आपदा क्या है और यह कितने प्रकार की होती है? - aapada kya hai aur yah kitane prakaar kee hotee hai?

आपदा किसे कहते है (aapda kya hai)

आपदा एक मानव जनित अथवा प्राकृतिक विपत्ति है जिससे निश्चित क्षेत्र मे आजीविका तथा सम्पत्ति की हानि होती है, जिसके परिणामस्वरूप मानव और जीव जंतु कष्ट मे पड़ जाते हैं। आपदा से भारी जाना माल की हानि होती है।
आपदा समाज की सामान्य कार्य प्रणाली को बाधित करती है। इससे बहुत बड़ी संख्या मे लोग प्रभावित होते है।
अतः वे समस्त घटनाएं जो प्रकृति मे मे विस्तृत रूप से घटित होती है जो की ना केवल मानव को बल्कि सभी जीवधारियों को असुरक्षित एवं संकट मे डाल देती है आपदाएं कहलाती है। जैसे भूकम्प, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन, आग, आंतकवाद, नाभिकीय संकट, रासायनिक संकट, पर्यावरण संटक आदि आपदाएं है।

आपदाओं से होने वाली हानियाँ 

1. आपदाओं से बड़े पैमाने पर जान-माल की हानि होती हैं।
2. आपदा समाज की सामान्य कार्य प्रणाली को बधाति करती है।
3. आपदाएं पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करती है।
4. आपदा समुदाय को प्रभावित करती है जिसमे क्षतिपूर्ति के लिए बाहरी सहायता की आवश्यकता होती है।
5. आपदाओं से राष्ट्र की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है।

आपदायें 2 प्रकार की होती है--

1. प्राकृतिक आपदाएं
सूखा, बाढ़, भूकंप, भूस्खलन एवं सुनामी। वे समस्त घटनाएं जो प्रकृति मे विस्तृत रूप से घटित होती है और जिनका प्रभाव विनाशकारी होता है।
2. मानवकृत आपदाएं
वे आपदाएं जो मानव के कारण उत्पन्न होती है, मानवकृत आपदाएं कही जाती है। मानवकृत आपदाएं वे संटक है जो मानवीय महत्वाकांक्षा व प्रयासों से सम्बंधित है। आणविक, जैविक, एवं रासायनिक, बम विस्फोट आदि मानवकृत आपदाएं है।
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वे आपदाएं जो प्रकृति में होने वाले अनियंत्रित बदलाव के कारण उत्पन्न होती हैं तथा जिन पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं होता है। जैसे - भूकंप, बाढ़, सूखा, भूस्खलन, हिमस्खलन ज्वालामुखी का फटना, बादल का फटना, चक्रवात, तूफान इत्यादि। यह सभी घटनाएं प्रकृति में होने वाले अनियंत्रित बदलाव के कारण होती हैं जिनको मनुष्य और रोक तो नहीं सकता किंतु इनसे बचने के उपाय कर सकता है और इनके प्रभाव से होने वाली हानि को थोड़ा कम कर सकता है।


आपदा प्रबंधन सूचना प्रणाली के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं को पांच भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

  • भौगोलिक आधार पर
  • जलीय आधार पर
  • जलवायु आधार पर
  • मौसमी आधार पर
  • जैविक आधार पर


भौगोलिक आधार पर :-


इसके अंतर्गत ऐसी घटनाएं आती है जो पृथ्वी के अंदर होने वाली भूगर्भीय प्रक्रियाओं के द्वारा उत्पन्न होती है जैसे - भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी इत्यादि।

जलीय आधार पर :- 


इसके अंतर्गत ऐसी घटनाएं आती है जिसमें जल चक्र अनियंत्रित होकर असामान्य प्रभाव दिखाता है। जैसे बाढ, भूस्खलन इत्यादि।

