प्रदोष व्रत में कौन सी कथा करनी चाहिए? - pradosh vrat mein kaun see katha karanee chaahie?

Authored by Rakesh Jha | नवभारतटाइम्स.कॉमUpdated: Jul 25, 2022, 5:27 PM

सोमवार के दिन जब त्रयोदशी तिथि लगती है तो इसे सोम प्रदोष कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवजी को सोम प्रदोष व्रत करने वाले भक्ति अति प्रिय होते हैं। इस व्रत को रखकर जो व्रती प्रदोष काल में शिवजी पूजा और कथा करते हैं उनकी विपदा को शिवजी हर लेते हैं।

प्रदोष व्रत में कौन सी कथा करनी चाहिए? - pradosh vrat mein kaun see katha karanee chaahie?
Som Pradosh Vrat Puja Katha : सोम प्रदोष व्रत कथा और महत्‍व

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सोम प्रदोष व्रत का सभी प्रदोष व्रत में अधिक महत्व बताया जाता है। सावन में जब सोम प्रदोष व्रत लगता है तो इसका महत्व और बढ जाता है जैसे कि इस बरार हुआ है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्‍येक माह की त्रयोदशी तिथि में सायंकाल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलास पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। ऐसे में जो भी जातक यह व्रत करते हैं भोलेनाथ की कृपा से उनकी सभी मनोवांछ‍ित कामनाओं की पूर्ति होती । मान्‍यता है क‍ि सोमवार के दिन प्रदोष व्रत को करके जो भक्त प्रदोष काल के समय भगवान शिव की पूजा करते है उनके सभी पाप शिवजी नष्ट कर देते हैं और शिव भक्ति को प्राप्त भक्त उत्तम स्थान और सुख पाता है, जैसा कि सोम प्रदोष व्रत की कथा में बताया गया है।ऐसी है सोम प्रदोष व्रत की पौराण‍िक कथा

सोम प्रदोष व्रत कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए इधर-उधर भटक रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। तभी एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।

सोम प्रदोष व्रत कथा महात्म्य
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।

प्रदोष व्रत में कौन सी कथा करनी चाहिए? - pradosh vrat mein kaun see katha karanee chaahie?

सोम प्रदोष व्रत का महत्व

सोम प्रदोष के द‍िन भोलेनाथ के अभिषेक रुद्राभिषेक और श्रृंगार का व‍िशेष महत्व है। इस द‍िन सच्‍चे मन से भोलेनाथ की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। लड़का या लड़की की शादी-विवाह की अड़चनें दूर होती है। संतान की इच्छा रखने वाले लोगों को इस दिन पंचगव्य से महादेव का अभिषेक करना चाहिए। वहीं ऐसे जातक ज‍िन्‍हें लक्ष्मी प्राप्ति और कर‍ियर में सफलता की कामना हो, उन्हें दूध से अभिषेक करने के बाद शिवलिंग पर फूलों की माला अर्पित करनी चाहिए। मान्‍यता है क‍ि ऐसा करने से भोलेनाथ अत्‍यंत प्रसन्‍न होते हैं।

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Web Title : Hindi News from Navbharat Times, TIL Network

प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकादशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। हिन्दू धर्म में एकादशी को विष्णु से तो प्रदोष को शिव से जोड़ा गया है। दरअसल, इन दोनों ही व्रतों से चंद्र का दोष दूर होता है।

1. प्रदोष कथा

प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। संक्षेप में यह कि चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्टों हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया था अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।

प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है। प्रदोष व्रत में लाल मिर्च, अन्न, चावल और सादा नमक नहीं खाना चाहिए। हालांकि आप पूर्ण उपवास या फलाहार भी कर सकते हैं।

3. प्रदोष व्रत की विधि-

व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठें। नित्यकर्म से निपटने के बाद सफेद रंग के कपड़े पहने। पूजाघर को साफ और शुद्ध करें। गाय के गोबर से लीप कर मंडप तैयार करें। इस मंडप के नीचे 5 अलग अलग रंगों का प्रयोग कर के रंगोली बनाएं। फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और शिव जी की पूजा करें। पूरे दिन किसी भी प्रकार का अन्य ग्रहण ना करें।

