जीवन के उद्भव का आधुनिक ओपेरिन सिद्धांत क्या है? - jeevan ke udbhav ka aadhunik operin siddhaant kya hai?

जीवन के उद्भव का आधुनिक ओपेरिन सिद्धांत क्या है? - jeevan ke udbhav ka aadhunik operin siddhaant kya hai?

जीवन के उद्भव का आधुनिक ओपेरिन सिद्धांत क्या है? - jeevan ke udbhav ka aadhunik operin siddhaant kya hai?

जीवन का उद्भव एवं विकास (The Origin and Evolution of Life)

  • पृथ्वी की उत्पत्ति तथा पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति सहस्त्रों वर्षों से सभी के चिंतन का विषय रहा है। पश्थ्वी को उत्पत्ति के रहस्य के संदर्भ में मात्र विज्ञान ही नहीं बल्कि धर्म एवं आध्यात्म आदि भी अपनी संकल्पनाएं देते हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में पृथ्वी अभी तक का ज्ञात एक मात्र ऐसा पिण्ड है जहाँ जीवन पाया जाता है। शेष किसी भी ग्रह में जीवन के ठोस प्रमाण अभी तक खोजें नहीं जा सके हैं, परंतु इस और मनुष्य निरंतर प्रयासरत है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से लेकर पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति तथा जीवन का विकास एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है। पृथ्वी पर उपस्थित विभिन्न जीवों, उनकी क्रिया-विधि एवं जीवन की जटिलता को समझने से पहले आवश्यक है कि यह जान लिया जाए कि आखिर पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति हुई कैसे? पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को लेकर अनेक मत रहे हैं, अलग-अलग विद्वानों ने जीवन को अलग-अलग तरह से समझाया। इस अध्याय में पृथ्वी तथा पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण सिद्धान्तों तथा संकल्पनाओं की चर्चा की जाएगी तथा उन प्रमाणों का उल्लेख किया जाएगा जो जीवन के उद्विकास को प्रदर्शित करते हैं।

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति से संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण सिद्धान्त

(1) धार्मिक सिद्धान्त (Religious Concepts)

  • इस सिद्धान्त को मानने वाले पृथ्वी की उत्पत्ति और पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को किसी अलौकिक शक्ति का कार्य मानते हैं। धार्मिक मत के अनुसार ईश्वर ने पृथ्वी पर जीवन को उत्पत्ति की। जिस तरह विभिन्न धर्म को मानने वाले लोग एवं एक ही धर्म में विभिन्न मान्यताएं हैं, उसी प्रकार धार्मिक सिद्धान्त में भी पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को लेकर अनेक मत एवं उनके बीच मत-भेद है। कुछ का कहना है कि पृथ्वी पर प्रथम जीव के रूप में आदम और हवा आए. कुछ का मानना है कि मनु और श्रद्धा के रूप में पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति हुई। हमारे वेद भी पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के संदर्भ में अलग-अलग मत रखते हैं। इस सिद्धान्त का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

(2) स्वतः उत्पत्तिवाद या जनन सिद्धान्त (Theory of Spontaneous Generation)

  • इस सिद्धान्त के प्रतिपादक अरस्तु एवं प्लेटो हैं। इनका मानना था कि पृथ्वी पर जब कहीं जीवन की संभावनाएं उत्पन्न हो जाती हैं, तब वहाँ जीवन अस्तित्व में आने लगता है। उनका मानना था कि पृथ्वी पर जीवन निर्जीव वस्तुओं से उत्पनन हुआ है। इसे इस तरह समझा जा सकता है. कि यदि कहीं जंगल उत्पन्न कर दिया जाए (पेड़-पौधे, नदी. झील आदि) तो पशु वहाँ स्वतः ही उत्पन्न हो जाते हैं। इस सिद्धान्त को बाद में कई प्रयोगों द्वारा नकार दिया गया, और यह सिद्ध हो गया कि जीवन की उत्पत्ति जीवन से ही हो सकती है, निर्जीव से नहीं।

(3) ब्रहमाणवाद या कास्मोजोइक सिद्धान्त (Cosmozoic Theory)

  • यह संभावनाओं और कल्पनाओं पर आधारित सिद्धान्त है, जिसमें यह मान लिया गया था कि पृथ्वी के बाहर पहले से ही जीवन उपस्थित था और ये दूसरे ग्रहों के सूक्ष्मजीव पृथ्वी पर आए और इन्हीं के द्वारा पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति हुई। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में हुए बाद के प्रयोगों एवं खोजों ने यह सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी के बाहर किसी दूसरे ग्रह में अब तक जीवन के अंश नहीं दिखे हैं, अतः इस सिद्धान्त को मान्यता भी समाप्त हो गई।

(4) आकस्मिक अकार्बनिक उत्पत्तिवाद या प्रलयवाद (Theory of Sudden Creation)

