इल्तुतमिश युग के दौरान प्रारंभिक जीवन समस्याओं और उपलब्धियों से आप क्या? - iltutamish yug ke dauraan praarambhik jeevan samasyaon aur upalabdhiyon se aap kya?

B.A.I, History l / 2020 

प्रश्न 3. "इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक था।" इस कथन की व्याख्या कीजिए। 

अथवा ''सिंहासनारोहण के पश्चात् इल्तुतमिश को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? उनका उसने किस प्रकार समाधान किया ?

अथवा ''इल्तुतमिश के चरित्र एवं उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

अथवा "इल्तुतमिश दास वंश का वास्तविक संस्थापक था।"इस कथन की विवेचना कीजिए।

अथवा ''इल्तुतमिश के जीवन तथा उपलब्धियों का वर्णन कीजिए। उसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक क्यों माना जाता है ?

उत्तर इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद था । ऐबक के शासनकाल में वह बदायूँ का सूबेदार था ऐबक की मृत्यु के पश्चात् आरामशाह कोहटाकर वह 1211 ई. में दिल्ली का सुल्तान बना।

इल्तुतमिश की कठिनाइयाँ

जिस समय इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान बना था, उस समय उसके समक्ष निम्न कठिनाइयाँ थीं

(1) इल्तुतमिश को विरासत में जो राज्य प्राप्त हुआ था, वह बहुत छोटा था। पूर्व में बनारस से लेकर पश्चिम में शिवालिक की पहाड़ियों तक उसके राज्य की सीमा थी। वह अपने राज्य का विस्तार करना
चाहता था।

इल्तुतमिश युग के दौरान प्रारंभिक जीवन समस्याओं और उपलब्धियों से आप क्या? - iltutamish yug ke dauraan praarambhik jeevan samasyaon aur upalabdhiyon se aap kya?



(2) गजनी का शासक यल्दौज दिल्ली के राज्य पर अपना अधिकार मानता था। यद्यपि उसने ऐबक के जीवनकाल में भी यह दावा प्रस्तुत किया था, तथापि ऐबक से निकट सम्बन्ध होने के कारण उसने उस माँग को वापस ले लिया। इल्तुतमिश के समय में यल्दौज ने पुन: इस माँग को उठाया।

(3) नासिरुद्दीन कुबाचा ने अवसर की लाभ उठाकर कच्छ, सिन्ध, मुल्तान, भटिण्डा आदि स्थानों पर अधिकार कर लिया। आरामशाह की मृत्यु के पश्चात् उसने लाहौर पर भी अधिकार कर लिया। अत: उसके समक्ष इन सभी स्थानों को जीतकर अपने राज्य में मिलाने की समस्या थी।

(4) बंगाल व बिहार भी इल्तुतमिश के अधिकार से निकल गए थे।

(5) अलीमर्दान खाँ ने लखनौती में स्वयं को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया था।

(6) राजपूत शासक पुनः संगठित होकर तुर्की शासन के विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे।

(7) चंगेज खाँ के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण का भी भय बना हुआ था।

इल्तुतमिश के कार्य एवं उपलब्धियाँ

(1) यल्दौज का पतन -गजनी के शासक यल्दौज की शक्ति को हमेशा के लिए समाप्त करने के उद्देश्य से इल्तुतमिश ने 1215 ई. में उसका पीछा किया तथा 1216 ई. में तराइन के युद्ध में उसे पराजित करके बन्दी बना लिया। उसी वर्ष उसका कत्ल कर दिया गया। इस प्रकार इल्तुतमिश ने अपने प्रबल शत्रु का अन्से करके गजनी से दिल्ली के राजनीतिक सम्बन्ध समाप्त कर दिए।

(2) चंगेज खाँ का आक्रमण - इल्तुतमिश के कार्यकाल में भारत पर मंगोलों के आक्रमण की सम्भावना बढ़ गई थी। चंगेज खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने चीन, मध्य एशिया, इराक व फारस को रौंद डाला। चंगेज खाँ जलालुद्दीन मगबर्नी का पीछा करते हुए भारत की सीमा पर आ पहुँचा। जलालुद्दीन ने चंगेज खाँ के विरुद्ध इल्तुतमिश से सहायता माँगी, किन्तु इल्तुतमिश ने मना कर दिया। इल्तुतमिश की दूरदर्शिता के कारण चंगेज खाँ भारत पर आक्रमण किए बिना वापस लौट गया। अत: मंगोलों के आक्रमण का भय समाप्त हो गया। यह इल्तुतमिश की एक महान् सफलता थी।