जलवायु आधार पर :- 


इसके अंतर्गत जलवायु में असामान्य परिवर्तनों के कारण अत्यधिक सूखा पड़ना, जंगलों में आग लगना, अत्याधिक गर्मी या अधिक सर्दी होना तथा ग्लेशियरों का पिघलना इत्यादि जैसी घटनाएं शामिल है।

मौसमी आधार पर :- 


जब मौसम में असामान्य परिवर्तन होते हैं तो इसके कारण टोरनैडो, साइक्लोन, तेज वर्षा जैसी घटनाएं घटित होती हैं।

जैविक आधार पर :- 


इसके अंतर्गत जीवाणु, विषाणु, फंगस इत्यादि से होने वाली बीमारियां शामिल होती है। उदाहरण के लिए कोविड-19, ब्लैक फंगस इत्यादि बीमारियां यह सब जैविक आपदाओं का उदाहरण है।

दोनों प्रकार की आपदाओं का सामना विश्व के प्रायः सभी देशों ने किया है । इन आपदाओं के कारण तात्कालिक भी हो सकते हैं या फिर लम्बे समय की परिस्थितियां भी इसके कारण हो सकते हैं आपदाओं के कारण सामजिक ,पारम्परिक तथ आर्थिक जीवन की आम स्थितियां अस्त व्यस्त हो जाती है अत पाठ्यक्रम की इस इकाई में आपदा के अर्थ ,अवधारणाप्रकृति तथा प्रभावित करनेवाले कारकों तथा आपदाओं के विभिन्न प्रकार की चर्चा की गई है । आपदा प्रबंधन लोक प्रशासन के कार्य का अभिन्न अंग है । लोक प्रशासन के विद्यार्थियों को आपदा की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक प्रतीत होता है। यह इकाई आपदा की सामान्य जानकारी देने में सक्षम होगा ।

 

आपदा की अवधारणा

आपदा का अर्थ हैअचानक होने वाली एक विध्वंसकारी घटना जिससे व्यापक भौतिक क्षति होती हैजान-माल का नुकसान होता है। यह वह प्रतिकूल स्थिति है जो मानवीयभौतिकपर्यावरणीय एवं सामाजिक कार्यकरण को व्यापक तौर पर प्रभावित करती है।

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 - आपदा से तात्पर्य किसी क्षेत्र में हुए उस विध्वंसअनिष्टविपत्ति या बेहद गंभीर घटना से है जो प्राकृतिक या मानवजनित कारणों से या दुर्घटनावश या लापरवाही से घटित होती है और जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में मानव जीवन की हानि होती है या मानव पीड़ित होता है या संपत्ति को हानि पहुंचती है या पर्यावरण का भारी क्षरण होता है। यह घटना प्रायः प्रभावित क्षेत्र के समुदाय की सामना करने की क्षमता से अधिक भयावह होती है।

अतः आपदा कष्टदायक घटना हैजहाँ आम जीवन प्रभावित होता है और जीवन को बचाने के लिए चोट से रोकथाम के लिए तथा आधारभूत संरचना की रक्षा करने के लिए बाहरी सहायता अति आवश्यक हो जाती है।

 

आपदा की परिभाषाएं

1. आपदा प्रबंधन पर उच्चाधिकार समिति की रिपोर्ट के अनुसारजिसने अपनी रिपोर्ट 2001 में प्रस्तुत कीआपदा एक घटना हैजो प्राकृतिक या मानव-निर्मित कारणों से घटित होती है जिससे समाज की दैनिक गतिविधियों में अचानक बाधा आती है और जान.माल का नुकसान होता है। आपदा जोख़िम प्रक्रिया के अंतर्गत घटित होती है। हालाँकि अधिकतर आपदाएँ प्राकृतिक होती हैलेकिन मानव क्रियाएँ इनके जोख़िम और आवृत्ति को बढ़ा देती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ आपदाएँ ऐसी होती हैं जो पूर्णतया मानव-निर्मित हैं जैसे कि आगबाढ़और भूस्खलन। इस प्रकार की आपदाएँ दोषपूर्ण और असंवेदनशील विकासात्मक गतिविधियों का परिणाम हैं।

