परिपक्व हड़प्पा संस्कृति की विशेषता क्या है? - paripakv hadappa sanskrti kee visheshata kya hai?

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परिपक्व हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएं क्या है। प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति से इसे कैसे अलग किया जा सकता है?

 परिपक्व हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएं

हड़प्पा संस्कृति का विकास एक लंबी जटिल प्रक्रिया थी। इसमें तीन चरण होते हैं : प्रारंभिक, परिपक्व और परवर्ती। प्रारंभिक चरण का पिछली इकाई में वर्णन किया गया है। यहाँ इस इकाई में हम परिपक्व चरण का अध्ययन करेंगे। परिपक्व हड़प्पा चरण की विशिष्ट विशेषताओं में से एक उनकी कलाकृतियाँ और तकनीक है । अब हमें एक नये प्रकार के मृदभांड (शैली, मिट्टी की बनावट, बर्तनों के रूप और चित्रकारी) मिलते हैं, यद्यपि पूर्व के साथ कुछ निरंतरताएं हो सकती हैं। धातु का उपयोग बढ़ रहा था और कांस्य की शुरुआत हो गई थी। नई धातु की वस्तुओं में बर्तन, कडाही, तांबे की पटियां, ब्लेड, केंटियां, उस्तरा और अन्य वस्तुयें शामिल हैं। पकी हुई ईंटों का उपयोग बहुत आम है और अब स्थलों के बीच मानकीकरण है। कठोर पत्थरों को छेद करने की जटिल प्रौद्योगिकी का विकास, मनका बनाने का विस्तार और रात-रतुवा का व्यापक उपयोग दिखता है। इसके साथ ही, सभी स्थलों पर लेखन का उपयोग है। 4000 से अधिक सिंधु शिलालेख पाए गए हैं। हड़प्पा और मोहनजोदडो; चोलिस्तान में गँवेरीवाला; कच्छ में धोलावीरा; और हरियाणा में राखीगढ़ी जैसे स्थल बड़ी बस्तियाँ थीं और जनसंख्या के समूह का प्रतीक थीं। इस चरण की मुख्य विशेषता इसकी एकरूपता है। बलूचिस्तान, पंजाब या यहां तक कि गुजरात में स्थित स्थल समान रूप की संरचनाओं को दर्शातें हैं। सभी इमारतों को 1:2:4 के अनुपात वाली इईंटों का उपयोग करके बनाया गया था। वजन और माप की एक आम पद्धति उपयोग में थी। मुहरों के रूपांकनों में एक ही प्रकार की प्रतिमा-विद्या   प्रदर्शित होती है। लगभग सभी स्थल अभूतपूर्व नागरिक सुविधाओं का दावा कर सकते हैं, जैसे कि स्नानगृह के साथ विशाल कमरे वाले घर, मजबूत सड़कें, जल निकासी की विस्तृत व्यवस्था, पानी की आपूर्ति प्रणाली। हालांकि प्रभावशाली एकता के बावजूद कुछ स्थल नगरीय नियोजन और धार्मिक मान्यताओं में कुछ अंतर दिखाते हैं। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों को कम एकीकृत किया गया था (मैकितोश, 2008)। पोश्हैल (2003) का अनुमान है कि यह संक्रमण 2600-2500 बी.सी.ई. के बीच हुआ था, लेकिन हम अभी भी उन कारकों को नहीं समझते हैं जिनके कारण यह परिवर्तन हुआ।

प्रारंभिक हड़प्पा की संस्कृतियाँ

लगभग 3200 बी.सी.ई. में एक परिवर्तन हुआ जो कि चार संस्कृतियों के उभरने में देखा जा सकता है। ये पूरे सिंध क्षेत्र व ब्लूचिस्तान के कुछ क्षेत्रों में स्थित थे। ये अपने विशिष्ट

मृदभांडों द्वारा पहचाने जाते हैं जिसका नामकरण उनके स्थलों के आधार पर हुआ।

1)  कोटदीजी संस्कृति, पाकिस्तान, पंजाब व उत्तरी सिंध के बड़े भाग में फैली हुई थी।

