मध्य गंगा मैदान की विशेषताएँ बताएँ। - madhy ganga maidaan kee visheshataen bataen.

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गंगा का मैदान को तीन भागों में बांटा जा सकता पकड़ी गंगा का मैदान यह मैदान काफी उपजाऊ है यह मैदान काफी समतल है इसमें इसमें कई फसलों का उत्पादन होता है जिसमें चावल चावल गेहूं ओम बन्ना अधिक प्रमुख फसलों का उत्पादन किया जाता है

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मध्य गंगा मैदान की विशेषताएँ बताएँ। - madhy ganga maidaan kee visheshataen bataen.

मध्य गंगा मैदान | मध्य गंगा मैदान का उच्चावच एवं अपवाह | मध्य गंगा मैदान की मिट्टी | मध्य गंगा मैदान की जलवायु | मध्य गंगा मैदान के परिवहन के साधन एवं प्रमुख नगर

  • मध्य गंगा मैदान
    • मध्य गंगा मैदान का उच्चावच एवं अपवाह-
    • मध्य गंगा मैदान की मिट्टी-
    • मध्य गंगा मैदान की जलवायु-
    • मध्य गंगा मैदान के परिवहन के साधन एवं प्रमुख नगर-
      • भूगोल – महत्वपूर्ण लिंक

मध्य गंगा मैदान

इस मैदान के अंतर्गत पूर्वी उत्तर प्रदेश सम्मिलित हैं। इस प्रदेश की पश्चिम सीमा 100 सेंटीमीटर की वार्षिक वृष्टि रेखा द्वारा और पूर्वी सीमा उत्तर प्रदेश की पूर्वी सीमा द्वारा निर्मित है। इस प्रकार यह मैदानी भाग एक स्पष्ट प्राकृतिक प्रदेश नहीं है। इस मैदान की उत्तरी सीमा भारत- नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमा द्वारा एवं दक्षिणी सीमा 150 मीटर की समोच्च रेखा द्वारा निश्चित की गयी है। इस प्रदेश की पूर्व-पश्चिम लंबाई लगभग 150 किलोमीटर तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ाई 140 किलोमीटर है। इसका विस्तार 25 30 से 27 47 अक्षांशों एवं 81 47 से 84 पूर्वी देशांतरों के मध्य है। वस्तुतः यह भारत का हृदय स्थल है। इस प्रकार इस मैदान का विस्तार गोरखपुर, आजमगढ़ एवं वाराणसी (चकिया तहसील के कुछ भाग) तथा गोण्डा जनपद की उतरौला एवं बलरामपुर, फैजाबाद जनपद की फैजाबाद, अम्बेडकर नगर जनपद, सुल्तानपुर जनपद को सुल्तानपुर एवं कादीपुर, प्रतापगढ़ जनपद की पट्टी, इलाहाबाद जनपद की फूलपुर, हण्डिया, मेजा, करछना तहसीलों में पाया जाता है।

मध्य गंगा मैदान का उच्चावच एवं अपवाह-

यह विस्तृत एवं समतल मैदान है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 50-100 मीटर के मध्य है। इस मैदान का निर्माण गंगा एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाये गये अवसादों से हुआ है।  उक्त से आने वाली प्रमुख नदियों में गोमती, घाघरा, गंडक तथा कोसी हैं जबकि दक्षिण से मिलने वाली नदियों में टोंस एवं सोन प्रमुख हैं। नदियों का खादर क्षेत्र बाँगर की तुलना में पर्याप्त विस्तृत है। बाढ़ की मिट्टी प्रतिवर्ष निक्षेपित होते रहने के परिणामस्वरूप नदियों की घाटियाँ ऊंची हो गयी हैं और कहीं-कहीं नदियों का जल-तल आसपास के भागों में ऊँचा हो गया है। इसका परिणाम यह होता है कि बाढ़ के समय किनारों के कटते ही नदी का जल  दूर-दूर तक फैल जाता है और चारों ओर जल ही जल दिखायी पड़ता है, जिससे यहाँ प्रतिवर्ष जान-माल की हानि होती रहती है। गंडक व कोसी नदियाँ वर्षा ऋतु में बड़ा ही भयंकर स्वरूप धारण कर लेती हैं। इनके मार्ग में दलदल भी पाये जाते हैं जो वर्षा के दिनों में झील का रूपधारण कर लेते हैं। इन नदियों का मार्ग दाएँ-बाएँ खिसकता रहता है। इस प्रकार ये नदियाँ अपना मार्ग भी बदलती रहती हैं। कहीं-कहीं इन नदियों द्वारा छोड़ी गयी घाटियाँ भी झील या, दलदल के रूप में पायी जाती हैं। सरयूपार मैदान में रामगढ़ (गोरखपुर) बखिरा (बस्ती) तथा दक्षिण में सुरहा (बलिया) ताल इसी प्रकार की झीलें हैं।

