अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के दुरुपयोग के लिए सजा

होमCommoncontentपी सी आर अधिनियम के कार्यान्वयन पर सलाह

पी सी आर अधिनियम के कार्यान्वयन पर सलाह

सं.24024/9/2004-एससी/एसटी सैल
गृह मंत्रालय
एससी/एसटी सैल
---------
नई दिल्ली, दिनांक 3 फरवरी, 2005
सेवा में
मुख्य सचिव,
सभी राज्य सरकारें/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन
विषय:- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का प्रभावी कार्यान्वयन किए जाने की जरुरत।
-----------
महोदय/महोदया,

  • जैसा कि आप जानते हैं कि भारत सरकार समय-समय पर राज्य सरकारों को सलाह देती रही है कि वे दांडिक न्याय प्रणाली और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों के प्रति अत्याचार निवारण सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन में सुधार किए जाने पर और अधिक ध्यान केन्द्रित करें। इस संबंध में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों के प्रति अपराध के विशेष संदर्भ में इससे पहले जारी किए गए दिनांक 8.10.1997 के पत्र सं. 24013/86/97-जीपीए-VI, दिनांक 12.11.1998 के पत्र सं. 24013/47/98-जीपीए- VI दिनांक 19.9.2001 के पत्र सं. 24013/74/2001-जीपीए-IV, दिनांक 4.4.2002 के पत्र सं. 24013/30/2002-जीपीए-IV, दिनांक 11.6.2002 के पत्र सं. 24013/74/-2002-जीपीए- IV तथा दिनांक 24.6.2004 के पत्र सं. 15011/50/2004-एससी/एसटी सैल का संदर्भ लें। इन दिशानिर्देशों में अन्य बातों के साथ-साथ नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के कार्यान्वयन में पुलिस कार्मिकों को सुग्राही बनाना, महिलाओं के प्रति अत्याचारों के मामलों से निपटते समय और अधिक सहानुभूतिपूर्वक दृष्टिकोण अपनाने के लिए पुलिस को अनुदेश देना, फील्ड अधिकारियों में विस्तृत नोट परिचालित करना जिसमें ऐसे अपराधों की जांच-पड़ताल करने वाले पुलिस कार्मिकों की जिम्मेदारी और क्षेत्र बताया गया है, पुलिस कार्मिकों के रूप में, विशेष रूप से कटिंग ऐज लेवल पर अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों/अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों की पर्याप्त संख्या में भर्ती करना, समाज के कमजोर वर्गों में जागरुकता सृजन के कार्यक्रम और उनके लिए कानूनी सहायता खुली रखना, विशेष अदालतों के कार्यकरण का मूल्यांकन करना, अपराध निवारण के लिए अत्याचार संभावित क्षेत्रों और अत्याचारों के शिकार लोगों के आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास के लिए किए जाने वाले उपायों की पहचान करना शामिल है।
  • उक्त सलाहों के माध्यम से राज्यज सरकारों से यह अनुरोध भी किया गया था कि वे अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के सामने आ रही समस्याओं को निपटाने में तंत्र की प्रभावकारिता की विस्तृत समीक्षा करें और कानून और व्यवस्था तंत्र की जिम्मेदारी बढ़ाने के उद्देश्य से उचित उपाय करें। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ राज्यन सरकारों ने इस संबंध में कुछ उपाय किए हैं। तथापि, इन उपायों को और सुदृढ़ बनाए जाने की जरुरत है ताकि इन समूहों के कमजोर लोग सुरक्षित महसूस कर सकें, अपने मानवाधिकारों का उपयोग कर सकें और जिस गौरव और सम्मानित जीवन जीने के वे पात्र हैं उस जीवन को जी सकें।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक अध्ययन किया है और सिफारिश की है कि नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 और नियम, 1955 को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।
  • भारत सरकार, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों के लोगों के प्रति किए गए अपराधों के संबंध में अत्यंत चिंतित है इसलिए नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को पूर्ण रूप से प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने पर पुन: जोर देती है। इस संबंध में निम्नलिखित कार्रवाई तुरंत की जानी अपेक्षित है:-
    • यह सुनिश्चित करना कि जहां कहीं और जब-कभी पुलिस स्टेशन को अत्याचार की कोई शिकायत प्राप्त होती है तो पुलिस स्टेशन द्वारा अनिवार्य रूप से प्राथमिकी (एफ आई आर) दर्ज की जाए। इसके अलावा, प्राथमिकी, ठीक तरह से रखी जाए। यदि ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारी किसी वैध कारण के बगैर प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार करता है तो ऐसे अधिकारी, यदि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य न हो, के विरुद्ध अधिनियम के तहत उस अधिकारी द्वारा की जाने वाली ड्यूटियों के प्रति जानबूझ कर लापरवाही बरतने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 4 के अंतर्गत अभियोजन चलाया जाना चाहिए।
