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मानक भाषा
प्रथम सोपान- 'बोली'पहले स्तर पर भाषा का मूल रूप एक सीमित क्षेत्र में आपसी बोलचाल के रूप में प्रयुक्त होने वाली बोली का होता है, जिसे स्थानीय, आंचलिक अथवा क्षेत्रीय बोली कहा जा सकता है। इसका शब्द भंडार सीमित होता है। कोई नियमित व्याकरण नहीं होता। इसे शिक्षा, आधिकारिक कार्य–व्यवहार अथवा साहित्य का माध्यम नहीं बनाया जा सकता। द्वितीय सोपान- 'भाषा'वही बोली कुछ भौगोलिक, सामाजिक–सांस्कृतिक, राजनीतिक व प्रशासनिक कारणों से अपना क्षेत्र विस्तार कर लेती है, उसका लिखित रूप विकसित होने लगता है और इसी कारण से वह व्याकरणिक साँचे में ढलने लगती है, उसका पत्राचार, शिक्षा, व्यापार, प्रशासन आदि में प्रयोग होने लगता है, तब वह बोली न रहकर 'भाषा' की संज्ञा प्राप्त कर लेती है। तृतीय सोपान- 'मानक भाषा'यह वह स्तर है जब भाषा के प्रयोग का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो जाता है। वह एक आदर्श रूप ग्रहण कर लेती है। उसका परिनिष्ठित रूप होता है। उसकी अपनी शैक्षणिक, वाणिज्यिक, साहित्यिक, शास्त्रीय, तकनीकी एवं क़ानूनी शब्दावली होती है। इसी स्थिति में पहुँचकर भाषा 'मानक भाषा' बन जाती है। उसी को 'शुद्ध', 'उच्च–स्तरीय', 'परिमार्जित' आदि भी कहा जाता है।
महत्त्वपूर्ण क़दम
भारतीय हिन्दी परिषदभाषा के सर्वागीण मानकीकरण का प्रश्न सबसे पहले 1950 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग ने ही उठाया। डॉ. धीरेन्द्र वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसमें डॉ. हरदेव बाहरी, डॉ. ब्रजेश्वर शर्मा, डॉ. माता प्रसाद गुप्त आदि सदस्य थे। धीरेन्द्र वर्मा ने 'देवनागरी लिपि चिह्नों में एकरूपता', हरदेव बाहरी ने 'वर्ण विन्यास की समस्या', ब्रजेश्वर शर्मा ने 'हिन्दी व्याकरण' तथा माता प्रसाद गुप्त ने 'हिन्दी शब्द–भंडार का स्थिरीकरण' विषय पर अपने प्रतिवेदन प्रस्तुत किए। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालयकेन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ने लिपि के मानकीकरण पर अधिक ध्यान दिया और देवनागरी लिपि तथा 'हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण' (1983 ई.) का प्रकाशन किया। विश्व हिन्दी सम्मेलनउद्देश्य—संयुक्त राष्ट्र की भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिलाना व हिन्दी का प्रचार–प्रसार करना। विश्व हिन्दी सम्मेलन
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख
1 हिन्दी का मानकीकरण क्यों किया गया इसके वर्तनी चिह्नों का वर्णन कीजिए?मानकीकरण संस्थाएं एवं प्रयास
हिन्दी भाषा के संघ और कुछ राज्यों की राजभाषा स्वीकृत हो जाने के फलस्वरूप देश के भीतर और बाहर हिन्दी सीखने वालों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हो जाने से हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करना आवश्यक और कालोचित लगा, ताकि हिन्दी शब्दों की वर्तनियों में अधिकाधिक एकरूपता लाई जा सके।
हिन्दी का मानकीकरण क्यों किया गया?मानकीकरण मुख्य रूप से विशिष्ट मानव भाषा विकास के साथ संबंध है और तभी हो सकता है जब एक समाज को अपनी भाषा और मिलनसार पद्धति की मौजूदा खेती है, जिसके बाद, समाज तो एक राज्य के लिए एक आवश्यकता व्यक्त करना चाहिए वर्दी किसी भी अनियमितताओं से छुटकारा पाने और दो या अधिक दलों के बीच एक सुसंगत संचार प्रणाली बनाने के द्वारा ।
हिंदी वर्तनी का मानकीकरण कब हुआ?समिति ने अप्रैल, 1962 में अपनी अंतिम सिफारिशें प्रस्तुत कीं, जिन्हें सरकार ने स्वीकृत किया। इन्हें 1967 में हिंदी वर्तनी का मानकीकरण शीर्षक पुस्तिका में व्याख्या तथा उदाहरण सहित प्रकाशित किया गया था।
हिंदी के मानकीकरण के लिए क्या प्रयास किए गए?उन्होंने खड़ी बोली को पद्य की भाषा बनाने के लिए आंदोलन चलाया। हिन्दी भाषा के मानकीकरण की दृष्टि से द्विवेदी युग (1900-20) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण युग था। 'सरस्वती' पत्रिका के सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी बोली के मानकीकरण का सवाल सक्रिय रूप से और एक आंदोलन के रूप में उठाया।
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