  • यह हैकल द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त है। हैकल के मत के अनुसार पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की घटना आकस्मिक है. जैसे किसी बाढ़ या प्रलय जैसी भीषण त्रासदी के फलस्वरूप पृथ्वी पर उपस्थित अकार्बनिक पदार्थों के पुनः संयोजन के फलस्वरूप जीवन की उत्पत्ति हुई है। वैज्ञानिक तकों के अभाव में इस सिद्धान्त को भी बाद में नकार दिया गया।
  • इसी प्रकार जीवन की उत्पत्ति के अनेक सिद्धान्त दिये गए जिनमें से अधिकांश का कोई वैज्ञानिक तर्क नहीं था। परंतु इन तों से एक बात स्पष्ट हो गई थी कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कई वर्षों लंबी घटना है। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को लेकर आज जो मत सर्वमान्य है वह है ओपेरिन का आधुनिक सिद्धान्त जो पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को क्रमवार वैज्ञानिक रूप से उल्लिखित करता है।

(5) ओपरिन का आधुनिक सिद्धान्त (Oparin’s Modern Theory)

  • औपरिन के मत के अनुसार जीवन की उत्पत्ति सर्वप्रथम समुद्र में हुई। यह बहुत ही धीमी प्रक्रिया के रूप में जीव रसायन (biochemical) के रूप में उत्पन्न हुई जो कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों के हजारों वर्षों में अभिक्रिया से बना। ओपैरिन के सिद्धान्त का समर्थन इस बात से मिलता है कि जीवों के जीवद्रव्य में उपस्थित सभी तत्व एवं यौगिक जैसेहाइड्रोजन, अमोनिया, कार्बन, गन्धक, फास्फोरस, औ जल सभी कुछ समुद्र में उपस्थित थे। इस प्राथमिक पदार्थों से जटिल पदार्थों, जैसे एथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन एथिलीन, एसिटिलीन, और एल्कोहल का निर्माण हुआ। इन्हीं यौगिकों ने पराबैंगनी किरण तथा एक्स किरणों के विद्युत विसर्जन द्वारा जी उत्पत्ति के आवश्यक अवयव जैसे शर्करा, ग्लिसरीन, वसा अम्ल (Fatty acids) अमीनो अम्ल, लैक्टिक अम्ल पिरीमिडीन, प्यूरीन का निर्माण किये। ये सरल यौगिक तुलनात्मक जटिल यौगिकों जैसे न्यूक्लिक अम्ल ATP जटिल शर्करा इत्यादि के निर्माण में जुट गए। यही न्यूक्लियोप्रोटीन उत्परिवर्तन (Mutation) के फलस्वरूप नये-नये न्यूक्लिओ प्रोटीन अथवापोलीपेप्टाइड का निर्माण किये और इस तरह प्रथम सजीव कोशिका का निर्माण हुआ। यह सजीव लक्षण सर्वप्रथम विषाणुओं में पाया गया इसलिए इस न्यूक्लियो प्रोटीन को प्रारंभिक जीव की संज्ञा दी गई। ये न्यूक्लियोप्रोटीन आकार में बड़े होकर कायसरवंट (Concervate) का निर्माण किये और इसके ऊपर चारों तरफ पारगमन झिल्ली (Permeable membrane) का निर्माण हो गया। यह अवस्था कोशिका निर्माण की प्रथम अवस्था कहलाती है। इसके पश्चात धीरे-धीरे कोशिका के अन्य कोशिकांग विकसित होने लगे। इन कोशिकाओं में विभिन्न कार्यों के लिए विभाजन शुरू हुआ जिससे साधारण कोशिका से जटिल कोशिका का निर्माण हुआ, यही प्रक्रिया जैव-विकास कहलाती है।

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जीवन के उद्भव का आधुनिक ओपेरिन सिद्धान्त क्या है 2?

ओपेरिन व हैल्डेन के प्रस्ताव के अनुसार, सुदूर अतीत में जीवन का उदभव यौगिकों के रासायनिक संश्लेषण द्वारा (रासायनिक विकास सिद्धांत) पानी में हुआ ।

आधुनिक वैज्ञानिक पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का क्या कारण मानते हैं?

आधुनिक वैज्ञानिक जीवन की उत्पत्ति को एक तरह की रासायनिक प्रक्रिया बताते हैं इसमें पहले जैव कार्बनिक अणु बने फिर इनका समूह बना, यह प्रक्रिया निरंतर चलती रही और अंत में यह निर्जीव पदार्थ जीवित तत्त्वों में परिवर्तित हुआ। पृथ्वी पर जीवन के प्रमाण अलग अलग समय में जीवाश्मों के अवशेष के रूप में प्राप्त हुए हैं

जीवन की उत्पत्ति से आप क्या समझते हैं नई जातियों के उद्भव पर प्रकाश डालिए?

सकते हैं, पर धर्म ही सब कुछ नहीं है। इस कारण इसकी उत्पत्ति में धर्म को अधिक-से-अधिक एक सहायक कारण माना जा सकता है, मुख्य कारण नहीं।

जीवन का उद्भव सर्वप्रथम कहाँ हुआ?

अतएव वासस्थान और भोजन के लिये जीवों में अनवरत संघर्ष चलता रहता है। इस संघर्ष में बहुसंख्या में जीव मर जाते हैं और केवल कुछ ही जीवित रह पाते हैं। इस प्रकार प्रकृति में विभिन्न जीवों की संख्या में एक संतुलन बना रहता है।