खनिजों का कितना व्यापक धन मुक्त हस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम - khanijon ka kitana vyaapak dhan mukt hast too baant rahee hai sukh-sampatti, dhan-dhaam maatr-bhoo shat-shat baar pranaam

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम। तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम। हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक, तेरे चरण चूमता सागर, श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ वाणी में है गीता का स्वर। ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम। मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम। हरे-भरे हैं खेत सुहाने, फल-फूलों से युत वन-उपवन, तेरे अंदर भरा हुआ है खनिजों का कितना व्यापक धन। मुक्त-हस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम। मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम। प्रेम-दया का इष्ट लिए तू, सत्य-अहिंसा तेरा संयम, नयी चेतना, नयी स्फूर्ति-युत तुझमें चिर विकास का है क्रम। चिर नवीन तू, ज़रा-मरण से - मुक्त, सबल उद्दाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम। एक हाथ में न्याय-पताका, ज्ञान-द्वीप दूसरे हाथ में, जग का रूप बदल दे हे माँ, कोटि-कोटि हम आज साथ में। गूँज उठे जय-हिंद नाद से - सकल नगर औ' ग्राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।