"Knowledge is the life of the mind" Show निर्गुण भक्ति काव्यधारा | निर्गुण काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ | निर्गुण काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएँ निर्गुण भक्ति काव्यधारामिश्रबंधुओं के पश्चात् आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में मध्यकालीन साहित्य का विभाजन दो भागों में किया है- पूर्व मध्य काल (सं, 1375 से 1700) और उत्तर-मध्यकाल सं. 1700 से 1900। पूर्व मध्यकाल को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भक्तिकाल की संज्ञा दी है। इस पूर्व मध्यकालीन साहित्य का विभाजन उन्होंने निर्गुणधारा और सगुणधारा में किया है। निर्गुण धारा का अध्ययन उन्होंने दो उपधाराओं के अंतर्गत किया है-ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेममार्गी (सूफी) शाखा। इसी प्रकार सगुण धारा का अध्ययन भी उन्होंने राम भक्ति शाखा और कृष्ण भक्ति शाखा के अंतर्गत किया है। निर्गुण धारा में ब्रह्म के निर्गुण स्वरूप की उपासना के प्रति आग्रह भाव व्यक्त किया गया है। ज्ञानमार्गी शाखा में निर्गुण ब्रह्म की उपासना ज्ञान के माध्यम से प्रस्तावित है। सगुण धारा के ब्रह्म के सगुण रूप की उपासना के प्रति आस्था भाव व्यक्त मिलता है। इसकी एक धारा में सगुण ब्रह्म की उपासना राम के रूप में और दूसरी धारा में सगुण ब्रह्म की उपासना के रूप में वर्णित है। निर्गुण काव्य-निर्गुण काव्य से तात्पर्य भक्तिकाल के अंतर्गत विकसित उस काव्य धारा से है जो ज्ञानाश्रित होकर सृष्टि के नियामक और सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति भी आस्थावान रही है और सामाजिक जीवन में लोकमंगल की स्थापना करती रही है। जिन्हें हम निर्गुण भक्ति कवियों के नाम से जानते हैं, उनमें संत कवि और सूफी आते हैं संत कवियों ने अपनी ज्ञानात्मक साधना से प्रेरित होकर जिस साहित्य की सृष्टि की है वह निर्गुण चेतना का साहित्य है। इस साहित्य में गुरू का महत्त्व, ईश्वर में विश्वास, रूढ़ियों का विरोध, विषय-वासनाओं के प्रति विरक्ति ब्रह्मचारियों का विरोध, मूर्तिपूजा का विरोध और विश्व मानवतावाद की स्थापना का प्रयत्न दिखलाई देता है। इस प्रकार के काव्य में प्रमुख रचयिताओं और महात्मा कबीर दास का नाम लिया जा सकता है। निर्गुण काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँनिर्गुण काव्य धारा की प्रमुख विशेषताएँ या प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-
“हरिरस पीया जानिये, कबहुँ न जाय खुमार। ममता घूमत फिरै, नाहिन तन की सार।”
निर्गुनिए कवियों ने गुरू की महत्ता को इस प्रकार स्पष्ट किया है- “गुरू गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय। बलिहारी गुरू आपणे जिन गोविंद दियो बताया।”
हिन्दी – महत्वपूर्ण लिंक
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भक्ति के प्रमुख विशेषताएं क्या थी?भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ. भक्तिभावना की प्रधानता. नामस्मरण की महिमा. गुरु का महत्त्व. प्रेम तत्त्व का महत्त्व. सत्संगति की महिमा. अहंकार का त्याग. बहुदेववाद का विरोध. अनुभूतिपरक अनुभव या ज्ञान का महत्व. निर्गुण भक्ति का अर्थ क्या है?निर्गुण उपासना पद्धति में ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना की जाती है। हिन्दू ग्रंथ में ईश्वर के निर्गुण और सगुण दोनों रूप और उनके उपासकों के बारे में बताया गया है। निर्गुण ब्रह्म ये मानता है कि ईश्वर अनादि, अनन्त है वह न जन्म लेता है न मरता है, इस विचारधारा को मान्यता दी गई है।
भक्ति के प्रमुख कितने स्वरूप है?भक्ति काव्य के प्रधानतः दो भेद हैं निर्गुण और सगुण भक्ति काव्य। निर्गुण भक्ति काव्य की दो शाखाएं हैं ज्ञानमार्गी जिसके प्रतिनिधि कवि कबीर हैं और प्रेम मार्गी जिसके प्रतिनिधि कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं। सगुण भक्ति काव्य की भी दो शाखाएं हैं। कृष्ण भक्ति शाखा और राम भक्ति शाखा।
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