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FSSAI: Functional Knowledge (Role, Functions, Initiatives) Free Mock Test 10 Questions 40 Marks 15 Mins Latest FSSAI Assistant Updates Last updated on Sep 26, 2022 The Food Safety and Standards Authority of India (FSSAI) released Result and Cut-Off for FSSAI Assistant Recruitment Exam on 6th July 2022. The candidates can check and download their FSSAI Assistant Result and FSSAI Assistant Cut-Off from here. A total of 33 candidates were recruited for the post. The notification for the next recruitment cycle is expected to be out very soon.
अजन्ता कलाउचित प्रमाण, लवलीन वर्णाढ्यता, भावनाओं की सुकुमारता, उच्चादर्श का गौरव, रूपाकारों की सुकोमल रचना, लयात्मक रेखाओं का नियोजन, धरातल विभाजन की परिकल्पना, अनुभूतियों की गहरायी आदि विशिष्टताएँ एक उत्कृष्ट कलाकृति की रचना में सहायक होती हैं. इस कथन की सच्चाई अजन्ता की कलाकृतियाँ प्रत्यक्ष प्रदर्शित करती हैं। अजन्ता एक नाम है कलाकारों की परिकल्पना का, भिक्षुओं के उच्चादशों का बौद्ध धर्म के उपदेशों का, तत्कालीन संस्कृति के विस्तार का भित्ति चित्रण परम्परा के एक इतिहास का वास्तव में अजन्ता भारतीय संस्कृति का स्तम्भ है, एक वातायन है जिसके माध्यम से हम एक ऐसे जगत् से साक्षात्कार करते हैं जहाँ सृष्टि का प्रत्येक तत्व आत्मानुभूति से ओतप्रोत गतिशील है।
अजन्ता की गुफाएँ महाराष्ट्र में औरंगाबाद में 68 किलोमीटर दूर पहाड़ियों में विराजमान हैं। जहाँ प्रकृति ने मुक्त हस्त से अपना सौन्दर्य विकीर्ण किया है। प्राय: कलाकार को शोरगुल से दूर शान्तमय वातावरण में चित्रण करना भाता है यह वातावरण इस घाटी में मिलता है। इसलिए ही यहाँ के कलाकार अजन्ता की कलाकृतियों के रूप में अपनी तूलिका एवं छैनी हथौड़े की सिद्धहस्वता को सदैव के लिए अमर कर गये और अपना नाम तक नहीं लिखा। अजंता की गुफाओं की संख्याअजन्ता की गुफाएँ अजन्ता पर्वत को तराशकर निर्मित की गयी हैं जहाँ जाने के लिए बहुत सँकरे ऊँचे-नीचे रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। यहाँ कुल 30 गुफाएँ है। जिनमें 25 विहार तथा 5 चैत्य हैं। इनकी छते ऊँची नीची हैं बिहार गुफाओं को संघाराम भी कहा जाता है। इन गुफाओं का प्रयोग बौद्ध भिक्षु निवास हेतु करते थे। 9, 10, 19, 26, 29 न० की गुफाएँ चैत्य हैं जहाँ उपासना की जाती थी। चैत्य के अन्तिम किनारे पर एक स्तूप बनाया जाता था जहाँ तथागत के अवशेष सुरक्षित रहते थे। गैरोला, “चैत्य कहते हैं चिता को, और चिता के अवशिष्ट अंश को (अस्थि अवशेष को) भूमि गर्भ में रख कर वहाँ जो स्मारक तैयार किया जाता था उसे चैत्य कहा जाता था। स्तूप का अर्थ है ‘टीला’। स्तूप और चैत्य वस्तुतः उन स्मारकों