सर्वप्रथम सामाजिक सर्वेक्षण का इतिहासकार कौन है - sarvapratham saamaajik sarvekshan ka itihaasakaar kaun hai

  • सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति
    • सबसे पहले सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का अर्थ
      • सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का शाब्दिक अर्थ
    • सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की परिभाषा
      • फेयर चाइल्ड
      • मोजर
      • हैरीसन (HARRISON)
      • अम्ब्रास (ABRAMS)
      • बर्गेस (BURGESS)
      • सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की व्यख्या 
      • सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की व्यख्या 
    • सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की विशेषता 
    • सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की विशेषता 
      • समाजिक सर्वेक्षण पद्धति की कुछ सीमायें
    • निष्कर्ष

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति

“सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति” समाजशास्त्र के परिमाणात्मक पद्धतियों में से एक है। जैसा की मैंने अपने समाजशास्त्र के अध्ययन पद्धतियों नामक पोस्ट में  बताया था कि, समाजशास्त्र में वैज्ञानिकता लाने के लिए सभी या अमूर्त और मूर्त सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के लिए विध्यमान पद्धतियों को गुणात्मक और परिणात्मक पद्धतियों में विभाजित किया जाता है। 

और मैंने अपने आगमन और निगमन पद्धतिया और समाजिमिति,एवं व्यक्तिक अध्ययन पद्धतियों आदि पोस्टों के माधयम से गुणात्मक पद्धतियों का उल्लेख कर दिया है।

यदि आप मेरी इन पोस्टों को पड़ना चाहते है तो कृपया संबंधित पद्धतियों को CLIKE  करें। दोस्तों आज हम परिमाणात्मक पद्धतियों के तहत सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की  विवेचना कर रहे है। जो की इस प्रकार से है। 

1-जिसमे सबसे पहले सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का अर्थ  

2-इस पद्धति की परिभाषा। 

3-सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की विशेषता 

4-इस पद्धति की सीमाएं या आलोचना 

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति को  हम इस क्रम में  पढ़ेंगे। 

सबसे पहले सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का अर्थ

किसी भी सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों मानकों (NORMS) तथा सामाजिक सरंचनाओं का जो किसी सामाजिक प्राणी के जीवन में परिवर्तन करती है, तथा उस पर कई तरह के प्रतिबंधों को लगाते है। 

के संबंध में सत्य सुचना या ज्ञान उपलब्ध करने के लिए  SOCIAL SURVEY METHODS  का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है। माना जाता है कि, सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का सबसे पहले उपयोग जनसंख्या और सम्पति का अध्ययन करने के लिए प्रसिद्ध इतिहासकार HERODOTUS (हेरोडोटस) ने मिश्र नामक  देश में आज से लगभग 300 साल पहले किया था। 

इसके पश्चात् धीरे-धीरे अन्य विद्वानों  ने इस  पद्धति को व्यापक स्तर पर उपयोग किया जिनमे से  LI-PLAY (लीप्ले) का नाम सबसे पहले लिया जाता है।  LI-PLAY (लीप्ले) के अलावा SOCIAL SURVEY METHODS का प्रयोग करने वालों में क्रमशः जॉन हावर्ड,वार्नर,चार्ल्स बूथ,और आर्थर वाऊले,आदि के नामों का भी उल्लेख किया जाता है। 

जिन्होंने सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का उपयोग कई अलग-अलग समुदायों,और समूहों,तथा जेलों में व्याप्त सामाजिक समस्याओं के कारणों एवं एवं समाधान के लिए प्रयोग किया था।  

SOCIAL SURVEY METHODS के उपयोगिता को मध्य नज़र रखते हुए भारत में भी इसका प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। भारत में अक्सर जनगणना करने में एवं पंच वर्षीय विकास योजनाओं के निर्माण में साथ ही साक्षरता एवं स्वास्थ्य जैसे जन कल्याणकारी कार्यों के लिए किया जाने लगा है। 