    • यह सुनिश्चित करना कि अत्याचारों के अपराधों की जांच-पड़ताल ऐसे अधिकारी से करवाई जाए जो उप पुलिस अधीक्षक के रैंक से कम का न हो, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम, 1995 के अनुसार जांच-पड़ताल, उच्च प्राथमिकता और तीस दिन के अंदर पूरी करना और अदालत में यथाशीघ्र आरोप पत्र दायर करना।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अत्याचारों के अपराधों की शिकार महिलाओं की शिकायत दर्ज करने के लिए प्रत्येक पुलिस स्टेशन में, विशेष रूप से अत्याचार संभावित क्षेत्रों में, महिला पुलिस कार्मिकों की तैनाती करना।
    • उस प्रत्येक स्थान पर, जहां पर अत्याचार किया गया हो, जिला मजिस्ट्रेट/जिला कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षक का दौरा सुनिश्चित करना, अत्याचार के शिकार लोगों और उनके परिवार/परिवारों के लिए पुलिस संरक्षण की समीक्षा करना और अत्याचारों के अपराधों के शिकार लोगों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम, 1995 के नियम 12(i) के अनुसार राहत का तुरंत भुगतान करना।
    • पता लगाए गए अत्याचार संभावित क्षेत्रों में पुलिस बल की तैनाती करना और ऐसे अपराधों को रोकने के लिए अन्य निवारक उपाय करना।
    • विशेष लोक अभियोजकों द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अभियोजन के मामलों को समय पर निपटाना और विशेष लोक अभियोजकों को भुगतान किए जाने वाले उचित परिश्रमिक/फीस के साथ लोक अभियोजक संरचना को सुदृढ़ बनाना ताकि ऐसे मामलों को प्रभावी ढंग से उठाने के लिए उन्हें प्रेरित किया जा सके।
    • नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के कार्यालयन के संबंध में पुलिस अधिकारियों को सुग्राही बनाना और इन अधिनियमों के कार्यान्वयन के संबंध में पुलिस अधिकारियों, विशेष लोक अभियोजकों और संबंधित जिला प्रशासन अधिकारियों को नियमित और प्रभावी प्रशिक्षण भी प्रदान करना।
    • नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की मुख्य-मुख्य बातों को सभी पुलिस स्टेशनों और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और चुने हुए अन्य स्थानों में, जहां पर लोग अक्सर आते हों, बिलबोर्डों/होर्डिंग में प्रदर्शित करना।
    • अत्याचार संभावित क्षेत्रों का पता लगाना, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम, 1995 के नियम 10 के अनुसार पता लगाए गए ऐसे क्षेत्रों में विशेष अधिकारी नियुक्त करना और ऐसे क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने के लिए विशेष कदम उठाना।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम, 1995 के नियम 15 के अनुसार अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए आकस्मिक योजना तैयार करना।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अपराधों के विचारण के लिए सभी जिलों में पृथक रूप से विशेष अदालतें स्थापित करना।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के नियम 9 के अनुसार जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस अधीक्षकों के साथ नोडल अधिकारी द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के कार्यान्वयन की तिमाही समीक्षा करना।
    • मुख्य मंत्री की अध्यक्षता में उच्च शक्ति प्राप्त राज्य स्तरीय सतर्कता और निगरानी समितियों और इसी प्रकार जिला मजिस्ट्रेट/जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में ऐसी जिला स्तरीय समितियों, जिनमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के हितों के लिए कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठनों का उचित प्रतिनिधित्व हो, आवधिक बैठकें सुनिश्चत करना।
    • पंचायती राज संस्थाओं और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की भागीदारी से नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनयम, 19589 के उपबंधों के संबंध में जागरुकता फैलाने का अभियान चलाना और समिनार आयोजित करना।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनयम, 1989 के तहत दोषमुक्ति के उच्च स्तर के लिए जिम्मेदार कारकों की समीक्षा करना।
  • यह भी सुझाव दिया गया है कि इन कानूनों के कार्यान्वयन के संबंध में जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस अधीक्षकों की वार्षिक कार्यशाला आयोजित की जाए और राज्य गृह और समाज कल्याण सचिवों और पुलिस महानिदेशकों को, क्रियाकलापों के उनके क्षेत्रों में उनके सामने आ रहे मुद्दों/समस्याओं पर भागीदारों के साथ बातचीत करनी चाहिए। इस सूचना के आधार पर इन कानूनों के प्रशासन में सुधार करने के लिए राज्य सरकारें, शीघ्र ही आवश्यक उपचारी कदम उठा सकती हैं।
  • अनुरोध किया जाता है कि राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों द्वारा इस संबंध में की गई कार्रवाई की समीक्षा की जाए और वर्तमान स्थिति बताने वाली रिपोर्ट, एक माह के अंदर इस मंत्रालय को भेजी जाए।

भवदीय,
(ए.के. श्रीवास्तव)
संयुक्त सचिव(सीएस)
प्रतिलिपि: महासचिव, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, सरदार पटेल भवन, संसद मार्ग, नई दिल्ली को अध्यक्ष, एन एच आर सी के दिनांक 3.8.2004 के अ.शा.पत्र सं. 20/1/2004-पीआरपीएंडपी के संदर्भ में।
(ए.के. श्रीवास्तव)
संयुक्त सचिव(सीएस)