पर्यावरण की कितनी मूलभूत समस्याएं है? - paryaavaran kee kitanee moolabhoot samasyaen hai?

Paryavaran Ki Samasya Aur Samadhaan Par Nibandh

Pradeep Chawla on 18-10-2018

प्रस्तावना : आज का मानव औद्योगीकरण के जंजाल में फंसकर स्वयं भी मशीन का एक ऐसा निर्जीव पुर्जा बनकर रह गया है कि वह अपने पर्यावरण की शुद्धता का ध्यान भी न रख सका। अब एक और नयी समस्या उत्पन्न हो गयी है- वह है प्रदूषण की समस्या। इस समस्या की ओर आजकल सभी देशों का ध्यान केंद्रित है। इस समय हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण को बचाने की है क्योंकि पानी¸हवा¸ जंगल¸मिट्टी आदि सब-कुछ प्रदूषित हो चुका है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण का महत्व बताया जाना चाहिए क्योंकि यही हमारे अस्तित्व का आधार है। यदि हमने इस असन्तुलन को दूर नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियाँ अभिशप्त जीवन जीने को बाध्य होंगी और पता नहीं तब मानव जीवन होगा भी या नहीं।

प्रदूषण का अर्थ : सन्तुलित वातावरण में ही जीवन का विकास सम्भव है। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति के द्वारा किया गया है। प्रकृति के द्वारा प्रदान किया गया पर्यावरण जीवधारियों के अनुकूल होता है जब वातावरण में कुछ हनिकारक घटक आ जात हैं तो वे वातावरण का सन्तुलन बिगाड़कर उसको दूषित कर देते हैं। यह गन्दा वातावरण जीवधारियों के लिए अनेक प्रकार से हनिकारक होता है। इस प्रकार वातावरण के दूषित हो जाने को ही प्रदूषण कहते हैं। जनसंख्या की असाधारण वृद्धि और औद्योगिक प्रगति ने प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है और आज इसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि उससे मानवता के विनाश का संकट उत्पन्न हो गया है।

प्रदूषण के प्रकार- आज के वातावरण में प्रदूषण इन रूपों में दिखाई देता है

(क)वायु प्रदूषण : वायु जीवन का अनिवार्य स्त्रोत है। प्रत्येक प्राणी को स्वस्थ रूप से जीने के लिए शुद्ध वायु अर्थात् ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जिस कारण वायुमण्डल में इसकी विशेष अनुपात में उपस्थिति आवश्यक है। जीवधारी साँस द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाई-ऑक्साइड ग्रहण कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इससे वायुमण्डल में शुद्धता बनी रहती है। आजकल वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस का सन्तुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसों से प्रदूषित हो गयी है

(ख) जल प्रदूषण : जल को जीवन कहा जाता है और यह भी माना जाता है कि जल में ही सभी देवता निवास करते हैं। इसके बिना जीव-जन्तु और पेड़-पौधों का भी अस्तित्व नहीं है। फिर भी बड़-बड़े नगरों के गन्दे नाले और सीवर नदियों के जल में आकर मिला दिये जाते हैं। कारखानों का सारा मैला बहकर नदियों के जल में आकर मिलता है। इससे जल प्रदूषित हो गया है और उससे भयानक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं जिससे लोगों का जीवन ही खतरे में पड़ गया है।

(ग)ध्वनि प्रदुषण : ध्वनि प्रदूषण भी आज की नयी समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटर¸कार¸ट्रैक्टर¸जेट विमान¸कारखानों के सायरन¸मशीनें तथा लाउडस्पीकर ध्वनि के सन्तुलन को बिगाड़कर ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। अत्यधिक ध्वनि-प्रदुषण से मानसिक विकृति¸तीव्र क्रोध¸ अनिद्रा एवं चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।

(घ) रेडियोधर्मी प्रदुषण : आज के .युग में वैज्ञानिक परीक्षणों का जोर है। परमाणु परीक्षण निरन्तर होते ही रहते हैं। इसके विस्फोट से रेडियोधर्मी पदार्थ सम्पूर्ण वायुमण्डल फैल जाते हैं और अनेक प्रकार से जीवन को क्षति पहुँचाते हैं।

(ड़) रासायनिक प्रदुषण : कारखानों से बहते हुए अपशिष्ट द्रव्यों के अलावा रोगनाशक तथा कीटनाशक दवाइयों से और रासायनिक खादों से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये पदार्थ पानी के साथ बहकर जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुँचाते हैं।

प्रदूषण की समस्या तथा इससे हानियाँ : बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगीकरण ने विश्व के सम्मुख प्रदूषण की समस्या पैदा कर दी है। कारखानों के धुएँ से विषैले कचरे के बहाव से तथा जहरीली गैसों के रिसाव से आज मानव-जीवन समस्याग्रस्त हो गया है। इस प्रदूषण से मनुष्य जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहा है। कोई अपंग होता है तो कोई बहरा¸किसी की दृष्टि शक्ति नष्ट हो जाती है तो किसी का जीवन। विविध प्रकार की शारीरिक विकृतियाँ मानसिक कमजोरी¸ असाध्य कैंसर व ज्वर इन सभी रोगों का मूल कारण विषैला वातावरण ही है।

