किसने कहा किशोरावस्था तनाव तूफान एवं संघर्ष की अवस्था है - kisane kaha kishoraavastha tanaav toophaan evan sangharsh kee avastha hai

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किशोरावस्था को जीवन का सबसे कठिन काल क्यों कहा जाता है- 

दोस्तों आज हम इस लेख के माध्यम से किशोरावस्था के सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न किशोरावस्था को जीवन का सबसे कठिन काल क्यों कहा जाता है? या किशोरावस्था को तनाव तूफान तथा संघर्ष का काल क्यों कहा जाता है? इसके विषय में पढ़ेंगे।

किशोरावस्था (kishoravastha) वह समय है जिसमें किशोर अपने को वयस्क समझता है वयस्क उसे बालक समझते हैं इस अवस्था में किशोर अनेक बुराइयों में पड़ जाते हैं यह एक ऐसा समय है जिसमें बालक तथा बालिका में बहुत ज्यादा परिवर्तन होने लगता है जिसके कारण ही इन्हें तनाव, तूफान तथा संघर्ष का काल कहा जाता है तो चलिए पढ़ते हैं कि किशोरावस्था (kishoravastha) को जीवन का सबसे कठिन काल क्यों कहा जाता है?

किसने कहा किशोरावस्था तनाव तूफान एवं संघर्ष की अवस्था है - kisane kaha kishoraavastha tanaav toophaan evan sangharsh kee avastha hai
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ई.ए.किलपैट्रिक का कथन है -

 "इस बात पर कोई मतभेद नहीं हो सकता है कि किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है इस कथन की पुष्टि में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं"-

१. अपराधी प्रवृत्ति :-

इस अवस्था में अपराधी प्रवृत्ति अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच जाती हैं और नशीली वस्तुओं का प्रयोग आरंभ हो जाता है। सबसे तेजी से लड़के इस अपराधी का शिकार होते है वे गलत सहपाठियों के साथ और दूसरों को चिढ़ाने और सताने में संतुष्ट होने वाले व्यक्ति होते हैं इनके अंदर इतनी शक्तियां आ जाती है कि वे किसी का लिहाज भी नहीं करते और दूसरों को सताने तथा कष्ट पहुंचाने लगते हैं यह एक ऐसा समय होता है जब वे नशीली वस्तुओं का सेवन करना आरंभ कर देते हैं जिसके कारण वे पूरी तरह से दुनिया को अपना समझने लगते हैं और अपने मुताबिक चलने लगते हैं यहां तक की अपने माता पिता से भी लड़ पड़ते हैं उन्हें कोई भी बातें अच्छी नहीं लगती वे खुद में जीना चाहते हैं और खुद में मरना चाहते हैं।

२. समायोजन ना करने से मृत्यु दर की वृद्धि :-

इस अवस्था में समायोजन न कर सकने के कारण मृत्यु दर और मानसिक रोगों की संख्या अन्य अवस्थाओं के तुलना में बहुत अधिक होती हैं बालक एवं बालिकाओं समाज के नियमों को नहीं मानते उन्हें बनाए गए नियम उन्हें गलत लगते हैं उन्हें पूरी तरह से आजादी चाहिए होता है वह समाज के साथ समायोजन नहीं कर पाते जिसके कारण से उनके अंदर मानसिक रोग घर कर जाता है और वह आत्महत्या भी कर बैठते हैं।

३. आवेग और संवेग में तेजी से परिवर्तन:-

इस अवस्था में किशोर के आवेगों और  संवेगों में इतनी परिवर्तनशीलता होती है कि वह प्राय: विरोधी व्यवहार करता है जिससे उसे समझाना कठिन हो जाता है अभिभावक द्वारा या बुजुर्गों द्वारा बताए जाने वाले बातें उन्हें अटपटा लगती हैं उन्हें किसी भी काम करने से रोका या टोका जाता है तो उन्हें गुस्सा आने लगता है और वह अपने परिवार वालों से ही लड़ पड़ते हैं।

४. खुद पर अत्यधिक भरोसा :-

इस अवस्था में किशोर अपने मूल्यों आदर्शों और वेदों में संघर्ष का अनुभव करता है जिसके फलस्वरूप वह अपने को कभी-कभी दुविधा में डाल देता है। उनके अंदर खुद पर इतना विश्वास आ जाता है कि वह बिना किसी सोचे समझे कदम उठा लेते हैं जिससे कुछ हद तक उन्हें फायदा में मिलता है और कभी-कभी भारी दुविधा में भी पड़ जाते हैं।

५. इस अवस्था में किशोर बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था दोनों अवस्थाओं में रहता है अतः उसे न तो बालक समझा जाता है और न प्रौढ़ ही।

६. इस अवस्था में किशोर का शारीरिक विकास इतनी तीव्र गति से होता है कि उसमें क्रोध, घृणा, चिड़चिड़ापन, उदासीनता आदि दुर्गुण उत्पन्न हो जाते हैं।

७. इस अवस्था में किशोर का परिवारिक जीवन कष्टमय होता है, क्योंकि स्वतंत्रता का इच्छुक होने पर भी उसे स्वतंत्रता नहीं मिलती हैं और उससे बड़ों की आज्ञा मानने की आशा की जाती हैं।

८. इस अवस्था में किशोर के संवेग, रुचियों, भावनाओं, दृष्टिकोणों आदि में इतनी अधिक परिवर्तनशीलता और अस्थिरता होती है जितनी उसमें पहले कभी नहीं थी।

९. इस अवस्था में किशोर में अनेक अप्रिय बातें  होती हैं; जैसे उद्दण्डता, कठोरता, भुक्खड़पन, पशुओं के प्रति निष्ठुरता, आत्म प्रदर्शन की प्रवृत्ति, गंदगी और अव्यवस्था की आदतें एवं कल्पना और दिवास्वप्न में विचरण।

१०. इस अवस्था में किशोर को अनेक जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसे अपनी आयु के बालक बालिकाओं से नए संबंध स्थापित करना, माता-पिता के नियंत्रण से मुक्त होकर स्वतंत्र जीवन व्यतीत करने की इच्छा करना, योग्य नागरिक बनने के लिए उचित कुशलताओं को प्राप्त करना, जीवन के प्रति निश्चित दृष्टिकोण का निर्माण करना एवं विवाह, परिवारिक जीवन और भावी व्यवसाय के लिए तैयारी करना।

इन सभी कारणों के कारण ही किशोरावस्था(kishoravastha) को तनाव, तूफान तथा संघर्ष का काल कहा जाता है या जीवन का सबसे कठिन काल कहा जाता है।

किशोरावस्था बड़े संघर्ष तनाव व विरोध की अवस्था है यह कथन किसका है?

Solution : .. किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, हमला व विरोध की अवस्था है।" यह कथन स्टेनले हॉल का है।

किशोरावस्था को तनाव और तूफान की अवस्था क्यों कहा जाता है?

किशोरावस्था (kishoravastha) वह समय है जिसमें किशोर अपने को वयस्क समझता है वयस्क उसे बालक समझते हैं इस अवस्था में किशोर अनेक बुराइयों में पड़ जाते हैं यह एक ऐसा समय है जिसमें बालक तथा बालिका में बहुत ज्यादा परिवर्तन होने लगता है जिसके कारण ही इन्हें तनाव, तूफान तथा संघर्ष का काल कहा जाता है तो चलिए पढ़ते हैं कि ...

किशोरावस्था तनाव तूफान तथा संघर्ष की अवस्था है कैसे?

किशोरावस्था बालक के जीवन में सबसे अधिक समस्याओं का काल है। यह वह समय है जब किशोर अपने को बड़ा समझता है और बड़े उसे बालक समझते हैं। किशोरावस्था को दबाव, तनाव एवं तूफान की अवस्था माना गया है। इस अवस्था की विशेषताओं को एक शब्द 'परिवर्तन' में व्यक्त किया जा सकता है।

किशोरावस्था तीव्र दबाब एवं तूफान की आयु है यह कथन किसका है?

"किशोरावस्था तनाव, दबाव तथा संघर्ष की अवस्था है।" उपर्युक्त कथन स्टेनले हॉल का हैकिशोरावस्था व्यक्तित्व के विकास की सबसे जटिल अवस्था है