लोकसभा सीट कितनी है 2022 up - lokasabha seet kitanee hai 2022 up

Author: Krishna Bihari SinghPublish Date: Thu, 23 Jun 2022 10:54 PM (IST)Updated Date: Fri, 24 Jun 2022 04:24 AM (IST)

लोकसभा सीट कितनी है 2022 up - lokasabha seet kitanee hai 2022 up

उत्तर प्रदेश दिल्ली एवं पंजाब समेत पांच राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की तीन लोकसभा और सात विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए गुरुवार को मतदान हुआ। वोटों की गिनती रविवार (26 जून) को होगी। पढ़ें यह रिपोर्ट...

नई दिल्ली, जेएनएन। उत्तर प्रदेश, दिल्ली व पंजाब समेत पांच राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की तीन लोकसभा और सात विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए गुरुवार को मतदान हुआ। वोटों की गिनती रविवार (26 जून) को होगी। बहुत ही कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में क्रमश: 48.58 प्रतिशत और रामपुर में 39.02 प्रतिशत वोट पड़े। आजमगढ़ में 2019 में 57.54 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था।

आजमगढ़ में थोड़ी देर से हुई शुरुआत

आजमगढ़ में माक पोल के दौरान 45 बूथों पर ईवीएम की गड़बड़ी के चलते करीब आधा घंटा देरी से मतदान शुरू हो सका। यहां भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ और सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव गैर जनपद के रहने वाले हैं, इसलिए उन्होंने मतदान नहीं किया। बसपा से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली चुनाव लड़ रहे हैं।

गर्मी का असर

आजम खां के इस्तीफे से खाली हुई रामपुर लोकसभा सीट पर सपा से आसिम राजा और भाजपा से घनश्याम लोधी चुनाव लड़ रहे हैं। गर्मी की वजह से वोट डालने घरों से कम ही लोग निकले।

आजम बोले, लोगों को थाने में ले जाकर पीटा

सपा नेता आजम खां ने कम मतदान के लिए प्रशासन को जिम्मेदार माना है। उन्होंने कहा है कि रामपुर में वो¨टग से पहले सपा समर्थकों और पक्के वोटर्स को पुलिस ने थानों में ले जाकर पीटा। इससे वह लोग काफी डरे से हैं। उन्होंने पैसे देने का आरोप भी लगाया।

संगरूर में केवल 36.40 प्रतिशत मतदान

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के विधायक चुने जाने के कारण खाली हुई संगरूर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में मतदाताओं में खास उत्साह नहीं दिखा। चुनाव आयोग के मुताबिक केवल 36.40 प्रतिशत मतदाताओं ने ही वोट डाले। यहां आम आदमी पार्टी से गुरमेल सिंह और कांग्रेस से धूरी के पूर्व विधायक दलवीर सिंह गोल्डी मैदान में हैं, जबकि भाजपा ने बरनाला के पूर्व विधायक केवल ढिल्लों को उम्मीदवार बनाया है।

मान ने मतदान के लिए मांगा अतिरिक्त समय

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने ट्वीट करके चुनाव आयोग को मतदान का समय एक घंटा बढ़ाने की मांग की। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि धान की रोपाई का काम चल रहा है और कई लोग इस काम में व्यस्त हैं। इसलिए मतदान की प्रक्रिया को शाम छह बजे से सात बजे तक बढ़ा दिया जाए ताकि सभी लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। इसके तुरंत बाद भाजपा उम्मीदवार केवल सिंह ढिल्लों ने मान की अपील को गलत करार दिया।

राजेंद्र नगर में 43.75 प्रतिशत मतदाताओं ने डाले वोट

दिल्ली के राजेंद्र नगर विधानसभा सीट के उपचुनाव को लेकर मतदाताओं में खास उत्साह नहीं रहा। अभिनेत्री सोनम कपूर की अपील के बावजूद सिर्फ 43.75 प्रतिशत मतदान हुआ। आप नेता राघव चढ्ड़ा के राज्यसभा में जाने से खाली हुई इस सीट पर उपचुनाव में आप के दुर्गेश पाठक, भाजपा के राजेश भाटिया और कांग्रेस की पे्रमलता सहित 14 उम्मीदवार मैदान में हैं।

झारखंड और आंध्र प्रदेश ऐसा रहा मतदान

झारखंड के मांडर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में 61.25 प्रतिशत वोट पड़े। त्रिपुरा में अगरतला, टाउन बारदोवाली, सूरमा और जुबराजनगर सीटों की चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए शाम पांच बजे तक 76.62 प्रतिशत मतदान हुआ। आंध्र प्रदेश में आत्मकुरु विधानसभा सीट पर लगभग 67 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। राज्य के उद्योग मंत्री मेकापति गौतम रेड्डी के निधन के कारण यहां उपचुनाव कराना पड़ा है।