2)  सोधी-सीसवाल संस्कृति की बस्तियां उत्तरी राजस्थान, भारतीय पंजाव व हरियाणा तक थी।

3)  आम्री-नल संस्कृति, ब्लूचिस्तान, मध्य व दक्षिणी सिंध, जिसका विस्तार गुजरात तक था, में पायी गयी है।

4)  दम्बसदात चरण मध्य ब्लूचिस्तान में स्थित था।

1) कोटदीजी

कोटदीजी संस्कृति प्रारंभिक हड़प्पा की संस्कृतियों में सबसे महत्वपूर्ण है। यह सर्वप्रथम सिंध के कोटदीजी क्षेत्र में 1955 में एफ. ए. खान द्वारा पहचानी गयी। इस स्थल पर प्रारंभिक व परिपक्व हड़प्पा, दोनों ही चरण पाये गये हैं। प्रारंभिक हड़प्पा चरण 3300 बी.सी.ई. का है। इस चरण में किलेबंदी थी, बस्ती ऊपरी दुर्ग व निचले नगर में विभाजित थी। किलेबंदी का निर्माण मिट्टी की ईटों, पत्थरों के द्वारा हुआ था और इन्हें बुजों के साथ तैयार किया गया था। बस्ती के अंदर से लघुपाषाणिक-उपकरण व वस्तुएं जैसे मनका, पकी मिट्टी के खिलौने, पशु मूर्तियां, चूड़ियाँ व मृदभांड जैसी वस्तुएं प्राप्त की गयी हैं। ये मृदभांड अच्छी तरह आग में पके लाल व बादामी रंग के हैं और साथ ही इनमें सामान्य रूपांकन जैसे सींग वाले देवता, पीपल की पत्तियां, मछली शल्क जैसे चित्र काले रंग में बने होते थे।

2) सोथी-सीसवाल संस्कृति

राजस्थान में सोथी व हरियाणा में सीसवाल का उत्खन्न क्रमशः: 19551970 में हुआ। दोनों स्थलों पर एक समान मृदभांड़ों की प्राप्ति हुई। 1960 के दशक में ए. घोष (1964) ने इनकी समानता कोटदीजी मृदभांडो के साथ बताई। यहाँ के मृदभाड़ों के रुपांकनों में समानता है किंतु कुछ प्रमुख भिन्‍नता आकार व ऊपरी सतह से जुड़ी विशेषताओं में पायी गयी है, जिसके फलस्वरूप, सोथी-सीसवाल संस्कृति को कोटदीजी की उपसंस्कृति के रूप में पहचाना गया है। पोशैल के अनुसार इस संस्कृति से जुड़े 165 स्थलों को पहचाना गया है। ये स्थल मुख्य रूप से राजस्थान व हरियाणा क्षेत्र में स्थित हैं। बिना खुदाई वाले कुछ स्थल जैसे रोहिरा व महोराना भारत के पंजाब क्षेत्र में स्थित हैं।

3) आश्री-नाल संस्कृति

एक और संस्कृति जिसकी पहचान प्रारम्भिक हड़प्पा की संस्कृति के रूप में हुई है वह है आम्री-नल संस्कृति। इस संस्कृति वाले स्थल पर दो प्रकार के मिश्रित मृदभांडों की प्राप्ति हुई है - एक की खोज आम्री' में व दूसरे की खोज 'नल' में हुई। ये स्थल सिंध व ब्लूचिस्तान दोनों में स्थित हैं। ब्लूचिस्तान के स्थलों पर 'नल' मृदभांडों की अधिकता है, व सिंध के स्थलों से हमें आम्री मृदभांड अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं। आग्री के मिट्टी के बर्तनों को हल्के लाल अथवा बादामी रंग के होने तक पकाया जाता था या साथ-साथ लाल अथवा बादामी रंग पर काले रंग के घुमावदार डिजाइन के साथ चित्रित किया जाता था। रूपाकंनों के रूप में मृदभाडों में ज्यामितिये व वक्रीय लाइनों का प्रयोग होता था जिनमें लाल रंग होते थे। वहीं दूसरी तरफ नल मृदभांडों को बादामी व हल्के गुलाबी रंगों तक पकाया जाता था, और हल्का बादामी व लाल रंग उपर से लगाया जाता था। इन मृदभांडों पर अलग-अलग रंगों से डिजाइन बने होते थे, ये उपमहाद्वीप में खोजे गए सबसे सुंदर मृदभांडों में से एक हैं। इस संस्कृति के लोग अनिवार्य रूप से चारागाही होने के कारण गर्मियों में पहाड़ों की तरफ प्रवासन करते थे व सर्दियों में सिंधु घाटी में (पोशैल-2002). इस संस्कृति के लगभग 164 स्थलों को पटचाना गया है, जिसमें छोटे शिविरों के रूप में 3.67 हेक्ट. के स्थल औसत हैं। कुछ बस्तियों में किले बंदी भी थी।