इस मैदान की समुद्र तल से ऊँचाई 100 मीटर से भी कम ही है। फिर भी पश्चिम में डुमरियागंज से मैदान की ऊँचाई कुछ बढ़ने लगती है और उत्तर-पश्चिम सीमा पर यह ऊँचाई 130 मीटर तक हो जाती है। इस प्रकार दक्षिण भाग में यह मैदान ऊँचा होते-होते पठारी भाग के पास 15.3 मीटर ऊंचा हो जाता है। सामान्य रूप से मैदान समतल हैं। ऊंचे-नीचे भूभाग नदियों के तटबंध, उनके द्वारा छोड़े गये मार्ग एकवं ताल आदि के फलस्वरूप पाये जाते हैं।

मध्य गंगा मैदान की मिट्टी-

इस प्रदेशा की मिट्टी दोमट तथा जलोढ़ हैं जिसमें बालू एवं चीका का सम्यक मिश्रण पाया जाता है। नदियों का आधिक्य, मार्ग परिवर्तन एवं झीलों तथा तालों के आधिक्य के परिणामस्वरूप ऊपरी गंगा की घाटी को अपेक्षा यहाँ खादर अथवा कछारी मैदान का विस्तार अधिक है। मिट्टी की गहराई एवं ऊसर भी अधिक है। बलिया, गाजीपुर, आजमगढ़ आदि के कुछ छिटपुट भागों में ऊसर का विस्तार पाया जाता है। इस मैदान के दक्षिण भाग में जलोढ़ की गहराई कम है क्योंकि यहाँ दक्षिणी पठारों के उत्तरी ढालों पर नदियों द्वारा मिट्टी की पतली परत का निक्षेपण्का किया गया है। गंगा के दक्षिण में खादर का विस्तार कम है क्योंकि इस भाग में ऊबड़-खाबड़ एवं पठारी धरातल पाया जाता है। पूरब में राजमहल की पहाड़ियाँ गंगा के निकट तक विस्तृत है। गंगा नदी के उत्तर में चिकनी मटियार पायी जाती है। इस मैदान में जलोढ़ की औसत गहराई 1400 मीटर है। हिमालय के निकट गोरखपुर-मोतिहारी गर्त में गहराई 900 मीटर तथा दक्षिण पठार के निकट 300 मीटर से भी कम है।

मध्य गंगा मैदान की जलवायु-

ऊपरी गंगा के मैदान में मिलती-जुलती जलवायु पायी जाती है। यह मैदान समुद्री प्रभाव क्षेत्र के बाहर पड़ने के परिणामस्वरूप यहाँ भी पूर्व वर्णित ऋतुएँ पायी जाती हैं। ग्रीष्म काल का औसत तापमान 35° रहता है। मई में यह तापमान 38° तक पहुंच जाता है। इसके परिणामस्वरूप इन दिनों तप्त हवाएँ चला करती हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘लू’ कहा जाता है। इस मैदान के उत्तर प्रदेश वाले भाग में गर्मी अधिक पड़ती है। शीतकाल बहुत कठोर नहीं होता है। जनवरी का औसत तापमान 16° के आस-पास रहता है। वर्षा ग्रीष्मककाल में बंगाल की खाड़ी के मानसून के प्रभाव से होती है। वर्षा की मात्रा पश्चिमी सीमा पर 100 सेमी0 से लेकर 130 सेमी0 तथा पूर्वी सीमा पर 150 सेमी0 होती है। शीतकाल में उत्तरी भाग में उत्तर-पश्चिम में आनेवाले चक्रवातों से थोड़ी वर्षा होती है। बंगाल की खाड़ी में चलने वाले कभी-कभी उष्ण कटिबंधीय चक्रवातीय हवाओं से भी घनघोर वर्षा होती है जिसके परिणामस्वरूप नदियों में अचानक बाढ़ आ जाया करती है। वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चतता से बाढ़ एवं सूखे का भय सर्वदा बना रहता है। कोसी न दी बाढ़ के लिए कुख्यात है। इसकी बाढ़ की विभीषिका को कम करने के लिए इस पर बाँध बनाया जा रहा है।

