बिहार का पहला फिल्म कौन सा है? - bihaar ka pahala philm kaun sa hai?

एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला Published by: प्रतिभा सारस्वत Updated Fri, 12 Nov 2021 03:54 PM IST

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री अब सिर्फ बिहार, यूपी या झारखंड तक ही सीमित नहीं है। बल्कि दुनियाभर में भोजपुरी फिल्मों और गानों के तमाम फैंस है। भोजपुरी  में ऐसे कई गाने हैं जो विदेशी डिस्को पब में भी जोरो शोरों से बजाए जाते हैं। यहां तक की कम बजट में शुरू हुई इस फिल्म इंडस्ट्री में एक से बढ़कर एक फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है। यहां तक की बजट के मामले में कई फिल्में बॉलीवुड को भी मात देती हैं। आज भले ही भोजपुरी फिल्मों में अश्लिल शब्दों की बाढ़ आ गई हो और दर्शक भी बड़े चाव से देख और सुन रहे हैं। लेकिन इसका इतिहास ऐसा बिलकुल भी नहीं था। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि कैसे भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत हुई और कैसे बनी पहली फिल्म।

ऐसे हुई शुरुआत
.उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा से सटे गाजीपुर के निवासी नजीर हुसैन ने बिमल रॉय की फिल्म दो बिघा जमीन को लिखा था। इस दौरान उन्होंने बिमल रॉय से उनकी भाषा को समझा और भोजपुरी इतिहास की पहली फिल्म 'गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो' लिखी। इस फिल्म को भोजपुरी में लिखने के बाद वह बिमल रॉय के पास पहुंचे। बिमल रॉय इस फिल्म को हिंदी में बनाना चाहते थे। लेकिन नजीर हुसैन ने इसे भोजपुरी में ही बनाने का फैसला किया। जिसके बाद भोजपुरी सिनेमा का पहला अध्याय शुरू हुआ।

भारत के पहले राष्ट्रपति ने किया था संबोधन
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक फिल्म समारोह के दौरान भोजपुरी सिनेमा की दिशा में काम करने के लिए फिल्मकारों से कहा था। जिसके बाद समारोह में मौजूद नजीर हुसैन ने राजेंद्र प्रसाद को भरोसा दिलाते हुए कहा था कि 'ई दिशा में काम करे शुरू कर देनीं, रउवा बस शुभकामना दीं'.. इसके बाद ही नजीर ने गंगा मईया तोहे पियारी चढ़इबो की पटकथा लिखी थी।

ऐसे बनी पहली फिल्म 
विमल रॉय के ऑफर को ठुकराने के बाद नजीर को लंबे समय तक अपनी फिल्म के लिए निर्माता की तलाश करनी पड़ी। उन्हें मुंबई में कोई भी ऐसा निर्माता नहीं मिल रहा था जो उनकी फिल्म में पैसे लगाने को तैयार हो। बाद में कोयला व्यासायी और सिनेमा हॉल मालिक विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी इस फिल्म में पैसे लगाने को तैयार हुए थे।

1 लाख 50 हजार था फिल्म का बजट
इस फिल्म की कमान बनारस के कुंदन शाह को सौंपी गई थी। फिल्म के लिए एक लाख 50 हजार का बजट तय किया गया। लेकिन तैयार होते होते 5 लाख रुपये खर्च हो गए थे। 1963 में भोजपुरी की पहली फिल्म रिलीज हुई थी और उस दौर में फिल्म ने 80 लाख का कारोबार किया था।

बिहार का पहला फिल्म कौन सा है? - bihaar ka pahala philm kaun sa hai?

PATNA : बिहार की पहली फिल्म का नाम क्या है ? बिहार के दादा साहेब फाल्के कौन हैं ? इन सवालों का जवाब बिहार के महान पर्व छठ से जुड़ा है। बिहार की पहली फिल्म का नाम ‘छठ मेला’ है जिसका निर्माण 1930 में हुआ था। यह मूक फिल्म थी। 16 mm की ये फिल्म केवल चार रील बनी थी। इस फिल्म को बनाया था देव (औरंगाबाद) के राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर ने। देव में प्राचीन सूर्य मंदिर है जहां छठ पूजा के समय भव्य मेला लगता है। राजा जगन्नाथ ने देव मंदिर और यहां के छठ मेला की महिमा को देश भर के लोगों तक पहुंचाने के लिए इस फिल्म का निर्माण किया था।