4) दम्बसदात

मृदभाड़ों के आधार पर दम्बसदात को भी हम प्रारम्भिक हड़प्पा की उप-संस्कृति कह सकते हैं। इस संस्कृति के मृदभांड भी कोटदीजी से प्रभावित है, परंतु इस पर अंकित विभिन्‍न पौधे, जानवर एवं ज्यामितीय रूपाकंन इसे सबसे अलग बनाते हैं। पोशैल (2002) ने इसे प्रारम्भिक हड़प्पा काल का स्थानीय रूप कहा है। इस संस्कृति की लगभग 37 स्थलों की जानकारी मिली है, जिनका औसत आकार 2.26 हेक्टे. है। सबसे बड़ा स्थल क्वेटा मीरी (लगभग 23 हेक्ट.) और दूसरे स्थान पर मुंडीगक (18.75 हेक्ट.) है। अन्य महत्वपूर्ण स्थल दम्बसदात व फैज मोहम्मद हैं। इसके अतिरिक्त यह भी प्रतीत होता है कि मेहरगढ़ व नौशारों की संस्कृति भी इस उप-संस्कृति से प्रभावित थी।

परिपक्व हड़प्पा क्या है?

परिपक्व हड़प्पा चरण की विशिष्ट विशेषताओं में से एक उनकी कलाकृतियाँ और तकनीक है । अब हमें एक नये प्रकार के मृदभांड (शैली, मिट्टी की बनावट, बर्तनों के रूप और चित्रकारी) मिलते हैं, यद्यपि पूर्व के साथ कुछ निरंतरताएं हो सकती हैं। धातु का उपयोग बढ़ रहा था और कांस्य की शुरुआत हो गई थी।

हड़प्पा संस्कृति की सबसे प्रमुख विशेषता क्या थी?

हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं सिंधु घाटी सभ्यता के लोग धार्मिक तथा अर्थ उनकी धार्मिक मान्यताएं थी. सिंधु वासी लिंग एवं योनि के प्रतीकों की पूजा करते थे. इसके अलावा वह वृक्ष पूजा, पशु पूजा, अग्नि कृत्य, स्नान ध्यान और जल देवता की पूजा करते थे. वहां के लोग पवित्र स्नान और जल पूजा का धार्मिक महत्व समझते थे.

हड़प्पा संस्कृति की विशेषता क्या है प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति से इसे कैसे अलग किया जा सकता है?

हड़प्पा काल की विशेषता मुहरों, मोतियों, भार, पत्थर के ब्लेड और पके हुए ईंटों से होती है जिसे परिपक्व हड़प्पा संस्कृति कहा जाता है। 1920 के दशक के दौरान खोजा गया, लाहौर के दक्षिण में पश्चिम पंजाब में हड़प्पा की खुदाई में कहा गया है कि इस क्षेत्र में कांस्य युग से एक प्राचीन किलेबंद शहर के खंडहर हैं।

हड़प्पा लिपि की क्या विशेषता थी?

इस लिपि को सिंधु लिपि, सरस्वती लिपि के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दाईं ओर चौङा अंतराल है और बाईं ओर यह संकुचित है जिससे लगता है कि उत्कीर्णक ने दाईं ओर से लिखना आरंभ किया और बाद में स्थान कम पङ गया ।