सूतक में पूजा करनी चाहिए कि नहीं - sootak mein pooja karanee chaahie ki nahin

सूतक में पूजा करनी चाहिए कि नहीं - sootak mein pooja karanee chaahie ki nahin

पुरातन काल से मनुष्य पूजा पाठ करता चला आ रहा है। पूजा-आराधना करना हम नश्वर मनुष्यों के लिए उस अदृश्य सर्वशक्तिमान ईश्वर की शक्ति से जुड़ने का एक वैज्ञानिक प्रभावी तरीका है और हम मनुष्यों के सुखी एवं समृद्ध जीवन के लिए आवश्यक माना जाता है, परन्तु पूजा-अर्चना करने के कुछ नियम हैं जिन्हें ध्यान में रखने पर हमें हमारी पूजा का अधिक शुभ फल मिलता है और मन अच्छा रहता है।

हमारे शास्त्रों में वर्णित कुछ ऐसे कालों का उल्लेख है जब मनुष्यों के लिए पूजा करना वर्जित है। आइए जानते हैं कुछ ऐसी बातों के बारे में:

दोपहर 12 से 4 बजे: ऐसा माना जाता है कि दोपहर 12 – 4 बजे के बीच पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि उस समय पर भगवान विश्राम कर रहे होते हैं, इसीलिए सामान्य तौर पर दोपहर में मंदिरों के पट बंद रखे जाते हैं। वैसे भी आम तौर पर ऐसा देखा गया है कि दोपहर में मन एकाग्र नहीं रहता तो पूजन का भी पूरा फल नहीं मिलता।

रात 12 से 1 बजे के बीच: इसी प्रकार यह माना जाता है कि रात 12 – 1 बजे के बीच हनुमान जी की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसी मान्यता है कि उस समय पर हनुमान जी लंका में होते हैं।

सूतक का समय: सूतक के विषय में यह माना जाता है कि यह एक अशुभ काल होता है। इसलिए इस समय ना पूजा की जाती है और ना ही देव दर्शन किये जाते हैं। धार्मिक नियमों के अनुसार सूर्य ग्रहण के 12 घंटे पूर्व ही सूतक लग जाता है, इस कारण मंदिरों के पट भी बंद कर दिए जाते हैं।

ग्रहण के मोक्ष काल यानी ग्रहण की समाप्ति के बाद स्नान आदि कर के पूजन स्थल को पवित्र कर के बाद ही पूजा-पाठ का कार्य आरंभ करें, परंतु ग्रहण काल के शुरू होने से समाप्त होने तक आप मन्त्र जाप, मानसिक उपासना, चालीसा पाठ या मानसिक जप कर सकते हैं और ग्रहण काल में ऐसा करना अति उत्तम माना गया है।

जन्म और मृत्यु से सम्बंधित अन्य प्रकार के सूतक: भारत के अधिकतर राज्यों में संतान के जन्म के पश्चात पूजा कार्य वर्जित होता है, ये भी सूतक का एक प्रकार होता है जिसमें वर्जित काल 10 दिनों तक माना जाता है। उसी तरह परिवार के सदस्य की मृत्यु के बाद भी सूतक लग जाता है जिसमें वर्जित काल 13 दिनों तक होता है, इसको पातक कहा जाता है। गरुण पुराण के अनुसार पातक लगने के 13वें दिन क्रिया कर के ब्राह्मण भोज के बाद ही पूजा कार्य शुरू करना चाहिए।

स्त्रियों के लिए रजस्वला यानी मासिक धर्म की अवस्था में: यदि हम अपने शरीर पर गौर करें तो पायेंगे की किसी भी तरह का पदार्थ जब शरीर से निकलता है तो  वो दूषित माना जाता है जैसे मल त्याग करना, उल्टी करना इत्यादि। उसी आधार पर मासिक धर्म के कुछ दिन जब स्त्रियों में यह होता है, तो उन्हें दूषित माना जाता है और पूजा-पाठ जैसे शुभ कार्य उनके लिए वर्जित बताये गए हैं।

