामलों और धरती की वायुमंडलीय प्रणाली में मंदी के संकेत की खबरें आना शुरू हो गई थीं।

तब अम्लीय वर्षा भी दर्ज की जाने लगी थी: तब रैचेल कार्सन की अब प्रसिद्ध पुस्तक ‘साइलेंट स्प्रिंग’ को आए हुए सिर्फ छह साल हुए थे, लेकिन पाठकों की संख्या और सार्वजनिक चेतना पर प्रभाव के मामले में उसने बाइबिल का दर्जा हासिल कर लिया था।

उसी दौर में प्रजातियों के विलुप्त होने ने सुर्खियां बटोरीं, जैसे हंपबैक व्हेल और बंगाल टाइगर। इसी तरह, जापान में मिनामाता खाड़ी में मिथाइलमरकरी मिलने के कारण पारे के जहर बनने की खबर सार्वजनिक बातचीत के दायरे में आई थी।

1968 में संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में पहली बार वैज्ञानिक सुबूतों के साथ जलवायु-परिवर्तन पर चर्चा हुई। हालांकि यह अभी भी विश्वसनीय नहीं था, लेकिन 1965 में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन की विज्ञान सलाहकार समिति ने ‘हमारे पर्यावरण की गुणवत्ता को बहाल करने वाली रिपोर्ट’ पेश की, जो वायुमंडल में मानव-उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड की भूमिका पर थी।

 

1967 में, अमेरिकी वैज्ञानिक और नियामक एजेंसी, नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन की जियोफिजिकल फ्लुइड डायनेमिक्स लेबोरेटरी के स्यूकुरो मानेबे और रिचर्ड वेदरल्ड, और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन प्रकाशित किया था, जिसने वास्तव में उस समय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तरों के आधार पर वैश्विक तापमान का अनुमान लगाया था।

उन्होंने कहा था - ‘बादलों में परिवर्तन जैसी अज्ञात प्रतिक्रिया के अभाव में, वर्तमान स्तर से कार्बन डाइऑक्साइड के दोगुने होने से वैश्विक तापमान में लगभग 2 डिग्री सेल्सियस’ की वृद्धि होगी।

स्टॉकहोम-घोषणापत्र से पहले चार साल की तैयारी की गई थी। दुनिया भर के सैकड़ों वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने मानव-पर्यावरण पर लगभग बीस हजार पेजों का योगदान दिया था, जिन्हें सम्मेलन में परिचालित करने के लिए 800 पेज के दस्तावेज में तब्दील किया गया था। कई लोग कहते हैं कि इस सम्मेलन की तैयारी करना, वास्तव में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सबसे विस्तृत प्रयोग था।

स्टॉकहोम-घोषणापत्र: मुख्य बिंदु 
धरती के प्राकृतिक संसाधनों, जिनमें हवा, पानी, जमीन, वनस्पति और जीव शामिल हैं और खासकर वे संसाधन जो पारिस्थितक तंत्र के प्रतिनिधि सैंपल हो, उनका बेहतर योजना और प्रबंधन के जरिए वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के हित में संरक्षण किया जाए।

 
जहरीले पदार्थों या अन्य पदार्थों का विसर्जन और गर्मी का निवारण करना:  इतनी मात्रा या सांद्रता में, जो उन्हें हानिरहित बनाने के लिए पर्यावरण की क्षमता से अधिक हो, उसे यह सुनिश्चित करने के लिए रोका जाना चाहिए कि उससे पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर या अपरिवर्तनीय क्षति न हो। प्रदूषण के खिलाफ बीमार देशों के लोगों के न्यायसंगत संघर्ष का समर्थन किया जाना चाहिए।

 
समझौते में शामिल देश समुद्र से निकलने वाले ऐसे सभी पदार्थों को रोकने के कदम उठाएंगे, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हों, जो जीवित संसाधनों और समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचाते हों, और सुविधाओं को नुकसान पहुंचाने के अलावा समुद्र के अन्य वैध इस्तेमाल में रुकावटें डालते हों।


सभी देशों की पर्यावरण नीतियां समय के साथ बेहतर होनी चाहिए। वे ऐसी नहीं होनी चाहिए, जिनसे विकासशील देशों के विकास पर नकारात्मक असर पड़े और न ही उन्हें सभी के लिए बेहतर जीवन स्थितियों की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करनी चाहिए।

इसके साथ ही पर्यावरणीय उपायों को लागू करने के परिणामस्वरूप संभावित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिणामों को पूरा करने के लिए समझौते पर पहुंचने की दृष्टि से राज्यों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा उचित कदम उठाए जाने चाहिए।

