माता का अँचल पाठ में लड़कों की मंडली जुटकर विवाह की क्या-क्या तैयारियाँ करती थी - maata ka anchal paath mein ladakon kee mandalee jutakar vivaah kee kya-kya taiyaariyaan karatee thee

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माता का अँचल पाठ में लड़कों की मंडली जुटकर विवाह की क्या-क्या तैयारियाँ करती थी - maata ka anchal paath mein ladakon kee mandalee jutakar vivaah kee kya-kya taiyaariyaan karatee thee

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CBSE Class 10 Hindi Ch – 1 Test Paper

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CBSE Extra Questions for Class 10 Hindi

माता का ऑचल

  1. लेखक किस घटना को याद कर कहता है कि वैसा घोड़मुँहा आदमी हमने कभी नहीं देखा? माता का अँचल पाठ के आधार पर बताइए।

  2. बच्चों के द्वारा बनाए गए घरौंदे का उल्लेख कीजिए माता का अँचल पाठ के आधार पर बताइए।

  3. ‘माता का आँचल’ पाठ में लड़कों की मंडली जुटकर विवाह की क्या-क्या तैयारियाँ करती थी ?

  4. बच्चे सरल, निर्दोष और मस्त होते हैं-माता का अँचल पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।

  5. ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर लिखिये कि माँ बच्चे को ‘कन्हैया’ का रूप देने के लिये किन-किन चीजों से सजाती थीं ? इससे उनकी किस भावना का बोध होता है? आपकी राय से बच्चों का क्या कर्तव्य होना चाहिए ?

  6. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल, आज के खेल और खेल-सामग्री की अपेक्षा मूल्यों का विकास करने में अधिक समर्थ थे। माता का अँचल पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

  7. माता का अँचल पाठ में बैजू तथा बच्चों ने किसे तथा क्यों चिढ़ाया? उसका क्या परिणाम हुआ?

  8. ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर भोलानाथ के बाबू जी के पूजा-पाठ की रीति पर टिप्पणी कीजिये। आप इससे क्या प्रेरणा ग्रहण करते हैं।