शब्दकोष के अनुसार

2. आपदा अचानक आई हुई विपति है जिससे बडे पैमाने में जानमाल का नुक्सान होता है।

अन्य परिभाषाये : टर्नर (1997)के अनुसार

ऐसी घटना जो किसी समय और स्थान पर केन्द्रित होती है जिसमे समाज खतरे से गुजरता हैसमाज की आत्म निर्भरता टूटती हैछिन्न भिन्न हो जाती है और वे सामाजिक व्यवस्थाये जिन्हें अभी तक सांस्कृतिक रूप में पर्याप्त माना जाता रहा है ,वे सभी स्थितिया समाप्त हो जाती है

विपदा और आपदा के बीच अन्तर

विपदा एक ऐसी घटना है जिससे जीवन को क्षति पहुँचती है या सम्पत्ति और पर्यावरण को हानि पहुँचती है। इस घटना का पैमानाइसके घटित होने की संभावना और प्रभाव की सीमा तथा उग्रता भिन्न.भिन्न हो सकती हैं। कई स्थितियों में इनका प्रभाव प्रत्याशित है तथा इनका आकलन किया जा सकता है। हमें विपदा हर जगह दिखाई पड़ती है। उदाहरणतया दिल्ली में यमुना क्षेत्र के किनारे बने मकानों पर विपदा प्रतीत होती हैलेकिन आपदा तभी घटित होती है जब पानी का जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर बढ़ जाता हैऔर बाढ़ आ जाती है। विपदा और आपदा के बीच में अंतर स्पष्ट किया जा सकता हैविपदा हर जगह है लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि वह आपदा में परिवर्तित हो जाए। विपदाएँ और आपदाएँ दोनों- प्राकृतिक और मानव-निर्मित हो सकती हैं। विपदा आपदा में तभी परिवर्तित होती है जब जोख़िम और संवेदनशीलता के तत्व सम्मिलित होते हैं। आपदा तभी आती है जब समाज के किसी भाग पर विपदाओं का प्रभाव इससे बचने की या जूझने की क्षमता से बढ़ जाता है।

विपदाओं के प्रकार

प्राकृतिक विपदाओं को उनके स्रोत के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता हैजैसे भूवैज्ञानिकजल व मौसम संबंधी अथवा जैविक विपदाएँ। ख़तरनाक घटनाएँ परिमाण अथवा तीव्रताआवृत्तिकार्यकालसीमा क्षेत्रघटना घटित होने की गतिस्थानिक प्रसार और सामयिक अन्तराल में एक दूसरे से भिन्न हो सकती हैं।

 

आपदाओं का वर्गीकरण एवं प्रकार

आपदाओं को प्रकार-आधारित तथा समय-आधारित आपदाओं में वर्गीकृत किया जा सकता है। प्रकार -आधारित आपदाएँ प्राकृतिक तथा मानव प्रेरित कारकों से उत्पन्न होती हैं।

यह आपदाएँ दो प्रकार की होती हैं :

1) प्राकृतिकतथा

2) मानव-निर्मित।

 

इसी प्रकार समय-आधारित आपदाएँ भी दो प्रकार की होती हैं -

1) धीमी गति से घटित होने वाली आपदाएँजिनकी भविष्यवाणी बिल्कुल सही ढंग से की

जा सकती हैऔर जो कुछ समय अनुक्रिया के लिए प्रदान करती हैंऔर

2) तीव्र गति से घटित होने वाली आपदाएँअप्रत्याशित होती हैंऔर अचानक घटित होती

हैं। ये सबको आश्चर्यचकित कर देती हैं।

 

