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Question ज्योतिबा फुले का नाम समाज सुधारकों की सूची में शुमार क्यों नहीं किया गया? तर्क सहित उत्तर लिखिए।Solution ज्योतिबा फुले का नाम समाज सुधारकों की सूची में शुमार नहीं किया गया क्योंकि इसके निर्माता उस उच्चवर्गीय समाज का प्रतिनिधित्व करते थे, जिसका ज्योतिबा फुले विरोध करते थे। वे हमेशा ब्राह्मण समाज में व्याप्त आडंबरों और रूढ़ियों का विरोध करते थे। वे समाज में ब्राह्मण समाज के वर्चस्व के विरोधी थे। वे सभी को समान अधिकार देने के समर्थक । यदि उन्हें समाज सुधारकों की सूची में रख दिया जाता, तो समाज की दशा कब की बदल गई होती । विकसित वर्ग के जो प्रतिनिधित्व करते थे, वे समाज का सुधार नहीं चाहते थे। अतः उन्होंने समाज सुधारकों की सूची में उनका नाम न रखकर ज्योतिबा फुले के कार्यों को दबाने का प्रयास किया।ज्योतिबा फुले का नाम समाज सुधार को किस सूची में शुमार क्यों नहीं किया गया तर्क सहित उत्तर दीजिए?ज्योतिबा फुले का नाम समाज सुधारकों की सूची में शुमार नहीं किया गया क्योंकि इसके निर्माता उस उच्चवर्गीय समाज का प्रतिनिधित्व करते थे, जिसका ज्योतिबा फुले विरोध करते थे। वे हमेशा ब्राह्मण समाज में व्याप्त आडंबरों और रूढ़ियों का विरोध करते थे। वे समाज में ब्राह्मण समाज के वर्चस्व के विरोधी थे।
ज्योतिबा फुले सावित्रीबाई के जीवन से प्रेरित होकर आप समाज में क्या परिवर्तन करना चाहेंगे?ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के जीवन से प्रेरित होकर मैं समाज में स्त्रियों की दशा को सुधारने के लिए काम करना चाहूँगी। अब भी भारत के ऐसे इलाके हैं, जहाँ स्त्रियों की दशा शोचनीय है। उन्हें अब भी शिक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं है। अतः वहाँ पर जाकर उन्हें शिक्षा दिलवाना चाहूँगी।
ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी ने समाज सुधार में क्या योगदान दिया?उन्होंने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए बहुत काम किया, इसके साथ ही किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए फुले ने 1848 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था।
ज्योतिबा फुले ने समाज के लिए क्या किया?बाल विवाह के दुष्परिणामों को लेकर वो लोगों को जागरूक करते रहे। गरीबों और दलितों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा फुले आजीवन संघर्ष करते रहे। उन्होंने 1873 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की। सामाजिक न्याय के प्रति उनके संघर्ष को देखते हुए 1888 में उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई।
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