मनुष्यता कविता में वर्णित मुख्य नैतिक गुण क्या है? - manushyata kavita mein varnit mukhy naitik gun kya hai?

निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. ‘वृथा मरे, वृथा जिए’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कवि के अनुसार जो व्यक्ति स्वार्थपूर्ण जीवन व्यतीत करता हुआ, अंत में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, ऐसे मनुष्य का जीना और मरना दोनों वृथा हैं। मनुष्य को चाहिए कि अपनी बौद्धिक शक्ति और संवेदनशीलता के बल पर सृजनात्मक तथा अविस्मरणीय कार्य करने में ही जीवन की सार्थकता समझे, किन्तु यदि मनुष्य के जीवन समाप्त होने के साथ ही लोग उसे भूल जाएँ, तो उसका जीवन और मरण दोनों वृथा हैं।

प्रश्न 2. मनुष्यता कविता में कवि ने किन महान व्यक्तियों का उदाहरण दिया है और उनके माध्यम से क्या संदेश देना चाहा है?
अथवा
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए क्या संदेश दिया है?

उत्तर: 

  • राजा रंतिदेव, ऋषि दधीचि, उशीनर, कर्ण, महात्मा बुद्ध।
  • निस्वार्थ भाव, त्याग, समर्पण, परोपकार, दानवीरता तथा शरणागत की रक्षा।

व्याख्यात्मक हल:
मनुष्यता कविता में कवि ने राजा रंतिदेव, दधीचि ऋषि, उशीनर, कर्ण तथा महात्मा बुद्ध का उदाहरण देते हुए मानवता, एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता और करुणा का संदेश देना चाहता है। वह मनुष्य को स्वार्थ, भिन्नता, वर्गवाद, जातिवाद आदि संकीर्णताओं से मुक्त करना चाहता है। वह मनुष्य में उदारता के भाव भरना चाहता है। कवि चाहता है कि हर मनुष्य समस्त संसार में अपनत्व की अनुभूति करे। वह दुखियों, वंचितों और जरूरत मंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने को भी तैयार हो। वह कर्ण, दधीचि, रंतिदेव आदि के अतुल त्याग से प्रेरणा ले। वह अपने मन में करुणा का भाव जगाए। वह अभिमान, लालच और अधीरता का त्याग करे। एक-दूसरे का सहयोग करके देवत्व को प्राप्त करे। वह हँसता-खेलता जीवन जिए तथा आपसी मेल-जोल बढ़ाने का प्रयास करे। उसे किसी भी सूरत में अलगाव और भिन्नता को हवा नहीं देनी चाहिए।

प्रश्न 3. कवि गर्वरहित जीवन जीने की सलाह क्यों दे रहा है?
उत्तर:
कवि गर्वरहित जीवन जीने की सलाह इसलिए देता है, क्योंकि गर्व मनुष्य को मानवता से गिराता है। गर्व में अंधा व्यक्ति लोगों की मुश्किलों को नहीं समझ पाता, न ही उसे दुखी व्यक्ति के कष्ट नजर आते हैं। जब ईश्वर की दृष्टि में संसार में छोटा बड़ा कोई नहीं है, तो मानव दूसरों को अपने से लघु समझकर उनके साथ दुर्व्यवहार क्यों करे?

प्रश्न 4. मनुष्यता कविता के माध्यम से कवि ने किन गुणों को अपनाने का संकेत दिया है ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर: गुण-परोपकार, वसुधैव कुटुंबकम, सहयोग व भाईचारा, दानशीलता, उदारता, अहंकार का त्याग करना, धन पर गर्व न करना, भेदभाव न रखना, सहानुभूति की भावना आदि।
(कोई पाँच गुण स्वीकार्य हैं।)
तर्क सहित उत्तर-

  • यह मनुष्य की पहचान है, माँ सरस्वती भी परोपकारी की प्रशंसा करती हैं।
  • हम सब एक ही परमपिता की संतान हैं, इसलिए हम सब आपस में भाई-भाई हैं।
  • हम सबका लक्ष्य एक है (मोक्ष) इसलिए एक-दूसरे की उन्नति में सहयोग देना चाहिए।
  • रतिदेव, दधीचि, उशीनर, कर्ण जैसे उदार व दानशील बनना चाहिए आदि। 

व्याख्यात्मक हल:
मनुष्यता कविता के माध्यम से कवि ने परोपकार, वसुधैव कुटुंबकम्, सहयोग की भावना, भाईचारा, दानशीलता, उदारता, अहंकार का त्याग, धन का अहंकार न करना, भेदभाव न करना, सहानुभूति की भावना आदि गुणों को अपनाने का संकेत दिया है क्योंकि यही गुण मनुष्य की पहचान है। माँ सरस्वती भी परोपकारी व्यक्ति की प्रशंसा करती हैं। हम सब एक ही परमपिता की संतान होने से आपस में भाई-भाई हैं इसलिए हमें एक-दूसरे की उन्नति में सहयोग देना चाहिए। हम सब का लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है जिसके लिए हमें रंतिदेव, दधीचि, उशीनर, कर्ण व महात्मा बुद्ध जैसे उदार व दानी बनना चाहिए।

प्रश्न 5. मनुष्यता कविता का मूल संदेश स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है ?
अथवा
‘मनुष्यता’ कविता का प्रतिपाद्य संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
मनुष्यता कविता के माध्यम से कवि मानवता, एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता और करुणा का संदेश देना चाहता है। वह मनुष्य को स्वार्थ, भिन्नता, वर्गवाद, जातिवाद आदि संकीर्णताओं से मुक्त करना चाहता है। वह मनुष्य में उदारता के भाव भरना चाहता है। कवि चाहता है कि हर मनुष्य समस्त संसार में अपनत्व की अनुभूति करे। वह दुखियों, वंचितों और जरूरतमंदों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने को भी तैयार हो। वह कर्ण, दधीचि, रंतिदेव आदि के अतुल त्याग से प्रेरणा ले। वह अपने मन में करुणा का भाव जगाए। वह अभिमान, लालच और अधीरता का त्याग करे। एक-दूसरे का सहयोग करके देवत्व को प्राप्त करे। वह हँसता-खेलता जीवन जिए तथा आपसी मेल-जोल बढ़ाने का प्रयास करे। उसे किसी भी सूरत में अलगाव और भिन्नता को हवा नहीं देनी चाहिए।

प्रश्न 6. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेल मेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी। 
उत्तर: भाव:कवि प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में हम मनुष्यों को प्रेरित करते हुए कह रहे हैं कि सहर्ष (हर्ष सहित) मनोवांछित इच्छित लक्ष्य मार्ग पर तुम आगे बढ़ो। यदि रास्ते में विपत्तियाँ, बाधाएँ आती हैं या पड़ें, उन्हें किनारे करते हुए आगे बढ़ो। मेल-जोल कम नहीं होने पाए और मित्रता कभी समाप्त न हो। मेल-जोल और मित्रता के सहारे आगे बढ़ते जाओ। तर्क की कसौटी पर तर्क सहित सावधानी के साथ मार्ग पर आगे बढ़ो। सभी वाद-विवाद से परे होकर तर्क सहित तुम आगे बढ़ो।