‘दीवानों की हस्ती’ Summary, Explanation, Question and Answers and Difficult word meaningदीवानों की हस्ती CBSE class 8 Hindi Lesson summary with detailed explanation of the lesson Deewano ki Hasti along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary. All the exercises and Question and Answers given at the back of the lesson. Show
Deewano ki Hasti Class 8 Hindi Lesson‘दीवानों की हस्ती कक्षा 8 पाठ सार, व्याख्या, भावार्थ, प्रश्न उत्तर ’
Author Introductionलेखक – भगवतीचरणवर्मा दीवानों की हस्ती पाठ प्रवेशइस कविता में कवि ने अपने प्रेम से भरे हृदय को दर्शाया है क्योंकि कवि का स्वभाव बहुत ही प्रेमपूर्ण है। सभी संसार के व्यक्तियों से वह प्रेम करता है और खुशियाँ बाँटता है यही सब इस कविता में दर्शाया है। वो अपने जीवन को अपने ढंग से जीते हैं, मस्त-मौला है चारों ओर प्रेम बाँटने का सन्देश देते हैं। इस कविता के द्वारा एक सीख देते है की हमें सबके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। वे खुशियों का संचार करते हैं, जहाँ भी जाते हैं खुशियाँ बिखेरते हैं और जीवन में असफल हो जाने पर हार जाने पर भी किसी को दोष नहीं देते । इस कविता में सन्देश देते हैं कि हमें अपनी सफलता और असफलता का श्रेय स्वयं को ही देना चाहिए क्योंकि अगर हम असफल होते है तो उसमें भी कहीं न कहीं दोष हमारा ही होता है किसी और का नहीं और सफल होते है तो भी श्रेय हमारा ही होता है क्योंकि महेनत हमने की होती है। और स्वंय असफल होने पर किसी अन्य को दोषी नहीं मानते है। वे जब जीवन में कभी हार जाते हैं, असफल हो जाते है इस सब का दोष किसी और को नहीं देते । यह इंसानियत की बहुत ही बड़ी बात है जोकि कवि में देखी जाती है। दीवानों की हस्ती पाठ सारप्रस्तुत कविता में कवि का मस्त-मौला और बेफिक्री का स्वभाव दिखाया गया है । मस्त-मौला स्वभाव का व्यक्ति जहां जाता है खुशियाँ फैलाता है।
वह हर रूप में प्रसन्नता देने वाला है चाहे वह ख़ुशी हो या आँखों में आया आँसू हो। कवि ‘बहते पानी-रमते जोगी’ वाली कहावत के अनुसार एक जगह नहीं टिकते। वह कुछ यादें संसार को देकर और कुछ यादें लेकर अपने नये-नये सफर पर चलते रहते हैं। दीवानों की हस्ती पाठ व्याख्यापाठ हम दीवानों की क्या हस्ती, दीवानों: अपनी मस्ती में रहने वाले अपनी मस्ती में रहने वाले लोगों की क्या हस्ती, क्या अस्तित्व है। कभी यहाँ है तो कभी वहाँ । एक जगह तो रूकने वाले नहीं है, आज यहाँ, कल वहाँ चले । यानी की जो मस्त-मौला किस्म के व्यक्ति हैं वो कभी भी एक जगह नहीं ठहरते, आज यहाँ है तो कल कहीं और। यह जो मौज मस्ती का आलम है यह साथ चला- जहाँ कवि गया वहाँ पर उन्होंने अपनी मस्ती से, अपनी प्रसन्नता से, सब में खुशियाँ बाँटी। कवि कहते हैं कि हम अपनी मस्त-मौला आदत के अनुसार जहाँ भी गए, प्रसन्नता से धूल उड़ाते चले, मौज मजा करते चले। हम दीवानों की हस्ती कुछ ऐसी ही होती है हम जहाँ भी जाते है अपने ढंग से जीते है अपने ढंग से ही चलते-चलते है । हम पर किसी का कोई असर नहीं होता। कवि कहते है वे अभी-अभी आएँ है और खुशियाँ बाँटी हैं, खुशियाँ लुटाई है और अभी कुछ हुआ कि आँसू भी बनकर बहे निकले।