भारतीय इतिहास लेखन पर साम्राज्यवादी दृष्टिकोण का वर्णन करें - bhaarateey itihaas lekhan par saamraajyavaadee drshtikon ka varnan karen

बीसवीं शताब्दी का साम्राज्यवादी इतिहास लेखन

भारतीय इतिहास लेखन पर साम्राज्यवादी दृष्टिकोण का वर्णन करें - bhaarateey itihaas lekhan par saamraajyavaadee drshtikon ka varnan karen


उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य साम्राज्यावादी इतिहास लेखन

  • उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक मिल के इतिहास की आलोचना होने लगी थी. यूरोपीय इतिहासकारों ने अब भारतीय इतिहास को भारतीय स्रोतों के आधार पर लिखने का बीड़ा उठाया. इन इतिहासकारों को विचारधारा के आधार पर पुराने पड़ चुके प्राच्यवादी या उपयोगितावादी खेमों में नहीं रखा जा सकता. परंतु उनमें साम्राज्यवादी विचारधारा को स्पष्ट पहचाना जा सकता है. 
  • मॉउंटस्टुअर्ट एल्फिंसटन ने मूल ऐतिहासिक स्रोतों के अनुवादों के आधार पर अपने ग्रंथ हिस्ट्री ऑफ हिन्दू एंड मुहम्मडन इंडिया की रचना 1841 में की हलांकि एल्फिंसटन ने मिल के इतिहास की निन्दा की थी, परंतु 'हिन्दू' भारत एवं 'मुस्लिम' भारत की शब्दावली का प्रयोग करके उन्होंने मिल के कालविभाजन को स्थायित्व प्रदान कर दिया. एल्फिंसटन के इतिहास की दो महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ थीं. एक तो उन्होंने पुराणों के आधार पर मौर्यकाल से लेकर गुप्तों तक भारतीय शासकों की क्रमबद्ध वंशावलियाँ देने का प्रयास किया. दूसरे, उन्होंने प्राचीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास पर अधिक बल दिया. स्थानीय स्रोतों के आधार पर क्षेत्रीय इतिहास लिखने की परम्परा का आरम्भ भी यूरोपीय इतिहासकारों ने किया. 
  • इस श्रेणी में ग्रांट डफ नें मूल मराठा स्रोतों के आधार पर 1825 मे ए हिस्ट्री ऑफ दी मराठाज़ प्रकशित की. जेम्स टॉड ने राजपूत स्रोतों एवं लोकश्रुतियों के आधार पर एनल्स एंड एंटीक्वीटीज़ ऑफ राजस्थान की रचना की. फारसी मूल स्रोतों के आधार पर मध्य भारत के इतिहास को पुनर्लिखित करने के प्रयास स्वरूप आठ खंडों में रचित दी हिस्ट्री ऑफ इंडिया ऐज़ टोल्ड बाई इट्स ओन हिस्टोरियन्स सामने आई. इसे डाउसन की सहायता से ईलियट द्वारा लिखा गया था तथा यह 1857 की क्रांति के पश्चात लिखी गयी. हलांकि यह श्रृंखला वस्तुत: फ़ारसी मूल स्रोतों का अनुवाद थी, परंतु इसके प्राक्कथन में ईलियट ने तुर्क एवं मुग़ल शासकों के विरुद्ध खूब विषवमन किया. ब्रिटिश भारतीय शासकों एवं परिवर्ती भारतीय इतिहासकारों को इस ग्रंथ ने काफी प्रभावित किया. इस ग्रंथ श्रृंखला ने पहली बार वे तर्क दिये जो आज तक साम्प्रदायिक शक्तियों द्वारा प्रयोग किये जाते हैं.

आरम्भिक बीसवीं शताब्दी का साम्राज्यवादी इतिहास लेखन

  • भारत का संपूर्ण इतिहास पाठ्यपुस्तक के में लिखने की श्रृंखला का अगला अध्याय विंसेंट रूप ए. स्मिथ की कृतियों के माध्यम से सामने आया. 
  • स्मिथ को आरम्भिक बीसवीं शताब्दी के भारत का सबसे प्रभावशाली इतिहासकार माना जा सकता है. उसकी अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया (1904) एवं ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया (1919) सबसे महत्वपूर्ण कृतियाँ थीं. 
  • स्मिथ ने अपने इतिहास ग्रंथों में उस काल तक हो चुके सभी शोधों को समाहित किया. स्मिथ के ग्रंथों का महत्व इस बात से पता चलता है कि उसकी इतिहास कृतियों को सभी भारतीय विश्वविद्यालयों मेंजिनकी स्थापना पिछले पचास वर्षों मे हुई थीपाठ्यपुस्तकों की भाँति पढ़ाया जाता था.. स्मिथ का इतिहासजो स्वतंत्रता के पश्चात भी भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता रहा. 

साम्राज्यवादी इतिहास लेखन क्या है?

साम्राज्यवाद (Imperialism) वह दृष्टिकोण है जिसके अनुसार कोई महत्त्वाकांक्षी राष्ट्र अपनी शक्ति और गौरव को बढ़ाने के लिए अन्य देशों के प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेता है। यह हस्तक्षेप राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक या अन्य किसी भी प्रकार का हो सकता है।

इतिहास के प्रति भारतीय दृष्टिकोण क्या है?

प्राचीनकाल से ही इतिहास को अध्ययन के एक स्वतंत्र विषय के रूप में मान्यता प्राप्त है, किंतु अध्येताओं के दृष्टिकोण एवं पद्धति के अनुसार उसका स्वरूप बदलता रहा है, इसलिए कभी उसे कला के क्षेत्र में और कभी विज्ञान के क्षेत्र में स्थान दिया जाता रहा । वस्तुतः इतिहास कला है या विज्ञान, यह प्रश्न आज भी विवाद का विषय है।

इतिहास लेखन की राष्ट्रवादी विचारधारा के बारे में आप क्या जानते हैं?

राष्ट्रवाद और आधुनिक राज्य के इतिहास के बीच एक संरचनात्मक कड़ी है। यूरोप में सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के आसपास आधुनिक राज्य का उदय हुआ, जिसने राष्ट्रवाद के उदय में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राज्य का यह स्वरूप अपने पहले के स्वरूपों से भिन्न था। इसकी शक्ति केंद्रीकृत, संप्रभु और अविभाजित थी।

साम्राज्यवाद इतिहासकारों का मुख्य उद्देश्य क्या था?

* साम्राज्यवादी इतिहासकारों के इतिहास लेखन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करना था । * उनका मानना था कि भारतीय समाज की जड़ता को ब्रिटिश शासन एवं उसके कानूनों द्वारा ही तोड़ा जा सकता है । अतः वे ब्रिटिश शासन की अधीनता में रहे ।