भारत की जलवायु : मौसम व जलवायु में अंतर , मानसून का आगमन एवं वापसी , जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकShare via Whatsapp Show
आज के इस लेख में हम जलवायु के विषय में पढेंगे की किस प्रकार जलवायु किसी देश की भौतिक परिस्थितियों को प्रभावित करती है l आप जिस जगह रहते है क्या आपने कभी उस जगह के मौसम में पायी जाने वाली भिन्नताओ के बारे में जाने का प्रयास किया ? जैसे की मई का महीना इतना गर्म,जून-जुलाई में अत्यधिक वर्षा और दिसंबर माह में कड़ाके की ठण्ड l आखिर इन ऋतुओ में इतना अंतर कैसे है l इन सभी प्रश्नों का उत्तर हम इस लेख में जानेंगे l इन प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु भारत की जलवायु के विषय में जानना आवश्यक है l तो चलिए जानते है - जलवायु -"एक विशाल क्षेत्र में लम्बी समयावधि में मौसम की अवस्थाओ व विविधताओं का कुल योग ही जाल्वायु कहलाती है l" अतः जलवायु की गणना लम्बे समय से उस क्षेत्र के मौसम में होने वाले परिवर्तन का औसत निकालकर कर की जाती है l जलवायु और मौसम को कई बार हम एक ही मान लेते है l जबकि इनमे स्पष्ट भिन्नता है l आइये पहले जलवायु और मौसम के बीच के अंतर को हम समझ लेते है l जलवायु और मौसम में अंतर -मौसम को हम इस प्रकार समझ सकते है कि थोड़े समय के लिए वायुमंडल की अवस्था में जो परिवर्तन होता है उसे मौसम कहा जाता है l मौसम की अवस्था एक दिन में कई बार बदल सकती है जैसा की आपने कई बार देखा होगा कि एक दिन में धुप होने की साथ साथ कभी एकदम मौसम बदलकर बदल छा जाते है और बारिश होने लगती है l इसे हम सामान्य भाषा में मौसम बदलना कहते है l और जब लम्बे समय तक मौसम की इन बदलती परिस्थिति का हम अध्ययन करते है तो इसे जलवायु कहा जाता है l मौसम छोटे क्षेत्र में व अल्पकालीन अवधि में वायुमंडलीय अवस्था में परिवर्तन को कहा जाता है l जबकि जलवायु एक विशाल क्षेत्र में दीर्घकालीन अवधि में मौसम की दशाओ के औसत से प्राप्त किया जाता है l हमने जलवायु के बारे में तो जान लिया परन्तु क्या आप जानते है की भारत की जलवायु कैसी है और भारत की जलवायु ऐसी क्यों है l आइये भारत की जलवायु के बारे में विस्तार से चर्चा करते है l भारत की जलवायु -भारत की जलवायु के विषय में अगर हम बात करे तो भारत में उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु है l इस प्रकार की जलवायु मुख्य रूप से भारत के दक्षिण व दक्षिण पूर्वी भागो में पायी जाती है l भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी होने का कारण है -उष्णकटिबंधीय जलवायु मुख्यतः कर्क रेखा व मकर रेखा की बीच के क्षेत्र में पायी जाती है l कर्क रेखा भारत के बीच से होकर गुजरती है l अतः कर्क रेखा भारत को दो भागो में विभाजित करती है l दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा के नजदीक स्थित है आता भारत का दक्षिणी भाग में उष्णकटिबंधीय जलवायु पाई जाती है। जबकि भारत का उत्तरी भाग कर्क रेखा के ऊपर होने के कारण यहां शीतोष्ण जलवायु होनी चाहिए थी। परंतु भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत स्थित है।जिसकी ऊंचाई लगभग 6000 मीटर है यह हिमालय पर्वत मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोकता है।अतः यह ध्रुवीय ठंडी हवाएं भारत में प्रवेश नहीं कर पाती हैं।यही कारण है कि भारत में मध्य एशिया जैसे साइबेरिया और चीन की तुलना में कम ठंड पड़ती है।और भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय है जबकि भारत के उत्तर में शीतोष्ण जलवायु पाई जाती है। उष्णकटिबंधीय होने के साथ-साथ भारत की जलवायु मानसूनी भी है। सबसे पहले समझते हैं कि मानसून क्या होता है? मानसून का अर्थ है 1 वर्ष के दौरान वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन।भारत में दो प्रकार की मानसूनी जलवायु पाई जाती है। उत्तर पूर्वी मानसून और दक्षिणी पश्चिमी मानसून उत्तर पूर्वी मानसून - भारत में उत्तर पूर्वी दिशा से प्रवेश करने वाली ठंडी हवाओं को उत्तर पूर्वी मानसून कहा जाता है l उत्तर पूर्वी मानसून भारत में शीत ऋतु में प्रभावित होता है और यह भारत में स्थल खंड के ऊपर से होकर प्रवाहित होता है।