अर्थात् अभी-अभी खुश थे और अभी-अभी दुखी हो गए है तो आँसू भी बह निकले है । कवि मस्त-मौला किस्म के है अपने मन मरजी के मालिक हैं कभी कहीं जाते है तो कभी कहीं के लिए चल पड़ते है तो जहाँ पर पहुँचते है खुशियाँ लुटाते है और वहाँ से आगे निकल चलते है तो लोग कहते है कि अरे, तुम कब आए और कब चले गए पता ही नहीं चला। प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठय पुस्तक “वसंत-3” में संकलित कविता “दीवानों की हस्ती” से ली गयी है। इसके कवि “भगवती चरण वर्मा“ है। इस कविता में कवि ने मस्त-मौला और फक्कड़ स्वभाव का वर्णन किया है। व्याख्या – इसमें कवि कहते हैं कि उनका स्वभाव मस्त-मौला है, वह एक स्थान पर टिके नहीं रहते। वे जहाँ भी जाते हैं, चारों तरफ खुशियाँ फैल जाती है। कवि जहाँ धूल उड़ाते हुए जाते है वही चारों तरफ प्रसन्नता का माहौल हो जाता है। कवि रमता जोगी है। वह मन में उत्पन्न भावों की भाँति कभी ख़ुशी का सन्देश तो कभी आँखों में बहते आँसू की तरह सब जगह फ़ैल जाता है। कवि कहते हैं कि वे इतनी जल्दी आते जाते रहते हैं की लोगों को पता ही नहीं चलता कि वे कब आए और कब चले गए। किस ओर चले? यह मत पूछो, जग: संसार कवि कहते हैं कि यह मत पूछो कि मैं कहाँ जा रहा हूँ मेरी मंजिल क्या है क्योंकि इसके बारे में तो मुझे भी नहीं पता स्वयं को भी नहीं पता। जैसा कि मैं मस्त-मौला हूँ, एक जगह ठहरता नहीं हूँ, चलता ही रहता हूँ इसलिए बस आगे चलते ही रहना है। इस दुनिया से कुछ ज्ञान उन्होंने प्राप्त किया है , कुछ सीख ली है , उसको लेकर वह आगे बढ़ चले है। जो भी उनके पास था वे भी इस दुनिया के साथ बाँटते हुए आगे चल पड़े है। कवि जहाँ कहीं भी पहुँचे वहाँ के लोगों से खुशी-खुशी से मिले और उनसे बात चीत की, अपना सुख-दुख बाँटा और अपने मन की बात कही। जब सुख के भाव जगे तो उनके साथ मिलकर हँसे भी और जब उनको दुख का अनुभाव हुआ तो उनके साथ अपना दुख भी बाँटा । उनका भी सुख-दुख बाँटा। जो दुख-सुख के समय भावनाएँ जगी, उनको एक दूसरे के साथ बाँटा जिससे व्यक्ति का मन हल्का हो जाता है। जो सुख-दुख के भाव है एक सामान हम गमों से पिए चले और आगे बढे़ चले। प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठय पुस्तक “वसंत-3″ में संकलित कविता” दीवानों की हस्ती” से ली गयी है। इसके कवि “भगवती चरण वर्मा” है। इस काव्यांश में कवि संसार से दूर अपनी अलग राह पर चलने की बात कह रहे हैं। व्याख्या- संसार जब कवि से जानना चाहता है अब वो किस ओर जा रहे हैं तो वे कहते हैं कि ये मत पूछो कि मैं कहाँ जा रहा हूँ क्योंकि मेरी कोई निश्चित मंजिल नहीं है। मैं चलता हूँ क्योंकि यह मेरा स्वभाव है। कवि कहते हैं कि वो संसार से कुछ ज्ञान लेकर और कुछ अपने पास से देकर जा रहे हैं। कवि का स्वभाव चलने का है परन्तु वह जहां रुकते हैं वहां लोगों से प्रेम भरी बातें करते हैं तथा उनकी बातें सुनते हैं और उनसे अपना तथा उनका सुख-दुख बाटतें हैं तथा सुख-दुःख रूपी अमृत का घूँट पीकर वह फिर नये सफर पर चल देते हैं। हम भिखमंगों की दुनिया में, भिखमंगों: भिखारियों कवि इन पंक्तियों में कह रहे है कि यह जो दुनिया है, दुनिया के लोग भिखारियों की तरह कुछ न कुछ माँग करते रहते है । भिखारी की आदत माँगना होती है । इस दुनिया के लोगों को उन्होंने भिखमंगे कहा है । भिखमंगों की इस दुनिया में अपनी मन मरजी से अपना प्यार लुटाकर चले है। वे अपने हृदय में यही एक निशानी लेकर आगे चले है । उन्होंने जीवन में असफलता भी पाई है, हार भी मानी है, लेकिन उस का बोझ स्वयं ही उठाया है। उसका बोझ किसी पर नहीं डाला है अर्थात उसके लिए जिम्मेदार किसी अन्य व्यक्ति को नहीं मानते हैं । जो अपनी मंजिल पर रूके है वह आबाद रहे, बसे रहे यही आर्शीवाद देते है। कवि कहते है कि हम स्वयं ही अपने इन बँधनों में बँधे थे, अपनी स्वतत्रंता से, अपनी मरजी से, और हम स्वयं ही यह बँधन तोड़ आगे चल निकले है। कवि का यह मानना है कि वे संकल किस्म के मस्त-मौला आदमी दीवाने कभी किसी बँधन में नहीं बँधे है । अगर बँधे है तो वह अपनी मरजी से और अब वो आगे बढ़ निकले है अर्थात् बँधनों को तोड़ चले है तो भी वे अपनी मन मरजी से ही उन बँधनों को तोड़कर आगे बढ़े है । वह स्वयं ही इस बात का अफसोस जताते है अपने जीवन में इस बात की हार मानते है कि वे कभी भी एक संसारिक व्यक्ति नहीं बन पाए, एक संसारिक व्यक्ति का सुख नहीं भोग पाए ।