प्रभावती गुप्त किस वंश की प्रसिद्ध शासिका थी - prabhaavatee gupt kis vansh kee prasiddh shaasika thee

प्रभावती गुप्ता गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थी। उसका विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ सम्पन्न हुआ था। रुद्रसेन द्वितीय शैव धर्म जबकि प्रभावती वैष्णव धर्म को मानने वाली थी।

अपने अल्प शासन के बाद 390 ई. में रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गई और 13 वर्ष तक प्रभावती ने अपने अल्प वयस्क पुत्रों की संरक्षिका के रूप में शासन किया। उसका ज्येष्ठ पुत्र दिवाकर सेन इस समय 5 वर्ष, तथा दामोदर सेन 2 वर्ष के नाबालिग थे।

राज्य की संरक्षिका

प्रभावती गुप्ता अल्पायु तथा अनुभवहीन थी। तथापि उसने वाकाटक राज्य का संचालन बङी कुशलता से किया। प्रशासन के कार्यों में उसे अपने अनुभवी पिता (चंद्रगुप्त द्वितीय) से अवश्य ही पर्याप्त सहायता मिली होगी। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री को प्रशासनिक कार्यों में सहायता देने के लिये अपने राज्य के योग्य तथा अनुभवी मंत्रियों को भेजा।

वाकाटकों की बासीम शाखा में इस समय विन्ध्यशक्ति द्वितीय का शासन था। उसने प्रभावतीगुप्ता का कोई विरोध नहीं किया तथा इस समय भी दोनों शाखाओं के संबंध मधुर बने हुये थे। इसी समय चंद्रगुप्त द्वितीय ने गुजरात और काठियावाङ के शक राज्य पर चढाई की और अपने पिता के इस अभियान में प्रभावतीगुप्ता ने सेना तथा धन दोनों से मदद की। वाकाटकों तथा गुप्तों की सम्मिलित सेना ने ही शकों को पराजित किया। वाकाटकों एवं गुप्तों के संबंध।

धारण गौत्र

प्रभावतीगुप्ता के समय में वाकाटकों पर चंद्रगुप्त द्वितीय का प्रभाव अत्यधिक था।यही कारण है, कि अपने पूना ताम्रपत्र में प्रभावतीगुप्ता अपने पति के गोत्र का उल्लेख न करके पिता के गोत्र (धारण गोत्र) का उल्लेख करती है। प्रभावतीगुप्ता को एक अन्य महान कष्ट भोगना पङा। उसके संरक्षण काल में ही उसके बङे पुत्र दिवाकरसेन की मृत्यु हो गयी। अतः 410 ईस्वी में उसका छोटा पुत्र दामोदरसेन, जो इस समय तक वयस्क हो चुका था, प्रवरसेन द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा।

अपने पुत्र के शासन काल में भी कुछ काल तक प्रभावती गुप्ता जीवित रही। वह धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी, तथा भगवान विष्णु में उसकी गहरी आस्था थी। पूना तक रिद्धपुर से उसके दानपत्र प्राप्त होते हैं। जिसमें उसके द्वारा दान दिये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। इस प्रकार प्रभावतीगुप्ता प्रवरसेन द्वितीय के शासनकाल में लगभग 25 वर्षों तक जीवित रही तथा उसकी मृत्यु 75 वर्ष की दीर्घायु में हुई।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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वाकाटक वंश

  • 27 Jan 2020
  • 11 min read

प्रीलिम्स के लिये:

वाकाटक वंश के बारे में

मेन्स के लिये:

वाकाटक वंश समकालीन शासन व्यवस्था, शासन में महिलाओं की भूमिका

चर्चा में क्यों?

नागपुर के समीप रामटेक तालुका के नागार्धन में हुई हालिया पुरातात्विक खुदाई में, तीसरी और पाँचवीं शताब्दी के बीच मध्य एवं दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों पर शासन करने वाले वाकाटक वंश (Vakataka Dynasty) के जीवन, धार्मिक संबद्धता और व्यापार प्रथाओं के विषय में कुछ ठोस साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

खुदाई स्थल के विषय में

  • नागार्धन/नागवर्धन नागपुर ज़िले का एक बहुत बड़ा गाँव है, जो रामटेक तालुका से लगभग 6 किमी. दक्षिण में अवस्थित है। इस स्थान पर 1 कि.मी. से 1.5 कि.मी. क्षेत्र में पुरातात्विक अवशेष पाए गए।
  • शोधकर्त्ताओं ने वर्ष 2015-2018 के दौरान इस स्थल पर खुदाई की थी।
  • इस क्षेत्र में नदी के किनारे स्थित कोटेश्वर मंदिर 15वीं-16वीं शताब्दी का है। मौजूदा गाँव प्राचीन बस्ती के ऊपर स्थित है।
  • नागार्धन किला वर्तमान के नागार्धन गाँव के दक्षिण में स्थित है। इस किले का निर्माण गोंड राजा के काल में हुआ था और बाद में 18वीं एवं 19वीं शताब्दी के दौरान नागपुर के भोसलों द्वारा इसका नवीनीकरण और पुनः उपयोग किया गया। किले के आसपास के क्षेत्र में खेती कार्य किया जाता है और यही पर पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं।