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का शाब्दिक अर्थ

सर्वेक्षण अंग्रेजी के SURVEY नामक शब्द का हिंदी भाषा में परवर्तित रूप है। जो की दो शब्दों के मिलने से बना है। उनमे से पहला है SUR (SOR) जिसका अर्थ होता है,”ऊपर” जबकि दूसरा शब्द जिसे VEY (VEEIR) कहा जाता है। 

इसका अर्थ होता है देखना अर्थात हिंदी भाषा में इस शब्द का अर्थ होता है “ऊपर से देखना या अवलोकन करना”  दूसरे शब्दों में किसी भी सामजिक घटना या सामजिक तथ्यों की सत्यता की जाँच हेतु ऊपरी तोर पर निरिक्षण करना। 

एवं तथ्यों को व्यवस्तिथ रूप में रखना,कहा जा सकता  है की “शोधकर्ता के द्वारा किसी भी सामाजिक घटना या तथ्यों के वैज्ञानिक निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए संबंधित क्षेत्र में बारीकी से अध्ययन कार्य करना होता है ,इसी प्रक्रिया को सर्वेक्षण कहा जाता है।”

पढ़ें-समाजशास्त्र की अध्यन पद्धतियां ।

यह भी पढ़ें-वैज्ञानिक पद्धति 

पढ़ें-तुलनात्मक पद्धति 

पढ़ें-ऐतिहासिक पद्धति 

यह भी पढ़ें-ऐतिहासिक पद्धति 

पढ़ें-आगमन और निगमन पद्धति।

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की परिभाषा

SOCIAL SURVEY METHODS की परिभाषा कई विद्वानों और समाजशास्त्रियों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित किया है। जिनमे से कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार है। 

1-फेयर चाइल्ड,

2-मोजर,

 3-हैरीसन (HARRISON),

4-अम्ब्रास (ABRAMS),

5-बर्गेस (BURGESS)

फेयर चाइल्ड

 फेयर चाइल्ड के शब्दों में 

“ किसी समुदाय के सभी पक्षों या किसी मुख्य पक्ष को यथा स्वस्थ्य,शिक्षा,मनोरंजन आदि के संबन्ध में व्यवस्तिथ ढंग से तथ्यों को जुटाना एवं ANALYSES को ही सर्वेक्षेण कहते है।“

मोजर

मोजर के द्वारा SOCIAL SURVEY METHODS की परिभाषा कुछ इस तरह से दी गयी है। 

   “सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति के द्वारा किसी क्षेत्र विषय का चयन करना तथा अपने शोध  विषय से सीधे संबन्ध रखने वाले तथ्यों  का संकलन करने की प्रभावी विधि है,जिसकी सहायता से संबंधित समस्या को उजागर किया जाता है ,एवं आवशयक तथ्यों की और संकेत किया जाता है।“ 

हैरीसन (HARRISON)

हैरीसन (HARRISON) ने इस पद्धति की परिभाषा देते हुए कहा कि,

“सामाजिक सैवेक्षण एक (सहकारी प्रक्रिया) COOPERATIVE PROCESS है जिसके अंतर्गत किसी स्थान में उपलब्ध दशाओं एवं PROBLEMS (समस्यांओं) के खोज तथा ANALYZE (विश्लेषण)  करने के लिए वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग किया जाता है।”

अम्ब्रास (ABRAMS)

अम्ब्रास (ABRAMS)के शब्दों में 

“यह एक ऐसी पद्धति है,जिसके माध्यम से किसी एक समुदाय की रचना और उस समुदाय की क्रियाओं के सामाजिक पक्ष के शोध  में प्रमाणित तथ्यों का संकलन किया जाता है।“

बर्गेस (BURGESS)

बर्गेस (BURGESS) ने SOCIAL SURVEY METHODS की परिभाषा इस प्रकार से दी है। 

 “किसी COMMUNITY (समुदाय) विशेष का सर्वेक्षण सामाजिक विकास का CONSTRUCTIVE (रचनात्मक) कार्यक्रम प्रस्तुत करने हेतु उसकी दशाओं तथा आवश्यकताओं का SCIENTIFIC (वैज्ञानिक) STUDY (अध्ययन) है।“ 

