These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 रसखान (काव्य-खण्ड). कवि-परिचय प्रश्न 1. जीवन-परिचय—-रसखान दिल्ली के पठान सरदार थे। इनका पूरा नाम सैयद इब्राहीम रसखान था। इनके द्वारा रचित ‘प्रेम वाटिका’ ग्रन्थ से यह संकेत प्राप्त होता है कि ये दिल्ली के राजवंश में उत्पन्न हुए थे और इनका रचना-काल जहाँगीर का राज्य-काल था। इनका जन्म सन् 1558 ई० (सं० 1615 वि०) के लगभग दिल्ली में हुआ था। ‘हिन्दी-साहित्य का प्रथम इतिहास के अनुसार इनका जन्म सन् 1533 ई० में पिहानी, जिला हरदोई (उ०प्र०) में हुआ था। हरदोई में सैयदों की बस्ती भी है। डॉ० नगेन्द्र ने भी अपने ‘हिन्दी-साहित्य के इतिहास में इनका जन्म सन् 1533 ई० के आस-पास ही स्वीकार किया है। (UPBoardSolutions.com) ऐसा माना जाता है कि इन्होंने दिल्ली में कोई विप्लव होता देखा, जिससे व्यथित होकर ये गोवर्धन चले आये और यहाँ आकर श्रीनाथ की शरणागत हुए। इनकी रचनाओं से यह प्रमाणित होता है कि ये पहले रसिक-प्रेमी थे, बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट हुए और कृष्णभक्त बन गये। गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने पुष्टिमार्ग में इन्हें दीक्षा प्रदान की थी। इनका अधिकांश जीवन ब्रजभूमि में व्यतीत हुआ। यही कारण है कि ये कंचन धाम को भी वृन्दावन के करील-कुंजों पर न्योछावर करने और अपने अगले जन्मों में ब्रज में शरीर धारण करने की कामना करते थे। कृष्णभक्त कवि रसखान की मृत्यु सन् 1618 ई० (सं० 1675 वि०) के लगभग हुई। कृतियाँ (रचनाएँ)–रसखान की निम्नलिखित दो रचनाएँ प्रसिद्ध हैं— (1) सुजान रसखान-इसकी रचना कवित्त और सवैया छन्दों में की गयी है। यह भक्ति और प्रेम-विषयक मुक्तक काव्य है।
इसमें 139 भावपूर्ण छन्द हैं। साहित्य में स्थान-रसखान का स्थान भक्त-कवियों में विशेष महत्त्वपूर्ण है। इनके बारे में डॉ० विजयेन्द्र स्नातक ने लिखा है कि “इनकी भक्ति हृदय की मुक्त साधना है और इनका श्रृंगार वर्णन भावुक हृदय की उन्मुक्त अभिव्यक्ति है। इनके काव्य इनके स्वच्छन्द मन के (UPBoardSolutions.com) सहज उद्गार हैं। यही कारण है कि इन्हें स्वच्छन्द काव्य-धारा का प्रवर्तक भी कहा जाता है। इनके काव्य में भावनाओं की तीव्रता, गहनता और तन्मयता को देखकर भारतेन्दु जी ने कहा था-‘इन मुसलमान हरिजनन पैकोटिन हिन्दू वारिये।। पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या सवैये प्रश्न 1. [ विशेष—इस शीर्षक के शेष सभी पद्यों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। ] प्रसंग-इस पद्य में रसखान ने पुनर्जन्म में विश्वास व्यक्त किया है और अगले जन्म में श्रीकृष्ण की जन्म-भूमि (ब्रज) में जन्म लेने एवं उनके समीप ही रहने की कामना की है। व्याख्या-रसखान कवि कहते हैं कि हे भगवान्! मैं मृत्यु के बाद अगले जन्म में यदि मनुष्य के रूप में जन्म प्राप्त करू तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रजभूमि में गोकुल के ग्वालों के मध्य निवास करूं। यदि मैं पशु योनि में जन्म ग्रहण करू, जिसमें मेरा कोई वश (UPBoardSolutions.com) नहीं है, फिर भी मेरी इच्छा है कि मैं नन्द जी की गायों के बीच विचरण करता रहूँ। यदि मैं अगले जन्म में पत्थर ही बना तो भी मेरी इच्छा है कि मैं उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनें, जिसे आपने इन्द्र का घमण्ड चूर करने के लिए और जलमग्न होने से गोकुल ग्राम की रक्षा करने के लिए अपनी अँगुली पर छाते के समान उठा लिया था। यदि मुझे पक्षी योनि में भी जन्म लेना पड़ा तो भी मेरी इच्छा है कि मैं यमुना नदी के किनारे स्थित कदम्ब वृक्ष की शाखाओं पर ही निवास करू। काव्यगत सौन्दर्य-