माता का ऑचल

Answer

  1. अपने बचपन में लेखक और उनके मित्रों की टोली किसी दूल्हे के आगे-आगे जाती हुई ओहारदार पालकी को देख लेते तो बड़े ही जोर से चिल्लाते | एक बार ऐसा करने पर एक बूढ़े वर ने उन सबको बड़ी दूर तक खदेड़कर ढेलों से खूब मारा | उसे याद कर लेखक कहता है कि न जाने किस ससुर ने वैसा जमाई ढूँढ़ निकाला था | उस खूसट-खब्बीस की सूरत लेखक नहीं भुला पाया। लेखक ने वैसा घोड़मुँहा आदमी कभी नहीं देखा।
  2. लेखक की मित्र-मंडली ने एक दिन घर बनाने का खेल खेलने का निश्चय किया। तिनकों का छप्पर, दियासलाई की पेटियों के किवाड़, घड़े के मुँह का चूल्हा-चक्की, दीए की कड़ाही और पूजा की आचमनी से कलछी बनाई जाती | पानी, धूल और बालू को मिलाकर ज्योनार तैयार किया जाता | पंगत बिठाई जाती | पंगत के अंत में पिताजी भी जीमने बैठते | उन्हें बैठा देखकर सब हंसने लगते और घरौंदा बिगाड़कर भाग जाते | वे लोटपोट होकर पूछते-फिर कब भोजन होगा भोलानाथ ? इस प्रकार लेखक ने बच्चों के अद्भुत व विचित्र घरौंदे का सजीव चित्रण अंकित किया है।
  3. ‘माता का आँचल’ पाठ में लड़कों की मंड़ली बारात निकालती थी। वे कनस्तर को तंबूरा बनाकर बजाते, अमोले को घिसकर उससे बड़े मजेे से शहनाई बजाते, टूटी हुई चूहेदानी को पालकी बनाकर उसे कपड़े से ढक देते। कुछ बच्चे समधी बनकर बकरे पर चढ़ लेते थे और बारात चबूतरे के चारों ओर घूूूमकर दरवाजे लगती थी। वहाँ काठ की पटरियों से घिरे, गोबर से लिपे, आम और केले की टहनियों से सजाए हुए छोटे आँगन में कुल्हड़ का कलसा रख़ा रहता था। वहीं पहुँचकर बारात फिर लौट आती थी। लौटते समय खटोली पर लाल पर्दा डाल दिया जाता और दुल्हन को उस पर चढ़ा लिया जाता था। बाबूजी दुल्हन का मुँह देखते तो सब बच्चे हँस पढ़ते।
  4. एक कहावत है- बच्चे मन के सच्चे और सरल होते हैं | उनके मन में जो भाव उठते हैं वे उन्हें बड़ी ही सहजता एवं सरलतापूर्वक कह देते हैं। वे मन से भी निर्दोष और निर्मल होते हैं। उन्हें किसी प्रकार की चिंता व भय नहीं सताता। वे बूढ़े दूल्हे को पसंद नहीं करते इसलिए उसे खूसट कह देते हैं इसलिए बूढ़ा दूल्हा उनके पीछे पड़ जाता है। बिना सोचे समझे मूसन तिवारी को चिढाना, चूहे के बिल में पानी डालना आदि उनकी मासूमियत और नादानी का ही उदाहरण है। वे नहीं जानते थे कि वे जो शरारत कर रहे हैं उसका क्या दुष्परिणाम हो सकता है | बच्चे खेल में इतने मस्त हो जाते हैं कि उन्हें घर-बार यहाँ तक की माँ-पिताजी की भी याद नहीं आती।
  5. भोलानाथ की माँ उसके सिर में बहुत-सा सरसों का तेल डालकर बालों को तर कर देती | इसके बाद वह उसका उबटन करती। भोलानाथ की नाभि और माथे पर काजल का टीका लगाती | उसकी चोटी गूंथकर उसमें फूलदार लट्टू बाँध देती थीं | इसके बाद रंगीन कुरता टोपी पहनाकर उसे खासा कन्हैया बना देती। इससे माँ का भोलानाथ के प्रति लाड़ प्यार की भावना का बोध होता है। हमारी राय में बच्चों का भी अपने माता-पिता के प्रति यह कर्तव्य है कि वे उनके प्रति आदर सम्मान का भाव रखें व ऐसा कोई भी काम न करें जिससे उनकी भावना को ठेस पहुँचे |
  6. आज बच्चे अधिकाँश खेल कमरों में रहकर अकेले खेलना चाहते हैं। इन खेलों में प्रयुक्त सामग्री मशीन निर्मित होती है। इस प्रकार के खेलों से बच्चे का मन भी बनावटी हो जाता है | उनमें मित्रता, सहयोग आदि की भावना विकसित ही नहीं हो पाती | इसके विपरीत भोलानाथ के खेल खुले मैदानों में खेले जाते थे। इनमें पक्षियों को उड़ाना, खेती-बारी करना, बारात निकालना, भोज का प्रबंध करना आदि मुख्य थे। इन खेलों में काम आने वाली सभी वस्तुएँ हस्तनिर्मित होती थी | ये खेल साथियों के साथ खेले जाते थे, जिनसे सहभागिता, सद्भाव, मेल-जोल (मित्रता) आदि मूल्य विकसित होते थे। इसके अलावा इन खेलों की सामग्री में प्राकृतिक वस्तुएँ शामिल होती थीं जो प्रकृति से जुड़ाव और उसे संरक्षित करना सिखाती थी | इससे बच्चों के मन में समाज के साथ राष्ट्र-प्रेम का उदय एवं विकास होता था।
  7. ‘माता का अँचल’ पाठ में बैजू और बच्चों ने गाँव के बुजुर्ग मूसन तिवारी को चिढ़ाया क्योंकि बैजू बड़ा ढीठ लड़का था | मूसन तिवारी अत्यंत वृद्ध थे | उन्हें आँखों से भी कम दिखाई देता था। गाँव के सभी लोग अकसर उनसे मजाक किया करते थे। बैजू ने मूसन तिवारी को चिढ़ाते हुए कहा-बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा। पीछे से अन्य बच्चों ने भी इसी उक्ति को दुहराना शुरू किया। परिणामस्वरूप मूसन तिवारी सभी बच्चों के पीछे पड़ गए। सारे बच्चे भागकर बच गए। मूसन तिवारी ने पाठशाला पहुँचकर लेखक तथा बैजू की शिकायत की। बैजू तो भाग गया परंतु लेखक पकड़े गए। गुरूजी ने लेखक की खूब खबर ली और उन्हें घर जाने से मना कर दिया | लेखक के पिताजी को जब इस बात का पता चला तो वे लेखक को लेने विद्यालय पहुँचे और गुरूजी से उनकी ओर से क्षमा माँगी |
  8. भोलानाथ के बाबू जी रोज़ प्रातःकाल उठकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर नहाकर पूजा करने बैठ जाते। वे रामायण का पाठ करते। पूजा-पाठ करने के बाद वे राम-नाम लिखने लगते । अपनी ‘रामनामा बही’ पर हज़ार राम-नाम लिखकर वे उसे पाठ करने की पोथी के साथ बाँधकर रख देते । इसके बाद पाँच सौ बार कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम-नाम लिखकर उन्हें आटे की गोलियों में लपेटते और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते | वहां एक-एक आटे की गोलियों को मछलियों को खिलाने लगते। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें सभी जीवों पर दया दिखानी चाहिए। मछलियों को आटे की गोलियां खिलाना, चींटी, गाय, कुत्ते, आदि सभी को भोजन देना चाहिए तथा सभी जीवों के प्रति प्रेम की भावना रखनी चाहिए।