को कहा जाता था, बहुधा जिनमें किसी महापुरुष की अस्थियाँ, राख, दाँत या बाल गाड़कर रखा जाता है।” चैत्य का दरवाजा घोड़े की नाल के आकार का होता है। इन चैत्य गुफाओं में भी चित्र हैं परन्तु अधिकांश चित्र बिहार गुफाओं में बनाए गए थे। आज 1, 2, 9, 10, 16, 17 न० की गुफाओं में चित्र शेष हैं जहाँ बौद्ध कलाकारों के अद्भुत स्वप्न रेखा, रूपाकारों एवं रंगों में वेष्टित होकर आज तक अमरत्व का संदेश दे रहे हैं। इन गुफाओं में 9वीं तथा 10वीं गुफा सबसे प्राचीन है तथा 17वीं गुफा में सबसे अधिक चित्र मिलते हैं। अजन्ता भारतीय कला का कीर्ति स्तम्भ है जिसमें कलात्मकता एवं भावनात्मकता का सामञ्जस्य अभिव्यन्जित होता है। स्थापत्य शिल्प एवं चित्र तीन कलाओं का एक साथ संगम और वह भी इतने अनुपम ढंग से कि विश्व का प्रत्येक व्यक्ति उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अजन्ता के ये भित्ति चित्र एवं पाषाण प्रतिमाएँ उन देवताओं के अभिशप्त शरीर है जो स्वर्गिक जीवन की एक रसता से उठकर इस पृथ्वी पर आनन्द हेतु विचरण करने आए थे परन्तु भोर होने से पहले स्वर्ग वापिस नहीं लौट पाए। इसी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह घाटी कितनी सुन्दर होगी जहाँ विध्यांचल पहाड़ी, सात प्रपातों के रूप में गिरती बाघोरा नदी, चारों ओर प्रकृति का लवलीन साम्राज्य निहित है। अजन्ता एक आलौकिक, दिव्य, आध्यात्मिक कृति है जिसका कारण अनुकूल एवं शान्त नैसर्गिक वातावरण था। घने जंगलों तथा अंधेरी गुफाओं में इन कलाकृतियों की रचना करने वाले कोई दीक्षित कलाकार नहीं थे। वरन् भोगी, तपस्वी, भिक्षु थे जिन्होंने धर्म की शरण में स्वयं को समर्पित कर जीवन का मर्म कला जिज्ञासुओं के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। ‘अजन्ता’ मानव मात्र के लिए एक नाम नहीं वरन् कला की आत्मा है। इसके नामकरण के संदर्भ में बहुत से मतभेद है। प्रथम विश्लेषण के आधार पर अजन्ता की गुफाएँ निर्जन स्थान पर थी जहाँ कोई आता-जाता नहीं था अर्थात् अजन्ता (जनता से हीन) द्वितीय विश्लेषण के आधार पर गुफाओं के समीप एक छोटा सा गाँव अजिण्ठा था। सम्भवतः उसी के आधार पर इन्हें अजन्ता नाम दिया गया। नैसर्गिक सम्पदा से आच्छादित पर्वतमालाएँ यहाँ अर्धचन्द्राकार रूप में है जिन्हें काटकर चैत्य और विहार गुफाओं की रचना की गयी। चैत्य गुफाएँ बौद्ध भिक्षुओं की धर्म साधना हेतु तथा विहार गुफाएँ उनके निवास हेतु थी। वैसे तो आज इन गुफाओं की स्थिति वह नहीं जो उस समय थी किन्तु फिर भी सूर्य की अन्तिम किरण जब इन गुफाओं के द्वार पर अपनी आत्मा को विकीर्ण करती है तो निश्चित ही आध्यात्मिक परिवेश में मानव एक ऐसे वातावरण को पाता है जहाँ तथागत के आश्रय में मानव बुद्धत्व को प्राप्त कर लेता है। गुफाओं के भीतरी भाग को प्रकाशित करने के लिए अजन्ता