1) प्राकृतिक आपदाएँ

पर्यावरण असंतुलन और धरती की आंतरिक हलचल जब अपने भयानक रूप में प्रकट होती है तब हम इसे प्राकृतिक आपदा कहते हैं बाढ़सूखाभूकंपज्वालामुखी तथा तूफान आदि प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं जब प्राकृतिक आपदा आती है तब जान-माल की बहुत हानि होती है यातायातसंचार सेवाएँ ठप्प हो जाती हैंमकान गिर जाते हैंमनुष्य  के साथ-साथ पशु पक्षी एवं अन्य जीव जंतु भी मारे जाते हैं |

2) मानव-निर्मित आपदाएँ

मानवीय कार्य से निर्मित आपदा लापरवाहीभूलया व्यवस्था की असफलता मानव - निर्मित आपदा कही जाती है। मानव निर्मित आपदा तकनीकि या सामाजिक कहे जाते हैं तकनीकि आपदा तकनीक की असफलता के परिणाम हैं जैसे इंजीनियरिंग असफलतायातायात आपदा या पर्यावरण आपदा (environmental disaster), समेत I

 

चक्रवात

चक्रवातविपत्तिजनक हवाएँ हैं जो संवेदनशील क्षेत्रों में तीव्र गति और क्रूरता से तूफान लाती हैं। चक्रवात भारत में बारंबार घटित होते हैं। इनको आजकल विभिन्न नामों से भी जाना जाने लगा है जैसे आइला लैला और बंधू । सामान्यतः दो विशिष्ट चक्रवात ऋतुएँ हैं :

मानसून से पहले (मई-जून) और मानसून के बाद (अक्तूबर-नवम्बर)जोकि भारत की 7,516 किलोमीटर लम्बी समुद्रीय तटीय रेखा को प्रभावित करते हैं।

भूकंप

हमारे देश का एक बहुत बड़ा भागभिन्न-भिन्न परिमाण की भूकंपीय गतिविधियों के प्रति संवेदनशील हैजिसे भूकंपी क्षेत्र में बाँटा गया है। अति संवेदनशील क्षेत्र मुख्यतः हिमालय और उपहिमालय क्षेत्रअंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा गुजरात के कच्छ क्षेत्र हैं। भूकंप पृथ्वी की एक अचानक उग्र गति हैजो एक सीमित क्षेत्र में सीमित समय के लिए रहती है।

यह प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा घटित होती हैं जो पृथ्वी की भू-पर्पटी को विकृत कर देती हैं। यह तब होता है जब पृथ्वी की प्लेट एक दूसरे के विपरीत हिलने लगती हैजिससे परिसीमाओं पर प्रतिबल संचित हो जाता है। जब यह प्रतिबल संचय अधिकतम आधारी स्ट्रेन के बिन्दु पर पहुँचता हैचट्टानों में दरार पड़ जाती हैऊर्जा मुक्त होती हैऔर भूकंप उत्पन्न होता है। भूकंप के दौरानपृथ्वी के उदगम केन्द्र से सभी दिशाओं में प्रत्यास्थ तरंगें उत्पन्न होती हैंजिससे धरती बुरी तरह से हिलने लगती है। भूकंप द्वारा हुआ विनाश कई कारणों पर निर्भर करता है जैसे कि परिमाणप्रकारगहराईअधिकेन्द्र से दरू,भूभाग की अवस्थातैयारीदिन का समय तथा भूकंप की समय.सीमा।