हमने आपको कारण सहित बताया है कि किन मौकों पर हमारे शास्त्रों में पूजा-पाठ, व्रत इत्यादि शुभ कार्य वर्जित बताये गए हैं। आशा है इस उपयोगी जानकारी से आप सही समय पर पूजा अर्चना कर के शुभ लाभ प्राप्त करेंगे।

हिन्दू धर्म में सूतक और पातक नाम से दो परंपराएं प्रचलित हैं। किसी के भी घर-परिवार में कोई शांत हो जाते हैं या स्वर्ग चला जाता है तो उस परिवार या घर में सूतक लग जाता है। मृतक के जितने भी खून के रिश्ते के बंधु बंधव होते हैं उनक सभी के घरों में सूतक माना जाता है। क्या होता है या सूतक और कितने समय तक का होता है जानिए इस संबंध में संक्षिप्त जानकारी।


क्या होता है सूतक और पातक : सूतक का संबंध जन्म-मरण के कारण हुई अशुद्धि से है। जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया के दौरान जो हिंसा होती है, उसमें लगने वाला दोष या पाप प्रायश्‍चित के रूप में पातक माना जाता है। इस तरह मरण से फैली अशुद्धि से सूतक और दाह संस्कार से हुई हिंसा के दोष या पाप से प्रायश्‍चित स्वरूप पातक माना जाता है।

जिस तरह घर में बच्चे के जन्म के बाद सूतक लगता है उसी तरह गरुड़ पुराण के अनुसार परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर लगने वाले सूतक को 'पातक' कहते हैं। सूतक और पातक की परीभाषा इससे अलग भी है। जैसे व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात गोत्रज तथा परिजनों को विशिष्ट कालावधि तक अशुचित्व और अशुद्धि प्राप्त होता है, उसे सूतक कहते हैं। अशुचित्व अर्थात अमंगल और शुद्ध का विपरित अशुद्धि होता है।

कब-कब लगता है सूतक : जन्म काल, ग्रहण काल, स्त्री के मासिक धर्म का काल और मरण काल में सूतक और पातक का विचार किया जाता है। सभी के काल में सूतक के दिन और समय का निर्धारण अलग-अलग होता है।


सूतक-पातक का समय :

1. मृत व्यक्ति के परिजनों को 10 दिन तथा अंत्यक्रिया करने वाले को 12 से 13 दिन (सपिंडीकरण तक) सूतक पालन कड़ाई से करना होता है। मूलत: यह सूतक काल सवा माह तक चलता है। सवा माह तक कोई किसी के घर नहीं जाता है। सवा माह अर्थात 37 से 40 दिन। 40 दिन में नक्षत्र का एक काल पूर्ण हो जाता है। घर में कोई सूतक (बच्चा जन्म हो) या पातक (कोई मर जाय) हो जाय 40 तक का सूतक या पातक लग जाता है।

2. ऐसा भी कहा जाता है कि सात पीढ़ियों पश्चात 3 दिन का सूतक माना जाता है, लेकिन यह निर्धारित करना कठिन है। मृतक के अन्य परिजन (मामा, भतीजा, बुआ इत्यादि परिजन) कितने दिनों तक सूतक का पालन करें, यह संबंधों पर निर्भर है तथा उसकी जानकारी पंचांग व धर्मशास्त्रों में दी जाती है। लेकिन जिसका संबंध रक्त से है उसे उपर बताए नियमों अनुसार ही चलना होता है।

3. जन्म के बाद नवजात पीढ़ियों को हुई अशुचिता 3 पीढ़ी तक 10 दिन, 4 पीढ़ी तक 10 दिन, 5 पीढ़ी तक 6 दिन गिनी जाती है। एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती है। वहां पूरा 10 दिन तक का सूतक होता है। प्रसूति नवजात की मां को 45 दिन का सूतक रहता है। प्रसूति स्थान 1 माह अशुद्ध माना जाता है। इसीलिए कई लोग अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं। पुत्री का पीहर में बच्चे का जन्म में 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है।

4. मरण के अवसर पर दाह संस्कार में इत्यादि में हिंसा होती है। इसमें लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित के स्वरूप पातक माना जाता है। जिस दिन दाह संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है। न कि मृत्यु के दिन से। अगर किसी घर का सदस्य बाहर है तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है उस दिन तक उसके पातक लगता ही है। अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान मात्र से शुद्धि हो जाती है।