प्रश्न 2. प्रसंग-इसे पद्य में कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति यशोदा के वात्सल्य भाव का चित्रण किया है। व्याख्या-एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी ! आज प्रात:काल के समय श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न हुई मैं नन्द जी के घर गयी थी। मेरी कामना है कि उनका पुत्र श्रीकृष्ण लाखों-करोड़ों युगों तक जीवित रहे। यशोदा के सुख के बारे में (UPBoardSolutions.com) कुछ कहते नहीं बनता है; अर्थात् उनको अवर्णनीय सुख की प्राप्ति हो रही है। वे अपने पुत्र का श्रृंगार कर रही थीं। वे श्रीकृष्ण के शरीर में तेल लगाकर आँखों में काजल लगा रही थीं। उन्होंने उनकी सुन्दर-सी भौंहें सँवारकर बुरी नजर से बचाने के लिए माथे पर टीका (डिठौना) लगा दिया था। वे उनके गले में सोने का हार डालकर और एकाग्रता से उनके रूप को निहारकर अपने जीवन को न्योछावर कर रही थीं और प्रेमावेश में बार-बार अपने पुत्र को पुचकार रही थीं। काव्यगत सौन्दर्य-
प्रश्न 3. प्रसंग–इसे पद्य में कवि ने बालक कृष्ण के मोहक रूप का चित्रण किया है। श्रीकृष्ण के सौन्दर्य को देखकर एक गोपी अपनी सखी से उनके सौन्दर्य का वर्णन करती है। व्याख्या–हे सखी! श्यामवर्ण के कृष्ण धूल से धूसरित हैं और अत्यधिक शोभायमान हो रहे हैं। वैसे ही उनके सिर पर सुन्दर चोटी सुशोभित हो रही है। वे खेलते और खाते हुए अपने घर के आँगन में विचरण कर रहे हैं। उनके पैरों में पायल बज रही है और (UPBoardSolutions.com) वे पीले रंग की छोटी-सी धोती पहने हुए हैं। रसखान कवि कहते हैं कि उनके उस सौन्दर्य को देखकर कामदेव भी उन पर अपनी कोटि-कोटि कलाओं को न्योछावर करता है। हे सखी! उस कौवे के भाग्य का क्या कहना, जो कृष्ण के हाथ से मक्खन और रोटी छीनकर ले गया। भाव यह है कि कृष्ण की जूठी मक्खन-रोटी खाने का अवसर जिसको प्राप्त हो गया, वह धन्य है। काव्यगत सौन्दर्य-
प्रश्न 4. प्रसंग-इस पद्य में ब्रज की गोपियों पर श्रीकृष्ण के मनमोहक प्रभाव का सुन्दर चित्रण हुआ है। व्याख्या–एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी! जिस दिन से वह नन्द का लाड़ला बालक इस वन में आकर गायों को चरा गया है तथा अपनी मोहनी तान सुनाकर और वंशी बजाकर हम सबको रिझा गया है, उसी दिन से ऐसा जान पड़ता है (UPBoardSolutions.com) कि वह कोई जादू-सा करके हमारे मन में बस गया है। इसलिए अब कोई भी गोपी किसी की मर्यादा का पालन नहीं करती है, उन्होंने तो अपनी लज्जा एवं संकोच सब कुछ त्याग दिया है। ऐसा मालूम पड़ता है कि सम्पूर्ण ब्रज ही उस कृष्ण के हाथों बिक गया है, अर्थात् उसके वशीभूत हो गया है। || काव्यगत सौन्दर्य-
प्रश्न
5. प्रसंग-इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण के वंशी-प्रेम एवं गोपियों के उसके प्रति सौतिया डाह का सजीव वर्णन किया गया है। व्याख्या–एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि हे सखी! श्रीकृष्ण अब बाँसुरी के वश में हो गये हैं, अब हमसे कौन प्रेम करेगा? श्रीकृष्ण हमसे बहुत प्रेम करते थे, किन्तु अब वे इस दुष्ट बाँसुरी से प्रेम करने लगे हैं। यह बाँसुरी रात-दिन उनके साथ लगी रहती है। यह अब गोपीरूपी सौत की ईष्र्या के सन्ताप को क्यों सहन करेगी? जिस बाँसुरी ने हमारे मन को मोहने वाले कृष्ण को अपने प्रेम से मोहित कर लिया है, वह हमें सदी ईर्ष्या से जलाती (UPBoardSolutions.com) रहेगी। हे सखी! आओ हम सब मिलकर ब्रज छोड़कर अन्यत्र चलें; क्योंकि यहाँ अब केवल बाँसुरी ही रह सकेगी अर्थात् कृष्ण के प्रेम से वंचित होकर हमारा अब ब्रज में निर्वाह नहीं हो सकता। काव्यगत सौन्दर्य-
