स्थित है। इनके पिता चंद्रशेखर अय्यर एक स्कूल में शिक्षक थे। वह भौतिकी और गणित के विद्वान और संगीत प्रेमी थे। चंद्रशेखर वेंकटरमन की माता जी का नाम पार्वती अम्माल था। Show चंद्रशेखर वेंकट रमन जी की शिक्षा▶▶ रमन जी का कैरियर▶▶ 1911 ईस्वी में रमन को अकाउंटेंट जनरल के पद पर नियुक्त करके पुनः कोलकाता भेज दिया गया। इससे रमन बड़े खुश थे क्योंकि उन्हें परिषद की प्रयोगशाला में पुनः अनुसंधान कार्य करने का अवसर मिल गया था। अगले 7 वर्षों तक रमन इस प्रयोगशाला में शोध कार्य करते रहे। सर्व तारक नाथ पालिक, डॉक्टर रास बिहारी घोष और सर आशुतोष मुखर्जी के प्रयत्नों से कोलकाता में एक साइंस कॉलेज खोला गया। रमन की विज्ञान के प्रति समर्पण की भावना का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन वाले प्राध्यापक पद पर आना पसंद किया। सन 1917 ईसवी में रमन कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक नियुक्त हुए। सन 1935 ईस्वी में डॉक्टर रमन को बेंगलुरु में स्थापित ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज’ के संचालन का भार सौंपा गया। वहां उन्होंने सन 1948 ईस्वी तक कार्य किया। बाद में डॉक्टर रमन ने बेंगलुरू में अपने लिए एक स्वतंत्र संस्थान की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने कोई भी सरकारी सहायता नहीं ली।डॉ रमन ने अपने संस्थान में जीवन के अंतिम दिनों शोधकार्य किया। डॉ रमन महत्वपुर्ण शोधकार्य▶▶ एक बार रामन अपने छात्रों के साथ प्रकाश सम्बंधी प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने प्रकाश की एक किरण को एक छोटे से छेद से गुजारने के बाद बेंजीन के द्रव पर डाला। दूसरे सिरे पर उन्होंने जब डायरेक्ट विजन स्पेक्ट्रोस्कोेप_Direct Vision Spectroscope द्वारा उस प्रकाश को देखा, तो उसमें कुछ असाधारण सी रेखाएँ भी नजर आईं। उसी दौरान शिकागो विश्वविद्यालय के ए.एच. कॉम्प्टन_A H Compton ने एक्स्-रे किरणों को किसी खास सामग्री से गुजार कर विशेष रेखाओं के देखे जाने की बात कही थी (Compton effect)। कॉम्प्टन को इस खोजे के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला था। रामन को महसूस हुआ कि कुछ ऐसा ही उनके प्रयोग में भी हो रहा है। रामन ने महसूस किया कि प्रकाश की किरण वास्तव में कणों (फोटोन्स) की धारा की तरह व्यवहार कर रही हैं। उन्होंने देखा कि किसी द्रव पर प्रकाश की किरण डालने पर प्रकाश में उपस्थित फोटोन्स द्रव के अणुओं पर वैसे ही आघात करते थे जैसे एक क्रिकेट का बॉल फुटबॉल पर करता है। क्रिकेट का बॉल जब फुटबॉल से टकराता है, तो वह कितनी ही गति से क्यों न उससे टकराए, लेकिन वह फुटबॉल को थोड़ा-सा ही हिला पाता है। इस प्रक्रिया में क्रिकेट का बॉल अपनी कुछ ऊर्जा फुटबाल को दे देता है और स्व यं दूसरी ओर उछल कर गिर जाता है। रामन ने देखा कि इसी तरह फोटोन्स अपनी कुछ ऊर्जा छोड़ देते हैं और छितरे प्रकाश के स्पेक्ट्रम में कई बिन्दुओं पर दिखाई देते हैं। जबकि अन्य फोटोन्स अपने रास्ते से हट जाते हैं। वे न तो इस प्रक्रिया में ऊर्जा ग्रहण करते हैं और न ही छोड़ते हैं। इसलिए वे स्पेक्ट्रम में अपनी सामान्य स्थिति में दिखाई देते हैं। फोटोन्स में ऊर्जा की आई हुई यह कमी और इसके परिणामस्वरूप स्पेक्ट्रम