के कलाकारों ने मशाल अथवा चमकदार बड़ी धातु की प्लेट्स का प्रयोग किया ताकि प्रकाश प्रतिबिम्बत हो कर कार्य करने में सहायता कर सके। अजंता की गुफाएँ किसने बनवाईअजन्ता का कार्य शुंग, सातवाहन, कुषाण तथा गुप्तकाल में हुआ। गुप्तकाल में कला का सर्वाधिक विकास हुआ क्योंकि गुप्त सम्राट कला एवं संस्कृति के संरक्षण के पक्षधर थे। यह समय भारतीय कला इतिहास में स्वर्णयुग माना जाता है। गुप्त के समकालीन वाकाटक वंश हुआ जो सातवाहन राजाओं को हराकर उत्तराधिकारी बने। अजन्ता से कुछ ऐसे शिलालेख मिले हैं जो वाकाटक समय के हैं। गुप्त तथा वाकाटक वंश का साम्राज्य चौथी से छठी शताब्दी तक माना गया है इसलिए दोनों ही वंशों की सांस्कृतिक परम्परा का प्रभाव अजन्ता के भित्तिचित्रों पर पड़ा। तत्कालीन जीवन में प्रचलित परम्पराएँ, धर्म, दर्शन, रीति-रिवाज फैशन सभी इन चित्रों के माध्यम से ज्ञात हो जाता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में भारत भ्रमण पर आया हुआ चीनी यात्री फहियान लिखता है- “व्यक्तियों की संख्या अधिक है तथा वे प्रसन्न हैं। उन्हें अपने घरों को रजिस्टर्ड करवाने की या किसी न्यायाध्यक्ष के नियमों के पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। राजा शिरच्छेदन या शारीरिक यातना दिए बिना उन पर शासन करता है। विभिन्न मतों या सम्प्रदायों के लोगों के घर दया एवं उदारता से परिपूर्ण है और जहाँ यात्री को विश्राम की सभी वस्तुएँ सुलभ हैं।” अजंता की गुफा का निर्माण कालबौद्ध कला के इतिहास का विस्तार प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सातवीं शताब्दी तक माना जाता है।कुछ विद्वान् इसे ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी से सातवीं शताब्दी तक मानते हैं। यह वह समय था जब भारत में बौद्ध धर्म प्रचार में था। प्रत्येक व्यक्ति बुद्ध के उच्चादशों को अपना रहा था। धनिक वर्ग अपनी सम्पति संघ को समर्पित कर रहे थे। बौद्ध भिक्षुओं का बहुत सम्मान बढ़ता जा रहा था। आम जनता भिक्षुओं से ज्ञानार्जन हेतु व्याकुल थी। जिससे भिक्षुओं को साधना हेतु समय नहीं मिल पा रहा था अतः उन्होंने निर्जन स्थान की खोज की और उसके लिए उन्होंने विन्ध्य पहाड़ी को काटकर उपासना एवं निवास हेतु गुफाएँ बना ली। इन पहाड़ियों के नीचे एक दरें में बाघोरा नदी बहती है। इन गुफाओं में बैठकर बौद्ध भिक्षुओं ने साधना अर्चना की और तथागत के अमूल्य उपदेशों के माध्यम से जनता में प्रेम की भावना जाग्रत की। बौद्ध धर्म चक्र विस्तार में केवल भारत ही नहीं वरन् चीन, जापान, नेपाल, बर्मा, तिब्बत आदि पूर्वी संलग्न थे। बौद्ध धर्म सम्बन्धित कथाओं आधारित चित्रों आख्यानों ने धर्म प्रचार में दिया।
इन ग्रन्थों उल्लेखों हमें यह भी होता है कि समय चित्र कला का विकास हो चुका था चित्रकारों की अलग-अलग श्रेणियाँ निर्धारित होने लगी थी चित्रकारों का सम्मान होने लगा था।” इस अजन्ता बौद्ध कला का मूर्धन्य केन्द्र माना जाता क्योंकि अजन्ता में ही कला की परिपक्व शैली और अभिव्यक्ति दिखाई देती है। अजन्ता चित्र शैली की विशेषताएँ1. रेखा | Lineआश्चर्य है कि एक ही केन्द्र पर 800 वर्षों तक चित्र स्वरलहरी गुंजित होती रही और कोई बड़ा शैलीगत उतार-चढ़ाव कालक्रमों के बीच में नहीं आया, यूं तो चित्र शैली परिपक्वता की ओर बढ़ती ही गई है। अजन्ता चित्रों की मुख्य विशेषतायें इस प्रकार है भारतीय कलाकार के लिए रेखा एक चित्रोपम मर्यादा है। अजन्ता के कलाकार रेखीय अंकन में निपुणता के बल पर ही नग्न आकृतियों को मिले एक सौम्य और सैद्धांतिक रूप में प्रस्तुत कर सके। यूरोपियन छाया प्रकाश वाली मांसलता के प्रभाव से बचते हुए रेखीय सौन्दर्य से ही माडलिंग ( Modelling) का बोध यहाँ के कुशल कलाकारों के दक्ष हाथों से हुआ रेखाओं के प्रयोग में गति, लय, संयम एवं सन्तुलन सदैव बने रहे हैं। भावांकन के लिये प्रसिद्ध यहाँ के चित्रों में रेखा ही प्रधान रही है। मार विजय, सर्वनाश, दया याचना जैसे अनेक चित्र यहाँ प्रयुक्त रेखा की प्रधानता स्थापित करते हैं। इस प्रकार अजन्ता कलाचार्यों ने रेखा के महत्व को पूर्णतता हृदयङ्गम किया है। 2. रूप | formसक्रिय व सहायक रूपों का संयोजन एवं प्रभाव ही चित्र की आत्मा व शरीर होते हैं। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि प्रभाव रूप का सार होता है। सार-विहीन रूप की संरचना करना व्यर्थ है। अजन्ता में रूपाभिव्यक्ति तत्कालीन समाज की मान्यताओं व आकृतियों से भिन्न है यथार्थ में अजन्ता चितेरों ने जिन्दगी की संजीदगी नैसर्गिक सौन्दर्य के आधार पर की है। छोटे-छोटे अनगिनत रूपों (सिपाही, सेवक, भिक्षुक, मन्त्री, नतंकी) का समूह दर्शक के नेत्र-पथ को सुख प्रदान करता है व आनन्द देता है। ऐसा यहाँ रूप की सच्ची व सौन्दर्य परक छवि को उतारने तथा रूप व अन्तराल की सन्तुलित व्यवस्था करने से सम्भव हुआ है। अतः अजन्ता चित्रों में रूप सारविहीन अस्त-व्यस्त आलेख्य स्थान पर छितरा हुआ नहीं है। 3. वर्ण एवं छायाअजन्ता चित्रों में हरा भाटा (टेरीवर्टी ग्रीन) लाजवर्द (लैपिस-लैज्युलाइ ) हिरमिच (burnt sienna), काला (लँम्प ब्लेक), सफेद (लाइम वाइट) सिन्दूरी (वरमिलियन) व पीला (यलो ऑकर) रंग मुख्य रूप से प्रयोग किये गये हैं लाजवर्द (प्रखर-नीला) ईरान से मंगवाया जाता था। काला रंग दीप कालिख से तैयार किया जाता था। अजन्ता-पत्थर के पौरस छिद्रों में हरा-भाटा रंग भरा है। रंगों की तैयारी विधि-शिल्प-ग्रन्थों में दी गई परिपाटी के अनुसार ही थी। आकृतियों में सरलीकरण एवं भावाभिव्यक्ति के आधार पर ही रंग भरे गए हैं। छाया तथा गहराई हेतु आकृति में विस्तृत मुख्य रंगत में ही हल्का-काला मिलाकर प्रयोग किया जाता था। यह चाक्षुष यथार्थता व वातावरणीय परिप्रेक्ष्य पर आधारित नहीं होता था बल्कि चित्र में प्रभावोत्पादकता को बढ़ाने के लिये किया जाता था। वैसे शिल्प-शास्त्रों मे छाया (वर्तना) लगाने की अनेक विधियाँ लिखी गई हैं। 4. परिप्रेक्ष्यअजन्ता में वातावरणीय व रेखीय परिप्रेक्ष्य में से किसी का भी प्रयोग नहीं हुआ है। वास्तव में चित्रकार ने अनेक दृष्टि बिन्दुओं से बने रूपों का विकास अन्तराल की सरल-संगत तथा बाल-सुलभ यथार्थता के आधार पर किया है। प्रायः पूर्वीय देशों की चित्रकला का यह प्रमुख गुण कहा है, जिसकी श्रेष्ठ अभिव्यक्ति अजन्ता के चित्रों में देखने को मिलती है। रेखा के घुमाव और अन्तराल में रूप-स्थापना के माध्यम से दूरी व समीपता का बोध कराया गया है। 5. संयोजनआकृतियों की विविधता व सघनता को चित्रतल पर सफलता के साथ विस्तरित करना कठिन कार्य होता है। अजन्ता के चित्रों को भारतीय कला की सर्वश्रेष्ठ निधि इस कारण से ही स्वीकार नहीं किया गया है कि कलाकार बौद्ध-धर्म के लिए समर्पित थे। चित्रों का महत्व उनमें प्रयुक्त संयोजन-शैली के कारण है। चित्रों में मुख्य रूप को बृहदाकार तथा अन्तराल के केन्द्र में स्थिर किया गया है एवं इतर रूपों को मध्य वाले ‘रूप’ के प्रभाव को उभारने हेतु चारों ओर दृष्टि-पथ की सुखद अनुभूति के अनुसार छितराया गया है। इस प्रकार संयोजन में केन्द्रीयता के नियम का पालन किया गया है. अन्य चित्रोपम तत्वों के प्रयोग में भी सौन्दर्यानुभूति ही मुख्य मार्गदर्शक सिद्धान्त रहा है। वर्ण-योजना शीतलता वाली तथा रेखा लय पूर्ण समायोजित की गई है। चित्र चौबटों के बन्धन से मुक्त रहते हुए पूरी की पूरी कहानी को एक ही भित्ति-खण्ड पर सफलता के साथ संयोजित किया गया है। इस प्रकार लेकिन कहानी की एक ही भित्ति-खण्ड पर विस्तृत संयोजना सचमुच अजन्ता के कलाकारों का अद्भुत प्रयोग रहा है। 6. मुद्राएंस्नेह, मैत्री, काम, भार, लज्जा, हर्ष, उत्साह, चिन्ता, आक्रोश, रिक्तता, घृणा, ममता, उत्सव सम्पन्नता, विपन्नता, राग, विराग, आनन्द आदि अनेक भावों के प्रकटीकरण हेतु विविध हस्त-मुद्राओं का प्रयोग अजन्ता शिल्पियों ने किया। हस्त मुद्राओं के साथ-साथ पाद मुद्राएँ एवं देह पष्टि के लोध-पूर्ण अंकन के माध्यम से अजन्ता चितेरों ने सौन्दर्य के प्रतिमान स्थापित किये। चित्रकारों ने यहाँ देह की मांसल कठारता को मृदुला व जानकारिता में परिवर्तित कर दिखाया है। प्रामः हाथों में कमल पुष्प, वस्त्र, चंवर, मोरपंख, मधु-पात्र म वाद्य-यंत्र विधाये गये है। हाथ लगीजे बने हैं, जैसे कुछ कह रहे हों। 7. शोभनकमल के पुष्प, मुरियाँ, फल (आम्र, शरीफा, आदि) व पशु-पक्षियों ( हंस, बैल, हाथी, व ईहामृग आदि) तथा कभी-कभी प्रेमी युगलों से युक्त दिव्य आलेखन (शोभन ) द्वार-शाखाओं व छतों में बनाए गए हैं। यह एक आश्चर्य जनक तथ्य है कि अजन्ता की बिहार गुफाओं की छत वितान (शामियाना) के समान ढोल वाली बनाई गई है, वितान के समान ही आलेखनों का प्रयोग गुहा छत में किया गया है। अजन्ता आलेखनों की मधुर सम्पुंजना अनोखी है, और भारतीय चित्रकला की सर्वोत्कृष्ट निधि है। 8. प्रकृति-चित्रणअजन्ता में चित्रकार प्रकृति का विविध हरीतिमा-रूपों तथा वन्य पशु-पक्षियों से दर्शक का घनिष्ठ परिचय कराता हुआ प्रतीत होता है। छदन्त के चित्र में गजराज की शोभा, प्रकृति वैभव तथा उन्मुक्तता का सुन्दर समन्वय है। अजन्ता चित्रों में हाथी, घोड़े, बन्दर, भेड़, बैल, मृग, हंस आदि अनेक पशु-पक्षियों को उनकी स्वाभाविक उन्मुक्तता के साथ चित्रित किया है। वे मानव जीवन सुख-दुःख के साथी हैं, इसी भावना से अजन्ता चित्रकार ने उन्हें भाव-भीने ढंग में संजोया है। इसी प्रकार कदली, अशोक, साल, आम, बरगद, पीपल, ताड़ व गूलर आदि के वृक्ष बनाये हैं। चित्र-संयोजन में वृक्षों आदि के योग से दृश्य की स्वाभाविकता उजागर हुई है। 9. नारी सौन्दर्यकोमलता तथा सौन्दर्य की देवी के रूप में नारी आत्म- समर्पण, विलासिता एवं क्लान्ति सूचित करती हुई अजन्ता में प्रकट हुई है। अजन्ता में नारी लंज्जा व विनय के प्रतीक स्वरूप चित्रित हुई है। इसी से नारी उदात्त भावनाओं वाला रूप यहाँ नहीं उभर सका है–विन्य वारित वृत्तिरतस्त्या, न विव्रतों मदनो न च संवृतः । अजन्ता में नारी को प्रेयसी, रानी, परिचारिका, नर्तकी, आसवपायी, माता, अप्सरा व बालिका आदि रूप में चित्रित किया है। चित्रकार ने उसके अंग-प्रत्यंग के छरहरे पन, तीखे नक्श तथा भावपूर्ण अंकन के बल पर उसे ‘सौन्दर्य के सिद्धान्त’ के रूप में आलेखित किया है। इसी से उसका नग्न-रूप पाश्चात्य कामुकता वाला न होकर सज्जा व मातृत्व रूप में अंकित हुआ है।
अजन्ता के नारी-चित्रण से कला समीक्षक सॉलमन भी बड़े प्रभावित हुये हैं, इस सन्दर्भ में उनका कथन है-
10. विषय वस्तुबौद्ध धर्म की करुणा, प्रेम और अहिंसा ने चितेरों, दान-दाताओं और जन सामान्य को बहुत समय तक अप्रत्याशित रूप से आकृष्ट किया। महात्मा बुद्ध के जन्मजन्मान्तर की कथाएँ, बोधिसत्व-रूप, राजपरिवार व साधारण समाज की परम्पराओं एवं विश्वासों का छेवां अजन्ता भित्तियों में चित्रित गया है। अजन्ता तत्कालीन जीवन का प्रतिरूप है। नगरों और गाँवों, महलों और झोपड़ियों, समुद्रों एवं यात्राओं का संसार अजन्ता में उतर पड़ा है। जुलूस के जुलूस, हाथी-घोड़े व अन्य पशु इस प्रकार चित्रों में उतरे हैं जैसे कि निर्देशक के बताये हुए अभिनय-इशारों पर वे कार्य कर रहे हों। चित्रण प्रक्रियाअजन्ता को गुफाएँ बाघोरा नदी के किनारे घूमी हुई चट्टान में खोदी गई है। शैल-बद्धकों (स्टोन-कटर्स) ने गुफा की दीवारों को आड़ी छैनी चलाकर उत्खनित किया है। भित्ति पर छैनी के जो दाँतें खुदाई के समय बन गये थे, उनमें प्लास्टर