 
सदस्य देशों के पास संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के अनुरूप अपनी पर्यावरण नीतियों को लागू करने व अपने संसाधनों का दोहन करने का संप्रभु अधिकार है। साथ ही उन पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी है कि उनके अधिकार क्षेत्र या नियंत्रण में की जाने वाली गतिविधियों से अन्य देशों के पर्यावरण को नुकसान न हो।

आम सहमति के संकेत

स्टॉकहोम-घोषणापत्र के साथ ही दुनिया ने पर्यावरण को वैश्विक राजनीतिक एजेंडे में प्रवेश करते हुए भी देखा। हालांकि यह पहले से मौजूद कई मतभेदों से घिरा था।

शीत युद्ध, पूर्व और पश्चिम के बीच विभाजन की शुरुआत कर रहा था। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत समाजवादी गणराज्य के तत्कालीन संघ यूएसएसआर ब्लॉक दोनों ने सम्मेलन का समर्थन किया। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के दो गैर-सदस्यों, पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी की भागीदारी को लेकर असहमति पैदा हो गई। इसने अंततः यूएसएसआर और उसके सहयोगियों को सम्मेलन का बहिष्कार करने का मार्ग प्रशस्त किया।

दूसरे मोर्चे पर, पर्यावरण पर सम्मेलन के प्रस्ताव के तुरंत बाद, विकासशील देशों ने इसे समृद्ध देशों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को हड़पने और उनके विकास में बाधा डालने के लिए एक और चाल के रूप में लेना शुरू कर दिया। 1968 में ही संयुक्त राष्ट्र महासभा की बहस के दौरान, कई विकासशील देशों ने एक पर्यावरण सम्मेलन की योजनाओं के बारे में संदेह व्यक्त किया था। उनका मानना था कि इसमें धनी और औद्योगिक देशों का प्रभुत्व होगा।

सम्मेलन के विरोध में सबसे मुखर ब्राजील था, जो इसे ‘वन मैन शो’ बता रहा था। उसने हर ऐसी पहल का विरोध किया, जो उसकी प्राकृतिक संसाधनों पर सम्प्रभुता को सीमित करे और आर्थिक वृद्धि में बाधा बने। लैटिन अमेरिकी देशों ने ब्राजील का समर्थन कर और आने वाले सम्मेलन का बहिष्कार किया था।

जब सम्मेलन की तैयारियां चल रही थीं तो दुनिया के सारे प्राकृतिक संसाधनों को एक वैश्विक प्रशासन के तहत लाए जाने के प्रस्ताव का विकासशील देशों ने जोरदार विरोध किया था।

देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल ने 1992 में डाउन टू अर्थ से कहा था: ‘औद्योगिक राष्ट्र मुख्य रूप से वायु और जल प्रदूषण के बारे में चिंतित थे, जबकि विकासशील देशों पारिस्थितिक तंत्र को अनावश्यक नुकसान के बिना अपनी घिनौनी गरीबी को मिटाने के लिए सहायता की उम्मीद कर रहे थे।’

गुजराल ने इंदिरा गांधी के कैबिनेट में शहरी आवास मंत्री के तौर पर इस सम्मेलन में हिस्सा लिया था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इकलौती राष्ट्र-प्रमुख थीं, जो सम्मेलन में हिस्सा लेने गई थीं। उनकी गरीबी और पर्यावरण के बीच संबंध की बात को ख्यााति मिली थी। उन्होंने कहा था - इसे लेकर गंभीर आशंकाएं हैं कि पारिस्थितिकी पर चर्चा, युद्ध और गरीबी की समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए की जा सकती है।

हमें दुनिया के बहुसंख्यक लोगों के सामने यह साबित करना होगा कि पारिस्थितिकी और संरक्षण उनके हितों के खिलाफ काम नहीं करेंगे बल्कि उनके जीवन में सुधार लाएंगे।

सम्मेलन से आए महत्वपूर्ण बदलाव
स्टॉकहोम सम्मेलन से वास्तव में समकालीन ‘पर्यावरणीय युग’ की शुरुआत हुई। इसने कई मायनों में, धरती की चिंताओं के बहुपक्षीय शासन की मुख्यधारा में ला दिया। इसके कारण पिछले पचास सालों में पांच सौ से ज्यादा बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों को अपनाया गया।

धरती के संकट से संबंधित आज के अधिकांश सम्मेलन जैसे - संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी), कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) और कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) और संयुक्त राष्ट्र के तंत्र द्वारा संपूर्ण पर्यावरण व्यवस्था के लिए किए जा रहे प्रयास स्टॉकहोम घोषणा की ही उत्पत्ति हैं।

