निराला का जन्म हुआ था कब? - niraala ka janm hua tha kab?

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय:- प्रकृति से फक्कड़ और व्यवहार से अक्खड़ मुक्त छन्द के प्रवर्त्तक महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala Ka Jeevan Parichay) का जन्म सन् 1897 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले की महिषादल रियासत में पं० रामसहाय त्रिपाठी के यहाँ हुआ था। वास्तव में इनके पिता उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला नामक ग्राम के निवासी थे, किन्तु जीविका के लिए बंगाल आ गये थे।

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय

निराला का जन्म हुआ था कब? - niraala ka janm hua tha kab?
Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi

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सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय

बिंदुजानकारी
नाम सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
जन्म सन् 1897
जन्म स्थान बंगाल प्रदेश के मेदिनीपुर जिले की महिषादल रियासत
मृत्यु 15 अगस्त, 1961 ई०
पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी
कार्यक्षेत्र कवि, पत्रकार
काव्य रचनाएँ ‘अनामिका’, ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘अपरा’, ‘तुलसीदास’, ‘अणिमा’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘बेला’, ‘नये पत्ते’, ‘राम की शक्ति-पूजा’ आदि।
उपन्यास ‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘निरुपमा’, ‘प्रभावती’, ‘चोटी की पकड़’ आदि।
कहानी ‘लिली’, ‘सुकुल की बीबी’, ‘चन्द्रोपमा’ आदि।
नाटक ‘समाज’, ‘शकुन्तला’ आदि।
आलोचना ‘रविन्द्र कविता कला’

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की शिक्षा

इनकी प्रारम्भिक शिक्षा महिषादल के ही विद्यालय में हुई। इन्होंने स्वाध्याय से हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत तथा बांग्ला का ज्ञान प्राप्त किया। बचपन से ही इनकी कुश्ती, घुड़सवारी और खेलों में अत्यधिक रुचि थी। बालक सूर्यकान्त के सिर से माता-पिता का साया अल्पायु में ही उठ गया था। निरालाजी को बाँग्ला और हिन्दी-साहित्य का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी का भी पर्याप्त अध्ययन किया। भारतीय दर्शन में इनकी विशेष रुचि थी।

पारिवारिक जीवन

निरालाजी का पारिवारिक जीवन अत्यन्त असफल और कष्टमय रहा। एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म देकर इनकी पत्नी मनोहरा स्वर्ग सिधार गयीं। मनोहरा संगीत एवं हिन्दी-प्रेमी महिला थीं। इसका निराला पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा, किन्तु दुर्भाग्य से सन् १९१८ ई० में मनोहरा की अकाल मृत्यु हो गयी। पत्नी के विरह के समय में ही इनका परिचय पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी से हुआ। पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी के सहयोग से इन्होंने ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ का सम्पादन किया। इनकी कविता ‘जुही की कली’ ने तत्कालीन काव्य-क्षेत्र में क्रान्ति उत्पन्न कर दी।

निरालाजी को अपने अक्खड़ व्यवहार के कारण जीवन में अत्यधिक आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। आर्थिक दुश्चिन्ताओं के बीच ही इनकी युवा पुत्री सरोज का निधन हो गया, जिससे व्यथित होकर इन्होंने ‘सरोज स्मृति’ नामक कविता लिखी। इसमें इन्होंने अपने दुःखपूर्ण जीवन को अभिव्यक्ति करते हुए लिखा है-

दुःख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहें आज जो नहीं कही।
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण,
कर सकता मैं तेरा तर्पण ॥

‘सरोज स्मृति’ हिन्दी काव्य का सर्वश्रेष्ठ शोकगीत है।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की मृत्यु

दुःख और कष्टों के मारे निराला अत्यधिक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। ये बहुत स्पष्टवादी भी थे। इसी कारण ये सदैव साहित्यिक विवाद का केन्द्र रहे। ‘जुही की करनी’ की प्रतिष्ठा को लेकर इनका विवाद और संघर्ष जगजाहिर है निरालाजी स्वामी रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द से बहुत प्रभावित थे। इनकी कविताएँ छायावादी, रहस्यवादी और प्रगतिवादी विचारधाराओं पर आधारित है। 15 अगस्त, सन् 1961 ई० में इनका निधन हो गया।

छायावादी कवि के रूप में निराला

महाप्राण निराला का उदय छायावादी कवि के रूप में हुआ। छायावाद के चार स्तम्भों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने कोमल एवं मधुर भावों पर आधारित छायावादी काव्य के सृजन से अपना काव्य-जीवन प्रारम्भ किया, परन्तु काल की क्रूरता ने इन्हें विद्रोही कवि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। निरालाजी ने ‘सरस्वती’ और ‘मर्यादा’ पत्रिकाओं के निरन्तर अध्ययन से हिन्दी का ज्ञान प्राप्त किया। इनके साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ ‘जन्मभूमि की वन्दना’ नामक कविता की रचना से हुआ।

