समता का अधिकार वैश्विक मानवाधिकार के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के अनुसार विश्व के सभी लोग विधि के समक्ष समान हैं अतः वे बिना किसी भेदभाव के विधि के समक्ष न्यायिक सुरक्षा पाने के हक़दार हैं।[1] Show
भारत में समता/समानता का अधिकार[संपादित करें]भारतीय संविधान के अनुसार, भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकारों के रूप में समता/समानता का अधिकार (अनु. १४ से १८ तक) प्राप्त है जो न्यायालय में वाद योग्य है।[2] ये अधिकार हैं-
अब केवल दो तरह कि उपाधियाँ मान्य हैं- अनु. १८(१) राज्य सेना द्वारा दी गयी उपाधि व विद्या द्वारा अर्जित उपाधि। इसके अतिरिक्त अन्य उपाधियाँ वर्जित हैं। वहीं, अनु. १८(२) द्वारा निर्देश है कि भारत का नागरिक विदेशी राज्य से कोइ उपाधि नहीं लेगा।[3] समानता के अधिकार का क्रियान्वयन[संपादित करें]माना जाता है कि समानता का अधिकार एक तथ्य नहीं विवरण है। विवरण से तात्पर्य उन परिस्थितियों की व्याख्या से है जहाँ समानता का बर्ताव अपेक्षित है। समानता और समरूपता में अंतर है। यदि कहा जाय कि सभी व्यक्ति समान है तो संभव है कि समरूपता का ख़तरा पैदा हो जाय। 'सभी व्यक्ति समान हैं' की अपेक्षा 'सभी व्यक्तियों से समान बर्ताव किया जाना चाहिेए', समानता के अधिकार के क्रियान्वयन का आधार वाक्य है।[4] प्रतिनिधित्व(आरक्षण)=[संपादित करें][प्रतिनिधित्व[आरक्षण]] की व्यवस्था, भेदभावपूर्ण समाज में समान बर्ताव के लिए ज़मीन तैयार करती है। समानता के परिप्रेक्ष्य में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दो महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया है- *अवसर की समानता और * प्रतिष्ठा की समानता।[3] अवसर और प्रतिष्ठा की समानता का अर्थ है कि समाज के सभी वर्गों की इन आदर्शों तक पहुँच सुनिश्चित की जाय। एक वर्ग विभाजित समाज में बिना वाद योग्य कानून और संरक्षण मूलक भेदभाव के समानता के अधिकार की प्राप्ति संभव नहीं है। संरक्षण मूलक भेदभाव के तहत आरक्षण एक सकारात्मक कार्यवाही है। आरक्षण के तहत किसी पिछड़े और वंचित समूह को (जैसे- स्त्री, दलित, अश्वेत आदि) को विशेष रियायतें दी जाती हैं ताकि अतीत में उनके साथ जो अन्याय हुआ है उसकी क्षतिपूर्ति की जा सके।[5] यह बात ध्यान देने योग्य है कि आरक्षण और संरक्षण मूलक भेदभाव समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद १६ (४) स्पष्ट करता है कि 'अवसर की समानता' के अधिकार को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है।[6] सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]Preface Archived 2003-12-05 at the Wayback Machine Constitution of India Archived 2012-07-12 at the Wayback Machine Right to Equality The Right to Equality समाप्त समानता के अधिकार से आप क्या समझते हैं?भारत के संविधान में समानता के अधिकारों का स्थान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में इस अधिकार का वर्णन किया गया है। विधि के समक्ष समता के अधिकार का यह भी अर्थ है, कि जन्म या विचार या संप्रदाय के आधार पर किसी भी व्यक्ति का कोई विशेषाधिकार नहीं होगा तथा देश का सामान्य कानून सभी वर्ग के लोगों पर समान रूप से लगाया जाएगा।
समानता से आप क्या समझते हैं?सामाजिक सन्दर्भों में समानता का अर्थ किसी समाज की उस स्थिति से है जिसमें उस समाज के सभी लोग समान (अलग-अलग नहीं) अधिकार या प्रतिष्ठा (status) रखते हैं।
समानता से आप क्या समझते हैं समानता के विभिन्न प्रकारों?समानता के प्रकार या रूप (samanta ke prakar). प्राकृतिक समानता प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान रूप से पैदा किया है, अतः सभी समान है। ... . नागरिक समानता ... . राजनीतिक समानता ... . आर्थिक समानता ... . कानूनी समानता ... . सामाजिक समानता ... . नैतिक समानता. समता और समानता से आप क्या समझते हैं?समता या समानता का आशय है कि प्रत्येक व्यक्ति को उतनी सुविधा या अवसर दिये जाये जिसका वह लाभ उठा सहे। समानता का अर्थ सबके लिये समान नीति से है सबको समान बनाने से नहीं है।
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