Edited By: Krishna Bihari Singh

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में दो लोकसभा सीटों पर उप चुनाव की वोटिंग चल रही है। इस वोटिंग में सबसे अधिक नजर विपक्ष पर है। समाजवादी पार्टी के दो सीनियर नेताओं की ओर से खाली की गई सीटों पर उप चुनाव हो रहे हैं। आजमगढ़ (Azamgarh Lok Sabha By Election) से सांसद रहे सपा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने विधायक बनने के बाद इस्तीफा दे दिया था। वहीं, रामपुर (Rampur Lok Sabha By Election) से दसवीं बार विधायक बने आजम खान (Azam Khan) ने अनलकी हुए सांसदी को छोड़ा है। इन दोनों सीटों पर इन दोनों बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। लेकिन, चुनाव के लिए जिस प्रकार के समीकरण बनते दिखाई दिए, उसने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। क्या यह लोकसभा चुनाव 2024 का रिहर्सल है? क्या सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने किसी रणनीति के तहत इस बार के उप चुनाव के मैदान से खुद को अलग रखा। मायावती (Mayawati) ने आजमगढ़ से ही क्या उम्मीदवार उतारा? देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस उप चुनाव के मैदान से बाहर क्यों हो गई? चुनाव के परिणाम इन सवालों के जवाब के रूप में एक नई इबारत लिखते दिखने वाले हैं।आजमगढ़ लोकसभा सीट को देखा जाए तो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से अखिलेश यादव ने भाजपा उम्मीदवार दिनेश लाल यादव निरहुआ को 2 लाख 59 हजार वोटों से हराया था। जीत का अंतर काफी बड़ा था। प्रदेश में मोदी-योगी लहर के बीच सपा अध्यक्ष ने इस बड़ी जीत के जरिए गढ़ को बचाने में सफलता दर्ज की थी। वहीं, रामपुर में हुए लोकसभा चुनाव 2019 में सपा के आजम खान ने भाजपा की जया प्रदा को 1 लाख 9 हजार वोटों के अंतर से हराया था। इस सीट पर पहली बार आजम खान उतरे थे और उन्होंने लोकसभा तक का सफर यहां से तय किया। हालांकि, सांसद बनने के एक साल के भीतर उन्हें जेल जाना पड़ा। पिछले दिनों 27 माह जेल में रहने के बाद वे बाहर निकले हैं। इस बीच हुई यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में अखिलेश मैनपुरी की करहल और आजम खान ने रामपुर विधानसभा सीट से जीत दर्ज की। इस बार के उप चुनाव में अखिलेश यादव ने एक भी दिन इन दोनों सीटों पर चुनाव प्रचार नहीं किया। वह भी तब जब आजमगढ़ की सभी 10 विधानसभा सीटों पर सपा को जीत मिली थी। रामपुर में भी आजम खान का बर्चस्व दिखा।

अपनों पर भरोसा या फिर विरोध का डर
अखिलेश यादव के आजमगढ़ में चुनाव प्रचार के लिए नहीं जाने को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं। इसको लेकर अलग-अलग वर्गों की राय बंटती हुई दिखती है। अखिलेश समर्थक एक गुट का कहना है कि आजमगढ़ में सपा अध्यक्ष के जाने या न जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह मुलायम और अखिलेश का पारंपरिक गढ़ रहा है। यहां पर पार्टी को जीत मिलनी तय है। धर्मेंद्र यादव सपा अध्यक्ष के चचेरे भाई हैं और उनके खड़ा होने और चुनावी मैदान में पहुंचने के बाद कार्यकर्ताओं को संदेश मिल गया कि अखिलेश ही एक प्रकार से यहां से बरकरार हैं। वहीं, दूसरे वर्ग का कहना है कि आजमगढ़ से सांसदी छोड़ने से वोटरों के एक वर्ग में नाराजगी है। लोगों ने उम्मीद से उन्हें चुनकर सांसद बनाया था। अगर वे चुनावी मैदान में प्रचार के लिए उतरते तो शायद उन्हें विरोध का सामना करना पड़ता। हालांकि, रामपुर के चुनावी मैदान में उतरने को लेकर इस प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी। ऐसे में कहा जा रहा है कि यह नए प्रयोगों को लेकर हो सकता है।

बसपा और कांग्रेस की रणनीति का अलग
बहुजन समाज पार्टी की रणनीति इस बार विधानसभा चुनाव में अलग दिख रही है। विधानसभा उप चुनाव के मैदान में बसपा ने केवल आजमगढ़ उप चुनाव में उम्मीदवार उतारा। रामपुर सीट पर उम्मीदवार नहीं दिया गया। वहीं, कांग्रेस ने रामपुर और आजमगढ़ में लोकसभा उप चुनाव में उम्मीदवार ही नहीं दिया। इन दोनों लोकसभा सीटों पर इस कारण माहौल पूरी तरह से बदला दिख रहा है। आजमगढ़ में बसपा ने शाह आलम उर्फ गुड्‌डू जमाली को उम्मीदवार बना दिया है। उनका सीधा मुकाबला सपा के धर्मेंद्र यादव और भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ से है। ऐसे में वे आजमगढ़ में अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश करते दिख रहे हैं।