सन् 1929 ई० में इनका ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रथम लेख प्रकाशित हुआ। ‘जुही की कली’ कविता की रचना करके इन्होने हिन्दी जगत् में अपनी पहचान बना ली। यह अपने समय की सर्वाधिक चर्चित कविता रही: क्योंकि इसके द्वारा निराला ने हिन्दी साहित्य में मुक्त छन्द की स्थापना की छायावादी लेखक के रूप में प्रसाद पन्त और महादेवी वर्मा के समकक्ष ही इनकी भी गणना की जाने लगी। ये छायावाद के चार स्तम्भों में से एक है। प्रगतिवादी विचारधारा की ओर उन्मुख होने पर इन्होंने शोषित एवं पीड़ित वर्ग की व्यथा को अपनी कविता का विषय बनाया।

निराला प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार

निराला बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार थे। कविता के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास, कहानियाँ, निबन्ध, आलोचना और संस्मरणों की रचना भी की। ‘परिमल’ में सड़ी-गली मान्यताओं के प्रति तीव्र विद्रोह तथा निम्नवर्ग के प्रति इनकी गहरी सहानुभूति स्पष्ट दिखायी देती है। ‘गीतिका’ की मूल भावना श्रृंगारिक है। इसमें प्रकृति-वर्णन तथा देश-प्रेम की भावना का चित्रण भी मिलता है। ‘अनामिका’ में संगृहीत रचनाएं निराला के कलात्मक स्वभाव की द्योतक है। ‘राम की शक्ति-पूजा’ में कवि का ओज तथा पौरुष प्रकट हुआ है।

काव्य-सौन्दर्य

भाषा

निरालाजी ने अपनी सभी रचनाओं में शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ीबोली का प्रयोग किया। विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी इन्होंने बिना किसी पूर्वाग्रह के किया है। इनकी भाषा में अनेक स्थानों पर संस्कृत के शुद्ध तत्सम शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलता है, जिसके फलस्वरूप इनकी भावाभिव्यक्ति कुछ कठिन हो गयी है, विशेषकर छायावादी रचनाओं में भाषा की यह क्लिष्टता देखने को मिलती है। इसके विपरीत इनकी प्रगतिवादी रचनाओं की भाषा अत्यन्त सरल, सरस एवं व्यावहारिक है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि भाषा पर निरालाजी का असाधारण अधिकार था।

शैली

निरालाजी ने अपनी प्रबन्ध तथा मुक्तक रचनाओं के सृजन में कठिन एवं दुरूह तथा सरल एवं सुबोध दोनों ही शैलियों का प्रयोग किया है। छायावाद पर आधारित इनकी रचनाओं में कठिन एवं दुरूह शैली का प्रयोग देखने को मिलता है तो इनकी प्रगतिवादी रचनाओं में सरल एवं सुबोध शैली का प्रयोग दृष्टिगत होता है। अपने विलक्षण व्यक्तित्व एवं निराले कवित्व के कारण निरालाजी हिन्दी काव्य-जगत् में ‘महाप्राण’ की उपाधि से विभूषित हैं।

महाकवि निराला

हिन्दी साहित्य में यदि महाप्राण ‘निराला’ के मूल्यांकन की बात करें तो हम कह सकते हैं कि महात्मा कबीर के बाद हिन्दी साहित्य में यदि कोई फक्कड़ और निर्भीक कवि उत्पन्न हुआ तो वह थे-महाकवि निराला। इनके काव्य में कबीर का फक्कड़पन, सूफियों का सादापन, सूर तुलसी की प्रतिभा और प्रसाद को सौन्दर्य चेतना साकार हो उठी है। “निराला युगप्रवर्तक कवि थे। हिन्दी में मुक्त छन्दो को प्रयुक्त करने का श्रेय उन्हीं को है। उनका भाव जगत् विस्तृत है और उन्होंने छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद को अलंकृत किया है।”

निरालाजी छायावादी, प्रगतिवादी एवं प्रयोगवादी विचाराधाराओं के सफल चितेरे रहे हैं। ये वास्तव में ‘निराला’ हैं। हिन्दी में गीत तत्व का समावेश करनेवाले वे प्रथम कवि है। क्रान्तिकारी कवि के रूप में विख्यात निरालाजी ने हिन्दी साहित्य के समुन्नत विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का जन्म कहाँ हुआ था *?

मेदिनीपुर, भारतसूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' / जन्म की जगहnull

निराला के पिता का क्या नाम है?

पंण्डित रामसहाय त्रिपाठीसूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' / पिताnull

क्या निराला जी का जन्म पूर्णिमा को हुआ था?

निराला जी का जन्म बसंत पंचमी के दिन हुआ। वह छायावादी युग के प्रमुख कवि रहे हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 1897 ईस्वी में मेदनीपुर (बंगाल) में बसंत पंचमी के दिन हुआ था

निराला की पहली रचना कौन सी है?

1920 ई के आसपास उन्होंने अपना लेखन कार्य शुरू किया था। उनकी सबसे पहली रचना एक गीत जन्म भूमि पर लिखी गई थी। 1916 ई मैं उनके द्वारा लिखी गई ' जूही की कली ' बहुत ही लंबे समय तक का प्रसिद्ध रही थी और 1922 ई मैं प्रकाशित हुई थी।