(3) कुबाचा का अन्त - मुहम्मद गौरी का एक गुलाम कुबाचा इल्तुतमिश का प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी था। वह मुल्तान, कच्छ व सिन्ध का स्वामी था। जलालुद्दीन ने कुबाचा की शक्ति को बड़ी सीमा तक हानि पहुँचाई थी। अवसर का लाभ उठाकर इल्तुतमिश ने कबाचा के राज्य पर कब्जा कर लिया। 1228 ई. में कुबाचा ने निराश होकर आत्महत्या कर ली। इस प्रकार कुबाचा का भी अन्त हो गया।

(4) बंगाल पर अधिकार - इल्तुतमिण ने बंगाल प्रान्त पर भी कब्जा कर लिया था। 1211 ई. में हिसामुद्दीन एवाज खिलजी बंगाल का शासक बना तथा उसने गयासुद्दीन की उपाधि धारण की। उसने इल्तुतमिश की अधीनता स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। इल्तुतमिश के पुत्र नासिरुद्दीन महमूद ने 1226 ई. में गयासुद्दीन को युद्ध में मारकर बंगाल पर अधिकार कर लिया। बाद में 1229 ई. में बंगाल को पुनः दिल्ली राज्य के अधीन एक सूबा बना दिया गया।

(5) राजपूत राजाओं से युद्धहिन्दू- राजाओं ने राजस्थान, मालवा आदि प्रान्तों में विद्रोह करके तुर्की राज्य को समाप्त करने का प्रयास किया था, परन्तु इल्तुतमिश ने इन राजाओं के प्रति कठोर और आक्रामक नीति अपनाकर रणथम्भौर, बयाना, अजमेर, ग्वालियर आदि स्थानों पर पुनः अधिकार कर लिया।

(6) खलीफा द्वारा मान्यता- इल्तुतमिश ने भारत में अपने सभी विरोधियों का दमन करके अपने आपको निर्विवाद रूप से दिल्ली का शासक सिद्ध कर दिया। फरवरी, 1229 में बगदाद के खलीफा ने इल्तुतमिश को सुल्तान के रूप में मान्यता दे दी। अत: दिल्ली सल्तनत एक स्वतन्त्र राज्य बन गया और सुल्तान का पद कानूनी तथा वंशानुगत बन गया।

(7) दिल्ली को राजधानी बनाया- इल्तुतमिश से पहले मुस्लिम बादशाहों ने लाहौर को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बनाया था, परन्तु इल्तुतमिश'पहला शासक था जिसने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। अत: वह दिल्ली का पहला सुल्तान कहलाया।

(8) चालीस तुर्क गुलामों के दल की स्थापना- इल्तुतमिश ने अपने प्रशासनको सुचारु रूप से चलाने के लिए बहुत योग्य तथा विश्वासपात्र चालीस तुर्क गुलामों के दल का गठन किया। इतिहास में यह दल 'तुर्कान-ए-चहलगान'के नाम से प्रसिद्ध है।

इल्तुतमिश के चरित्र का मूल्यांकन

(1) राज्य निर्माता और महान् विजेता-मुहम्मद गौरी ने भारत में जिस मुस्लिम राज्य की स्थापना की थी, उस राज्य के निर्माण का उसे या उसके प्रतिनिधि कुतुबुद्दीन को कोई समय नहीं मिला। गौरी की मध्य एशिया की उलझनों ने उसे राज्य निर्माण का अवसर नहीं दिया। कुतुबुद्दीन को चार वर्षों में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। डॉ. ए. आर. त्रिपाठी लिखते हैं, "भारत में मुस्लिम प्रभुसत्ता का प्रारम्भ वास्तविक रूप में इल्तुतमिश के राज्य से ही होता है।" अत: इल्तुतमिश को ही यह काम सँभालना पड़ा। वह एक वीर तथा कुशल सैनिक और महान् विजेता था। उसने दास के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया और अपनी योग्यता की बदौलत ही दिल्ली का सुल्तान बन गया।

(2) योग्य शासक- इल्तुतमिश एक योग्य शासक था। वह दूरदर्शी और कूटनीतिज्ञ था। गुलाम का गुलाम होते हुए भी उसने जिस तीव्र गति से उन्नति की और अन्त में सभी प्रतिद्वन्द्वियों कुबाचा, यल्दौज आदि का दमन करते हुए सुल्तान के पद को प्राप्त किया, वह उसकी योग्यता का प्रमाण था।

(3) साहित्य एवं कला प्रेमी-इल्तुतमिश सुसभ्य था और उसने अपने दरबार में ईरानी राजदरबार के रीति-रिवाजों और व्यवहार का आरम्भ किया। वह विद्वानों और योग्य व्यक्तियों का सम्मान करता था। उसके समकालीन विद्वान् मिन्हाज-उस्स-सिराज, मलिक ताजुद्दीन, निजामुल मुल्क, मुहम्मद जुनैदी, मलिक कुतुबुद्दीन, हसन औरी और फखरूल मुल्क इसामी जैसे योग्य व्यक्ति उसके दरबार में सम्मान प्राप्त किए हुए थे। विभिन्न योग्य व्यक्तियों के कारण उसका, राजदरबार सुल्तान मुहम्मद गजनवी की भाँति ही गौरवपूर्ण बन गया। इल्तुतमिश ने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया और उसे दिल्ली सल्तनत के सम्मान के अनुकूल सुन्दर और वैभवपूर्ण बनाया। उसने दिल्ली में विभिन्न तालाब, मदरसे, मस्जिदेंऔर इमारतें बनवाईं। उसने कुतुबमीनार को पूरा करवाया, जो प्रारम्भिक इस्लामी कला का एक श्रेष्ठ नमूना माना गया है।

(4) धार्मिक विचार-इल्तुतमिश कट्टर असहिष्णु सुन्नी मुसलमान था। शिया मुसलमानों तथा हिन्दुओं के साथ उसका व्यवहार अच्छा न था। वह धार्मिक विचारों का व्यक्ति था और रात्रि को पर्याप्त समय प्रार्थना और चिन्तन में व्यतीत करता था। परन्तु डॉ. के. ए. निजामी के अनुसार, "उसकी राजनीति उसके धार्मिक विचारों से पृथक् रही, यह ठीक प्रतीत होता है।"वह अपने धार्मिक विचारों के कारण तत्कालीन धार्मिक नेताओं का समर्थन प्राप्त करके अपने राज्य को नैतिक समर्थन दिलाने में सफल रहा, परन्तु वह प्रत्येक अवसर पर उलेमा वर्ग से सलाह लेना आवश्यक नहीं मानता था। यह उसके द्वारा अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी बनाने से स्पष्ट होता है।

(5) वीर एवं साहसी-इल्तुतमिश एक साहसी सैनिक और अनुभवी सेनापति था। मुहम्मद गौरी के समय में खोखरों के विद्रोह को दबाने, यल्दौज और कुबाचा को समाप्त करने तथा बंगाल एवं राजस्थान के युद्धों में उसकी वीरता से इस बात की पुष्टि होती है।

(6) दूरदर्शी एवं कूटनीतिज्ञ - इल्तुतमिश दूरदर्शी एवं कूटनीतिज्ञ था। उसने चंगेज खाँ और जलालुद्दीन के साथ व्यवहार करते हुए अपनी कूटनीतिज्ञता का परिचय दिया।इल्तुतमिश भारत का महान् शासक था। उसे भारत में 'मुस्लिम साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक' कहा जा सकता है।डॉ. के. ए. निजामी ने लिखा है, "ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की रूपरेखा के बारे में सिर्फ दिमागी आकृति बनाई थी, इल्तुतमिश ने उसे एक व्यक्तित्व, एक पद, एक प्रेरणा शक्ति, एक दिशा, एक शासन और एक शासक वर्ग प्रदान किया।"

इल्तुतमिश युग के दौरान प्रारंभिक जीवन समस्याओं और उपलब्धियों से आप क्या समझते?

बंगाल में अलीमदन खिलजी का आधिपत्य था, लेकिन उसके अत्याचारों से क्षुब्ध होकर अमीरों ने उसकी हत्या कर दी व हिसामुद्दीन एवाज को बंगाल का सूबेदार बनाया, उसने ग्यासुद्दीन की उपाधि धारण कर अपनी स्वतन्त्र सत्ता घोषित कर दी, व जाजनगर व तिरहुत पर अधिकार कर लिया । अतः वह भी इल्तुतमिश के लिये खतरा था ।

इल्तुतमिश के सम्मुख प्रमुख समस्या क्या थी वह इन समस्याओं से कैसे उभरा?

राजपूत शासकों के विरुद्ध भी समान अभियान चलाया गया। सन 1226 में रणथम्भौर को जीता तथा सन 1231 तक इल्तुतमिश ने अपना अधि कार मन्दौर, जालौर, बयाना तथा ग्वालियर पर कर लिया था । शासक था और उसने नवस्थापित दिल्ली सल्तनत को संगठित और नियोजित किया । इल्तुतमिश ने तुर्क-ए- चहलगनी (चालीस का समूह) की स्थापना की थी

इल्तुतमिश की उपलब्धियां क्या थी?

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत में शम्सी वंंश का एक प्रमुख शासक था। तुर्की-राज्य संस्थापक कुतुब-उद-दीन ऐबक के बाद वो उन शासकों में से था जिससे दिल्ली सल्तनत की नींव मजबूत हुई। वह ऐबक का दामाद भी था। उसने 1211 इस्वी से 1236 इस्वी तक शासन किया।

इल्तुतमिश का अर्थ क्या होता है?

उत्तर – इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद था । ऐबक के शासनकाल में वह बदायूँ का सूबेदार था ऐबक की मृत्यु के पश्चात् आरामशाह कोहटाकर वह 1211 ई. में दिल्ली का सुल्तान बना।