उपर्युक्त विद्वानों के द्वारा दी गयी परिभषाओं को  बारीकी से देखा जाय तो सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति के समबन्ध में ये बात निकल कर आती है कि,सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति वह पद्धति है जिससे किसी भौगोलिक क्षेत्र विशेष में सामाजिक तथ्यों का निरिक्षण एवं खोज किया जाता है,तथा विषय से संबन्धित जानकारी संकलित की जाती है। इस प्रक्रिया से उस समुदाय की जरूरतों का भी पता लगाया जा सकता है। 

 कुल मिलाकर देखा जाये तो उपर्युक्त परिभाषाओं से तीन बातें निकल कर आती है। जो इस प्रकार है।  

1-सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति में किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों के सामाजिक जीवन के संबन्ध में जानकारी मिल जाती है। 

2-इस पद्धति के द्वारा किसी सामाजिक घटना एवं उससे जुडी समस्यों के संबन्ध में जानकारी मिल जाती है। 

3-सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति के द्वारा रचनात्मक कार्यों की और ध्यान दिया जाता है। 

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की व्यख्या 

दोस्तों सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की व्याख्या मोर्स नामक विद्वान ने इस प्रकार से की है। 

मोर्स ने कहा की किसी भी सर्वेक्षण की शुरुआत समस्या के SELECTION से होता है। अर्थात सबसे पहले किसी भी समस्या को चिन्हित किया जाता है। उसके पश्चात् समस्या किस TYPE की है, इस पर विचार किया जाता है। 

दूसरे शब्दों में कह सकते है की यह जानने का प्रयास किया जाता है की समस्या सामान्य  है या विशेष है। मोर्स ने कहा की जब यह पता चल जाये की समस्या की प्रकृति सामान्य है या विशेष है ,तब शोधकर्ता के द्वारा समस्या से संबन्धित अपने लक्ष्यों को निर्धारित किया जाता है। जिन पर सर्वेक्षण किया जाना है,उसके बाद भौगोलिक क्षेत्र का चयन किया जाता है। 

भौगोलिक क्षेत्र का निर्धारण हो जाने के पश्चात यह देखा जाना बहुत जरुरी है कि,उस भौगोलिक क्षेत्र की दूरी कितनी है,वहां की जनसंख्या कितनी है। उस क्षेत्र विशेष में उपलब्ध संसाधन क्या-क्या हो सकते है।

जब यह सारा निर्धारित हो जाये तब उपकल्पनाओं (HYPOTHESIS) का निर्माण किया जाता है। उपकल्पनाओं (HYPOTHESIS) के बन जाने के पश्चात् सर्वेक्षण इकाई का निर्माण किया जाता है। जिसके संबन्ध में सर्वेक्षण किया जाना होता है। 

इस तथ्यों की जानकारी के लिए पद्धतियों का चयन किया जाता है। अध्ययनकर्ता या तो संगणना प्रणाली जिसको CENSUS METHOD भी कहा जाता है। या फिर निर्दशन प्रणाली जिसे SAMPLING METHOD भी कहा जाता है। 

को उपयोग में लाया जाता है, मार्स ने कहा की  तुरन्त बाद सुचना उपलब्ध हेतु प्रविधियों अथवा उपकरणों को चयन किया जाता है। तब जाके तथ्यों को संकलित किये जाने का कार्य किया जाता है। मोर्स ने आगे कहा कि तथ्यों को एकत्रित करने के लिए बहुत अधिक आवशयक है कि,इस कार्य हेतु एक उपयुक्त प्रविधियों का चयन सावधानीपूर्वक किया जाये। 

