जब राम असत्य पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे...
जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥
भावार्थ:- जिनके विरह में आप दिन-रात सोच करते (घुलते) रहते हैं और जिनके गुणसमूहों की पंक्तियों को आप निरंतर रटते रहते हैं, वे ही रघुकुल के तिलक, सज्जनों को सुख देनेवाले और देवताओं तथा मुनियों के रक्षक राम सकुशल आ गए।
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥
भावार्थ:- शत्रु को रण में जीतकर सीता और लक्ष्मण सहित प्रभु आ रहे हैं; देवता उनका सुंदर यश गा रहे हैं। ये वचन सुनते ही भरत सारे दुःख भूल गए। जैसे प्यासा आदमी अमृत पाकर प्यास के दुःख को भूल जाए। आगे पढ़ें2 years ago |