यही कारण है कि यह मानसून भारत में वर्षा नहीं कर पाता परंतु उत्तर पूर्वी मानसून जब पूर्वोत्तर भारत से होकर बहता है। तू यह बंगाल की खाड़ी के ऊपर से प्रवाहित होकर उससे पर्याप्त आद्रता ग्रहण कर लेता है।इसके पश्चात तमिलनाडु के पूर्वी तट से टकराकर कोरोमंडल तट पर भारी वर्षा करता है। यही कारण है कि तमिलनाडु में शीत ऋतु में भी वर्षा होती है। दक्षिणी पश्चिमी मानसून - दक्षिण पश्चिम मानसून भारत में दक्षिणी पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है। दक्षिणी पश्चिमी मानसून भारत में ग्रीष्म ऋतु में प्रवाहित होता है। भारत में मुख्य रूप से वर्षा का कारण दक्षिण पश्चिम मानसून ही है l भारत में 90% तक वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून के कारण ही होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत एक उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाला देश है। अब भारत में वर्षा के प्रभाव और वितरण के विषय में जानते हैं l भारत में वर्षा के प्रकार के साथ-साथ इसकी मात्रा व ऋतु के अनुसार इसके वितरण में भी भिन्नता पाई जाती है l भारत में वर्षा दो ऋतु में देखने को मिलती है l
ग्रीष्म ऋतु में भारत में जो वर्षा होती है वह दक्षिण पश्चिम मानसून के कारण होती है। दक्षिण पश्चिम दिशा से आने वाली हवाएं भारत में प्रवेश करने से पूर्व हिंद महासागर के ऊपर से बहकर आती है। और उससे पर्याप्त आद्रता ग्रहण कर लेता है इसके पश्चात भारत में वर्षा करता है। भारत में प्रवेश करने के बाद दक्षिण पश्चिम मानसून दो शाखाओं में बट जाता है। अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा। अरब सागर शाखा सबसे पहले 1 जून के आसपास भारत के पश्चिमी तट पर स्थित केरल राज्य के मालाबार तट पर वर्षा करती है। भारत में इसके आगमन से सामान्य वर्षा में अचानक तीव्रता आ जाती है। इस घटना को मानसून प्रस्फोट कहते हैं। जून के प्रथम सप्ताह के आसपास बंगाल की खाड़ी शाखा सबसे पहले मेघालय के शिलांग पठार से टकराती है और मेघालय पठार पर स्थित गारो , खासी और जयंतिया की पहाड़ियों पर भीषण वर्षा करती है। खांसी पहाड़ी पर स्थित चेरापूंजी व मासिनराम नामक स्थान पर विश्व में सर्वाधिक वर्षा होती है। इसके पश्चात यह शाखा असम राज्य पहुंचकर वहां वर्षा करती है और इसके बाद पहाड़ों,पर्वतों से टकराकर पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। इस समय अरब सागर शाखा भी भारत के मध्य भाग में पहुंच जाती है और मध्य भारत में वर्षा करती है। इसके पश्चात अरब सागर शाखा व बंगाल की खाड़ी शाखा दोनों गंगा के मैदान के उत्तरी पश्चिमी भाग में आपस में एक दूसरे से मिल जाती हैं। जुलाई के प्रथम सप्ताह तक मानसून देश के अन्य भागों - उत्तर पश्चिम पंजाब , हरियाणा ,राजस्थान तक पहुंच कर वहां वर्षा करता है और मध्य जुलाई तक यह हिमाचल प्रदेश व शेष भागों तक पहुंचकर वहां वर्षा करता है। भारत में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा दो कारणों पर निर्भर करती है। पश्चिमी विक्षोभ और उत्तर पूर्वी मानसून। पश्चिमी विक्षोभ - यह एक प्रकार का शीतोष्ण चक्रवात है। यह चक्रवात सुमति सागर या पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होने के कारण अत्यंत शीत होता है। वहां से यह पूर्व दिशा में प्रवाहित होता है है और भारत के पश्चिमी एवं उत्तर पश्चिमी भाग में प्रवेश करता है। इसे पश्चिमी विक्षोभ कहते हैं क्योंकि यह पश्चिमी भाग से भारत में प्रवेश करता है। पश्चिमी विक्षोभ के कारण भारत के पहाड़ी राज्यों जम्मू-कश्मीर , हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड हिमपात के रूप में वर्षा होती है। क्योंकि हिमालय की अधिकतर चोटिया हिम रेखा के ऊपर हैं। जहां तापमान 0 डिग्री सेंटीग्रेड से भी कम होता है अतः वर्षा हिम के रूप में ही होती है। पश्चिमी विक्षोभ के