जलवायु के लिहाज से देखें तो आधी सदी पहले स्टॉकहोम में हुए इस सम्मेलन के बाद से कोई भी सामान्य जीवन नहीं जी पाया। अप्रैल 2017 में, जलवायु परिवर्तन की रिपोर्टिंग और शोध करने वाले वैज्ञानिकों और पत्रकारों के एक अंतरराष्ट्रीय संघ - क्लाइमेट सेंट्रल के वैज्ञानिकों ने 1880 के बाद से मासिक तापमान वृद्धि को दर्शाते हुए एक आश्चर्यजनक चार्ट जारी किया।

शोध में कहा गया: ‘628 महीनों में एक भी महीना ठंडा नहीं रहा है।’ पिछले पचास सालों में धरती पर मानव-प्रेरित परिवर्तनों ने एक सुरक्षित और उपयुक्त प्राकृतिक दुनिया को बाधित कर दिया है, जो बारह हजार सालों से ज्यादा समय  से अस्तित्व में थी और जिसने मनुष्यों की समृद्ध होने में मदद की।

स्टॉकहोम - 2022
पचास साल उसी शहर में, जून में एक व्यापक रूप से बदली हुई धरती के साथ दुनिया एक और पर्यावरण सम्मेलन की गवाह बनने जा रही है।

 

दो और तीन जून को दुनिया के नेता केवल इस पर चर्चा नहीं करेंगे कि बीते पचास साल कैसे थे बल्कि वे यह भी विचार करेंगे कि अगले पचास सालों में कैसे  आपातकालीन उपायों से धरती को बचाया जा सकेगा। इसे उपयुक्त शीर्षक भी दिया गया है - ‘स्टॉकहोम प्लस 50, सभी की समृद्धि के लिए एक स्वस्थ ग्रह - हमारी जिम्मेदारी, हमारा अवसर’।

यदि स्टॉकहोम सम्मेलन स्वेच्छा से सभी को कुछ समय दे सकता है, तो इस बार हमारे पास कोई समय-सीमा नहीं है, क्योंकि वह पहले ही खत्म हो चुकी है।

‘पर्यावरणीय युग’ की शुरुआत के बाद से ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते नियंत्रित हुए हों। ‘स्टॉकहोम प्लस 50, से पहले पुराने तथ्यों को याद दिलाने के लिए बांटे गए आंकड़ों के मुताबिक, 1972 से अब तक व्यापार दस गुना बढ़ गया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में पांच गुने की वृद्धि हो चुकी है और दुनिया की आबादी दोगुना बढ़ चुकी है।

स्टॉकहोम प्लस 50 में चर्चा किए जाने वाले दस्तावेज की एक अग्रिम मसौदा प्रति के मुताबिक, ‘ पिछले 50 सालों में हुआ मानव विकास प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग, खाद्य उत्पादन, ऊर्जा उत्पादन और खपत में तीन गुना वृद्धि से प्रेरित है।’

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी)’ समावेशी दौलत रिपोर्ट 2018 में कहा गया था: 1990 से 2014 के दौरान, उत्पादित पूंजी 3.8 फीसदी की औसत वार्षिक दर से बढ़ी, जबकि स्वास्थ्य और शिक्षा से प्रेरित मानव पूंजी में 2.1 फीसदी की वृद्धि हुई। इस बीच, प्राकृतिक पूंजी 0.7 फीसदी की वार्षिक दर से घटी।

पिछले साल जब स्टॉकहोम प्लस 50 की तैयारियां चल रही थीं, तो यूएनईपी की ‘ मेकिंग पीस विद नेचर ’ रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी: ‘इस तरह की असंगठित प्रतिक्रिया ने इस तथ्य में योगदान दिया है कि महामारी के कारण उत्सर्जन में अस्थायी गिरावट के बावजूद दुनिया 2100 तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों से कम से कम तीन डिग्री सेल्सियस गर्म होने की राह पर है।

यह पेरिस समझौते में 1.5 डिग्री सेल्सियस की चेतावनी से दोगुना है, और इसके लिए 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को 45 फीसदी कम करना होगा।’

चार मई, 2020 को पीएनएएस (प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेस ऑफ द युनाइटेड स्टेट्स अफ अमेरिका) में प्रकाशित अगले 50 सालों के एक मानसिक-चित्रण में अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिस्थितियों में बदलाव के चलते एक से तीन अरब ऐसे लोग हाशिये पर पहुंच जाएंगे, , जिन्होंने पिछले 6,000 सालों में मानवता के लिए बेहतर काम किया है।

