सोढ़ी हुक्म सिंह ने अपनी कृति में बीकानेर नरेश महाराजा रतन सिंह के द्वारा वि.सं. 1893 (ई. सन् 1836) में बनारस तथा गया कि तीर्थयात्रा पर जाने तथा वहां पर कन्या-वध नहीं करने की प्रतिज्ञा लिए जाने का उल्लेख किया है। इस संबंध में बीकानेर राज्य के इतिहास संबंधी इतर स्रोतों को खंगालने पर हमें थोड़ा विस्तृत ब्यौरा मिलता है, जिसका उल्लेख यहां पर अपनी विशेष प्रासंगिकता रखता है। हमारी जानकारी में यह तथ्य आता है कि वि.सं. 1892 की फाल्गुन सुदि 9 (ई. सन् 1836, तारीख 26 फरवरी) को अपने पूज्य पिता की स्मृति में अन्य पूर्वजों की मृत्यु-स्मारक छतरियों का जीर्णोद्धार करा कर महाराजा रतन सिंह ने वि.सं. 1893 की कार्तिक सुदि 10 (ई. सन् 1836, तारीख 18 नवंबर) को छह हजार साथियों और जनाने के साथ गया-यात्रा के लिए प्रस्थान किया। इस अवसर पर उनके साथ एक अंग्रेज अफसर भी रहा। मथुरा, वृंदावन, प्रयाग तथा काशी की यात्रा करते हुए महाराजा रतन सिंह, पौष सुदि 14 (ई. सन् 1837, तारीख 20 जनवरी) को गया पहुंचे। वहां रहते हुए महाराजा ने केवल स्वयं कन्या-वध नहीं करने की प्रतिज्ञा ली वरन अपने साथ के सभी सरदारों से भी यह प्रतिज्ञा कराई कि वे आज के बाद कभी भी अपने घर में पुत्री का जन्म होने पर उसकी हत्या नहीं करेंगे। उल्लेखनीय है कि उस समय के सामाजिक परिवेश में परिवार में कन्या के जन्म को शुभ अथवा मंगलकारी नहीं माना जाता था। तत्कालीन राजपूत समाज तो इस सामाजिक कु-प्रभा से बहुत ज्यादा प्रभावित था और कन्या-वध एक सामान्य सी बात बन गई थी। ऐसे वातावरण में बीकानेर नरेश महाराजा रतन सिंह के द्वारा स्वयं कन्या-वध नहीं करने की शपथ लिए जाने के साथ ही साथ अपने सरदारों से भी गया में इस आशय की प्रतिज्ञा कराना अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम था। (लगातार) Show
विषयसूची कन्या वध के विरुद्ध अधिनियम पारित कब हुआ?इसे सुनेंरोकेंकन्या भ्रूण हत्या निवारण अधिनियम, १८७० (या 1870 का आठवाँ अधिनियम) ब्रिटिश भारत में पारित एक विधायी अधिनियम था, जिसका उद्देश्य कन्या शिशुओं की हत्या को रोकना था। शिशु हत्या क्या है?इसे सुनेंरोकेंनवजात शिशु की हत्या करना, या १२ माह से कम उम्र के शिशु की हत्या करना, या अवैध रूप से और जानबूझकर उनके जीवन को नष्ट करना भी शिशु वध कहलाता है। शिशु वध में कन्या भ्रूण हत्या सबसे आम बात और यह इसलिए क्योंकि कुछ लोगों की मानसिकता है की लड़कियाँ लडकों से कमजोर होतीं है और अपने माता-पिता पर बोझ होतीं हैं। भारत में स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए क्या कदम उठाये गये हैं?इसे सुनेंरोकेंइसके अतिरिक्त अनैतिक व्यापार( निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट रूपण ( प्रतिषेध) अधिनियम 1986, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, गर्भधारण पूर्वलिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, बाल … कन्या वध पर प्रतिबंध कब और किसने लगाया? इसे सुनेंरोकेंराजस्थान में ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित होने के बाद सर्वप्रथम 1833 में कन्या वध को गैर-कानूनी घोषित करने वाला शासक कोटा महाराव रामसिंह था। कन्या भ्रूण हत्या को कैसे रोका जा सकता है? इसे सुनेंरोकेंप्रसूति पूर्व जांच तकनीक अधिनियम 1994 को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। भ्रूण हत्या को रोकने के लिए राज्य सरकारों को निजी क्लीनिक्स का औचक निरीक्षण व उन पर अगर नजर रखने की जरूरत है। भ्रूण हत्या या परीक्षण करने वालों के क्लीनिक सील किए जाने या जुर्माना किए जाने का प्रावधान की जरूरत है। क्या कदम उठाए गए हैं भारत में महिलाओं की स्थिति को बेहतर?इसे सुनेंरोकेंहाल के वर्षों में, महिलाओं की स्थिति को अभिनिश्चित करने में महिला सशक्तीकरण को प्रमुख मुद्दे के रूप में माना गया है। महिलाओं के अधिकारों एवं कानूनी हकों की रक्षा के लिए वर्ष 1990 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में शिक्षा की क्या भूमिका है?इसे सुनेंरोकेंमहिला शिक्षा की आवश्यकता महिलाओं को शिक्षित करना भारत में कई सामाजिक बुराइयों जैसे- दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या और कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि को दूर करने की कुंजी साबित हो सकती है। यह निश्चित तौर पर देश के आर्थिक विकास में भी सहायक होगा, क्योंकि अधिक-से-अधिक शिक्षित महिलाएँ देश के श्रम बल में हिस्सा ले पाएंगी।
सती प्रथा
सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करने वाले अन्य रियासतें :-
कन्या वध का अंत
त्याग प्रथा
डाकन प्रथा
मानव-व्यापार प्रथा का अंत
बाल विवाह निषेध -
भारत में कन्या वध पर रोक कब लगी?राजा राममोहन राय के प्रयासों से 1829 में लार्ड बैंटिक ने सम्पूर्ण भारत में रोक लगाई। बिलकिंसन के प्रयासों से 1832 ई. में कोटा में कन्या वध पर रोक लगाई गई।
जयपुर में सती प्रथा पर रोक कब लगी?बाद में सती (निवारण ) अधिनियम को राजस्थान सरकार द्वारा 1987 में कानून बनाया. भारत सरकार ने इसे 1988 में संघीय कानून में शामिल किया.
बूंदी रियासत ने बाल विवाह पर रोक कब लगाई?सर्वप्रथम कोटा राज्य में 1833 ई. में गैर कानूनी घोषित, 1834 ई. को बूंदी रियासत में रोक लगाई।
सती प्रथा पर रोक लगाने वाली पहली रियासत कौन सी थी?बाद में राजा राममोहन राय के प्रयत्नों से लार्ड विलियम बैंटिक ने 1829 ई. में सरकारी अध्यादेश से इस प्रथा पर रोक लगाई। सती प्रथा को सहमरण या अन्वारोहण भी कहा जाता है। अधिनियम के तहत सर्वप्रथम रोक कोटा रियासत में लगाई।
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