लोग कहै, मीरा भइ बावरी, न्यात कहै कुल-नासी - मीरा के बारे में लोग (समाज) और न्यात (कुटुंब) की अलग-अलग धारणाएँ क्यों है? Show लोग (समाज) तो उन्हें बावरी बताते हैं, क्योंकि उन्हें वह कृष्ण-प्रेम में पागल प्रतीत होती हैं। यह मुग्धावस्था का ही एक रूप है। न्यात अर्थात् परिवार जन (कुटुंब) उन्हें कुल का नाश करने वाली मानते हैं। उनके विचार में मीरा ने कुल की मर्यादा को नष्ट कर दिया है। मीरा की वजह से कुल (खानदान) को नीचा देखना पड़ता है। 154 Views बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी? बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन को दिलचस्पी खत्म इसलिए होने लगी, क्योंकि उन्हें किसी खास बादशाह का नाम मालूम ही न था । वास्तव में उनके किसी बुजुर्ग ने किसी बादशाह के बावर्चीखाने में काम किया ही न था । वे तो सिर्फ अपनी हवा बनाने के लिए डींग हाँक रहे थे । बादशाह का प्रसंग आते ही मियाँ जी बेरुखी दिखाने लगते थे । 845 Views मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मजमून न छेड़ने का फैसला किया- इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए। लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन से उनके बेटे-बेटियों के बारे में पूछना चाहती थी, पर मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे के हाव- भाव देखकर उसे यह सब पूछने की हिम्मत नहीं हुई । वे कुछ उखड़े से दिखाई दे रहे थे । इसे पूछने से पहले का प्रसंग भट्टी सुलगाने का है । मियाँ नसीरुद्दीन बब्बन मियाँ से भट्टी सुलगाने को कहते हैं । लेखिका के पूछने पर बताते हैं कि ये बब्बन मियाँ अपने करीगर हैं । बाद के प्रसंग में मियाँ नसीरुद्दीन अपने कारीगरों को दी जाने वाली मजदूरी के बारे में बताते हैंदो रुपए मन आटे की और चार रुपए मन मैदा की मजदूरी दी जाती है । 969 Views मियां नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है? मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा इसलिए कहा गया है क्योंकि वह अपने मसीहाई अंदाज से रोटी पकाने की कला का बखान करता है तथा इसमें वह अपनी खानदानी महारत बताता है । नानबाई रोटी बनाने की कला में माहिर है । अन्य नानबाई रोटियाँ तो पकाते हैं, पर मियाँ नसीरुद्दीन अपने पेशे को कला मानता है । वह अन्य नानबाइयों में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताता है, अत: नानबाइयों का मसीहा कहा गया है । 5762 Views लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थीं? लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास इसलिए गई ताकि वह उसकी नानबाई कला के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके । जब उसने एक मामूली अँधेरी-सी दुकान पर पटापट आटे का ढेर सनते देखा तो वह अपनी उत्सुकता रोक न सकी । उसे पता चला कि वह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान पर खड़ी है तो वह उसके बारे में जानने को उत्सुक हो उठी और उसके पास जा पहुँची । 1111 Views पाठ में मियां नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखक ने कैसे खींचा है? पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन यह शब्दचित्र खींचा गया है-मियाँ नसीरुद्दीन सत्तर वर्ष की आयु के हैं । वे चारपाई पर बैठकर बीड़ी पीने का मजा ले रहे हैं । मौसम की मार ने उनके चेहरे को पका दिया है । उनकी आँखों में काँइयाँपन और भोलेपन का मिश्रित प्रभाव झलकता है । उनकी पेशानी पर मँजे हुए कारीगर के तेवर हैं । वे बड़े सधे अंदाज में बातों का जवाब देते हैं । कभी-कभी पंचहजारी अंदाज में सिर हिलाते हैं 1 वे कभी दूसरे आदमी के सामने आँखों के कंचे फेरते हैं, कभी आँखें तरेरते हैं । बीड़ी के कश खींचने में वे माहिर हैं । बातों में वे बड़ी लंबी-लंबी फेंकते हैं । 1117 Views विषयसूची
इसे सुनेंरोकेंमियाँ नसीरुद्दीन लोग कहै, मीरा भइ बावरी, न्यात कहै कुल-नासी – मीरा के बारे में लोग (समाज) और न्यात (कुटुंब) की अलग-अलग धारणाएँ क्यों है? लोग (समाज) तो उन्हें बावरी बताते हैं, क्योंकि उन्हें वह कृष्ण-प्रेम में पागल प्रतीत होती हैं। यह मुग्धावस्था का ही एक रूप है। मीरा को कृष्ण का कौन सा रूप पसंद है?इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- मीराबाई कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि उन्होंने सिर पर मोर मुकुट धारण किया हैं और तन पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं। गले में बैजयंती माला उनके सौंदर्य में चार चाँद लगा रही है। कृष्ण बाँसुरी बजाते हुए गाये चराते हैं तो उनका रूप बहुत ही मनोरम लगता है। वैराग्य की अवस्था में सबकुछ छोड़कर मीरा कहाँ चली गयी थी?