इस अध्ययन में कहा गया है कि मनुष्य औसत वार्षिक तापमान के् 11 डिग्री सेल्सियस और 15 डिग्री सेल्सियस की विशेषता वाले ‘जलवायु आवरण’ में रहते हैं । इस तापमान के स्थान की भौगोलिक स्थिति आने वाले 50 सालों में उस स्तर से और ज्यादा स्थानांतरित होने का अनुमान है, जहां से यह वर्तमान से छह हजार साल पहले स्थानांतरित हो चुकी है।’

अध्ययन के सह-लेखक टिम लेंटन ने रिपोर्ट के प्रकाशित होने पर कहा था, ‘ यह कई लोगों को अविश्वसनीय लगता है। उत्तरी अमेरिका और यूरोप के कई क्षेत्रों में जहां अभी आरामदायक तापमान होता है, वे उत्तरी अफ्रीका की तरह गर्म हो जाएंगे। टिम चेतावनी देते हैं, ‘जहां हम जा रहे हैं वह एक ऐसी जगह है जहां हम नहीं जाना चाहते हैं।’
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क्या गरीबी नहीं है, और हमें इससे बड़े प्रदूषकों की जरूरत है ?
इंदिरा गांधी की स्टॉकहोम सम्मेलन में मौजूदगी असाधारण थी क्योंकि वह इस कार्यक्रम में शामिल होने वाली अकेली प्रधानमंत्री थीं। ‘गरीबी को सबसे बड़ा प्रदूषक’ बताने वाले संदेश के चलते उनका भाषण आज भी याद किया जाता है। यह एक ऐसा सवाल था जिसे उन्होंने किसी अन्य संदर्भ में उठाया था। उनके भाषण के मुख्य अंश:

 

एक तरफ तो अमीर लगातार हमारी गरीबी पर बात करते हैं, दूसरी ओर वे हमें अपने तरीकों से चेताते रहते हैं। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की हमारी कोई इच्छा नहीं है लेकिन फिर भी हम एक पल के लिए यह नहीं भूल सकते कि बड़ी तादाद में हमारे लोग गरीब हैं। क्या गरीबी नहीं है, और हमें इससे भी बड़े प्रदूषकों की जरूरत है ?

 

उदाहरण के लिए, जब तक हम जंगलों में रहने वाले हमारे आदिवासी लोगों को रोजगार देने और कुछ खरीद पाने की स्थिति में नहीं ला पाते, तब तक हम उनसे, उनके खाने और आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर न रहने के लिए नहीं कह सकते। जब तक वे खुद भूखे हैं, तब तक हम उनसे जानवरों को बचाने का आग्रह कैसे कर सकते हैं ?

 

जो लोग गांवों और झुग्गियों में रहते हैं, उनसे हम समुदों, नदियों ओर हवा को बचाने के लिए कैसे कह सकते हैं जबकि इन प्राकृतिक स्रोतों के करीब रहने वालों की अपनी जिंदगी बदतर है। गरीबी की स्थितियों में सुधार के बिना रहते पर्यावरण बेहतर नहीं हो सकता और विज्ञान और तकनीकी के बगैर गरीबी दूर नहीं की जा सकती है। इंदिरा जी का पूरा भाषण पढ़ने के लिए क्लिक करें

स्टॉकहोम में हुए मानव पर्यावरण सम्मेलन में कितने सहभागिता की थी?

स्टॉकहोम घोषणा में 26 सिद्धांत शामिल थे जो विकसित और विकासशील देशों के बीच संवाद की शुरुआत को चिह्नित करते हैं। इसने "विकास, गरीबी और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध" का निर्माण किया।

स्टॉकहोल्म सम्मेलन कहाँ हुआ था?

अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण चेतना एवं पर्यावरण आंदोलन के प्रारंभिक सम्मेलन के रूप में 1972 में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में दुनिया के सभी देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था

स्टॉकहोम कन्वेंशन कितने देशों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया?

सम्मेलन में भाग लेने वाले 122 देशों में 70 गरीब और विकासशील देश थे। जब उन्होंने 16 जून को स्टॉकहोम-घोषणापत्र को स्वीकार किया तो वे अनिवार्य रूप से 26 सिद्धांतों और एक बहुपक्षीय पर्यावरण व्यवस्था में स्थापित एक कार्ययोजना के लिए प्रतिबद्ध हो गए।

स्टॉकहोम सम्मेलन कब हुआ था?

स्वीडन ने पहली दफा साल 1968 में यूएन के समक्ष पर्यावरण खतरे, वैश्विक जलवायु संकट और उससे निपटने जैसे विषयों को लेकर स्टॉकहोम कांफ्रेंस शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। इसे मंजूर किया गया और चार साल बाद 1972 में दुनिया में नए तरह के विषय पर पहले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आगाज हुआ