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की व्यख्या 

यदि तथ्यों के संकलन के लिए प्रश्नावली या अनुसूची विधि का उपयोग किया जाना है, तो प्रश्न ऐसे होने चाहिए, जो उत्तरदाताओं को आसानी से समझ आ सके। मोर्स ने कहा कि,इसके पश्चात प्राप्त सूचनाओं को व्यवस्तिथ रूप से संकलित किया जाता है,या सूचनाओं का वर्गीकरण किया जाता है। 

इस दौरान मिथ्य सूचना को पृथक कर दिया जाता है,साथ ही सूचनाओं का तुलनातमक अध्ययन भी किया जाता है। इससे निष्कर्ष प्राप्त होते है। और इन्ही निष्कर्षों से सार्वभौमिक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जाता है। 

जिनके माध्यम से REPORT तैयार की जाती है,इस दौरान सारणियों और मानचित्रों आदि को भी उपयोग में लाया जाता है। ताकि REPORT को सरलता से समझा जा सके। 

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सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की विशेषता 

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की विशेषता इस प्रकार से है। 

एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र :- सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति के द्वारा एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का ही सर्वे किया जा  सकता है। और यह क्षेत्र एक मोहला या कोई नगर या गांव भी हो सकता है। इन्ही स्थानों के आधार पर सामान्यतः सर्वेक्षण तैयार किया जाता है। 

जीवन दिशाओं से संबन्धित :- सामाजिक सर्वेक्षण अक्सर जीवन दशाओं से संबन्धित होते है। जिसके तहत किसी समूह के सामान्य जीवन दशाओं और सामूहिक व्यहवार का अध्ययन  किया जाता है। 

विघटनकारी तत्वों का अध्ययन :- इस पद्धति के द्वारा विघटनकारी तत्वों या घटनाओं,समस्याओं का मुख्य रूप से अध्ययन किया जाता है। जिसमे अपराध,निर्धनता,बेरोजगारी,अशिक्षा,आदि विषय आ जाते है। जिसमे उक्त समस्याओं का निस्तारण एवं SOCIAL REFORM (सामाजिक सुधार) में सहयोग प्राप्त किया जा सके। 

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति एक सहकारी प्रक्रिया है :- सहकारी प्रक्रिया के तहत अपेक्षाकृत सर्वेक्षण कर्ताओं की एक बड़ी टीम के द्वारा किसी समस्या को लेकर सामाजिक सर्वेक्षण का आयोजन करवाया जाता है। जिसमे कई TYPE (तरह) के शोध INSTRUMENTS (यंत्रों) का प्रयोग किया जाता है।.

सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति की विशेषता 

वैज्ञानिक प्रक्रिया :- इस पद्धति के द्वारा किसी समस्या को लेकर वैज्ञानिक पद्धतियों यथा संकलन,वर्गीकरण,विश्लेषण,सामान्यीकरण,तथा उपकल्पनाओं के स्वरूपों का उपयोग किया जाता है। ताकि प्राप्त निष्कर्षों को वैज्ञानिकता प्रदान की जा सके। 

परिमाणात्मक एवं संख्यात्मक आंकड़ों का ही संकलन :- इस पद्धति के द्वारा किसी सामाजिक घटनाओं या तथ्यों  के लिए परिमाणात्मक या संख्यात्मक आंकड़ों का उपयोग ही किया जाता है।

पक्षपात रहित सर्वे :- सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति के द्वारा किसी भी सामाजिक घटना के अध्ययन के लिए अध्ययनकर्ता स्वम् सर्वेक्षण करता है। जिससे इस पद्धति में पक्षपात की संभावना कम होती है।

घटनाओं का यथार्त चित्रण :- इस पद्धति के द्वारा सामाजिक घटनाओं का यथार्त स्वरूप पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। क्यूंकि इस पद्धति का संबन्ध वर्तमान से होता है। इसलिए आदर्शों का चयन नहीं किया जाता है।  

हालाँकि सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति में बहुत सारी खूबियां है तथापि इसको परिपूर्ण नहीं कहा जा सकता है। कुछ खामिया रह जाती है। जिनके बारे में इस प्रकार से उल्लेख किया है। 