माता का अँचल पाठ में लड़कों की मंडली जुटकर विवाह की क्या-क्या तैयारियाँ करती थी - maata ka anchal paath mein ladakon kee mandalee jutakar vivaah kee kya-kya taiyaariyaan karatee thee


माता का आँचल पाठ में लड़कों की मंडली जुटकर विवाह की क्या क्या तैयारियाँ करती?

'माता का आँचल' पाठ में लड़कों की मंडली जुटकर विवाह की क्या-क्या तैयारियाँ करती थी ? उत्तरः लड़कों की मंडली बारात का भी जुलूस निकालती थी।

भोलानाथ के मित्र मंडली रंगमंच किसका बनाया करती थी?

भोलानाथ अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती और तमाशे करते। इन तमाशों में तरह-तरह के नाटक शामिल होते थे। कभी चबूतरे का एक कोना ही उनका नाटक घर बन जाता तो , कभी बाबूजी की नहाने वाली चौकी ही रंगमंच बन जाती।

भोलेनाथ का वास्तविक नाम क्या था Class 10?

भभूत रमाने से हम खासे 'बम - भोला' बन जाते थे। पिता जी हमें बड़े प्यार से 'भोलानाथ' कहकर पुकारा करते । पर असल में हमारा नाम था 'तारकेश्वरनाथ'।

माता का अँचल पाठ में किसका चित्रण किया गया है?

उत्तर: इस कहानी में लेखक ने माता-पिता के वात्सल्य का बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है। पिता सुबह तड़के उठ जाता है और अपने बच्चे में भी इसकी अच्छी आदत डालता है। वह रामायण के जरिए बच्चे को अपनी पुरातन संस्कृति की शिक्षा भी देता है। वह बच्चे को घुमाने भी ले जाता है और उसके साथ खेलता भी है।