नगरों के विकास के क्या कारण है? - nagaron ke vikaas ke kya kaaran hai?

नगरीकरण के कारण/कारक 

भारत मे नगरीकरण के निम्न कारण है--

1. कृषि समाज की भूमिका 

ग्रामीण तथ्यों की उपेक्षा करके भारतीय नगरीकरण के विकास को स्पष्ट नही किया जा सकता है। आर्थिक दृष्टि से कृषि व्यवसाय मे जब विकास और प्रगति हुई तभी नगरों की स्थापनायें हुई है। कृषि उत्पादन मे वृद्धि से व्यक्ति की आवश्यक जरूरतों की पूर्ति हुई। औद्योगिक-क्रांति ने कृषि उत्पादन के क्षेत्र मे गुणात्मक परिवर्तन को जन्म दिया। मशीनों का प्रयोग कृषि उत्पादन मे तीव्रता से होने लगा जिससे सिंचाई के साधनों मे विकास हुआ। अनेक प्रकार के अन्वेषण प्रारंभ हुए जिनका उद्देश्य है किस प्रकार बढ़ती जनसंख्या के लिये समय पर व अधिक तथा अच्छी फसलें उत्पन्न की जायें। 

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2. उपयुक्त जलवायु

भारत जलवायु की दृष्टि से एक धनी देश है। प्रकृति ने इसे अनेक दृष्टि से महान बनाया है। संपूर्ण भारत मे नदियों का बहना, खनिज के भण्डार और ऊंचे-ऊंचे पर्वत इसकी अक्षुण्ण सम्पत्ति है। उपजाऊ-भूमि इसकी धरोहर है। 

3. आवागमन के साधनों का विकास 

नगरीकरण के विकास में आवागमन के साधनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। व्यापारीकरण, बाजार और विभिन्न प्रकार की मंडियों का विकास आवागमन के साधनों के अभाव में संभव नही है। प्रौद्योगिकी विकास ने आवागमन के साधनों को समृद्ध बनाया है। अब जल मार्ग ही हमारे व्यापार करने के साधन नही है वरन् रेल, वायुयान, पानी के विशाल जहाज, ट्रक आदि भी है। पहले यातायात की सुविधाओं का अभाव था लेकिन अब टेलीफोन, फैक्स, ई-मेल, ऑन लाइन भुगतान की सुविधा से हजारों मील दूर से व्यापार करना आसान हो गया हैं।

4. व्यापार करने की प्रवृत्ति में वृद्धि 

नगरों के विकास की पृष्ठभूमि मे व्यावसायिक प्रवृत्ति महत्वपूर्ण है। अधिक से अधिक व्यक्ति नगर मे इसलिए भी स्थापित होना चाहते है क्योंकि उन्हें व्यापार करने की सुविधा प्राप्त है। आधुनिक युग मे नगर व्यापार के केन्द्र स्थल हो गए है।

5. नगरीय सुविधाओं का आकर्षण 

गाँव असुविधाओं का केन्द्र है। ग्रामीण को जहाँ मिट्टी का तेल भी उपलब्ध नही होता है जीवन की अत्यंत आवश्यक आवश्यकताओं की भी वहाँ पूर्ति नही होती। व्यक्ति की भले ही मृत्यु हो जाए पर न उसे वहाँ डाक्टर उपलब्ध होते है और न दवा और न कोई चिकित्सालय। 

गाँवों मे मिलो दूर पर स्कूल मिलते है जहां पर शिक्षा की उत्तम व्यवस्था नही होती। इसके विपरीत नगरों मे अच्छे से अच्छे स्कूल, काॅलेज, विश्वविद्यालय और तकनीकी ज्ञान के क्रेन्द्र, मेडिकल काॅलेज, इंजीनियरिंग काॅलेज, तथा असंख्य संस्थायें, संघ, समितियाँ जो किसी न किसी रूप मे समाज सेवा का कार्य करती है, यहाँ उपलब्ध हैं। यह सभी सुविधाएं ग्रामीणों को नगरों मे आने के लिये प्रोत्साहित करती है।

6. धनी और संपन्न होने की भावना 

नगर जहां व्यापार के केन्द्र स्थल है वहीं यह जीविका अर्जन के अनेक विकल्प भी मानव समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है।

7. स्वप्नों का संसार 

ग्रामीण समाज और पिछड़े हुए अंचलों के व्यक्तियों के लिये नगर पूरक लोक की कहानी की तरह सुन्दर और आकर्षण है। व्यक्ति नगर से अनगिनत अपेक्षाएँ करता है। वह अपनी इच्छाओं और महत्वकांक्षाओं को वह यहां पूर्ण करना चाहता है। इसी प्रकार के स्वप्न लेकर दिल्ली, कोलकाता और मुंबई जैसे महानगरों मे 5 से 7 लाख लोगों व्यक्ति प्रतिदिन बाहर से आते है। इसीलिए छोटे-बड़े सभी नगरों मे निरन्तर जनसंख्या बढ़ती जा रही है। 