यह खुदाई महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • तीसरी और पाँचवीं शताब्दी के मध्य के शैव शासकों ‘वाकाटकों’ के बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त थी। इस राजवंश के बारे में अभी तक जो भी जानकारी प्राप्त थी वह यह कि ये महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र से संबंधित थे, यह जानकारी कुछ साहित्यिक रचनाओं और ताम्रपत्रों के माध्यम से मिली थी।
  • इनके विषय में ऐसी धारणाएँ थीं कि उत्खनित स्थल नागार्धन वाकाटक की पूर्वी शाखा की राजधानी नंदीवर्धन के समान ही है। इस पुरातात्विक साक्ष्य के बाद नागार्धन को वाकाटक साम्राज्य की राजधानी माने जाने की धारणा को बल मिला है।
  • विद्वानों का मत है कि इस स्थल की खुदाई करने वाले पुरातत्त्वविदों ने इस स्थल का  विस्तृत प्रलेखन नहीं किया था इसलिये इसका एक पुरातात्विक अन्वेषण आवश्यक था।
  • पुरातत्वविदों द्वारा की गई खुदाई के दौरान, कुछ नए पहलू सामने आए जिन्होंने वाकाटक वंश के जीवन के विषय में और अधिक जानकारी प्रदान की। इसके अलावा विद्वानों ने इस राजवंश के धार्मिक जुड़ावों, शासकों के निवास स्थलों, महलों के प्रकार, उनके शासनकाल के दौरान प्रसारित हुए सिक्कों और मुहरें, और उनके व्यापारिक व्यवहार के बारे में भी खुलासा किया।

वाकाटक वंश

  • इस वंश की स्थापना 255 ई. में विन्ध्य शक्ति ने की थी।
  • इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक राजा प्रवरसेन प्रथम था। अपने शासनकाल में उसने सम्राट की उपाधि की तथा चार अश्वमेघ यज्ञों का आयोजन किया।
  • वाकाटक ब्राह्मण धर्म के पक्षधर थे। ये स्वयं भी ब्राह्मण थे और इन्होंने ब्राह्मणों को खूब भूमि-अनुदान दिये।
  • सांस्कृतिक दृष्टि से वाकाटक राज्य ने ब्राह्मण घर्म के आदर्शों और सामाजिक संस्थाओं को दक्षिण की ओर बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण सेतु के रूप में कार्य किया।

इस प्रकार की पुरातात्विक खोजों का क्या महत्त्व है?

  • यह पहली बार है कि जब नागार्धन से हुई खुदाई में मिट्टी से निर्मित मुहरे प्राप्त हुई है। ये अंडाकार मुहरें प्रभातगुप्त, वाकाटक वंश की रानी के समय की है। इन मुहरों पर शंख के चित्रण के साथ ब्राह्मी लिपि में रानी का नाम मुद्रित है।
  • मुहर का वज़न 6.40-ग्राम है, ये मुहरें 1,500 वर्ष पुरानी है, इनकी माप (प्रति मुहर) 35.71 मिमी- 24.20 मिमी, मोटाई 9.50 मिमी है। मुहरों पर मुद्रित शंख के विषय में विद्वानों का तर्क है कि यह वैष्णव संबद्धता का एक संकेत है।
  • इस मुहर को एक विशाल दीवार के ऊपर सजाया गया था, शोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह राज्य की राजधानी में अवस्थित एक शाही ढाँचे का हिस्सा हो सकता है। अभी तक वाकाटक लोगों या शासकों के घरों या महलनुमा संरचनाओं के प्रकार के बारे में कोई पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है।
  • रानी प्रभाववती गुप्त द्वारा जारी ताम्रपत्र गुप्तों की एक वंशावली से शुरू होता है, जिसमें रानी के दादा समुद्रगुप्त और उनके पिता चंद्रगुप्त द्वितीय का उल्लेख है। वाकाटक की शाही मुहरों पर मुद्रित वैष्णव उपस्थिति इसके दृढ़ संकेतक हैं, जो इस बात को पुन: स्थापित करते हैं कि रानी प्रभाववती गुप्त वास्तव में एक शक्तिशाली महिला शासक थीं।
  • चूँकि वाकाटक लोग भूमध्य सागर के माध्यम से ईरान तथा अन्य देशों के साथ व्यापार करते थे, इसलिये विद्वानों का मत है कि इन मुहरों का इस्तेमाल राजधानी से जारी एक आधिकारिक शाही अनुमति के रूप में किया जाता होगा। इसके अलावा इनका उपयोग उन दस्तावेज़ों पर किया गया होगा जिनके लिये शाही अनुमति अनिवार्य  होती होगी।

रानी प्रभाववती गुप्त के विषय में प्राप्त जानकारी इतनी महत्त्वपूर्ण क्यों हैं?