इस फिल्म के लिए उन्होंने लंदन से उपकरण खरीदे थे। फिल्म की एडिटिंग के लिए लंदन से जोसेफ ब्रूनो को पटना बुलाया गया था। फिर वे पटना से मोटर कार के जरिये देव पहुंचे थे। चूंकि मूक फिल्मों के दौर में राजा जगन्नाथ ने बिहार में पहली पिल्म बनायी थी इस लिए उन्हें बिहार का दादा साहेब फाल्के कहा जाता है। दादा साहेब फाल्के ने ही भारत की पहली फिल्म मूक फिल्म बनायी थी। फिल्म ‘छठ मेला’ एक तरह से डॉक्यूमेंट्री फिल्म थी। चार रील की इस फिल्म को बनाने में 32 दिन लगे थे। इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक और लेखक राजा जगन्नाथ ही थे।

फिल्म में राजा जगन्नाथ के पुत्र, वे खुद और गया के अवध बिहारी प्रसाद ने अभिनय किया था। फिल्म बनने के बाद इसका पहला प्रदर्शन राजा जगन्नाथ के महल के मैदान में किया गया था। इसको देखने के लिए गया, जहानाबाद औरंगाबाद, नवादा, सासाराम और पटना से लोग वहां पहुंचे थे। सबसे खास बात ये थी कि राजा जगन्नाथ ने इस फिल्म को बनाने के लिए एक स्टूडियो भी बनाया था। इसमें लंदन से मंगाये उपकरण रखे गये थे। फिल्म ‘छठ मेला’ का निर्माण और प्रोसेसिंग इसी स्टूडियों में हुई थी। यानी 1930 में ही बिहार में ही फिल्म बनाने की शुरुआत हो चुकी थी। 1934 में बिहार में भयंकर भूकंप आया था जिसमें यह स्टूडियो तहस- नहस हो गया।

राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर साहित्य के अनुरागी थे। 1931 में जब बोलती फिल्म की शुरुआत हुई तो उन्होंने बोलती सिनेमा का भी निर्माण किया। उनकी बोलती फिल्म नाम था ‘विल्वमंगल’। यह एक धार्मिक फिल्म थी जिसमें भगवान शिव के प्रिय बेलपत्र का महत्व दिखाया गया था। देव का प्राचीन सूर्य मंदिर अपनी अभूतपूर्व स्थापत्य कला के लिए मशहूर है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने खुद किया था। काले और भूरे पत्थरों से निर्मित मंदिर की बनावट उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से मिलती-जुलती है।

देव मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख के मुताबिक, 12 लाख 16 हजार साल त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला पुत्र ऐल ने इसका निर्माण शुरू कराया था। इस शिलालेख से पता चलता है कि इस पौराणिक मंदिर का निर्माण काल एक लाख पचास हजार साल से भी अधिक है। इस मंदिर के प्रति पूरे बिहार में बहुत श्रद्धा है। छठ पूजा के समय यहां बहुत बड़ी संख्या में व्रती आते हैं। इस मौके पर छठ मेला भी लगता है। राजा जगन्नाथ ने देव सूर्य मंदिर की इसी महत्ता को अपनी फिल्म में दिखाया था।

बिहार की प्रथम फिल्म कौन सी है?

भोजपुरी की पहली फिल्म "गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो" विश्वनाथ शाहाबादी द्वारा 1963 में प्रदर्शित की गई थी।

बिहार की पहली सवाक हिंदी फिल्म कौन थी?

आलमआरा (1931 फ़िल्म).

पहली भारतीय फिल्म कौन है?

दादासाहेब फाल्के द्वारा राजा हरिश्चंद्र (1 9 13) को भारत में बनाई गई पहली मूक फीचर फिल्म के रूप में जाना जाता है। 1 9 30 के दशक तक, उद्योग प्रति वर्ष 200 से अधिक फिल्मों का उत्पादन कर रहा था। पहली भारतीय ध्वनि फिल्म, अर्देशिर ईरानी के आलम आरा (1 9 31), एक प्रमुख व्यावसायिक सफलता थी।

बिहार के सबसे पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म कौन थी?

फिल्म 'छठ मेला' एक तरह से डॉक्यूमेंट्री फिल्म थी। चार रील की इस फिल्म को बनाने में 32 दिन लगे थे। इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक और लेखक राजा जगन्नाथ ही थे। फिल्म में राजा जगन्नाथ के पुत्र, वे खुद और गया के अवध बिहारी प्रसाद ने अभिनय किया था।