में कुछ असाधारण रेखाओं का उत्पडन्नो होना ही रमन प्रभाव_(Raman effect) कहलाता है। फोटोन्स द्वारा खोई जाने वाली ऊर्जा की मात्रा उस द्रव रसायन के अणुओं की प्रकृति पर निर्भर करती है। यही कारण है कि भिन्न-भिन्न प्रकार के अणु फोटोन्स के साथ मिलकर अलग-अलग प्रकार की क्रिया करते हैं और इस दौरान ऊर्जा की मात्रा में कमी भी अलग-अलग होती है। रामन ने बताया कि स्प्रेाट्रम में दिखने वाली असाधारण रेखाओं के फोटोन्स की ऊर्जा में होने वाली कमी को माप कर पदार्थ की आंतरिक अणु संरचना का पता लगाया जा सकता है। रमन की यह महत्वपूर्ण खोज 28 फरवरी 1928 को सम्पन्न् हुई, जिसकी परिणति तक पहुँचने में उन्हें सात वर्ष का समय लगा था। उन्होंने जब अपनी यह खोज दुनिया के सामने रखी, तो उसे प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ ने अपने आगामी अंक में प्रकाशित किया। उनकी इस महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। ‘रमन प्रभाव’ की महत्वपूर्ण खोज के प्रति अपना सम्मांन जताने के लिए भारत वर्ष में 28 फरवरी का दिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस_(National Science) Day के रूप में मनाया जाता है। डॉक्टर रमन ने संगीत का भी गहन अध्यन किया था। संगीत वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के बारे में डॉक्टर रमन अनुसंधान कार्य किया, जिससे संबंध एक लेख जर्मनी के एक विश्वकोश में भी प्रकाशित हुआ था। डॉ रमन के पुरुस्कार व् उपलब्धियां▶▶ उनके महत्वपूर्ण अनुसंधान ‘रमन प्रभाव’ के लिए उन्हें सन 1930 में भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्का्र प्रदान किया गया। सन 1941 में रामन को अमेरिका का प्रसिद्ध फ्रैंकलिन पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन 1954 में भारत सरकार ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्ता सन 1958 में सोवियत रूस ने अपने प्रतिष्ठित सम्मान ‘लेनिन शान्ति पुरस्का्र’ से सम्मानित किया। चंद्रशेखर वेंकट रमन जी का व्यक्तित्व▶▶ वे एक परिश्रमी और सरल स्वभाव के व्याक्ति थे। इसका पता इस बात से भी चलता है कि जब देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने उनके सामने ‘भारत के उपराष्ट्रपति ‘ पद का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने बड़ी विनम्रता से उसे अस्वीकार कर दिया था। चंद्रशेखर वेंकटरमन की जन्म कब हुई?चन्द्रशेखर वेंकटरामन का जन्म ७ नवम्बर सन् १८८८ ई. में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नामक स्थान में हुआ था। आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर एस. पी. जी.
रामन का जन्म कब और कहाँ हुआ?7 नवंबर 1888, तिरुच्चिराप्पल्ली, भारतचन्द्रशेखर वेंकटरमन / जन्म की तारीख और समयnull
रमन का जन्म कहाँ हुआ?तिरुच्चिराप्पल्ली, भारतचन्द्रशेखर वेंकटरमन / जन्म की जगहnull
रमन का पूरा नाम क्या है?भारतीय भौतिक-शास्त्री सी. वी. रमन का पूरा नाम चेंद्रशेखर वेंकट रमन है, जिनका जन्म 7 नवंबर, 1888 को मद्रास प्रेसिडेंसी के तिरुचिरापल्ली के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम चंद्रशेखर रामनाथन अय्यर और मां का नाम पार्वती अम्मल है.
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