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठय पुस्तक “वसंत-3” में संकलित कविता “दीवानों की हस्ती” से ली गयी है। इसके कवि “भगवती चरण वर्मा” है। इस काव्यांश में कवि प्यार की दौलत से हीन संसार को भिखारी कहते हैं और फक्कड़ होते हुए भी वे संसार पर अपना प्यार लुटाते हैं। व्याख्या – कवि के अनुसार ये संसार भिखारी है इसके पास प्रेम नामक धन नहीं है। किन्तु कवि पूरी आजादी से सब जगह प्रेम लुटाते चलते हैं क्योंकि कवि सारे संसार को अपना मानते हैं इसीलिए वे बंधन मुक्त हैं। इतना प्रेम होते हुए भी एक सफल संसारिक व्यक्ति न बन पाने की दर्दया निशानी उनके ह्रदय में है और यही भार उनकी असफलता है। कवि के अनुसार संसार में कोई अपना और कोई पराया नहीं है। वे कहते हैं वे स्वयं इन बंधनों में बंधे थे और स्वयं इन बंधनों को तोड़कर आगे चलते जा रहे हैं तथा इससे वे प्रसन्न हैं और सदा चलते रहना चाहते हैं। दीवानों की हस्ती प्रश्न-अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )प्र॰1 कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बन कर बह जाना’ क्यों कहा है? उत्तर – कवि खुद के आने को उल्लास इसलिए कहते हैं क्योंकि वे जहाँ भी जाते हैं खुशियाँ फैलाते हैं तथा अपने जाने को आंसू बनकर बह जाना इसलिए कहते हैं क्योंकि इतनी खुशियों के बाद जब वो जाते हैं तो उनकी याद में लोगों को आँसू आने लगते हैं। प्र॰2 भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटाने वाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है? उत्तर – कवि प्रेम की दौलत संसार में लुटाता है। इतना प्रेम होने पर भी वह अपने को असफल इसलिए कहता है क्योंकि वह कभी सांसारिक व्यक्ति नहीं बन पाया। यही असफलता उसके ह्रदय में एक निशाँ की तरह चुभती है। किन्तु वो निराश नहीं है वह प्रसन्न है क्योंकि यह रास्ता उसने खुद चुना है और वह इसके लिए किसी को दोषी भी नहीं ठहराता है। प्र॰3 कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सब से अच्छी लगी? उत्तर – इस कविता में कवि का अपने ढंग से अपना जीवन जीना तथा चारों ओर प्यार और खुशियाँ बाँटना सबसे अच्छा लगा। कवि अपने जीवन की असफलता के लिए किसी अन्य को दोषी नहीं ठहराता यह भी अच्छा लगा।
दीवानों की हस्ती कविता में दीवानों की क्या विशेषताएँ बताई गई है?कवि अपने आने को 'उल्लास' कहता है क्योंकि किसी भी नई जगह पर आने से उसे खुशी मिलती है तथा उस स्थान को छोड़कर जाते समय दुख होता है और इसीलिए आँखों से आँसू निकल जाते हैं। वह अन्य लोगों को खुशियाँ बाँटता है जिससे वे अपना दुख भूल जाते हैं। जब वह जाता है तो वह यह दुख लेकर जाता है कि ये खुशियाँ हमेशा के लिए नहीं हैं।
दीवानों की क्या विशेषता है?उत्तर कविता में निम्नलिखित विशेषता बताई गई है - ● दीवाने अभाव में भी खुश रहते हैं। वे दूसरों के जीवन में उल्लास लाने का प्रयास करते हैं। वे एक स्थान पर टिकने वाले नही है।
दीवानों के स्वभाव की दो विशेषताएं इनमें से कौन सी हैं?वीर-प्रसविनी- भूमि धन्य वह, धन्य वीर वह धन्य अतीत, गाते थे और गावेंगे हम, हरदम उसकी जय का गीत । स्वतंत्रता का सैनिक था, आज़ादी का दीवाना था, सब कहते हैं कुँअर सिंह भी, बड़ा वीर मरदाना था ।। 1. वीर कुँवर सिंह के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
दीवानों की हस्ती से हमें क्या संदेश देती है?उत्तर: इस कविता से हमें यह संदेश मिलता है कि हमारे मन में भी देश-प्रेम की भावना होनी चाहिए। हमें केवल अपने लिए नहीं, अपितु दूसरों के लिए भी जीना चाहिए। यदि देश पर कोई विपत्ति आ जाए, तो अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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