4. प्रदोष व्रत फल

माह में दो प्रदोष होते हैं। अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है। जैसे सोमवार का प्रदोष, मंगलवार को आने वाला प्रदोष और अन्य वार को आने वाला प्रदोष सभी का महत्व और लाभ अलग अलग है।

5. रविवार-

जो प्रदोष रविवार के दिन पड़ता है उसे भानुप्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं। रवि प्रदोष का संबंध सीधा सूर्य से होता है। सूर्य से संबंधित होने के कारण नाम, यश और सम्मान के साथ ही सुख, शांति और लंबी आयु दिलाता है। इससे कुंडली में अपयश योग और सूर्य संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

6. सोमवार-

जो प्रदोष सोमवार के दिन पड़ता है उसे सोम प्रदोष कहते हैं। जिसका चंद्र खराब असर दे रहा है उनको तो यह प्रदोष जरूर नियम ‍पूर्वक रखना चाहिए जिससे जीवन में शांति बनी रहेगी। यह व्रत रखने से इच्छा अनुसार फल प्राप्ति होती है। अक्सर लोग संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत रखते हैं।

7. मंगलवार-

मंगलवार को आने वाले इस प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं। जिसका मंगल खराब है उसे इस दिन व्रत अवश्य रखना चाहिए। इस दिन स्वास्थ्य सबंधी तरह की समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दिन प्रदोष व्रत विधिपूर्वक रखने से कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।

8. बुधवार-

बुधवार को आने वाले प्रदोष को सौम्यवारा प्रदोष भी कहा जाता है। यह शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए किया जाता है। साथ ही यह जिस भी तरह की मनोकामना लेकर किया जाए उसे भी पूर्ण करता है।

9. गुरुवार-

गुरुवार को आने वाले प्रदोष को गुरुवारा प्रदोष कहते हैं। इससे बृहस्पति ग्रह शुभ प्रभाव तो देता ही है साथ ही इसे करने से पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अक्सर यह प्रदोष शत्रु एवं खतरों के विनाश और हर तरह की सफलता के लिए किया जाता है।

10. शुक्रवार-

शुक्रवार को आने वाले प्रदोष को भ्रुगुवारा प्रदोष कहा जाता है। अर्थात जिस शुक्रवार को त्रयोदशी तिथि हो वह भ्रुगुवारा प्रदोष कहलाती है। जीवन में सौभाग्य की वृद्धि हेतु यह प्रदोष किया जाता है। सौभाग्य है तो धन और संपदा स्वत: ही मिल जाती है।

11. शनिवार-

शनिवार को यदि तेरस है तो इसे शनि प्रदोष कहते हैं। इस प्रदोष से पुत्र की प्राप्ति होती है। अक्सर लोग इसे हर तरह की मनोकामना के लिए और नौकरी में पदोन्नति की प्राप्ति के लिए करते हैं।

12. अंत में कुछ विशेष

रवि प्रदोष, सोम प्रदोष व शनि प्रदोष के व्रत को पूर्ण करने से अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। सर्वकार्य सिद्धि हेतु यदि कोई भी व्यक्ति 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं शीघ्रता से पूर्ण होती है।

प्रदोष व्रत के नियम क्या है?

प्रदोष व्रत के नियम और विधि - स्नान आदि करने के बाद आप साफ़ वस्त्र पहन लें. - उसके बाद आप बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें. - इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है. - पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफ़ेद रंग का वस्त्र धारण करें.

प्रदोष व्रत में कैसे पूजा करनी चाहिए?

कैसे करें प्रदोष व्रत : सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करें। नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी एवं शकर का भोग लगाएं, तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8‍ दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें।

प्रदोष व्रत कौन से महीने से शुरू करना चाहिए?

शास्त्रानुसार प्रदोष-व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है। श्रावण व कार्तिक मास प्रदोष-व्रत को प्रारंभ करने के लिए अधिक श्रेष्ठ माने गए हैं।

प्रदोष व्रत में क्या नहीं करना चाहिए?

प्रदोष व्रत में लाल मिर्च, अन्न, चावल और सादा नमक नहीं खाना चाहिए। हालांकि आप पूर्ण उपवास या फलाहार भी कर सकते हैं। व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठें।