मैंने देखा एक बूंद कविता में क्या व्याख्या ईद किया गया है? - mainne dekha ek boond kavita mein kya vyaakhya eed kiya gaya hai?

मैंने देखा एक बूँद कविता में कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने बूँद के माध्यम से मानव-जीवन के एक-एक क्षण को महत्त्वपूर्ण एक सार्थक बताया है। इस कविता में अज्ञेय जी ने समुद्र से अलग प्रतीत होती बूँद की क्षणभंगुरता को व्याख्यायित किया है। कवि देखते हैं कि बूँद क्षणभर के लिए ढलते सूरज की आग से रंग जाती है। क्षणभर का यह दृश्य देखकर कवि को एक दार्शनिक तत्त्व भी दिखने लग जाता है।

मैंने देखा एक बूँद कविता का भावार्थ

कवि को यह अनुभूति होती है कि विराट से अलग हुई बूँद क्षणभर के लिए विशेष सौंदर्य से परिपूर्ण होकर अपनी अलग पहचान बना लेती है। यद्यपि वह पल भर में ही अस्तित्वहीन हो जाती है, परंतु विराट के सम्मुख बूँद का समुद्र से अलग दिखना नश्वरता के दाग से, नष्ट होने के बोध से मुक्ति का अहसास है।

इस कविता के माध्यम से कवि ने जीवन में क्षण के महत्त्व के साथ ही उसकी क्षणभंगुरता को भी प्रतिष्ठित किया है। कवि ने यह संदेश दिया है कि जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह छोटा होते हुए भी विशेषताओं से भरा हुआ है।

मैंने देखा एक बूँद की सप्रसंग व्याख्या

एक बूँद सहसा
उछली सागर के झाग से;
रंग गई क्षणभर
ढलते सूरज की आग से।
मुझ को दीख गया;
सूने विराट के सम्मुख
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से।

प्रसंग:

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा‘ (भाग-2) में संकलित ‘मैंने देखा एक बूँद’ नामक कविता से ली गई है। इसके रचयिता कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हैं। इन पंक्तियों में कवि ने समुद्र से अलग प्रतीत होती बूँद की क्षणभंगुरता को व्याख्यायित किया है। इसके माध्यम से कवि ने यह दर्शाया है कि जीवन की नश्वरता के बावजूद जीवन में प्रत्येक क्षण का महत्त्व है।

व्याख्या:

कवि कहता है कि मैंने देखा कि सागर के झाग से अचानक एक बूँद उछली। वह क्षण भर के लिए ढलते सूरज की आग से रंग गई अर्थात् अस्त होते हुए सूर्य की लालिमा से उसका रंग बिलकुल लाल हो गया।

यह दृश्य देखकर मुझको यह दिख गया कि सूने विराट के सामने प्रकाश के प्रत्येक स्पर्श से आया अपनापन नश्वरता के दाग से मुक्ति देता है। अर्थात् समुद्र से अलग चमकती हुई बूँद को देखकर कवि को यह बोध होता है कि विराट के सम्मुख क्षणभर को भी अलग दिखना नश्वरता के दाग से मुक्ति का अहसास है। इस प्रकार विराट से अलग होकर अस्तित्वमान हुआ व्यक्ति नशवान होने की प्रकृति के बंधन में तो बँध जाता है, परंतु उसकी पृथक सत्ता की अनुभूति उसे नष्ट होने के भाव से मुक्ति दिला देती है।

Table of Content:
1. कवि अज्ञेय का जीवनपरिचय
2. मैंने देखा एक बूँद कविता का सारांश
3. मैंने देखा एक बूँद कविता
4. मैंने देखा एक बूँद कविता की व्याख्या
5. मैंने देखा एक बूँद प्रश्न अभ्यास
6. कठिन शब्द और उनके अर्थ
7. Class 12 Hindi Antra All Chapter

कवि अज्ञेय का जीवन परिचय – Kavi Agyey Ka Jeevan Parichay

कवि अज्ञेय का पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन है। कवि अज्ञेय का जन्म कुशीनगर उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी एवं संस्कृत दोनों ही भाषा में हुई थी। कवि निराला की तरह कवि अज्ञेय ने भी हिंदी बाद में सीखी थी।

शिक्षा- कवि अज्ञेय के संपर्क में कहा जाता है कि इन्होंने बीएससी समाप्त करने के बाद एम.ए. अंग्रेजी में प्रवेश लिया था।

कुछ क्रांतिकारी आंदोलन के कारण उनकी एम.ए. की पढ़ाई मध्य में छूट गई। इन्होंने विदेशों में भी बहुत बार भ्रमण किया था।

रचनाएं- कवि अज्ञेय प्रकृति के प्रेमी थे। कहानी, उपन्यास, यात्रा वृतांत, निबंध, आलोचना आदि के साथ-साथ इन्होंने कविता लेखन का भी कार्य किया।

प्रमुख रचनाएं- नदी के द्वीप, शेखर एक जीवनी, कोठरी की बात इत्यादि इनकी प्रमुख रचनाएं हैं।

मैंने देखा एक बूँद कविता का सारांश- Maine Dekha Ek Bund Poem Short Summary

मैंने देखा एक बूंद कविता कवि अज्ञेय द्वारा रचित एक मुक्तक काव्य है। इस कविता के माध्यम से कवि अज्ञेय कबीरदास के विचारधारा का समर्थन करते हैं। कवि ने ईश्वर को सत्य कहा है, कवि के अनुसार शरीर नश्वर है, जो समुद्र के उस बूंद के समान है, जो सूरज के तपिश के कारण आसमान में बादल बनकर कहीं दूर चला जाता है।

मैंने देखा एक बूँद कविता- Maine Dekha Ek Bund Poem

मैंने देखा
एक बूँद सहसा
उछली सागर के झाग से;
रँग गई क्षणभर
ढलते सूरज की आग से।
मुझको दीख गया :
सूने विराट् के सम्मुख
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से!