बाढ़

बाढ़ या भारी तथा असहनीय आप्लावन की स्थिति में साधारणतः लगातार बारिश के कारण जल नदी के प्राकृतिक बंध से ऊपर बहने लगता हैतथा भारी वर्षा के साथ नदी का पानी आस.पास के क्षेत्रों में बहने लगता है। इस स्थिति के मुख्य कारण जल निकासी सही न होनानदी के किनारे का कटावभूकंप द्वारा नदी का मार्ग बदलनाजंगल काटनानदी के मार्ग में रुकावटतलछट जमा होनाअवधाव और भूस्खलन के कारण प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध होनाआदि हैं। ब्रह्मपुत्र और गंगा बेसिन सबसे ज़्यादा बाढ़ संभावित क्षेत्र हैं।अन्य बाढ़ संभावित क्षेत्र हैं उत्तर.पश्चिम क्षेत्र में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ जैसे नर्मदा और ताप्तीमध्य भारत और डेक्कन क्षेत्र में पूर्व की ओर बहने वाली मुख्य नदियाँ जैसे महानदीकृष्णा और कावेरी।

आग

आग कई प्रकार की होती हैं जैसे दावानल (जंगल में लगने वाली आग)कोयले में लगने वाली आगगैस से लगने वाली आगतेल से लगने वाली आगतथा इमारत में लगने वाली आग। इनमें दावानल सबसे आम है। यह आग गर्म और शुष्क क्षेत्रों के शंकुधारी वनों तथा सदाबहार चौड़े पत्ते वाले वना में ज़्यादा लगती है। लेकिन वर्षा प्रचुर वनोंऔर झड़ने वाले चौड़े पत्तों के वनों में यह आग नहीं लगती। यदि आग लगने की आधारभूत आवश्यकताएँ जैसे वायु और जलने वाला ईंधन (घासझाड़ीगिरी हुई पत्तियाँपेड़ों की टहनियाँ इत्यादि) सूखा है तो आग अवश्य पकड़ेगी। कम आर्द्रता के साथ गर्म तेज धूप वाले दिन तथा तेज हवाएँ जंगल में तेजी से आग फैलाने में सहायक होते हैं। जंगल में कई वृ़क्ष तेलीय या मोम की तरह पदार्थ छोड़ते हैं जो जलने में सहायक होते हैं जिनसे दावानल (जंगल में लगने वाली आग) तेजी से भड़कने लगती है। दावानल (जंगल में लगने वाली आग) को बुझाना आसान नहीं है। साधारणतःघने जंगल में लगने वाली आग एक बार लग जाए तो वह जलती रहती हैजब तक कि भारी वर्षा न हो जाए या जलने वाला ईंधन खत्म न हो जाए। बहुत घने जंगल में लगने वाली आग को काऊन फायर” कहते हैं और यह बहुत ज़्यादा नुकसान करती है। इमारत में लगने वाली आग भी बहुत आम है। लापरवाह रवैये और विनियमों की अनदेखी करने से इमारतोंकोयलेतेल और गैस क्षेत्र में आग लगती है। नई दिल्ली की उपहार सिनेमा हाल की त्रासदी सिनेमा मालिकों और लाईसैंस प्राधिकरण की सरासर असंवेदनशीलता तथा लापरवाही का परिणाम थी।

भूस्खलन और अवधाव

हिमालयपूर्वोत्तर पहाड़ी क्षेत्र तथा पश्चिमी घाट में विभिन्न तीव्रता की अत्यधिक भूस्खलन की गतिविधियाँ होती रहती हैं। नदी के कटावभूकंपीय गतिविधियाँ तथा भारी वर्षा के कारण अत्यधिक भूस्खलन की गतिविधियाँ घटित होती हैं। भारी मानसूनी वर्षा के साथसाथ अक्सर चक्रवातीय गड़बड़ी के कारण पश्चिम घाट में अत्यधिक भूस्खलन की गतिविधियाँ होती हैं। हिमालय के अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में अवधाव एक मुख्य विपदा है।

जम्मू और कश्मीरहिमाचल प्रदेश तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पहाड़ियों में बहुत तीव्र हिम अवधाव होता है।

हिम अवधाव क्षेत्र निम्नलिखित तीन प्रकार के हैं -

लाल क्षेत्रः यह सबसे ख़तरनाक क्षेत्र हैजहाँ हिम अवधाव आते रहते हैं और जिनका प्रभावी दबाव 3 टन प्रति वर्ग मीटर से अधिक होता है।