5. अगर परिवार की किसी स्त्री का गर्भपात हुआ है तो जितने माह का हुआ है उतने दिन का ही पातक माना जाएगा। घर का कोई सदस्य मुनि, साध्वी है उसे जन्म मरण का सूतक नहीं लगता है। किंतु उसका ही मरण हो जाने पर उसका एक दिन का पातक लगता है।

6. किसी की शवयात्रा में जाने को एक दिन, मुर्दा छूने को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि मानी जाती है। घर में कोई आत्मघात करले तो 6 माह का पातक माना जाता है। छह माह तक वहां भोजन और जल ग्रहण नहीं किया जा सकता। वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर में चढ़ाया जाता है।

7. इसी तरह घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर 1 दिन का सूतक परंतु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता। बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः 15 दिन, 10 दिन और 8 दिन तक अशुद्ध रहता है।

सूतक-पातक के नियम :

1. सूतक और पातक में अन्य व्यक्तियों को स्पर्श न करें।

2. कोई भी धर्मकृत्य अथवा मांगलिक कार्य न करें तथा सामाजिक कार्य में भी सहभागी न हों।

3. अन्यों की पंगत में भोजन न करें।

4. किसी के घर न जाएं और ना ही किसी भी प्रकार का भ्रमण करें। घर में ही रहकर नियमों का पालन करें।

5. किसी का जन्म हुआ है तो शुद्धि का ध्यान रखते हुए भगवान का भजन करें और यदि कोई मर गया है तो गरुढ़ पुराण सुनकर समय गुजारें।

6. सूतक या पातक काल समाप्त होने पर स्नान तथा पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का मिश्रण) सेवन कर शुद्ध हो जाएं।

7. सूतक पातक की अवधि में देव शास्त्र गुरु, पूजन प्राक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती है।

8. जिस व्यक्ति या परिवार के घर में सूतक-पातक रहता है, उस व्यक्ति और परिवार के सभी सदस्यों को कोई छूता भी नहीं है। वहां का अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करता है। वह परिवार भी मंदिर सहित किसी के घर नहीं जाता है और सूतक-पातक के नियमों का पालन करते हुए उतने दिनों तक अपने घर में ही रहता है। परिवार के सदस्यों को सार्वजनिक स्थलों से दूर रहने को बोला जाता है।

सूतक में कितने दिन पूजा नहीं करनी चाहिए?

जन्म और मृत्यु से सम्बंधित अन्य प्रकार के सूतक: भारत के अधिकतर राज्यों में संतान के जन्म के पश्चात पूजा कार्य वर्जित होता है, ये भी सूतक का एक प्रकार होता है जिसमें वर्जित काल 10 दिनों तक माना जाता है।

क्या मृत्यु सूतक में पूजा करनी चाहिए?

सूतक काल से ही पूजापाठ के सभी कार्य बंद कर दिए जाते हैं और फिर ग्रहण की समाप्‍ति के बाद मंदिर का शुद्धिकरण करके पूजा आरंभ की जाती है। सूतक लगने के बाद कोई भी शुभ कार्य न करें। जिनके सूतक प्रभावी होता है, उनको पूजा नहीं करनी चाहिए

क्या सूतक में मंदिर जा सकते हैं?

सूतक-पातक की अवधि में "देव-शास्त्र-गुरु" का पूजन, प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं । इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है । यहां तक की दान पेटी या गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया है लेकिन ये कहीं नहीं कहा कि सूतक-पातक में मंदिरजी जाना वर्जित है या मना है ।

मृत्यु सूतक में लड्डू गोपाल की सेवा कैसे करें?

सूतक में घर के मंदिर में पूजा पाठ करना और भगवान की मूर्ति को छूना या घर के मंदिर में दीप जलाना सब कुछ निषेध है, परंतु लड्डू गोपाल घर पर है तो उन की सेवा तो नियमित होनी ही चाहिए। ऐसे में कहा जाता है कि यदि आपकी कोई विवाहित बहन या पुत्री है तो वह अपने घर ले जाकर कान्हा जी की सेवा और पूजा-अर्चना कर सकती हैं।