कठिन शब्द- 

सहसा- अचानक, क्षणभर- थोड़ा समय, दीख – देखना, सम्मुख- पास, उन्मोचन- मुक्ति पाना, नश्वरता- विनाश होने की स्थिति।

मैंने देखा एक बूंद कविता की व्याख्या- Maine Dekha Ek Bund Poem Explanation

मैंने देखा
एक बूँद सहसा
उछली सागर के झाग से;
रँग गई क्षणभर
ढलते सूरज की आग से।
मुझको दीख गया :
सूने विराट् के सम्मुख
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से!

भावार्थ- प्रस्तुत काव्य पंक्तियां कवि अज्ञेय द्वारा रचित ‘मैंने देखा एक बूंद’ से ली गई है। इस कविता में कवि कहते हैं कि मैंने देखा कि समुद्र के झाग से एक बूंद उछलकर अलग हो जाती है।

प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि अज्ञेय ने जीवन में क्षण के महत्व को स्थापित किया है। दूसरे शब्दों में यदि कहा जाए तो कवि ने भारतीय जीवन दर्शन और आत्मा एवं परमात्मा के संबंध को उजागर किया है।

कवि कहते हैं कि समुंद्र की बूंदों का अस्तित्व समुद्र के भीतर नहीं है। समुंद्र के बूंदों का असली अस्तित्व का तब पता चलता है जब वह लहरों के झांक से उछलकर अलग हो जाती हैं और सूरज की तपिश के कारण जब वह आसमान में भाप बन जाती है। तब समुंद्र की बूंदों का अस्तित्व का बोध होता है। 

बूंद के अलग होने से सागर को कोई क्षति नहीं पहुंचती हैं, बल्कि बूंद का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। जब समुंद्र की बूंदे सागर के झांक से छलांग मारती हैं। उस वक्त समुंद्र के बूंदों के ऊपर सूर्य की रोशनी पड़ती है। जिसके कारण समुद्र की बूंदे सोने की तरह चमकने लगती है। फिर विलुप्त होकर अपनी महत्व को बताती है।

प्रतिकों के माध्यम से कवि अज्ञेय यह बताना चाहते हैं कि समुंदर के बूंदों की तरह मनुष्य के जीवन का हर एक पल बहुत ही कीमती होता है। 

कवि अज्ञेय के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन के अनमोल क्षणों को व्यर्थ ही नष्ट नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अपने जीवन के हर क्षण को उपयोग में लगाना चाहिए। ताकि जीवन में कभी भी उसे इस बात का अफसोस ना हो कि उसने अपना कीमती समय नष्ट किया है।

जिस तरीके से बूंदे समुंद्र से अलग होकर अपने अस्तित्व को मिटा देती है। वैसे ही यदि मनुष्य के जीवन से कीमती वक्त निकल जाता है तो इससे वक्त का कुछ नहीं बिगड़ता मगर मनुष्य का बहुत कुछ नष्ट हो जाता हैं। इसलिए समय के अनुसार व्यक्ति को चलना चाहिए और समय को महत्व देना चाहिए।

Tags:
मैंने देखा एक बूँद की व्याख्या
मैंने देखा एक बूँद का सारांश
maine dekha ek boond kavita
ek boond poem question answer in hindi
maine dekha ek boond question answer
ek boond kavita ka prashn uttar
ek boond kavita ka bhavarth
ek boond kavita ka sandesh

मैंने देखा एक बूंद कविता में क्या व्याख्यायित किया गया है?

मैंने देखा एक बूँद कविता में कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने बूँद के माध्यम से मानव-जीवन के एक-एक क्षण को महत्त्वपूर्ण एक सार्थक बताया है। इस कविता में अज्ञेय जी ने समुद्र से अलग प्रतीत होती बूँद की क्षणभंगुरता को व्याख्यायित किया है। कवि देखते हैं कि बूँद क्षणभर के लिए ढलते सूरज की आग से रंग जाती है।

एक बूंद कविता के माध्यम से कवि ने हमें क्या संदेश दिया है?

एक बूँद कविता से हमें यह प्रेरणा मिलती है, कि हमें किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए जो साहसी होते हैं, वे किसी भी स्थिति में नहीं घबराते और मार्ग में आने वाली हर बाधाओं को पार करते हुए अपनी मंजिल पा लेते हैं।

एक बूँद कविता के कवि कौन हैं?

'एक बूँद'- अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'।

यह दीप अकेला कविता का मूल भाव क्या है?

यह दीप अकेला है परंतु स्नेह से भरा हुआ है। जिसके कारण उसमें गर्व है अर्थात गर्व से भरा हुआ है, और उसका यह गर्व उसकी पूर्णता की अपूर्णता को दर्शाता है। कवि चाहता है कि उसे उसी प्रकार के अन्य दियों की पंक्ति में शामिल कर देना चाहिए तभी उसे सामूहिकता की शक्ति का बोध होगा। उसे अपनी पूर्णता के अधूरेपन का भी ज्ञान होगा।