  • वाकाटक शासकों को उनके समय के अन्य राजवंशों के साथ कई वैवाहिक गठबंधन स्थापित करने के लिये जाना जाता था। ऐसे ही प्रमुख वैवाहिक गठबंधनों में से एक है शक्तिशाली गुप्त वंश की राजकुमारी प्रभावती गुप्त क्योंकि गुप्त वंश उस समय उत्तर भारत पर शासन कर रहा था।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, गुप्त शासक वाकाटकों की तुलना में अधिक शक्तिशाली थे। वाकाटक राजा रुद्रसेना द्वितीय से विवाह करने के बाद, प्रभाववती गुप्त ने मुख्य रानी का पद धारण किया। रुद्रसेना द्वितीय के आकस्मिक निधन के बाद जब उसने वाकाटक राज्य की कमान संभाली, तो महिला वाकाटक शासक के रूप में उसका महत्त्व और अधिक बढ़ गया। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि एक शासिका के रूप में उसके शासन कल में मुहरें जारी की गई, वह भी राजधानी नागार्धन से।
  • विद्वानों के अनुसार, रानी प्रभाववती गुप्त देश की उन चुनिंदा महिला शासकों में से एक थीं, जिन्होंने प्राचीन काल में किसी राज्य पर शासन किया था। वाकाटक वंश में इसके इतर किसी अन्य महिला उत्तराधिकारी के विषय में कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है।

वैष्णव संबद्धता के संकेत क्या महत्त्व है?

  • वाकाटक शासकों ने हिंदू धर्म के शैव संप्रदाय का अनुपालन किया, जबकि गुप्त वंश वैष्णव धर्म का अनुयायी था। उत्खननकर्त्ताओं के अनुसार, रामटेक में पाए गए वैष्णव संप्रदाय से जुड़े कई धार्मिक ढाँचे रानी प्रभाववती गुप्त के शासनकाल के दौरान बनाए गए थे। जबकि उसका विवाह एक ऐसे परिवार में हुई था जो शैव संप्रदाय से संबंधित था, रानी को शासिका के रूप में प्राप्त शक्तियों ने उसे अपने आराधक अर्थात् भगवान विष्णु को चुनने का अधिकार प्रदान किया।
  • शोधकर्त्ताओं का मानना ​​है कि महाराष्ट्र में नरसिंह की पूजा करने की प्रथा रामटेक से ही निकली थी, साथ ही महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में वैष्णव प्रथाओं के प्रचार में रानी प्रभाववती गुप्त की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। रानी प्रभाववती गुप्त ने लगभग 10 वर्षों तक शासन किया जब तक कि उसके पुत्र प्रवरसेन द्वितीय ने सत्ता नहीं संभाल ली।

नागार्धन से अभी तक कौन-से अवशेष प्राप्त हुए हैं?

  • इस क्षेत्र में पूर्व में हुई खुदाई में मृद्भांड, एक पूजा का स्थल, एक लोहे की छेनी, हिरण के चित्रण वाला एक पत्थर और टेराकोटा की चूड़ियों के रूप में प्रमाण मिले हैं।
  • टेराकोटा से बनी कुछ वस्तुओं में देवताओं, पशुओं और मनुष्यों की छवियों को भी चित्रित किया गया साथ ही ताबीज एवं पहिये आदि भी प्राप्त हुए हैं।
  • भगवान गणेश की एक अखंड मूर्ति, जिसमें कोई अलंकरण नहीं था, वह भी प्राप्त हुई जो इस बात की पुष्टि करती है कि उस काल के दौरान भगवान गणेश की आराधना सामान्य थी।
  • वाकाटक लोगों की आजीविका के साधनों में पशु पालन की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। घरेलू जानवरों की सात प्रजातियों- मवेशी, बकरी, भेड़, सुअर, बिल्ली, घोड़ा और मुर्गे के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।

स्रोत: इंडियन एसप्रेस

प्रभावती गुप्त कौन से वंश की थी?

प्रभावती गुप्त चंद्रगुप्त द्वितीय (375-415 C.E.) की पुत्री थीं। अतः, कथन 1 गलत है। प्रभावतीगुप्त, वाकाटक राजा रुद्रसेना द्वितीय की मुख्य रानी थी

प्रभावती गुप्त क्यों प्रसिद्ध है?

शकों के उन्मूलन का कार्य प्रभावती गुप्त के संरक्षण काल में ही संपन्न हुआ। इस विजय के फलस्वरूप गुप्त सत्ता गुजरात एवं काठियावाड़ में स्थापित हो गई। प्रभावती गुप्ता ने व्यावहारिक कठिनाइयों और शासन कार्य का अनुभव न होने पर भी अपनी व्यक्तिगत योग्यता और पिता चन्द्रगुप्त द्वितीय की सहायता से दूर कर शासन किया।

प्रभावती गुप्त कुबेरनाथ किसकी पुत्री थी?

प्रभावती गुप्त चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थी और उसकी माता नागा की कुबेरनाग थी। प्रारंभिक भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण शासकों में से एक।

वाकाटक वंश का अंतिम शासक कौन था?

प्रवरसेन द्वितीय के बाद नरेन्द्र सेन ने 440 ई. से 460 ई. तक शासन किया। पृथ्वीसेन द्वितीय वाकाटक वंश की मुख्य शाखा का अन्तिम शासक हुआ।