इसे सुनेंरोकेंआखिरकार मीरा बाई ने घर छोड़ दिया और वृन्दावन और द्वारका में कृष्ण भक्ति की। मीराबाई किसकी भक्त थी? इसे सुनेंरोकेंमीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती है। मीरा बाई ने जीवनभर भगवान कृष्ण की भक्ति की और कहा जाता है कि उनकी मृत्यु भी भगवान की मूर्ति में समा कर हुई थी। मीराबाई का बचपन का नाम क्या है? इसे सुनेंरोकेंमीराबाई का जन्म संवत् 1564 विक्रमी में मेड़ता में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। (कई किताबो में कुड़की बताया जाता है बिल्कुल गलत है क्योंकि कुड़की जागीर रतन सिंह जी को मीरा बाई के 11वे जन्मदिन पर मिली थी ) विस्तार से जानकारी के लिए मीरा चरित। प्रेम की बेल का फल क्या है?इसे सुनेंरोकेंप्रेम की बेल का आनंद फल है। मीराबाई अपने पदों में कहते हैं कि उन्होंने आंसुओं के चलते सींचकर प्रेम की बेल बोई है। मीरा को कृष्ण का कौन सा रूप मोहित करता है?इसे सुनेंरोकेंमीरा ने कृष्ण के रुप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके सिर पर मोर मुकुट तथा शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं और गले में वैजयंती फूलों की माला पहनी है, मुरली की मधुर तान से सबको मोहित करते हुए वे गायें चराते हैं और बहुत सुंदर लगते हैं। इस प्रकार इस रूप में भगवान श्री कृष्ण का बहुत ही मनमोहक रूप उभरता है। मीरा ने श्री कृष्ण से अपनी सहायता करने का आग्रह क्यों किया है तथा किन पौराणिक उदाहरणों का प्रयोग किया है?इसे सुनेंरोकेंमीरा ने श्रीकृष्ण से अपनी सहायता करने के लिए आग्रह इसलिए किया है क्योंकि श्रीकृष्ण ने जिस तरह अनेक रूप धारण करके अपने भक्तों की पीड़ा और दुख दूर किए। उसी प्रकार मीरा भी श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा हरने की विनती करती हैं और वह श्री कृष्ण से सहायता की अपेक्षा रखती हैं। मीराबाई किसकी पत्नी थी? इसे सुनेंरोकेंमीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। चित्तौड़गढ़ के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। अभ्यास और वैराग्य से आप क्या समझते हैं? इसे सुनेंरोकेंअर्थात- अभ्यास और वैराग्य के द्वारा उन चित्तवृत्तयों का निरोध होता है। चित्तवृत्तियों का प्रवाह परम्परागत संस्कारों के बल पर सांसारिक भोगों की ओर चल रहा है उस प्रवाह को रोकने का उपाय वैराग्य है और उसे कल्याण मार्ग में ले जाने का उपाय अभ्यास है। मीरा की मृत्यु कब हुई?1547मीराबाई / मृत्यु तारीख मीराबाई का क्या नाम था?इसे सुनेंरोकेंमीराबाई को न्यात के लोग कुलनासी कहते थे। पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे। मीरा के पति का नाम क्या था?भोजराजमीराबाई / पति (विवा. 1516–1521) इसे सुनेंरोकेंमीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। चित्तौड़गढ़ के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। मीराबाई का विवाह कब और किसके साथ हुआ? इसे सुनेंरोकेंAnswer: मीराबाई का विवाह महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से कर दिया गया। इस शादी के लिए पहले तो मीरा बाई ने मना कर दिया। पर जोर देने पर वह फूट फूटकर रोने लगी और विदाई के समय कृष्ण की वहीं मूर्ति अपने साथ ले गई, जिसे उसकी माता ने उनका दूल्हा बताया था। महाराणा प्रताप की मीरा बाई कौन थी? इसे सुनेंरोकेंमहाराणा प्रताप के पिता महाराजा उदय सिंह थे और मीराबाई, उदय सिंह के बड़े भाई भोजराज की पत्नी थी इस प्रकार मीराबाई रिश्ते में महाराणा प्रताप की बड़ी मां या ताई लगती थी। मीरा को न्यात के लोग क्या कहते है ?`?This is Expert Verified Answer. मीराबाई को न्यात के लोग कुलनासी कहते थे। पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे।
मीरा को न्यात के लोग क्यों कहते हैं?न्यात अर्थात् परिवार जन (कुटुंब) उन्हें कुल का नाश करने वाली मानते हैं। उनके विचार में मीरा ने कुल की मर्यादा को नष्ट कर दिया है। मीरा की वजह से कुल (खानदान) को नीचा देखना पड़ता है।
लोगों ने मीरा को क्या कहा है?रनोग मीरा को बावरी इसलिए कहते हैं क्योंकि वह कृष्ण प्रेम में पागल होकर उनकी मूर्ति के सम्मुख नाचती रहती है। वह कृष्ण को अपना पति मानती है। मीरा संतों की संगति में रहती है। इन बातों के कारण लोग मीरा को बावरी कहते हैं।
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