की पकड़ मजबूत हो गई है। इन भित्तियों को चित्रण योग्य बनाने के लिए उन पर लोहे के अंश वाली चिकनी मिट्टी में गोबर व धान की भूसी, बजरी या रेत, वनस्पतियों के रेशे व गोंद अथवा सरेस का घोल मिलाकर आधा इंच मोटी तह लीप देते थे। कुछ गुफाओं में गोंद की जगह जिप्सम का प्रयोग किया गया है। इसी के ऊपर चिकनी मिट्टी, बारीक रेत, वनस्पति के रेशे मिलाकर एक ओर पतली तह पहले किये गये प्लास्तर पर चढ़ाते थे। तत्पश्चात् शहद जैसा गाढ़ा सफेदी का विशेष घोल दूसरी वाली तह पर एक या दो बार (अन्डे के छिलके के समान मोटाई वाला) किया जाता था। यह चिकना व चमकदार होता था। राजस्थानी अथवा बुन्देलखण्डी मित्तिचित्रों के समान पहली व दूसरी तह में चूने व झींकी (मारबल इस्ट) अथवा कौड़ी का प्रयोग नहीं किया गया है। अतः अजन्ता में राजस्थानी की आलागीला या आराश वाली कठोर चिन भूमि (buonco or seco ground) नहीं मिलती है। इसी से अजन्ता भित्तिचित्रों के लिये फ्रेस्को शब्द का व्यवहार नहीं किया जा सकता है। फ्रेस्को की सही पद्धति में रंगों को बांधने वाला व विस्तरण करने वाला तत्व पानी ही होता है। अजन्ता की चित्रण पद्धति में रंगों को बांधने व स्थायी-विस्तरण के के लिए गोंद का प्रयोग किया है जैसा कि ‘टेम्परा प्रविधि में होता है। वर्ण‘फस्को’ प्रविधि में रंग चित्र तल के ऊपरी सतह का ही भाग बन जाता है क्योंकि रंग चूने के पानी में मिलाकर सतह पर लगाये जाते है तथा उनकी घुटाई की जाती है। इस पद्धति में वे ही रंग काम में लाये जाते हैं, जिनका चूने के साथ मेल होने पर अवांछित क्रिया न हो पाये। अजन्ता में गीले पलस्तर पर कार्य न करके उसके सूखने पर किया गया है। अजन्ता में रंग तथा उनकी विभिन्न तानों (Tones) का प्रयोग ‘म्यूरल्स’ वाली प्रविधि के अपनाने से सम्भव हो सका। यहाँ पीले रंग (वर्ण) के पीली मिट्टी, लाल के लिये गेरू, सफेद के लिये चीनी मिट्टी, जिप्सम या चूना, काले के लिये काजल, नीले के लिये लाजवर्द तथा हरे रंग के लिये ग्लेकोनाइट पत्थर का प्रयोग किया जाता है। साजवदं बाहर से आयात किया जाता था बाकी रंग स्थानीय खनिजों से उपलब्ध कर लिये जाते थे। इन रंगों को गोंद अथवा सरेस के साथ घोलकर तैयार किया जाता था। अजन्ता चित्र शैली का प्रभाव-प्रसारअजन्ता चित्र शैली का प्रभाव मात्र अपने देश की सीमाओं तक ही नहीं रहा बल्कि अफगानिस्तान, ईरान, तिब्बत, चम्पा, जावा, सुमात्रा, काम्बुज, मलाया, चीन, कोरिया जापान जैसे सुदूर देशों तक गया । किसी भी चित्र शैली की उच्चता व भव्यता का उसके प्रभाव क्षेत्र से अनुमान लगाया जाता है—इसी से अजन्ता चित्र शैली भारतीय शैलियों की सिरमोर कही जाती है। चीन की टांग वंशीय चित्रकला ने अजन्ता के विशेष प्रभाव को ग्रहण किया था। मध्य एशिया में खोतान के तुनह्वांग व तरफान केन्द्रों में बने अनेक कला मन्दिर अपने