संपूर्ण क्षेत्रफल का लगभग 64.67 प्रतिशत भाग कृषिगत है। यह प्रतिशत दक्षिण बिहार के पूर्वी भाग में 70 से अधिक तथा पूर्णिया को छोड़कर उत्तरी बिहार के मैदान में 80 से भी  अधिक है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी 75 प्रतिशत भूमि पर कृषि की जाती है। पैदा की जाने वाली फसलों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में चावल प्रमुख है। इस भाग की अन्य फसलों में चना, जौ, गेहूं, मक्का, अरहर, मूंग, मसूर आदि हैं। बिहार के उत्तरी भाग में गेहूं रबी की प्रमुख फसल है। चावल खरीफ में प्रथम स्थान पर है। बूढ़ी गण्डक नदी के पश्चिम एवं दक्षिण में मक्का तृतीय स्थान पर है। प्रायः जौ के साथ चना भी बोया जाता है। मुद्रादायिनी फसलों में दाल का महत्वपूर्ण स्थान है। क्षेत्रफल की दृष्टि से दालों का स्थान तृतीय है। अन्य तिलहन एवं जूट का स्थान है।

इस मैदानी भाग में उद्योग के नाम पर चीनी उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है। कुछ स्थानों पर हाल ही में अनेक उद्योगों का विकास हुआ, जैसे- रसायन उद्योग साहूपुरी में डीजल रेलवे इंजिन मडुवाडीह में, रासायनिक उर्वरक गोरखपुर में सभी उत्तर प्रदेश में) सीमेंट, कागज, रसायन। चीनी मिलों की कुल संख्या लगभग 55 है। अधिकांश गन्ने का उपयोग गुड़ एवं खाड़सारी में किया जाता है। हथकरघा उद्योग का विकास वाराणसी, मऊ, अकबरपुर, टांडा,  खलीलाबाद, आदि स्थानों पर हुआ है।

मध्य गंगा मैदान के परिवहन के साधन एवं प्रमुख नगर-

इस मैदान में परिवहन के साधनों का अच्छा विकास हुआ है। रेल एवं सड़कों का जाल बिछा हुआ है। गोरखपुर, मुगलसराय, वाराणसी प्रमुख रेलवे जंक्शन है। मुगलसराय भारत का सबसे विशाल जंक्शन है। वाराणसी, गोरखपुर एवं पटना हवाई अड्डे हैं। इस प्रकार प्रमुख नगर एवं बाजार, सड़कों एवं रेलों से संबंधित हैं।

यद्यपि इस मैदान में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत बहुत कम है तथापि भारत के कुछ प्राचीनतम एवं महत्त्वपूर्ण धार्मिक नगर इस प्रदेश में स्थित हैं। इसमें अयोध्या, वाराणसी, बलिया, विन्ध्याचल, चुनार आदि पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित हैं। वर्तमान समय में प्रमुख नगर वाराणसी, जौनपुर, मिर्जापुर, गोरखपुर, देवरिया आदि हैं।

भूगोल – महत्वपूर्ण लिंक
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मध्य गंगा की विशेषता क्या है?

यह विस्तृत एवं समतल मैदान है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 50-100 मीटर के मध्य है। इस मैदान का निर्माण गंगा एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाये गये अवसादों से हुआ है। उक्त से आने वाली प्रमुख नदियों में गोमती, घाघरा, गंडक तथा कोसी हैं जबकि दक्षिण से मिलने वाली नदियों में टोंस एवं सोन प्रमुख हैं।

गंगा के मैदान को कितने भागों में बांटा गया है?

उत्तरी मैदान को मोटे तौर पर तीन उपवर्गों में विभाजित किया गया है। उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता है। सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों के द्वारा बनाये गए इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में स्थित है।

गंगा के मैदानी भाग को क्या कहते हैं?

भूगोल सिन्धु-गंगा के मैदानी इलाके, जिन्हें "ग्रेट प्लेन" भी कहा जाता है, सिन्धु तथा गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों के घास के विशाल मैदान हैं। ये पश्चिम में जम्मू व कश्मीर से लेकर पूर्व में असम तक हिमालय पर्वतों के समानांतर स्थित हैं तथा उत्तरी तथा पूर्वी भारत के अधिकांश क्षेत्रों तक फैले हैं

गंगा के मैदान का निर्माण कैसे हुआ?

उत्तरी भारत का मैदान सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बहाकर लाए गए जलोढ़ निक्षेप से बना है। इस मैदान की पूर्व से पश्चिम लंबाई लगभग ३२०० किलो मीटर है। इसकी औसत चौड़ाई १५० से ३००० किलोमीटर है। जलोढ़ निक्षेप की अधकतम गहराई १००० से २००० मीटर है।