रामपुर लोकसभा उप चुनाव के मैदान में इस बार भले ही आजम खान नहीं हैं, लेकिन वे पूरी तरह से एक्टिव दिखे। रामपुर में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 50 फीसदी है। वहीं, आजमगढ़ में भी मुस्लिम वोटर डिसाइडर की भूमिका में होते हैं। ऐसे में आजम खान ने दोनों ही सीटों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। सबसे खराब स्थिति कांग्रेस की दिख रही है। दोनों सीटों पर उम्मीदवार नहीं देने से क्षेत्रीय नेताओं की नाराजगी बढ़ी हुई है। रामपुर के नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां ने तो पार्टी महासचिव को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी दर्ज करा दी।

नवेद मियां की नाराजगी के बाद उनके समर्थकों ने भाजपा उम्मीदवार घनश्याम लोधी के पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया। ऐसे में रामपुर की सियासत में एक बात तैरने लगी है कि सपा प्रत्याशी आसिम राजा के खिलाफ उम्मीदवार न देकर कांग्रेस ने एक प्रकार से भाजपा की ही मदद कर दी। आजम खान से नाराज मुस्लिम वोटरों के बीच नवेद मियां घनश्याम लोधी के सपा से जुड़ाव और अल्पसंख्यक वोट बैंक के बीच की पकड़ का मामला उठा रहे हैं। इसके अलावा आसिम राजा की जाति का मुद्दा भी रामपुर के चुनावी मैदान में गरमा गया है।

रिजल्ट से होगा बहुत कुछ साफ
लोकसभा उप चुनाव का रिजल्ट कई बिंदुओं को साफ कर देगा। इसमें सबसे अहम यह है कि क्या मुस्लिम बहुल सीटों पर आजम की पकड़ बरकरार है? उप चुनाव के प्रचार मैदान में जिस प्रकार से आजम खान ऐक्टिव रहे। कई सभाओं में भावुक होकर अपने जेल में रहने के दिनों को याद किया। अल्पसंख्यक वोटरों के बीच एक संदेश देने की कोशिश की, उसके असर की भी पड़ताल हो जाएगी। वहीं, बसपा आजमगढ़ में किसे अधिक नुकसान करेगी और कांग्रेस के चुनावी मैदान से गायब होने का फायदा किसे मिलेगा, यह भी साफ हो जाएगा। यह चुनाव परिणाम वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एक प्रकार से मैदान खोलने वाला होगा। नए समीकरणों को इस चुनाव के परिणाम के आधार पर बनाया जाएगा।

अगर समाजवादी पार्टी दोनों सीटों को बचाने में कामयाब हो जाती है तो साफ हो जाएगा कि पार्टी को अपने गढ़ों को बचाने के लिए अखिलेश यादव की जरूरत नहीं है। इन सीटों पर अखिलेश के नहीं जाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसे में अखिलेश उन सीटों पर अधिक फोकस करेंगे, जहां मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है। लेकिन, इन सीटों पर भाजपा ने पूरा जोर लगाया है। योगी आदित्यनाथ ने ताबड़तोड़ सभाओं के जरिए दोनों ही सीटों पर पकड़ बनाने की कोशिश की है। अगर इस चुनाव में किसी सीट पर भाजपा जीतने में कामयाब होती है तो इस जीत के समीकरण को वर्ष 2019 में हारने वाली सीटों पर लागू करने की कोशिश की जाएगी। मुस्लिम बहुल सीटों के लिए रणनीति तैयार करने में मदद मिलेगी।

भारत में कुल सांसदों की संख्या कितनी है?

वर्तमान मे लोकसभा के सदस्यों की संख्या 543 है तथा राज्यसभा के सदस्यों की संख्या 245 है।

वर्तमान में कौन सी लोकसभा चल रही है 2022?

सत्रहवीं लोक सभा - विकिपीडिया

लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी होती है?

Solution : लोकसभा की अधिकतम संख्या 552 निर्धारित की गई है। इनमें से 530 राज्यों के प्रतिनिधि, 20 संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि तथा ऐंग्लो-इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को राष्ट्रपति नामित करता है। लेकिन वर्तमान में लोकसभा में 545 सदस्य हैं।

लोकसभा और राज्यसभा में कितनी सीटें होती हैं?

राज्य सभा भारतीय लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा है। लोकसभा निचली प्रतिनिधि सभा है। राज्यसभा में २४५ सदस्य होते हैं। जिनमे १२ सदस्य भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नामांकित होते हैं।