समस्या का समाधान : वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है। दूसरी ओर वृक्षों के अधिक कटाव पर भी रोक लगायी जानी चाहिए। कारखाने और मशीनें लगाने की अनुमति उन्हीं लोगों को दी जानी चाहिए जो औद्योगिक कचरे और मशीनों के धुएँ को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था कर सकें। संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए कि वह परमाणु परीक्षणों को नियन्त्रित करने की दिशा में उचित कदम उठाए। तेज ध्वनि वाले वाहनों पर साइलेंसर आवश्यक रूप से लगाए जाने चाहिए तथा सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकरों आदि के प्रयोग को नियन्त्रित किया जाना चाहिए। जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए औद्योगिक संस्थानों में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि व्यर्थ पदार्थों एवं जल को उपचारित करके ही बाहर निकाला जाए तथा इनको जल स्त्रोतों में मिलाने से रोका जाना चाहिए।

उपसंहार : प्रसन्नता की बात है कि भारत सरकार प्रदूषण की समस्या के प्रति जागरूक है। उसने 1974 ई0 में ‘जल-प्रदूषण निवारण अधिनियम’ लागू किया था। इसके अन्तर्गत एक ’केंद्रीय बोर्ड’ तथा प्रदेशो में ’प्रदूषण-नियन्त्रण बोर्ड’ गठित किये गए है। इसी प्रकार नये उद्योगों को लाइसेंस देने और वनों की कटाई रोकने की दिशा में कठोर नियम बनाए गए हैं। इस बात के भी प्रयास किये जा रहे हैं कि नये वन-क्षेत्र बनाए जाएँ और जन-सामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। न्यायालय द्वारा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को महानगरों से बाहर ले जाने के आदेश दिये गए हैं। यदि जनता भी अपने ढंग से इन कार्यक्रमों में सक्रिय सहयोग दे और यह संकल्प ले कि जीवन में आने वाले प्रत्येक शुभ अवसर पर कम-से-कम एक वृक्ष अवश्य लगाएगी तो निश्चित ही हम प्रदूषण के दुष्परिणामों से बच सकेंगे और आने वाली पीढ़ियों को भी इसकी काली छाया से बचाने में समर्थ हो सकेंगे।

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Comments Sakshi on 18-09-2022

pryavaran pradooshit hone pr sarkaar se ky prashna puchhe

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Paryavara pardshun samshay b samdn

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Paryavaran ke bare mein aur samadhan

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Paryavaran pardusit se kase bacha jaye

Rakhi Rathod on 25-09-2020

Paryavaran samasya tatha Samadhan vishay par ek nibandh likhiye

Shikha Singh on 10-09-2020

Paryavaran ka sanrakshan evam palan bataen

Sanjeev Kumar on 05-06-2020

Paryavaran pradushan kise kahate Hain

Sambhavi singh on 27-11-2019

Paryavaran ki samasya par nibandh

Jyoti on 12-05-2019

परदूषण की समस्या



पर्यावरण की कितनी मूलभूत समस्याएं हैं?

वायु प्रदूषण, गरीब कचरे का प्रबंधन, बढ़ रही पानी की कमी, गिरते भूजल टेबल, जल प्रदूषण, संरक्षण और वनों की गुणवत्ता, जैव विविधता के नुकसान, और भूमि / मिट्टी का क्षरण प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों में से कुछ भारत की प्रमुख समस्या है। भारत की जनसंख्या वृद्धि पर्यावरण के मुद्दों और अपने संसाधनों के लिए दबाव समस्या बढ़ाते है।

प्रमुख पर्यावरण समस्या क्या है?

वायु प्रदूषक सभी जीवों को क्षति पहुँचाते हैं। वे फसल की वृद्धि एवं उत्पाद कम करते हैं और इनके कारण पौधे अपरिपक्व अवस्था में मर जाते हैं। वायु प्रदूषक मनुष्य और पशुओं के श्वसन तंत्र पर काफी हानिकारक प्रभाव डालते हैं। ये हानिकारक प्रभाव प्रदूषकों की सांद्रता उद्भासन-काल और जीव पर निर्भर करते हैं।

पर्यावरण कितने प्रकार के होते हैं?

Solution : पर्यावरण को तीन भागों में बाँटा गया है - ( 1 ) भौतिक पर्यावरण , ( 2 ) जैविक पर्यावरण , ( 3 ) सामाजिक पर्यावरण

पर्यावरण के घटक कितने होते हैं?

भौतिक भूगोल की दृष्टि से, पृथ्वी चार प्रमुख घटकों से बनती है: वायुमंडल, जीवमंडल, स्थलमंडल, और जलमण्डल।