कारण भारत के उत्तरी मैदानी राज्यों पंजाब ,हरियाणा व दिल्ली में भी वर्षा होती है। शीत ऋतु में भारत में उत्तर पूर्वी मानसूनी हवाएं प्रवाहित होती है यह हवाएं क्योंकि स्थल से समुद्र की ओर बहती है। इसलिए वर्षा नहीं कर पाते हैं परंतु जब यह पूर्वोत्तर भारत से होकर समुद्र से स्थल की ओर बहती है तो पर्याप्त मात्रा में नमी के साथ तमिलनाडु में वर्षा करती है। अतः शीत ऋतु में भारत में वर्षा पश्चिमी विक्षोभ व उत्तर पूर्वी मानसूनी पवनों द्वारा होती है। भारत में पश्चिमी विक्षोभ के आने का कारण -पश्चिमी विक्षोभ जो कि भारत में शीत ऋतु में वर्षा का कारण होता है। यह उत्तर पश्चिमी दिशा से जेट धारा द्वारा भारत में प्रवेश करता है। जेट धाराएं क्षोभ मंडल में लगभग 12000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पश्चिम दिशा में बहने वाली धारा है। अतः इन्हें पछुआ जेट धारा भी कहते हैं। क्योंकि यह धाराएं 27 से 30 डिग्री अक्षांश के बीच स्थित होती है। अतः इन्हें उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएं भी कहते हैं। जेट धाराएं हिमालय के उत्तर में पश्चिम से पूर्व मध्य एशिया , तिब्बत और चीन में बहने वाली शक्तिशाली हवाएं हैं। भारत में यह जेट धाराएं ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर पूरे वर्ष भर हिमालय के दक्षिण में प्रवाहित होती है। गर्मियों में सूर्य की आभासी गति के साथ ही उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएं हिमालय के उत्तर में चली जाती है। शीत ऋतु में जब सूर्य दक्षिणावर्त होता है। तो ये जेट धारा भी दक्षिण की ओर मुड़ जाती है l और भारत में हिमालय से टकराकर दो भागो में बंट जाती है - उत्तरी जेट धारा और दक्षिणी जेट धारा l दक्षिणी जेट धारा भारत में हिमालय की दक्षिण में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होने लगती है l यही जेट धारा भारत में पश्चमी विक्षोभ को बहाकर अपने साथ लाती है जो कि शीत ऋतु में उत्तर भारत में वर्षा का कारण है l पश्चमी विक्षोभ द्वारा होने वाली वर्षा की मात्रा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर जाने पर घटती है क्योकि वायु में उपस्थित आर्द्रता की मात्रा में कमी हो जाती है l मानसून की वापसी -भारत में मानसून का समय जून के आरंभ से लेकर मध्य सितंबर तक लगभग 100 से 120 दिन तक का होता है। मानसून की वापसी भारत के पश्चिम उत्तर राज्यों से सितंबर में प्रारंभ हो जाती है और 15 अक्टूबर तक मानसून समस्त भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग से पूरी तरह पीछे हट जाता है। मानसून के पीछे हटने के क्रम में सर्वाधिक वर्षा पूर्वी तट पर होती है। लौटता हुआ मानसून बंगाल की खाड़ी से पर्याप्त नमी प्राप्त करता है व उत्तर पूर्वी मानसून के साथ मिलकर अक्टूबर - नवंबर के महीने में आंध्र प्रदेश के रायसीमा तथा तमिलनाडु के कोरोमंडल तट पर वर्षा करता है। दूसरी और बंगाल की खाड़ी में बनने वाले उष्ण चक्रवात पूर्व से पश्चिम दिशा में विचरण करते हैं व पूर्वी तट पर स्थित उड़ीसा ,आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भारी वर्षा करते हैं। हमने भारत में ग्रीष्म ऋतु में मानसून की क्रिया विधि व शीत ऋतु में मानसून की क्रिया विधि के बारे में जानकारी प्राप्त की कि कैसे भारत में ग्रीष्म व शीत ऋतु में वर्षा होती है और किस कारण होती है? अब हम जानेंगे भारत की जलवायु को नियंत्रित करने वाले कारको के विषय में। वह कौन कौन से कारक हैं जो कि भारत की जलवायु पर अपना प्रभाव डालते हैं l भारत की जलवायु को नियंत्रित करने वाले कुछ प्रमुख कारक हैं। -