समाजिक सर्वेक्षण पद्धति की कुछ सीमायें

 1-भावनात्मक और अमूर्त घटनाओं का अध्ययन :- सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति के द्वारा केवल मूर्त घटनाओं का ही अध्ययन किया जा सकता है। अमूर्त और भावनात्मक  घटनाओं का अध्ययन नहीं किया  जाता है। 

2-व्यावहारिक सिद्धांतों का प्रतिपादन नहीं किया जाता है :-सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति के द्वारा यध्यपि सामाजिक घटनाओं से संबंधित तथ्यों का संकलन किया जाता है तथापि इनसे प्राप्त निष्कर्षों से व्यावहारिक सिद्धांतों का प्रतिपादन नहीं किया जा सकता है। क्यूंकि ये व्यावहारिक नहीं होते। 

3-सिमित क्षेत्र का अध्ययन :-  पद्धति के द्वारा केवल छोटे-छोटे स्थानों का ही अध्ययन किया जा सकता है। परिणामस्वरूप बड़े क्षेत्र में अध्ययन हेतु इस पद्धति का उपयोग करना उपयुक्त नहीं होगा। 

4-पक्षपात की संभावना :-इस पद्धति के द्वारा सुचना संकलित करते समय अनुसंधनकर्ता के द्वारा सावधानियां न वरतने के कारण व्यक्तिगत पक्षपात की सम्भावना बनी रहती है। 

निष्कर्ष

 हालाँकि सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति में अवश्य कुछ खामियां नज़र आती है, वावजूद इसके इस पद्धति की लोकप्रियता बढ़ रही है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि, इसके द्वारा व्यावहारिक ज्ञान उपलब्ध होने की सम्भावना अधिक प्रबल होती है। इसके द्वारा किसी समुदाय या समूह में हो रहे समयानुसार बदलाव को भी अवलोकित किया जा सकता है। इसीलिए  सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में आज भी बहुत मायने रखती है।   धन्यवाद 

दोस्तों हमारी इस पोस्ट को अधिक से अधिक SHERE करें ताकि हमें और अच्छा करने की प्रेरणा मिलती रहे।

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सामाजिक सर्वेक्षण का प्रथम इतिहासकार कौन है?

इन लोगों के जीवन का क्रम ब्रिटिश भारत के इतिहास में अलग-अलग अध्यायों का विषय बन जाता था।

सर्वेक्षण पद्धति के जनक कौन हैं?

सर्वेक्षण (Surveying) उस कलात्मक विज्ञान को कहते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं का समुचित माप लेकर, किसी पैमाने पर आलेखन (plotting) करके, उनकी सापेक्ष क्षैतिज और ऊर्ध्व दूरियों का कागज या, दूसरे माध्यम पर सही-सही ज्ञान कराया जा सके। इस प्रकार का अंकित माध्यम 'लेखाचित्र' या मानचित्र कहलाता है।

सामाजिक सर्वेक्षण के प्रकार क्या है?

१)बंदखारो के निवासियो के जीवन स्तर के विषय मे जानकारी एकत्र करना। २) उनके व्यवसाय, घरेलु सामान और शिक्षा के स्तर की जानकारी प्राप्त करना। सर्वेक्षण के क्षेत्र का निर्धारण क्षेत्रिय शिक्षा संस्थान बारां द्वारा किया गया।

सर्वेक्षण पृष्ठपोषण पद्धति के जनक कौन हैं?

पृष्‍ठपोषण एक ऐसी प्रकिया है जिसमे छात्रों को उनकी कमियों गलतीयों तथा त्रुटियो से अवगत कराया जाता है । ताकि छात्र उन्‍‍हे सुधार सके । साथ ही इस प्रकिया मे छात्रों की अच्‍छी विशेषतायें, अच्‍छा कार्य उनके गुणो तथा उनकी अच्‍छाईयों का भी विवरण दिया जाता है । ताकि वे आगे भी अपने व्‍यवहारों मे प्रदर्शित कर सके ।