नीला क्षेत्रः इन क्षेत्रों में अवधाव बल 3 टन प्रति वर्ग मीटर से कम होता हैजहाँ सुरक्षित डिजाइन के आधार पर निर्माण करके रहनेऔर अन्य गतिविधियों की आज्ञा दी जा सकती है। इन क्षेत्रों को चेतावनी मिलने पर तुरंत खाली कराया जा सकता है।

पीला क्षेत्रः यहाँ पर हिम अवधाव कभी.कभार होते हैं।

 

सुनामी

सुनामी एक समुद्री लहरों की शृंखला है जो लम्बे समय के लए उच्च गति से बहती हैंजो समुद्र के विशाल जल क्षेत्र के अचानक विस्थापन के कारण घटित होती है। यह भूकंपसबमेरिन भूस्खलनज्वालामुखी का फूटनाउल्का-पिण्ड के प्रभावया मानवीय गतिविधियों के कारण घटित हो सकती है। सबसे अधिक विनाशकारी सुनामी बड़े भूकंप के कारण उत्पन्न होती हैंजिसका केन्द्र बिन्दु गहरे समुद्रीय तल पर या उसके पास होता है। भारतीय महासागर में आए 2004 के सुनामी ने तमिलनाडू,केरल व पाँडिचैरी के तटीय इलाकों को बुरी तरह से प्रभावित किया व भारत को ऐसी गंभीर आपदा के प्रति जागरूक किया।

खाद्य आपदा

खाद्य आपदा के कई कारण होते है -

1. सूखा

2. अकाल

3. महंगाई

4. लोगों की क्रय शक्ति में हृस

5. उत्पादन के समय कृषि पैदावार के दाम में कमी

6. ब्लैकमार्केटिंग

7. अनियंत्रित जमाखोरी

8. खाद्यान्न के परिवहन व्यवस्था में व्यवधान

9. खाद्यान्नों के उत्पादन को प्रोत्साहित न करना

10. कृषि निवेषों जैसे बीजखादबिजलीकीटनाषकआदि के मूल्यों में वृद्धि

11. अन्य आपदाओं के कारण उत्पादन में नुकसान या फसलों को क्षति।

12. संक्रमित रोग या फसल में कीड़ा लगना।

 

सूखा

उग्र आरै दुर्लभ सूखा शुष्क तथा अध.र् शुष्क क्षेत्रों में प्रत्येक 8-9 सालों में पड़ता रहता है सूखा लम्बे समय से पानी की कमी के परिणामस्वरूप पड़ सकता है। पानी की कमी कम वर्षाअपर्याप्त जल प्रबंधन तकनीक और लगातार सरकार की उदासीनता से हो सकती है। सूखे की उग्रता आद्रता - कमीसूखा पड़ने की अवधिसिंचाई सुविधाओं तथा प्रभावित क्षेत्र के आकार पर निर्भर करती है।एक अनियमित पैटर्न जोकि निम्न (750 मि.मीसे कम) तथा मध्यम (750 -1125 मि.मी.) हैसंपूर्ण क्षेत्र के 68 प्रतिशत भाग को आवधिक सूखे के लिए संवेदनशील बनाती है। सूखा और अकाल दो अलग हालात हैं। अकाल को उस स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है जब लोगों को खाना बड़ी मुश्किल से मिलता हैजिससे भूख और भुखमरी पैदा हो जाती है। अकाल कुप्रबंध के कारण भी हो सकता हैजबकि सूखा नहीं पड़ा हो। दूसरी तरफयदि सूखे का अच्छी प्रकार से प्रबंधन किया जाएतो अकाल नहीं पड़ सकता।