अक्षांश - कर्क रेखा भारत के मध्य भाग से पश्चिम में कच्छ के रण से लेकर पूर्व में मिजोरम तक होकर गुजरती है। इस प्रकार भारत का आधा भाग (उत्तरी भाग) उपोष्ण कटिबंधीय व आधा भाग (दक्षिणी भाग) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पड़ता है। क्योंकि भारत का दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा के निकट स्थित है। अतः यहां साल भर उच्च तापमान के साथ निम्न दैनिक व वार्षिक तापांतर पाया जाता है। जबकि भारत का उत्तरी भाग भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण यहां अधिक दैनिक , वार्षिक तापांतर के साथ विषम जलवायु पाई जाती है। अतः इस प्रकार भारत की जलवायु में उष्ण कटिबंध व उपोष्ण कटिबंध जलवायु दोनों की विशेषताएं पाई जाती है। हिमालय पर्वत / ऊंचाई - भारत के उत्तरी भाग में हिमालय पर्वत स्थित है जिसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। हिमालय भारत में एक प्रभावी जलवायु विभाजन की भूमिका निभाता है। हिमालय की ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं को भारतीय उपमहाद्वीप में आने से रोकती है अतः हिमालय के कारण ही भारत में मध्य एशिया की तुलना में कम ठंड पड़ती है और इसी प्रकार हिमालय मानसूनी पवने को रोककर उपमहाद्वीप में वर्षा का कारण भी बनता है। जल एवं स्थल का वितरण - भारत के दक्षिणी भाग में कर्क रेखा के नीचे प्रायद्वीपीय भारत तीन ओर से पश्चिम में अरब सागर पूर्व में बंगाल की खाड़ी व दक्षिण में हिन्द महासागर से घिरा हुआ है l जबकि भारत के उत्तरी भाग में हिमालय की कई ऊंची-ऊंची श्रेणियां है l ग्रीष्म ऋतु में पशिमोत्तर भारत में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है l जो कि हिन्द महासागर से आने वाली पवनो को आकर्षित करता है l दूसरी ओर समुद्र का जल स्थल की अपेक्षा देर में गर्म व देर में ठंडा होता है l और यहाँ उच्च वायुदाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है l इसी कारण भारतीय महाद्वीप में विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न वायुदाब प्रदेश विकसित होते है l अतः स्थलीय व जलीय क्षेत्र की जलवायु में अंतर पाया जाता है l समुद्र तट से दूरी - भारत के दक्षिणी भाग में लम्बी तटरेखा होने के कारण तटीय राज्यों में जलवायु में अधिक विषमता नही पायी जाती है l यही कारण है आपने देखा होगा की मुंबई व कोकण तट पर निवास करने वाले लोग तापमान की विषमता व ऋतु परिवर्तन का अनुभव नही कर पाते क्योकि वहां वर्षभर लगभग सामान मौसम होता है l जबकि उत्तरी भागो स्थित राज्यों की बात अगर की जाए तो यहाँ मौसम में काफी विषमता पायी जाती है और यहाँ निवास करने वाले लोग अलग-अलग ऋतुओं में अलग- अलग तापमान का अनुभव करते है l अतः समुद्र से दूरी बढने के साथ -साथ तापमान में विषमता बढती जाती है l समुद्र तल से ऊंचाई - उंचाई बदने के साथ -साथ तापमान में कमी आने लगती है l अतः पर्वतीय क्षेत्र मैदानों की तुलना में अधिक ठंडे होते है l एक ही अक्षांश में स्थित होने के बाद भी क्षेत्रों में ऊँचाई के कारण तापमान में अंतर पाया जाता है l यही कारण है कि जनवरी में आगरा का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस होता है जो स्थल में स्थित है वही दार्जिलिंग का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस होता है जो की पर्वतीय क्षेत्र है l हमने भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारको के विषय में जाना l हम ऊपर पढ चुके है कि भारत की जलवायु किस प्रकार उत्तर व दक्षिण से आने वाली पवनों द्वारा प्रभावित होती है l आइये जानते है की उत्तरी व दक्षिणी गोलार्द्ध में चलने वाली पवनें कोरियालिस बल के कारण किस प्रकार प्रभावित होती है l कोरियालिस बल - "कोरियालिस बल वह आभासी बल है जो पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन के कारण उत्पन्न होता है l" इस बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिने ओर व दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर विक्षेपित हो जाती है l इसे फेरल का नियम कहते है l या इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है की ये हवायें उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में व दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइ की दिशा के अनुकूल मुड़ जाती है l फेरल का नियम - जिस दिशा में वायु प्रवाहित हो रही