सखी री, मुरली लीजै चोरि । प्रश्न 6. प्रसंग-प्रस्तुत सवैये में कृष्ण के वियोग में व्याकुल गोपियों की मनोदशा का मोहक वर्णन किया गया है। कृष्ण-प्रेम में मग्न गोपियाँ कृष्ण का वेश धारणकर अपने हृदय को सान्त्वना देती हैं। व्याख्या-एक गोपी अपनी दूसरी सखी से कहती है कि हे सखी! मैं तुम्हारे कहने से अपने सिर पर मोर के पंखों से बना मुकुट धारण करूंगी, अपने गले में गुंजा की माला पहन लूंगी, कृष्ण की तरह पीले वस्त्र पहनकर और हाथ में लाठी लिये हुए (UPBoardSolutions.com) ग्वालों के साथ गायों को चराती हुई वन-वने घूमती रहूंगी। ये सभी कार्य मुझे अच्छे लगते हैं और तेरे कहने से मैं कृष्ण के सभी वेश भी धारण कर लूंगी, परन्तु उनके होठों पर रखी हुई बाँसुरी का अपने होठों से स्पर्श नहीं करूंगी। तात्पर्य यह है कि कृष्ण गोपियों के प्रेम की परवाह न करके दिनभर बाँसुरी को साथ रखते हैं और उसे अपने होंठों से लगाये रहते हैं; अत: गोपियाँ उसे सौत मानकर उसका स्पर्श भी नहीं करना चाहती हैं; क्योंकि वह श्रीकृष्ण के ज्यादा ही मुँह लगी हुई है। काव्यगत सौन्दर्य-
कवित्त प्रश्न 1. सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ रसखान कवि द्वारा रचित ‘सुजान-रसखान’ (UPBoardSolutions.com) से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित ‘कवित्त’ शीर्षक से अवतरित हैं। प्रसंग-इन पंक्तियों में सायं के समय वन से गायों के साथ लौटते हुए कृष्ण की अनुपम शोभा का वर्णन एक गोपी अपनी सखी से कर रही है। व्याख्या-गोपी कहती है कि हे सखी! वन से गायों के साथ लौटते हुए कृष्ण के मस्तक पर गायों के चलने से उड़ी धूल सुशोभित हो रही है। उनके गले में वन के पुष्पों की माला पड़ी हुई है। कृष्ण के आगे-आगे गायें चल रही हैं और पीछे मधुर स्वर में गाते हुए ग्वाल-बाल चल रहे हैं। जितनी मधुर और बाँकी श्रीकृष्ण की चितवन है, उतनी ही बाँकी उनकी धीमी-धीमी मुस्कान हैं। उनकी इस मधुर छवि के अनुरूप ही उनकी वंशी की मधुर-मधुर तान है। हे सखी! कदम्ब वृक्ष के पास यमुना नदी के किनारे खड़े कृष्ण के पीले वस्त्रों का फहराना, जरा अटारी पर चढ़कर तो देख लो। रस की खान वह श्रीकृष्ण चारों ओर सौन्दर्य (UPBoardSolutions.com) और प्रेम-रस की वर्षा करते हुए शरीर और मन की जलन को शान्त कर रहे हैं। उनका सौन्दर्य नेत्रों की प्यास को बुझा रहा है और प्राणों को अपनी ओर खींचकर रिझा रहा है। काव्यगत सौन्दर्य-
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध प्रश्न 1 प्रश्न 2 प्रतीप-“वारत काम कला निज कोटी’ यहाँ कृष्ण (UPBoardSolutions.com) के सौन्दर्य को देखकर कामदेव स्वयं अपनी करोड़ों कलाएँ निछावर कर रहा है। उपमान को उपमेय बना देने के कारण यहाँ प्रतीप अलंकार है। (ख) अनुप्रास, यमक-‘म’, ‘ध’, ‘र’ वर्गों की आवृत्ति के कारण अनुप्रास तथा एक ‘अधरान का अर्थ ‘होठों पर’ एवं दूसरे ‘अधरा न’ का अर्थ होठों पर नहीं होने के कारण यमक है। (ग) श्लेष—यहाँ ‘रसखानि री’ के दो अर्थ–रस की खान श्रीकृष्ण तथा कवि रसखान हैं; अतः इसमें श्लेष है। प्रश्न 3 कवित्त—यह दण्डक वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं। (UPBoardSolutions.com) 16-15 वर्षों पर यति होती है। अन्त में एक गुरु वर्ण होता है। इसे मनहरण कवित्त भी कहते हैं। उदाहरण पाठ से देखें। प्रश्न 4 We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 रसखान (काव्य-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 रसखान (काव्य-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest. |