विद्वान नामिया (1989) के अनुसार सूखा तब होता हैजब बारिष की मात्रा इतनी कम हो जाए कि वह अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों जैसे कृषिजल आपूर्ति तथा पानी से संबंधित कुछ और क्षेत्रों को प्रभावित करने लगे।

सूखा की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है-

1. नमी में अतिषय कमी

2. खुष्क मौसम की अवधि

3. सिंचाई की सुविधा किस हद तक है

4. प्रभावित क्षेत्र का आकार

 

 

अकाल

अकाल उस स्थिति को कहा जाता है जब लोगों को उपलब्ध होने वाले खाद्यान्न की मात्रा इतनी कम हो जाती है कि लोगों को भूखे मरने की नौबत आ जाती है या फिर उत्पादित खाद्यान्न आम जनता तक नहीं पहुँच पाती है। सूखा न होने की स्थिति में भी यदि खाद्यों का प्रबंधन ठीक ढ़ंग से नहीं किया जा रहा है तो अकाल की स्थिति आ सकती है। दूसरी तरफ सूखा पड़ने के बाद भी यदि खाद्यान्नों का समुचित भंडारण हो तो अकाल नहीं पड़ेगा।

अतः यह दोनों परिस्थितियॉ भोजन से संबंधित होते हुए भी अलग-अलग है। मुख्य रूप से खाद्य प्रबंधन द्वारा खाद्य आपदा से बचा सकता है। खाद्य आपदा प्रबंधन में इसी कुषल प्रबंधन की चर्चा होती है। सूखे जैसी आपदा में भी हम लोगों को जीवित रख सकते है। एक अच्छे खाद्य आपदा प्रबंधन द्वारा अन्न की सुरक्षा भी की जा सकती है। प्रत्येक बड़े सूखे के कारण खाद्यान्न उत्पादन में होने वाली कमी के कारण अर्थव्यवस्था और अन्न की सुरक्षा अत्यधिक पिछड़ जाती है।

आपदा क्या है और कितने प्रकार के होते हैं?

आपदा दो प्रकार की होती हैं- प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदा। उदाहरण के लिये- आग, दुर्घटनाएँ (सड़क, रेल या वायु) औद्योगिक दुर्घटनाएँ या महामारी मानव निर्मित आपदाओं के कुछ उदाहरण हैं। प्राकृतिक और मानवनिर्मित दोनों ही आपदा भयानक विनाश करती हैं।

आपदा क्या है in Hindi?

आपदा एक मानव-जनित अथवा प्राकृतिक घटना है जिसका परिणाम व्यापक मानव-क्षति है । इसके साथ ही एक सुनिश्चित क्षेत्र में आजीविका तथा सम्पत्ति की हानि होती है जिसकी परिणति मानवीय वेदना तथा कष्टों में होती है। आपदा समाज की सामान्य कार्य प्रणाली को बाधित करती है । इसके कारण बहुत बड़ी सख्या मे लोग प्रभावित होते हैं ।

प्राकृतिक आपदा कितने प्रकार की होती हैं?

प्राकृतिक आपदाएं एवं प्रकार ,प्राकृतिक आपदा कितने प्रकार के होते हैं.
भूकम्प (Earthquakes ).
ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruptions).
भूस्खलन (Landslides).
सुनामी ( Tsunami).
हिम्स्खलन (Snow Avalanches).
बाढ़ (Floods).
अत्यधिक तापमान या ऊष्म लहर ( Extreme Temperature Heat Wave).
सूखा (Droughts ).

आपदा कैसे आते हैं?

जब प्रकृति में असंतुलन की स्थिति होती है, तब आपदायें आती हैं जिसके कारण विकास एवं प्रगति बाधक होती है। प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त कुछ विपत्तियाँ मानवजनित भी होती हैं। प्राकृतिक आपदायें जैसे- भूकम्प, सुनामी, भूस्खलन, ज्वालामुखी, सूखा, बाढ़, हिमखण्डों का पिघलना आदि हैं