8. जीवकोपार्जन के केन्द्र 

ग्रामीण समाज में कृषि से संबंधित कार्यों मे ही व्यक्ति कार्य करता है और अशिक्षित रह जाता है और शिक्षित होने पर भी उसे वहाँ अवसर नही मिलते। इसके विपरीत नगर मे जीविकोपार्जन के असंख्य विकल्प उपस्थित है। व्यक्ति वहाँ सरलता से कोई न कोई कार्य ढूँढ लेता है। यही कारण है कि नगर की सीमाएं निरन्तर बढ़ती जा रही है। 

9. मनोरंजन के केन्द्र

गाँव मे मनुष्य के पास मनोरंजन के नाम पर कुछ भी नही है। नगरों मे सिनेमा, नाट्यघर, सांस्कृतिक कार्यक्रम, टी. वी., रेडियों, ट्राॅन्जिस्टर आदि ऐसी चीजे है जो व्यक्ति का मनोरंजन करती है। इसके अतिरिक्त अच्छे पार्क, चिड़ियाघर, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल, बच्चों के खेलने के स्थान जैसी चीजें है जिसे बार-बार देखने का मन करता है इसलिए व्यक्ति ग्रामीण समाज के उबाऊ जीवन को छोड़कर नगर मे स्थायी रूप से रहना चाहता है। 

10. शिक्षा का प्रसार और प्रचार 

कस्बे, नगर और महानगरों मे जो ग्रामीण-युवक शिक्षा-ग्रहण करने आते है वे किसी भी कीमत पर गाँव वापस लौटना नही चाहते जबकि उन्हें नगरों मे अनेक सुविधाओं के साथ समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। नगरीय जीवन का आकर्षण व्यक्ति को नगर आने के लिये निरन्तर प्रेरित करता है। इसी तरह नगरीकरण की प्रक्रिया निरन्तर सुदृढ़ रूप मे अग्रसर होती रहती है।

11. राजनीति के केन्द्र स्थल 

नगर राजनैतिक गतिविधियों के केन्द्र स्थल है और महानगरों मे ही राजधानियां है। यहां मंत्री, विधायक, सांसद रहते है। यहां सत्ता पक्ष और विरोधी दल के नेता भी उपलब्ध रहते है और इनके मुख्य कार्यालय भी यही हैं। इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि राजधानियां नगरीकरण का सशक्त माध्यम रही है। यह भी नगरों की जनसंख्या वृद्धि का एक सशक्त कारण है।

12. सुरक्षा की भावना 

ग्रामीण समाज में आज जितनी असुरक्षा की भावना व्याप्त है उतनी नगरो मे नही है। प्राचीन समय मे तो ग्राम सुरक्षा का केन्द्र माने थे पर अब वहाँ हत्या, डकैती, आम बात है। पुलिस और सुरक्षा बल घटना होने के घण्टों बाद घटना स्थल पर पहुंचते है। इसके विपरीत नगर मे नागरिकों के जान-माल की अधिक सुरक्षा है। नगल मे पुलिस, प्रशासक, सांसद, मंत्री आदि की भीड़ लगी रहती है। इसलिए प्रशासन चुस्त और दुरूस्त रहता है।

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नगरों के विकास का प्रमुख कारण क्या था?

नगरों के विकास की पृष्ठभूमि मे व्यावसायिक प्रवृत्ति महत्वपूर्ण है। अधिक से अधिक व्यक्ति नगर मे इसलिए भी स्थापित होना चाहते है क्योंकि उन्हें व्यापार करने की सुविधा प्राप्त है। आधुनिक युग मे नगर व्यापार के केन्द्र स्थल हो गए है। गाँव असुविधाओं का केन्द्र है।

नगरीकरण का प्रमुख कारण क्या है?

भारत के नगरों के विकास के मुख्यतः अग्रलिखित कारण रहे हैं – ⦁ भयानक दुर्भिक्षों के कारण बड़े पैमाने पर किसान बेरोजगार हो गये। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार न मिल सकने के कारण जनसंख्या का रोजगार की तलाश में नगरों की ओर प्रवास होने लगा। ⦁ भूमिहीन श्रम वर्ग के विकास के कारण ही नगरीकरण प्रोत्साहित हुआ।

नगरों की उत्पत्ति के क्या कारण है?

- चार्ल्स कूले ने नगर के उत्पत्ति को परिवहन के साधनों से जोड़ा है । उसका विचार है कि नगरों की उत्पत्ति यातायात और संदेश वाहन के साधनों के जन्म और विकास के साथ ही हुई है । जो स्थान यातायात और संदेश वाहन की सुविधाओं से परिपूर्ण थे वही नगरों की स्थापनाऐं हुई ।

भारत में नगरों का विकास कैसे हुआ?

विगत पाँच दशकों में जहाँ भारत में आबादी की वृद्धि 2.5 गुणा रही है वहीं नगरीय आबादी में पाँच गुणा वृद्धि हुई है। अनुमान है कि 2045 तक भारत में नगरीय आबादी 800 मिलियन तक हो जायेगी। 1901 में भारत में छोटे बड़े 1827 नगरीय क्षेत्र थे जिनकी संख्या 2001 में 5061 हो गई है।