है l यदि हम उस दिशा में मुहँ करके खड़े हो या जिस दिशा से वायु आ रही है उसके विपरीत दिशा में पीठ करके खड़े हो तो हवायें उत्तरी गोलार्द्ध में आपके दाहिने ओर व दक्षिणी गोलार्द्ध में हवा आपके बाए ओर मुड़ जायेगी l यही कारण है की भारत में उत्तरी व्यापारिक पवनें व दक्षिणी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती है l जो की भारत की जलवायु को प्रभावित करती है l भारत में सामान्य प्रतिरूप में एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नता देखी जा सकती है l आइये इन्हें देखते है l आपने देखा होगा कि मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान दिन के समय में लगभग 50 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। जबकि मरुस्थल में रात के समय में यह तापमान घटकर 15 डिग्री सेंटीग्रेड तक भी हो सकता है। जबकि अन्य राज्यों में दैनिक तापांतर में इतनी भिन्नता नहीं पाई जाती। वहीं यदि वर्षा की बात की जाए तो देश के पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा हिम/बर्फ के रूप में होती है। जबकि अन्य भारतीय प्रदेशों में वर्षा जल के रूप में होती है। भारत में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 118 सेंटीमीटर होती है जबकि मेघालय के मासिनराम में तेरा 100 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है। क्योंकि मासिनराम खासी पहाड़ियों पर स्थित है। जोकि की कीप के आकार की है और बंगाल की खाड़ी शाखा के मार्ग में अत्यधिक रुकावट डालते हैं। यही कारण है कि मासिनराम विश्व का सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान है। वहीं दूसरी ओर ले लद्दाख व पश्चिमी राजस्थान में 10 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है। क्योंकि जहां उच्च दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस कारण यहां वर्षा प्राप्त नहीं हो पाती क्योंकि पवन उच्च दाब से हमेशा निम्न दाब की ओर ही प्रवाहित होती है। क्योंकि निम्न दाब का क्षेत्र पवनों को अपनी ओर तीव्रता से आकर्षित करता है। भारत में वर्षा की सामान्य अवधि जून से सितंबर होती है। जबकि तमिलनाडु तट पर अक्टूबर-नवंबर माह में उत्तर पूर्वी मानसून से वर्षा होती है। कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य -
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मानसून के आगमन और वापसी से आप क्या समझते हैं?मानसून की वापसी - भारत में मानसून का समय जून के आरंभ से लेकर मध्य सितंबर तक लगभग 100 से 120 दिन तक का होता है। मानसून की वापसी भारत के पश्चिम उत्तर राज्यों से सितंबर में प्रारंभ हो जाती है और 15 अक्टूबर तक मानसून समस्त भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग से पूरी तरह पीछे हट जाता है।
मानसून के आगमन से आप क्या समझते हैं?आरंभ से लेकर मध्य सितंबर तक, 100 से 120 दिनों के बीच होता है। इसके आगमन के समय सामान्य वर्षा में अचानक वृद्धि) हो जाती है तथा लगातार कई दिनों तक यह जारी रहती है। इसे मानसून प्रस्फोट (फटना) कहते हैं तथा इसे मानसून पूर्व बौछारों से पृथक किया जा सकता है।
मानसून की वापसी कैसे होती है?जानिए कैसे होती है मानसून की वापसी
मौसम विभाग के मुताबिक, मानसून वापसी की शर्तों में 5 दिनों तक बारिश नहीं होना शामिल है। इसके अलावा क्षेत्र में चक्रवात-रोधी और शुष्क मौसम की शर्त भी शामिल हैं। दक्षिण पश्चिम मानसून की वापसी का मार्ग खाजूवाला, बीकानेर, जोधपुर और नलिया से गुजरता है।
मानसून के आगमन की विशेषताएं क्या है?Solution : मानसून के आगमन की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं- मानसून की शुरुआत जून माह में होती है। जून के प्रारंभ में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है। यह दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक हवाओं को आकर्षित करता है। ये अपने साथ इस महाद्वीप में बहुत अधिक मात्रा में नमी लाती है।
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