सौन्दर्य के लिये अजन्ता के प्रति श्रद्धावनत है। अजन्ता के ये दिव्य आलेखन अपने निर्माताओं के अमर चिह्न हैं, चितेरों ने अंधेरी गुहा में बैठकर तथागत की अर्चना हेतु इन चित्र पुष्पों को समर्पित करके स्वयं मोक्ष को प्राप्त हो गये। अजन्ता के चित्र मात्र चित्र नहीं है ये काव्य है, वर्शन है, इतिहास है। यथार्थ में तुलिका की भाषा में निमित ये ‘त्रिपिटक’ के समान अमर ग्रंथ है।
अजंता गुफा चित्रकला के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQ About Ajanta Cave paintingअजंता की गुफाओं में नीले रंग के लिए किस पत्थर का प्रयोग हुआ है अजंता की गुफाओ में प्रयोग किया गया लाजवर्द (प्रखर-नीला) ईरान से मंगवाया जाता था। अजंता की गुफाएं भारत के कौन से राज्य में हैं? अजन्ता की गुफाए महाराष्ट्र में स्थित है अजंता में कुल कितनी गुफाएँ हैं? यहाँ कुल 30 गुफाएँ है। जिनमें 25 विहार तथा 5 चैत्य हैं। अजंता की गुफाएँ किसने बनवाई ? अजन्ता का कार्य शुंग, सातवाहन, कुषाण तथा गुप्तकाल में हुआ। गुप्तकाल में कला का सर्वाधिक विकास हुआ क्योंकि गुप्त सम्राट कला एवं संस्कृति के संरक्षण के पक्षधर थे। अजंता की गुफा के चित्र में कौन से रंग भरे?अजंता की गुफाओं में बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्पकला और चित्रकला पाई जाती है, जो मानवीय इतिहास में कला के उत्कृष्ट अनमोल समय को दर्शाती है. बौद्ध तथा जैन सम्प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं.
अजंता के चित्र क्या चित्र करते हैं?अजन्ता गुफाएँ महाराष्ट्र, भारत में स्थित तकरीबन 29 चट्टानों को काटकर बना बौद्ध स्मारक गुफाएँ जो द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ के हैं। यहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्रण एवम् शिल्पकारी के उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं। इनके साथ ही सजीव चित्रण भी मिलते हैं।
अजंता में कितने प्रकार के चित्र बने हैं?ये 19वीं शताब्दी की गुफाएँ है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं की मूर्तियाँ व चित्र है। हथौड़े और छैनी की सहायता से तराशी गई ये मूर्तियाँ अपने आप में अप्रतिम सुंदरता को समेटे है। अजन्ता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही, गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16, 17 शेष है।
अजन्ता कला की क्या विशेषता है?चट्टान काट-काटकर अजंता में बनाई गई ये गुफाएं, या ताे चैत्य (यानी मंदिर या प्रार्थना करने की जगह), विहार (यानी मठ) हैं या रहने के लिए बनवाई गई हैं. यह अजंता की 8वीं गुफा का नज़ारा है. ईसा पूर्व की दूसरी सदी में बनी यह 9वीं गुफा एक चैत्यगृह है जो बौद्ध धर्म के हीनयान संप्रदाय से जुड़ी है.
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